जलवायु परिवर्तन

कृषि पर जलवायु परिवर्तन की मार; 2023 के अनियमित मौसम से उत्पादन पर असर

1901 में रिकॉर्ड रखने की शुरुआत के बाद से भारत को 2023 में अब तक की सबसे गर्म फरवरी का सामना करना पड़ा. मौसम में भारी उतार-चढ़ाव की घटनाएं जैसे – लंबे समय तक सूखे का दौर, लू, भारी बारिश के बाद ओलावृष्टि – ये सभी जलवायु परिवर्तन के लिए जिम्मेदार हैं और सभी तरह की फसलों को अलग-अलग तरीकों से प्रभावित करती हैं. हमने इसका आकलन किया कि 2023 में तेजी से बदलते मौसम ने कृषि को कैसे प्रभावित किया और भोजन की उपलब्धता और उसकी न्यूट्रीशनल वैल्यू के संदर्भ में इसका क्या मतलब है

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2023 में सात प्रमुख आम उत्पादक राज्यों में बेमौसम बारिश, ओलावृष्टि और कीटों के संक्रमण से आम के उत्पादन और उसकी क्वालिटी पर खराब असर पड़ा

नई दिल्ली: राजधानी दिल्ली से तीन घंटे की दूरी पर, हरियाणा के नूंह जिले में, अरशद खान अली पिछले 15 सालों से अपनी पट्टे की एक एकड़ जमीन पर खेती कर रहे हैं. मौसम चक्र के आधार पर अली टमाटर, बैगन, हरी मिर्च और लौकी जैसी सब्जियां की खेती करते हैं. लेकिन अब उनका खेती करने का पुराना पैटर्न काम नहीं कर रहा है.

अरशद खान अली निराश होकर कहते हैं, “इस साल भारी बारिश हुई. मैंने एक एकड़ जमीन पर टमाटर लगाए थे जो मैंने पट्टे पर ली थी. मेरी लगभग पूरी फसल बर्बाद हो गई.” मई में गर्मी के मौसम में बेमौसम बारिश के चलते अली जैसे कई किसानों ने फसल काटने से महज कुछ दिन पहले ही अपनी पूरी फसल को खो दिया.

हरियाणा के नूंह के एक किसान अरशद खान अली, अपनी बर्बाद हुई टमाटर की फसल को देखते और अनुमान लगाते हुए कि उन्हें कितने पैसों का नुकसान होगा | मई, 2023

आठ बच्चों के पिता के लिए, फसल बर्बाद होने का मतलब गंभीर आर्थिक नुकसान था जिसकी भरपाई करना मुश्किल था. बर्बाद हुए टमाटरों पर चलते हुए और अपनी उम्मीदों को कुचलते हुए देखकर, अली कहते हैं,

मैंने जो 1.1 लाख रुपये इस फसल पर खर्च किए थे, वो भी नहीं वसूल पाऊंगा. पिछले छह सालों से, हम मौसम में बदलाव देख रहे हैं; जब फसल शुरुआती अवस्था में होती है तो बारिश शुरू हो जाती है. इसके बाद फंगस का प्रकोप झेलना पड़ता है, बारिश के बाद फसल बर्बाद हो जाती है.

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इस साल भारत में कई दूसरी फसलों का भी यही हाल हुआ. केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने 1 अगस्त को लोकसभा में एक लिखित उत्तर में बताया कि बेमौसम बारिश, ओले गिरने और कीट संक्रमण ने सात राज्यों में आम के उत्पादन और उसकी क्वालिटी पर खराब असर डाला है. ये सात राज्य – आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, तेलंगाना, तमिलनाडु, गुजरात और महाराष्ट्र हैं.

उन्होंने कहा, आंध्र प्रदेश में मार्च और मई 2023 के पहले सप्ताह के दौरान हुई बेमौसम और भारी बारिश, ओलावृष्टि और तेज हवाओं की वजह से 98.46 हेक्टेयर क्षेत्र में फैली आम की फसल को नुकसान पहुंचा है.

इसी तरह, उत्तर प्रदेश में जून और जुलाई के दौरान लगभग एक पखवाड़े तक लगातार हुई बारिश के कारण पेस्ट मैनेजमेंट करने में मुश्किल हुई और इससे भी आम की फसल पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा.

जहां तमिलनाडु में आम की फसल के उत्पादन में 53 प्रतिशत के नुकसान का अनुमान है, वहीं प्रतिकूल मौसम की वजह से महाराष्ट्र में आम के उत्पादन में लगभग 61 प्रतिशत की गिरावट देखी गई है.

फलों और सब्जियों के अलावा मौसम में हो रहा बदलाव चाय के उत्पादन पर भी असर डाल रहा है. यह चिंता का विषय होना चाहिए क्योंकि भारत दुनिया में चाय का सबसे बड़ा उपभोक्ता और निर्यातक है. असम, भारत का सबसे बड़ा चाय उत्पादक राज्य है, जो देश के चाय उत्पादन के लगभग 52 प्रतिशत और विश्व के चाय उत्पादन के लिए 13 प्रतिशत हिस्सेदार है. इसकी फसल मौसम पर ज्यादा निर्भर करती है, जो अब बढ़ते तापमान और घटती बारिश की मार झेल रही है. सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट रिपोर्ट, “भारत 2023: मौसम में भारी उतार चढ़ाव की घटनाओं के आकलन” के मुताबिक, 1 जनवरी से 30 सितंबर, 2023 के बीच, असम में 48,029 हेक्टेयर में फैली फसल के खराब होने की रिपोर्ट मिली है.

असम के तेजपोर और गोगरा टी एस्टेट में चाय की पत्तियां तोड़ती महिलाएं

18 दिसंबर को न्यूज एजेंसी ANI के साथ एक इंटरव्यू में, गुवाहाटी टी ऑक्शन बायर्स एसोसिएशन (Guwahati Tea Auction Buyer’s Association – GTABA) के सेक्रेटरी दिनेश बिहानी ने कहा कि जहां तापमान बढ़ने की वजह से चाय की क्वालिटी पर असर पड़ा है वहीं अचानक और असमान बारिश के कारण इसकी पैदावार भी घटी है. उन्होंने कहा,

इसका असर चाय के निर्यात पर भी पड़ा है. जलवायु परिवर्तन और रूस-यूक्रेन के युद्ध के कारण यह साल चाय उद्योग के लिए अच्छा नहीं रहा है. हमें कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा है और चाय की कीमत भी गिरी है.

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देश के मुख्य पेय पदार्थ चाय से लेकर दो प्रमुख फसलें चावल और गेहूं भी जलवायु परिवर्तन के कारण खतरे में हैं. पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मोदीनगर के गदाना गांव के किसान महेंद्र सिंह ने रबी के सीजन में गेहूं की बुआई की थी. मार्च 2023 के तीसरे सप्ताह में बारिश और ओलावृष्टि से उनकी आधी से ज्यादा फसल बर्बाद हो गई. वह अगले 20 दिनों में फसल काटने की तैयारी कर रहा था, जब अचानक से ये आपदा आई. उन्होंने कहा,

खेती अब भगवान भरोसे है. कभी अचानक बारिश हो जाती है और कभी हमें अत्यधिक गर्मी का सामना करना पड़ता है. हमें नहीं पता कि आगे क्या होगा.

पिछले फाइनेंशियल ईयर में भी ऐसा ही ट्रेंड देखने को मिला था. 2021-22 के दौरान गेहूं का उत्पादन 106.84 मिलियन टन होने का अनुमान लगाया गया है, यानी 2020-21 के दौरान 109.59 मिलियन टन की तुलना में 2.75 मिलियन टन (2.5 प्रतिशत) की मामूली गिरावट दर्ज की गई है. भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के निदेशक और कृषि वैज्ञानिक अशोक कुमार सिंह ने कहा, यह 25-28 मार्च, 2022 के बीच आई हीटवेव का नतीजा है. NDTV के साथ एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा,

अगर हम गेहूं उगाने के सीजन के दौरान 1990-2010 के बीच तापमान में हुए बदलाव के औसत को आधार के रूप में इस्तेमाल करते हैं, तो हम सीजन के दौरान 2040 तक तापमान में एक डिग्री सेल्सियस की वृद्धि देखेंगे. यदि ऐसा होता है, तो गेहूं की पैदावार में लगभग 5 प्रतिशत की गिरावट आएगी, क्योंकि यह एक तापमान-संवेदनशील फसल है और जलवायु परिवर्तन के प्रति संवेदनशील है.

जलवायु परिवर्तन से गेहूं और चावल की फसलों पर होने वाला अनुमानित प्रभाव

ICAR-इंडियन एग्रीकल्चरल रिसर्च इंस्टीट्यूट के तहत एनवायरमेंट साइंस एंड क्लाइमेट रेजिलिएंट एग्रीकल्चर सेंटर की एक रिपोर्ट में कहा गया है:

  • सदी के अंत तक गेहूं की उत्पादकता 2050 में 19.3 प्रतिशत और 2080 में 40 प्रतिशत प्रभावित होने की संभावना है. बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल जैसे राज्य इस मामले में ज्यादा असुरक्षित हैं.
  • बारिश पर आधारित चावल की खेती 2050 में 20 प्रतिशत और 2080 में 47 प्रतिशत कम होने का अनुमान है.

जलवायु परिवर्तन के साफ संकेत

भारत के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में कृषि का हिस्सा लगभग 19 प्रतिशत है और लगभग दो-तिहाई आबादी इस सेक्टर पर निर्भर है. मौसम में भारी उतार चढ़ाव की घटनाएं – चाहे वह लंबे समय तक सूखा रहना हो या लू या भारी बारिश के बाद ओलावृष्टि हो – ये सभी बदलते जलवायु परिवर्तन की ओर इशारा करती हैं और सभी तरह की फसलों को अलग-अलग तरीकों से प्रभावित करती हैं.

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भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) के मुताबिक, 1901 में रिकॉर्ड रखे जाने की शुरुआत होने के बाद से भारत को 2023 में अब तक की सबसे गर्म फरवरी का सामना करना पड़ा. फूल आने और पकने की अवधि के दौरान ज्यादा तापमान से उपज में कमी आती है. अत्यधिक गर्मी की वजह से फूल सूख जाते हैं और मुरझा जाते हैं जिससे पौधे का परागण (plant’s pollination) नहीं हो पाता है.

इसी तरह, मानसून में देरी से खरीफ फसल की बुआई में देरी होती है. इस साल, केरल में दक्षिण-पश्चिम मानसून की शुरुआत लगभग एक सप्ताह की देरी से 8 जून को हुई. मौसम विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसा अल नीनो के कारण हो सकता है, जो एक ग्लोबल वेदर पैटर्न है जिसके दौरान पूर्वी प्रशांत क्षेत्र की समुद्री सतह का तापमान बढ़ना शुरू हो जाता है. इससे दक्षिण-पश्चिम मानसून पर बुरा प्रभाव पड़ता है.

भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD)

कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय ने एक प्रेस रिलीज में कहा,

जलवायु परिवर्तन से फसल की पैदावार और उपज की पोषण गुणवत्ता कम हो जाती है. सूखे जैसी चरम घटनाएं भोजन और पोषक तत्वों की खपत को प्रभावित करती हैं और इसका असर किसानों पर पड़ता है.

उदाहरण के तौर पर, ज्यादा तापमान की वजह से फसलें पोषक तत्वों को ठीक से अवशोषित नहीं कर पाती हैं. ज्यादा बारिश भी मिट्टी से पोषक तत्वों को बहा ले जाती है, जिसके चलते जो अनाज पैदा होता है उसमें पोषक तत्वों की कमी होती है.

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फूड प्रोडक्शन और उसकी न्यूट्रीशनल वैल्यू यानी पोषण मूल्य पर प्रभाव पड़ने के अलावा, जलवायु परिवर्तन की वजह से खाद्य पदार्थों की कीमतें भी बढ़ रही है. उदाहरण के तौर पर टमाटर की फसल खराब होने से उत्तरी राज्यों में टमाटर की कीमतें तुरंत 30 रुपये प्रति किलोग्राम से बढ़कर 150-200 रुपये प्रति किलोग्राम हो गईं. किसानों के मुताबिक, ओलावृष्टि की वजह से फसलों को हुए नुकसान के चलते उत्पादन में गिरावट आई और इसकी कीमतों में वृद्धि हुई. जाहिर है सप्लाई कम होने से डिमांड बढ़ेगी. जलवायु परिवर्तन का खामियाजा केवल टमाटर की फसल को ही नहीं भुगतना पड़ा. NCR रीजन के थोक विक्रेताओं को बेंगलुरु, नासिक, हिमाचल प्रदेश, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश सहित देश के अन्य हिस्सों से हरी मिर्च और करेले जैसी सब्जियां खरीदनी पड़ीं, जिसके चलते कीमतों में और बढ़ोतरी हुई.

मई 2023 में गर्मी के मौसम में बेमौसम बारिश की वजह से टमाटर की फसल खराब हो गई | नूंह, हरियाणा

खाद्य कीमतों में वृद्धि से लोगों की खाद्य सुरक्षा को भी खतरा है, क्योंकि कई लोग ज्यादा कीमत पर पोषणयुक्त भोजन खरीदने में सक्षम नहीं होते हैं. इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (IPCC) की रिपोर्ट में कहा गया है, “कम पैदावार की वजह से ज्यादा पौष्टिक फसलों की सप्लाई में हुई कमी गरीबों के पोषक तत्वों के सेवन को प्रभावित कर सकती है और ऐसे में वो कम पौष्टिक फसलों का विकल्प चुन सकते हैं.”

CSE की रिपोर्ट “भारत 2023: मौसम में भारी उतार चढ़ाव की घटनाओं का आकलन” के मुताबिक, भारत में जनवरी से सितंबर 2023 तक लगभग हर दिन मौसम में भारी उतार चढ़ाव देखा गया. जलवायु परिवर्तन वास्तविक है. आने वाले समय में भारत के मौसम में तेज बदलाव की घटनाएं और ज्यादा देखने को मिल सकती हैं, जो लोगों के जीवन और उनकी आजीविका को प्रभावित करेंगी. जलवायु अनुकूलन (Climate adaptation) ही इसका हल है.

भारत अपनी कृषि को सुरक्षित करने और सभी के लिए खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए जलवायु परिवर्तन को कैसे अपना रहा है? हम दूसरे भाग में इस पर बात करेंगे, जो जल्द ही आपके लिए लेकर आएंगे.

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