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महिलाओं को मेंस्ट्रुअल हेल्थ और हाइजीन के बारे में शिक्षित कर रहे हैं निशांत भंगेरा
मिलिए मुंबई के निशांत भंगेरा से, जो महिलाओं को मेंस्ट्रुअल हेल्थ और हाइजीन के बारे में शिक्षित कर रहे हैं
नई दिल्ली: पीरियड्स के दौरान एक महिला पर क्या गुजरती है इसका उन्हें कोई अनुभव नहीं है. उन्हें नहीं पता कि उन पांच दिनों में एक महिला का शरीर क्या महसूस करता है – लगातार रहने वाला दबाव जैसे कि हर समय एक भारी बैग उठाकर रखा हो, पेट और कमर में होने वाला भयंकर दर्द, खैर, इस सबके बारे में उसे कैसे पता होगा? वो तो एक आदमी है! आदमियों को भूल जाइए, कोई भी इस टॉपिक के बारे में बात नहीं करता, महिलाएं भी नहीं. जिससे इन दिनों के दौरान किस तरह से स्वच्छता बरतनी चाहिए. कई महिलाओं को इसके बारे में ठीक तरह से पता ही नहीं होता है. यही वजह है जिसने निशांत भंगेरा को म्यूज (Muse) शुरू करने के लिए प्रेरित किया, क्योंकि वह नहीं मानते कि इस विषय पर चुप रहना या फुसफुसाकर बात करना सही है.
32 साल के निशांत भंगेरा ने महिलाओं को मेंसुरेशन (मासिक धर्म) और सस्टेनेबल मेंस्ट्रुअल प्रैक्टिस के बारे में शिक्षित करने और उन्हें इस विषय पर खुलकर बोलने के लिए दस साल पहले म्यूज की स्थापना की थी. निशांत ने कहा, म्यूज का मतलब है सोचना. उन्होंने आगे कहा,
अगर हम किसी का जन्मदिन मना सकते हैं, तो उनके जन्म होने की वजह को क्यों नहीं स्वीकार कर सकते?
इतना ही नहीं, म्यूज फाउंडेशन अपने प्रोग्राम ‘ए पीरियड ऑफ शेयरिंग’ के जरिए सस्टेनेबल मेंस्ट्रुअल प्रैक्टिस को प्रोत्साहित करने की दिशा में भी काम कर रहा है.
वे जिन महिलाओं को शिक्षित करते हैं, वे आर्थिक रूप से पिछड़े समुदायों से आती हैं, जो कॉलेज स्टूडेंट्स के साथ मुंबई, ठाणे और पुणे की झोपड़ियों में रहती हैं. वह और उनकी टीम जिस बैच को पढ़ाते हैं, उसमें मासिक धर्म और गैर-मासिक धर्म दोनों प्रकार के लोग उपस्थित होते हैं और छात्र मासिक धर्म के बारे में जानने के लिए समान रूप से उत्सुक होते हैं.
निशांत ने बताया कि वह स्लम एरिया में रहने वाली महिलाओं से कैसे जुड़े,
मेरा विचार गैर सरकारी संगठनों (NGO) के माध्यम से महिलाओं तक पहुंचने का था. मैं और मेरी टीम एक कम्युनिटी की पहचान करते हैं और उस शहर में काम करने वाला हमारा NGO फिर उन महिलाओं तक पहुंचता है.
जब उनके NGO ने यह कार्यक्रम शुरू किया, तो निशांत को इस बात का एहसास हुआ कि केवल टेक्निकल इंफॉर्मेशन शेयर करने से पीरियड हेल्थ से जुड़ी समस्या हल नहीं होगी, उन्हें महिलाओं को इसके बारे में खुलकर बात करने के लिए प्रेरित करना होगा.
इसलिए उन्होंने ‘मासिक महोत्सव’ (menstruation festival) नाम से एक इवेंट लॉन्च किया, जिसका मकसद पीरियड्स का जश्न मनाना है. यह ‘ए पीरियड ऑफ शेयरिंग कैंपेन’ का ही एक्सटेंशन है या कहें विस्तार है. इस साल यह महोत्सव अपने तीसरे साल में प्रवेश कर गया है. ‘मासिक महोत्सव’ एक सप्ताह तक चलने वाला ईवेंट है.
इस फाउंडेशन के जरिए महिलाएं डांस, म्यूजिक, ग्रेफिटी (graffiti), कवि सम्मेलन और कई दूसरी एक्टिविटी से जुड़ी हुई हैं. इसके अलावा, फाउंडेशन मेंस्ट्रूअल हेल्थ एंड हाइजीन और कल्चरल एक्टिविटी से जुड़ी वर्कशॉप और खेल भी आयोजित करता है. इसके अलावा मेंसुरेशन पर एक्सपर्ट्स के साथ पैनल डिस्कशन भी रखा जाता है.
तीन राज्यों से शुरू हुआ यह फेस्टिवल अब 10 राज्यों और 10 देशों में फैल चुका है.
सुमन पुणे की उन कई महिलाओं में से एक हैं, जो हर साल मासिक महोत्सव में शामिल होती है. वह इस तरह के आयोजन का हिस्सा बनकर बहुत खुश है. अपने अनुभव के बारे में बात करते हुए उसने कहा,
मैंने इसके माध्यम से अपने शरीर के बारे में काफी कुछ सीखा है. मुझे मेंसुरेशन के बायोलॉजिकल एक्सप्लेनेशन और इसे मैनेज करने के तरीकों के बारे में पहले कुछ भी पता नहीं था. इसलिए इसके बारे में मैं अपनी बेटियों को नहीं समझा सकी. उनके स्कूलों ने भी इस कमी को पूरा नहीं किया. मासिक महोत्सव ने इसे बदला. मैंने अब ठान लिया कि मेरी बेटियों को उनके शरीर में होने वाले बदलावों के बारे में शिक्षित किया जाना चाहिए और मेरे बेटे को भी मेंसुरेशन के बारे में पता होना चाहिए. मैं इस साल भी इसमें भाग लेने के लिए उत्सुक हूं.
सुमन के अलावा इस महोत्सव में उनके पति, उनका बेटा और दो बेटियां भी शामिल होंगे. वह पिछले दो सालों ऐसा करते आ रहे हैं.