कोई पीछे नहीं रहेगा

मिलिए विराली मोदी से, जो भारत की पहली व्हीलचेयर मॉडल होने के साथ-साथ विकलांगों के अधिकारों के लिए लड़ रही है

विराली मोदी इस बात की पुरजोर वकालत करती हैं कि एक समावेशी और सुरक्षित समाज बनाने की जिम्मेदारी सभी की होनी चाहिए, न कि केवल दिव्यांगों की

Published

on

विकलांग लोगों का महत्व और योगदान को हर कोई पहचानता है. विराली मोदी, एक विकलांगता अधिकार कार्यकर्ता और व्हीलचेयर का इस्तेमाल करने वाली भारत की पहली मॉडल हैं

नई दिल्ली: अधिक समावेशी और सुलभ समाज के निर्माण के लिए संवेदनशीलता और जागरूकता महत्वपूर्ण हैं. ये विकलांगता से जुड़ी रूढ़ियों और मिथकों को तोड़ने में मदद करते हैं. इनसे एक ऐसे समाज का निर्माण होता है जहां विकलांग लोगों के महत्व और योगदान को हर कोई पहचानता है. विराली मोदी, एक विकलांगता अधिकार कार्यकर्ता और व्हीलचेयर का इस्तेमाल करने वाली भारत की पहली मॉडल हैं. वह एक ऐसे समाज के निर्माण में मदद करने के लिए काम कर रही हैं, जो विविधता का सम्मान और समर्थन करता है.

दिव्यांग कहने पर विराली मोदी ने कहा,

क्या मैं आपको एक बात बोल सकती हूं? कृपया आप मुझे ‘विशेष रूप से सक्षम (Specially Abled)’ न कहें, चाहें तो आप मुझे विकलांग कह सकते हैं.

विराली की सकारात्मकता ने ही उन्हें अपने जीवन के कठिन दौर से निकाला है. एनडीटीवी टीम से बात करते हुए, उन्होंने कहा कि वह नहीं चाहती कि उनको कोई खास दर्जा दिया जाए और यह उनकी लड़ाई है, एक सरल लक्ष्य के साथ सीधी सी लड़ाई. जिसमें वह चाहती हैं कि कोई उन्हें अलग तरीके से न देखे और न ही उनके साथ ऐसा बर्ताव करे.

विराली इस बात की पुरजोर वकालत करती हैं कि सबको सम्मिलित करने वाले सुरक्षित समाज बनाने की जिम्मेदारी केवल विकलांगों की नहीं बल्कि सभी की होनी चाहिए. ठीक इसी लक्ष्य को हासिल करने के लिए उनका अभियान #MyTrainToo भी है. रेल यात्रा सबकी पहुंच में हो, इस लक्ष्य को पाने के लिए उनकी याचिका पर छह लाख से अधिक लोगों ने हस्ताक्षर किए हैं.

इसे भी पढ़ें: फैशन बियॉन्ड बाउंड्रीज़: एक फैशन शो जो देता है दिव्‍यांग लोगों के समावेश को बढ़ावा

अपने अभियान #MyTrainToo के बारे में बात करते हुए विराली ने कहा,

मैंने ये अभियान #MyTrainToo 2017 में शुरू किया था और कारण यह था कि जब मैं 2008 में भारत आई थी, तो ट्रेन में चढ़ते समय कुलियों ने मेरे साथ बुरा बर्ताव किया.

2016 में विकलांगता अधिकार विधेयक पारित किया गया और 2017 में एक ऐसी ट्रेन शुरू की गई थी, जिसे विकलांगों के अनुकूल होने का दावा किया गया लेकिन यह लोकोमोटर विकलांग (जिन विकलांगो को चलने-फिरने में दिक्कत होती है) लोगों के लिए अनुकूल नहीं थी.

उस समय मैंने हैशटैग #MyTrainToo के नाम से Change.org पर एक अभियान शुरू किया. केरल के एक रेलवे अधिकारी और मैंने साथ मिलकर 9 स्टेशनों पर किसी भी प्रकार की मरम्मत कराएं बिना पोर्टेबल रैंप्स बनवाए ताकी व्हीलचेयर पर निर्भर विकलांगों को कोई परेशानी न हो हमने स्थानीय एनजीओ की सहायता से रेलवे कर्मचारियों को भी इसके लिए जागरूक किया.

लेकिन विराली के लिए ये सब करना आसान नहीं था. उन्होंने यहां तक पहुंचने के लिए एक लंबा सफर तय किया है. वह जन्म से विकलांग नहीं थी. 14 साल की उम्र में वह 23 दिनों के लिए कोमा में चली गई. इस दौरान उन्हें तीन बार मृत घोषित कर दिया गया था. इस उम्र में उन्हें जीवन जीने के तरीकों को फिर से सीखना पड़ा. इस कठिन समय में उन पर क्या गुजरी, इसके बारे में बताते हुए विराली ने कहा,

उस समय, मैं अपने परिवार से मिलने भारत आई थी, और मुझे अचानक बुखार और मलेरिया हो गया. मुझे इमरजेंसी रूम में ले जाया गया, जहां डॉक्टरों ने तमाम जरूरी टेस्ट किए लेकिन सभी टेस्ट नेगेटिव निकले. जिसके बाद मैं फिर से घर वापस चली गई. अगले दिन जब मैं सोकर उठी तो मैं हेलोसिनेशन यानि भ्रम की अजीब सी मानसिक स्थिति में थी. मैं अपनी मां को तक नहीं पहचान पा रही थीं. पांच मिनट बाद मैं बिल्कुल ठीक हो गई और फिर मैं चलने के लिए उठी तो लंगड़ाने लगी.

अपने जीवन में कई मुश्किलों का सामना करने के बावजूद विराली को अपने आप पर गर्व है और वह जीने के हर तरीके को सामान्य बनाने का इरादा रखती हैं. बचपन में नृत्य का शौक रखने वाली विराली अब एक मोटिवेशनल स्पीकर, विकलांगता अधिकार कार्यकर्ता और व्हीलचेयर का उपयोग करने वाली भारत की पहली मॉडल हैं. उन्होंने 2014 में मिस व्हीलचेयर इंडिया पेजेंट में दूसरा स्थान हासिल किया था.

विराली सोशल मीडिया पर भी काफी एक्टिव रहती हैं, जहां उनके फॉलोवर्स की संख्या भी अच्छी खासी है. विराली का मानना है कि विकलांगता को लेकर लोगों को संवेदनशील बनाने की प्रक्रिया चलती रहनी चाहिए. इससे विकलांग लोगों को उनकी व्यक्तिगत क्षमता हासिल करने में मदद मिलेगी. विकलांगता के बारे में जागरूकता बढ़ाने और इसे समझने की कोशिश से ही हम ऐसे समाज का निर्माण कर सकते हैं जिसमें सभी शामिल हों.

इसे भी पढ़ें: मां-बेटी ने कायम की मिसाल: लोग दिव्यांगों को प्यार की नजर से देखें, तो बदल जाएगा दुनिया का नजरिया

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Exit mobile version