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EcoKaari स्टार्टअप की अनूठी पहल- चिप्स के पैकेट से लेकर कैसेट तक हर तरह की प्लास्टिक वेस्ट को रीयूज करके बनाए जा रहे हैं उपयोगी प्रोडक्ट
पुणे बेस्ड स्टार्टअप इकोकारी (EcoKaari) प्लास्टिक के कचरे को बैग, वॉलेट, प्लांटर्स, टेबल रनर, लॉन्ड्री बैग जैसी रोजाना के इस्तेमाल में आने वाली वस्तुओं में बदल रहा है
नई दिल्ली: सोचिए कि आपको भूख लग रही है और कुछ खाने के लिए आप काम से थोड़ा ब्रेक लेते हैं. आप खाने के लिए अपने पसंदीदा पोटेटो चिप्स का एक पैकेट खरीदते हैं और अपने कलीग्स के साथ गपशप करते हुए अगले 10 मिनट में इसे खत्म कर देते हैं. उसके बाद आगे क्या? आप चिप्स का मसाला हटाने के लिए अपने हाथ झाड़कर खाली पैकेट को फेंक देते हैं और काम करने के लिए अपनी सीट पर वापस आ जाते हैं. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि आप एक दिन में ऐसे कितने रैपर या प्लास्टिक का कचरा पैदा करते हैं? किसी भी लीकेज से बचने के लिए खाने के बॉक्स को पैक करने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले पॉलिथीन बैग और फूड पैकेट से लेकर डिटर्जेंट पैक तक, हम कई तरीके से हर रोज प्लास्टिक का इस्तेमाल करते हैं. एक बार उसे फेंक दिए जाने के बाद, हम उसके बारे में भूल जाते हैं; दरअसल हमारी आदत होती है जो चीज हमें नजर नहीं आती हम उसके बारे में नहीं सोचते. जैसे कहते हैं ना, out of sight, out of mind. लेकिन क्या आपको पता है कि फेंकी गई प्लास्टिक को डीकम्पोज होने के लिए 20 से 500 साल लगते है और तब भी यह कभी भी पूरी तरह से डीकम्पोज नहीं होगी. यह प्लास्टिक कचरा समुद्री वन्यजीवों के लिए घातक होता है और मिट्टी को भी नुकसान पहुंचाता है. यह जमीन के अंदर मौजूद पानी को जहरीला बना देता है और हमारे स्वास्थ्य पर भी गंभीर प्रभाव डाल सकता है.
लेकिन पुणे बेस्ड स्टार्टअप इकोकारी (EcoKaari) प्लास्टिक के कचरे को क्रिएटिव तरह से दोबारा इस्तेमाल करके बैग, वॉलेट, प्लांटर्स, टेबल रनर, लॉन्ड्री बैग जैसी रोजाना इस्तेमाल में आने वाली वस्तुओं में बदल रहा है.
इकोकारी नंदन भट्ट के दिमाग की उपज है, जो कश्मीर में पैदा हुए और वहीं पले-बढ़े, जहां उनमें पहाड़ों और पर्यावरण के प्रति प्रेम पैदा हुआ. और यही वह प्यार है जिसने उन्हें इकोकारी बनाने के लिए प्रेरित किया. अपने इस सफर के बारे में बताते हुए, नंदन भट्ट ने कहा,
मेरा बचपन कश्मीर में बसे एक गांव चंद्रहामा में बीता. हालांकि, जल्द ही हमें वहां से विस्थापित कर दिया गया और जम्मू के प्रवासी शिविरों में भेज दिया गया. सीमित संसाधनों के साथ भी आप साधन संपन्न कैसे बन सकते हैं ये मैंने उन शिविरों में रहते हुए सीखा.
फिर बाद में नंदन भट्ट एजुकेशन और काम की तलाश में पुणे चले गए. कॉरपोरेट सेक्टर में काम करने के दौरान उन्हें देश भर में घूमने और ट्रैकिंग करने का मौका मिला. अपनी इन यात्राओं के दौरान उन्होंने चारों ओर बिखरी हुई प्लास्टिक की बोतलें, डिब्बे और रैपर देखे. हालांकि बोतलों को तो कचरा बीनने वाले देखकर उठा लेते हैं, क्योंकि उन्हें इसका पैसा मिलता है, लेकिन खाली पैकेट वहीं पड़े रहते हैं. नंदन ने कहा,
इसने मुझे अपने जीवन के मकसद के बारे में सोचने के लिए प्रेरित किया.
2013 में नंदन भट्ट ने कॉर्पोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी (Corporate Social Responsibility – CSR) कंसल्टेंट बनने और पर्यावरण की दिशा में काम करने के लिए सेल्स और मार्केटिंग में अपना जमा जमाया करियर छोड़ दिया. हालांकि, उनका ये कदम भी उस तरह से काम नहीं कर पाया जैसा वह चाहते थे. फिर 2020 में भट्ट ने अपने भरोसे के दम पर एक आइडिया पर दो साल काम किया और देखा कि यह उन्हें कहां तक ले जाता है.
और इस तरह इकोकारी (EcoKaari) का जन्म हुआ.
आज, इकोकारी (EcoKaari) हर महीने तीन टन प्लास्टिक कचरे का क्रिएटिव तरह से दोबारा यूज करती है. प्लास्टिक का कचरा चार अलग-अलग सोर्स से आता है – कचरा बीनने वालों के साथ काम करने वाले और प्लास्टिक कचरे से निपटने वाले संगठन; ITC, नेस्ले और पेप्सी जैसी कंपनियों के डोनेशन से ; इंडिविजुअल डोनेशन; शहर के थोक विक्रेताओं से खरीदा गया प्लास्टिक कचरा.
कचरा बनने से लेकर इस्तेमाल होने वाला प्रोडक्ट बनने तक प्लास्टिक की इस जर्नी के बारे में बात करते हुए, नंदन भट्ट ने कहा,
सबसे पहले प्लास्टिक के कचरे को धोया जाता है, सेनिटाइज किया जाता है और फिर धूप में सुखाया जाता है. यह एक मैनुअल प्रोसेस है; फेब्रिक मेकिंग में किसी भी केमिकल या इलेक्ट्रिसिटी का इस्तेमाल नहीं किया जाता. इसके बाद प्लास्टिक को रंग और मोटाई के आधार पर कैटेगराइज यानी वर्गीकृत किया जाता है और लंबी पट्टियों (स्ट्रिप) में काटा जाता है. फिर उन्हें पारंपरिक चरखे (spinning wheel) पर घुमाया जाता है और एक फेब्रिक बुना जाता है. डिजाइन टीम फिर इससे प्रोडक्ट तैयार करती है.
हमारी टीम पॉलिथीन, ग्रोसरी प्लास्टिक बैग, मल्टीलेयर रैपर, गिफ्ट रैप और पुराने ऑडियो और वीडियो कैसेट टेप सहित कई तरह के प्लास्टिक कचरे का इस्तेमाल करती है.
इसके प्रोडक्ट कैटेलॉग में कई तरह के बैग शामिल हैं – टोट्स (totes), हैंडबैग (handbags), बैकपैक (backpacks), लंच बैग (lunch bags) और लैपटॉप स्लीव्स (laptop sleeves) – वॉलेट (wallets) और पाउच (pouches), डायरी (diaries), की चेन (key chains), पानी की बोतल का कवर (water bottle covers), पासपोर्ट होल्डर (passport holders), ट्रे (trays) और प्लांटर्स (planters) जैसी एसेसरीज. इन प्रोडक्ट की कीमत 130 से 3,000 रुपये के बीच होती है.
नंदन भट्ट ने बताया कि हर प्रोडक्ट यूनीक होता है, यह इस बात पर निर्भर करता है कि उन्हें किस तरह के प्लास्टिक कचरे से बनाया गया है. उदाहरण के लिए, हर ब्लू कलर के बैग में ब्लू का एक अलग शेड होगा, क्योंकि ब्लू कलर वाले कई तरह तरह के प्लास्टिक कचरे का उसमें इस्तेमाल किया गया होगा. उन्होने अपनी बात में जोड़ा,
यही वजह है कि हम ई-कॉमर्स वेबसाइटों पर अपने प्रोडक्ट को मार्केट नहीं करते हैं. हमें कैटेगरी के तहत हर एक आइटम की एक तस्वीर डालनी होगी. सभी प्रोडक्ट इकोकारी की वेबसाइट पर उपलब्ध हैं.
दिलचस्प बात यह है कि इकोकारी नंदन भट्ट का खुद का आइडिया नहीं है. उन्होंने कहा,
गुजरात के एक क्षेत्र में बेसलाइन सर्वे करते समय, मेरे एक इंटर्न, जो एक एक्सचेंज प्रोग्राम के तहत फ्रांस से आया था, ने एक NGO को प्लास्टिक के कचरे से कपड़ा बुनते हुए देखा.
जब नंदन भट्ट ने एक वेंचर शुरू करने का फैसला किया, तो उस NGO की महिलाएं उन्हें और दूसरे लोगों को ट्रेंनिंग देने की स्थिति में नहीं थीं. हालांकि, भट्ट द्वारा उनके इस आइडिए को आगे बढ़ाने से उन्हें कोई आपत्ति नहीं थी. उन्होंने कहा,
मैंने खुद को वीविंग (weaving) में ट्रेंड (प्रशिक्षित) किया और फिर कुछ कारीगरों के साथ मिलकर एक छोटी स्केल पर शुरुआत की. इस बात को लेकर एक झिझक थी कि हम कूड़े से चीजें बना रहे हैं. क्या मार्केट इसे स्वीकार करेगा?
धीरे-धीरे उन्होंने अपने बिजनेस को बढ़ाया. पुणे और कर्नाटक में उन्होंने दो प्रोडक्शन यूनिट सेटअप कीं, जिससे 100 कारीगरों को रोजगार मिला. नंदन भट्ट ने कहा,
जब हमें बल्क ऑर्डर मिलते हैं, तो मैं कुछ ऑर्डर उस NGO को भेज देता हूं. हम सहयोग (कोलैबोरेट) करना जारी रखेंगे.
इकोकारी के लिए कुछ कोलेबोरेशंस (collaborations) आ रहे हैं, जिसके तहत मार्च 2024 तक लगभग 2,000 कारीगरों को प्रशिक्षित किया जाएगा. नंदन भट्ट ने कहा कि हम यूरोपीय देशों में अपने हैंडमेड (हाथ से बने) प्रोडक्ट्स को एक्सपोर्ट करने के बारे में सोच रहे हैं क्योंकि वहां का मार्केट मैच्योर है.
अपनी चुनौतियों के बारे में बात करते हुए, नंदन भट्ट ने कहा,
भारत में किसी प्रोडक्ट में सस्टेनेबिलिटी को लेकर अभी मैच्योरिटी नहीं आई है. लोग अक्सर पूछते हैं कि आप कचरे से बने प्रोडक्ट के लिए हमसे पैसे क्यों ले रहे हैं? आपको इसे मुफ्त में देना चाहिए. दूसरा, हालांकि प्लास्टिक हर जगह उपलब्ध है, लेकिन यह सही फॉर्म में उपलब्ध नहीं होती है. उदाहरण के लिए, यदि कोई प्लास्टिक बैग सैनिटरी वेस्ट के साथ आता है, तो यह कचरा बीनने वाले के लिए भी मुश्किल होता है कि वह उसमें अपना हाथ डाले. तीसरा, हम काम करते हुए सीख रहे हैं. डिफरेंट तरह की प्लास्टिक के अलग-अलग ट्रीटमेंट होते हैं. उदाहरण के तौर पर, हैंड वॉश का रिफिल पैक साबुन के पैकेट से ज्यादा मोटा होता है.
नंदन भट्ट ने कहा कि चुनौतियों के बावजूद, इकोकारी प्रोडक्ट कैनवास की तरह मजबूत हैं.
यह ब्रांड जरूरत पड़ने पर मुफ्त रिपेयर के रूप में प्रोडक्ट की बिक्री के बाद सर्विस ऑफर करता है. रिपेयर में बैग के स्ट्रैप को ठीक करना या किसी ढीली सिलाई को ठीक करना शामिल हो सकता है. इन प्रोडक्ट्स को उनकी लाइफ साइकिल पूरा होने पर सेफ डिस्पोजल के लिए ग्राहकों से वापस ले लिया जाता है. फिर इस प्लास्टिक कचरे को दूसरे संगठनों को भेजा जाता है जो इसका इस्तेमाल फ्यूल जनरेट करने के लिए करती हैं. कॉटन या फैब्रिक वेस्ट का इस्तेमाल एक अलग एनटिटी (entity) के द्वारा क्लीनिंग पर्पज के लिए किया जाता है. इस तरह इकोकारी प्लास्टिक वेस्ट की समस्या से निपटने और लोगों को रोजगार मुहैया कराने में मदद कर रहा है.