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डियर वूमन, सांस लें! अपने मानसिक स्वास्थ्य का ख्याल रखें
पुरुषों की तुलना में महिलाएं डिप्रेशन से ज्यादा पीड़ित होती हैं. मनोवैज्ञानिक एकता खुराना इसका कारण सामाजिक, पर्यावरणीय, जैविक और जेनेटिक डिफरेंसेज के बारे में बता रही हैं
नई दिल्ली: बगल वाले बेडरूम में अलार्म बजता है. जब मैं उसकी आवाज को रोकने और अपने सपनों की अपनी छोटी सी दुनिया में खोने के लिए अपने कानों पर एक और तकिया रख लेती हूं, तब मेरी मां अपने दिन की शुरुआत करती है, ठीक सुबह 5:30 बजे. पौधों को पानी देना, घर में पोंछा लगाना, परिवार के लिए खाना पकाना और काम पर निकलना – वह यह सब तीन घंटे में करती हैं.
बीते 30 वर्षों से वो काम और परिवार को बखूबी मैनेज कर रही हैं. इसके बावजूद उन्हें ये कहने में गिल्ट फील होता है कि आज मैं खाना बनाने के मूड में नहीं हूं. मैंने उन्हें कभी एक दिन की भी छुट्टी या एक दिन का आराम करते हुए नहीं देखा. उनकी जिंदगी में रुकने जैसा कोई शब्द या इरादा है ही नहीं. ये एक मां के प्यार और दुलार का ऐसा उदाहरण है जिसमें अपनी सेहत के बारे में सोचना शामिल है ही नहीं.
मनोवैज्ञानिक एकता खुराना कहती हैं, ”महिलाएं एक आदर्श मां, पत्नी और बेटी होने का दबाव चुपचाप सहती हैं.” उन्होंने कहा,
महिलाओं के लिए एक सामाजिक चेकलिस्ट मौजूद है – शादी करने की सही उम्र या उन्हें किस तरह की नौकरी करनी चाहिए. मेरे पिता हमेशा मुझे सुझाव देते थे कि मैं एक टीचर बनूं, क्योंकि इससे महिलाओं को काम और घर के बीच बैलेंस बनाने की सुविधा मिलती है. अपेक्षाएं महिलाओं को अपनी आवश्यकताओं और इच्छाओं का सामना करने और उन्हें व्यक्त करने से रोकती हैं.
मानसिक स्वास्थ्य और महिलाएं
खुराना बताती हैं कि सामाजिक, पर्यावरणीय, जैविक और जेनेटिक अंतर के चलते भारतीय महिलाएं पुरुषों की तुलना में डिप्रेशन से ज्यादा पीड़ित हैं. डिप्रेशन के सामान्य लक्षणों पर ध्यान दें:
– उदासी
– भूख का बढ़ना या कम होना
– अनिद्रा और हाइपरसोम्निया
– थकान, शरीर में लगातार भारीपन महसूस होना
– चिड़चिड़ापन और गिल्टी महसूस करना
खुराना कहती हैं,
अगर किसी महिला में ये संकेत दो सप्ताह या उससे अधिक समय तक बने रहते हैं, तो वह डिप्रेशन के दौर से गुजर रही है. जरूरत पड़ने पर पेशेवर से मदद लेनी चाहिए.
हार्मोन का उतार-चढ़ाव मानसिक स्वास्थ्य को कैसे प्रभावित करता है, इस बारे में खुराना कहती हैं,
एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन जैसे हार्मोन प्री-मेनोपॉज फेज, पीरियड्स और यहां तक कि बच्चे के जन्म के बाद भी मूड स्विंग का कारण बनते हैं. यह सेरोटोनिन (खुशी के हार्मोन) के स्तर को प्रभावित कर सकता है.
एक अन्य मानसिक बीमारी के बारे में आगे बात करते हुए, खुराना ने कहा,
चिंतित होना मानव व्यवहार का एक सामान्य हिस्सा है, लेकिन यदि आप हर दिन चिंतित महसूस करते हैं और पेनिक अटैक आते हैं तो यह चिंता का विषय है. यह एक समस्या का संकेत है – चाहे वह काम पर हो, घर पर हो या फिर किसी रिश्ते में हो.
मानसिक स्वस्थता के लिए समय:
– बेहतर नींद
– स्वस्थ खानपान
– व्यायाम
– विराम
– सीमाएं बनाए रखें
– सांस लेना
खुराना कहती हैं,
हम सभी को जो सबसे बड़ा सबक सीखने की जरूरत है वह है पीछे हटना और न कहना. आप हर किसी को खुश नहीं कर सकते, न ही आपको ऐसा करने की कोशिश करनी चाहिए.