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16 वर्षीय अन्विथा कोलीपारा सौर ऊर्जा के लाभों के बारे में भारत के ग्रामीण समुदायों को शिक्षित कर रही हैं
अन्विथा कोलीपारा की परियोजना ‘सोलेडु’ ग्रामीण क्षेत्रों में सस्ती और स्वच्छ ऊर्जा की कमी के मुद्दों के बारे में जागरूक करती है, और यह भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में सौर ऊर्जा तक पहुंच प्रदान करने की दिशा में काम करती है
नई दिल्ली: भारत के ग्रामीण इलाकों में अक्सर घंटों बिजली गुल रहती है. लोड शेडिंग की यह अवधारणा 16 वर्षीय अन्विथा कोलीपारा के लिए अलग थी, जो हाल ही में अमेरिका से भारत शिफ्ट हुई थीं. वह आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के कृष्णा जिले के कपिलेश्वरपुरम में अपने दादा-दादी के घर गईं, और देखा कि लंबे समय तक बिजली कटौती के कारण ग्रामीणों को पसीना बहाना पड़ रहा था. जिस बात ने उनका ध्यान आकर्षित किया, वह यह थी कि कैसे लगातार पावर कट की समस्या ने बच्चों और उनकी पढ़ाई को बाधित किया.
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ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के बीच असमानता के बारे में बात करते हुए, कोलीपारा ने कहा,
जब मैं अमेरिका से भारत आई, तो मैंने भोजन, पानी आदि जैसे बुनियादी संसाधनों तक पहुंच में भारी असमानता देखी. लेकिन जब मैं अपने दादा-दादी के घर गई, तो मुझे एहसास हुआ कि ऊर्जा संकट भी ज्वलंत मुद्दों में से एक था, और यह मेरे लिए काफी गंभीर था. मैंने वंचितों, विशेष रूप से बच्चों पर लगातार बिजली कटौती का प्रभाव देखा. उदाहरण के लिए, ये बच्चे सरल चीजें करने में सक्षम नहीं थे, जैसे कि रात में अध्ययन करना, और तब मुझे पता चला कि मुझे बदलाव करना होगा.
उन्होंने महसूस किया कि ऊर्जा के रिन्यूएबल सोर्स पर स्विच करना वंचितों को बिजली प्रदान करने का सबसे अच्छा तरीका है और इसलिए, उन्होंने सौर ऊर्जा तक पहुंच को सक्षम करने और वंचितों को इसके बारे में शिक्षित करने की दिशा में काम करने का फैसला किया.
कोलीपारा ने प्रोजेक्ट सोलएजू लॉन्च किया, जो ग्रामीण क्षेत्रों में समुदायों को सौर ऊर्जा और समाज पर इसके सकारात्मक प्रभावों के बारे में सूचित करने के लिए एक पहल है. इस परियोजना के माध्यम से, कोलीपारा ग्रामीण क्षेत्रों में सस्ती और स्वच्छ ऊर्जा की कमी और वायु प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन से संबंधित मुद्दों को संबोधित करती हैं. वह जागरूकता बढ़ाकर और 10-15 वर्ष की आयु के बच्चों के बीच सूचनात्मक कार्यशालाएं प्रदान करके यह सब करती हैं.
कार्यशाला के लिए, कोलीपारा ने सौर ऊर्जा पर एक पाठ्यक्रम बनाया है और आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और एसओएस स्कूलों में टीच फॉर इंडिया स्कूलों के सहयोग से काम किया है. उनका दृष्टिकोण ‘एक समय में एक सौर मंडल के साथ ग्रामीण भारत को रोशन करना है’. वह ऊर्जा की कमी और उपलब्ध नवीकरणीय ऊर्जा के बीच के गैप को भरना चाहती हैं ताकि हर छात्र को बिना किसी समय की कमी के कुशलतापूर्वक अध्ययन करने में मदद मिल सके.
उनकी कार्य योजना को कई चरणों में विभाजित किया गया है, जिसमें सौर ऊर्जा के महत्व पर गांवों में छोटे पैमाने पर और राष्ट्रीय स्तर की कार्यशालाएं शामिल हैं, छात्रों को स्वयं के निर्माण के लिए सौर ऊर्जा से चलने वाले लैंप प्रदान करना भी शामिल है.
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अपनी परियोजना के लिए, कोलीपारा ने यूनिसेफ इंडिया, टीच फॉर इंडिया और एनर्जी स्वराज फाउंडेशन जैसे कई संगठनों के साथ सहयोग किया. बेंगलुरु स्थित संगठन, 1एम1बी (1 मिलियन फॉर 1 बिलियन) फ्यूचर लीडर्स प्रोग्राम के साथ नामांकन करने के बाद उनकी परियोजना भारी संख्या में लोगों तक पहुंच गई.
1M1B एक संयुक्त राष्ट्र मान्यता प्राप्त गैर-लाभकारी संगठन है जो एक अरब आबादी की मदद करने के लिए दस लाख लीडर्स को सक्रिय करने की दिशा में काम करता है. यह युवाओं को भविष्य में होने वाली समस्या हल करने में सक्षम बनाने के लिए तैयार करता है, जिससे वास्तविक समाज पर भी प्रभाव पड़ता है.
शुरुआती चरण में उनके सामने आने वाली चुनौतियों के बारे में बात करते हुए, कोलीपारा ने कहा कि परियोजना के लिए वित्त पोषण प्रारंभिक चरण में एक बड़ी चिंता थी.
शुरुआत में, इसे शुरू करना मुश्किल था. मुझे स्थानीय कार्यक्रमों में बहुत अधिक धन जुटाना पड़ा, और मैंने अपनी किस्मत आजमाने के लिए कई प्रतियोगिताओं में भी भाग लिया.
सोलएजू का प्रभाव
परियोजना के प्रति उनकी निरंतरता और समर्पण के चलते उन्होंने यूनिसेफ जैसे कई संगठनों के साथ काम किया, जिसने उन्हें और अधिक स्कूलों से जोड़ा. कोलीपारा ने कहा कि ये सहयोग सोलेडु की उपलब्धियों और सीखों में सहायक साबित हुए.
कोलीपारा ने कहा कि परियोजना की सबसे बड़ी उपलब्धि 1एम1बी के फ्यूचर लीडर्स कार्यक्रम में नामांकन करना था, जिसने उन्हें सोलेडु के बारे में संयुक्त राष्ट्र में बोलने का अवसर दिया. उन्होंने न्यूयॉर्क में 3 दिवसीय इमर्शन में भाग लिया, जहां उन्होंने संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में वार्षिक 1एम1बी एक्टिवेट इम्पैक्ट समिट में अपनी परियोजना के प्रभाव को प्रदर्शित किया.
अब तक, कोलीपारा ने 400 से अधिक छात्रों को प्रभावित किया है, बच्चों को 300 से अधिक सौर ऊर्जा लैंप वितरित किए हैं, और कई स्कूलों में कई कार्यशालाओं और सत्रों का आयोजन किया है.
भविष्य की योजनाएं
प्रोजेक्ट सोलेडु के माध्यम से, कोलीपारा स्कूलों और अन्य स्थानों में पूर्ण सौर ऊर्जा प्रणाली स्थापित करने की योजना बना रही हैं जिसका उपयोग छात्र अपनी पढ़ाई के लिए कर सकते हैं. उन्होंने कहा कि यह न केवल पूरे दिन बल्कि सुबह के समय पढ़ाई पसंद करने वाले छात्रों के लिए भी निरंतर ऊर्जा प्रवाह सुनिश्चित करेगा.
इसके अलावा, वह अपने प्रोग्राम की भौगोलिक पहुंच का विस्तार करने की दिशा में काम कर रही हैं. शुरू में, उन्होंने दक्षिण भारतीय क्षेत्र के स्कूलों को कवर किया, और अब उनकी यह परियोजना पूर्वोत्तर क्षेत्र को भी कवर कर चुकी है.
पूर्वोत्तर क्षेत्र में, कभी-कभी छात्र बिना बिजली के लगातार दो से तीन दिन बिताते हैं, और यह महीने में कई बार होता है. वहां बिजली की समस्या कहीं ज्यादा खराब है।.
कोलीपारा पूर्वोत्तर के स्कूलों में सौर पैनल स्थापित करने के लिए सनबर्ड ट्रस्ट के साथ काम कर रही हैं.
भारत के युवा देश के भविष्य और उस समूह दोनों का प्रतिनिधित्व करते हैं जो चेंजमेकर माइंडसेट और कॉग्निटिव एम्पथी के साथ सशक्त होने के लिए सबसे ज़्यादा रिसेप्टिव है. ग्रामीण क्षेत्रों में बार-बार बिजली कटौती के मुद्दे को कम करने के लिए कोलीपारा के प्रयासों को देखते हुए, यह स्पष्ट है कि भारत इनोवेटिव और क्रिएटिव लोगों के सुरक्षित हाथों में है.
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