हाईजीन और साफ-सफाई
जानिए WASH प्रोग्राम बच्चों के जीवन में कैसे कर रहा है सुधार
स्कूल में WASH प्रोग्राम में टॉयलेट बनाने, पानी पीने की सुविधा जैसे घटकों को शामिल किया गया है.
नई दिल्ली के रघुबीर नगर में साउथ दिल्ली म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन स्कूल की 14 साल की काजल कहती हैं, “पहले, जब मुझे पीरियड्स आते थे, तो मुझे घर पर बैठने के लिए मजबूर किया जाता था, क्योंकि मेरे स्कूल में लड़कियों के लिए अलग से टॉयलेट की सुविधा नहीं थी. कभी-कभी, मैं सीधे 10 दिनों तक स्कूल नहीं जाती थी. इसने मेरी पढ़ाई को इतना प्रभावित किया कि मुझे एक साल स्कूल छोड़ना पड़ा.” काजल अकेली नहीं हैं, उनके जैसे कई स्टूडेंट्स हैं, जिन्हें बुनियादी स्वच्छता सुविधाओं तक पहुंच की कमी के कारण स्कूल छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा है.
स्कूल में वॉश प्रोग्राम में टॉयलेट बनाने, पीने के पानी की सुविधा, स्कूल में वॉश पाठ्यक्रम को शामिल करने जैसे चीजों को शामिल किया गया है, इसमें हाथ धोना, व्यक्तिगत स्वच्छता जैसी और बहुत कुछ चीजें शामिल हैं. स्कूल में हेल्दी माहौल तैयार करने और उचित स्वास्थ्य और स्वच्छता व्यवहार विकसित करने के लिए ये जरूरी हैं.
एक नजर उस समय पर जब स्कूलों में वॉश प्रोग्राम सिस्टम का हिस्सा नहीं थे
भारत में स्वच्छ भारत मिशन को अपनाने से पहले 2013-14 में बच्चों पर रैपिड सर्वे में कहा गया था कि देश के लगभग 22 प्रतिशत स्कूलों में लड़कियों के लिए टॉयलेट नहीं थे और 58 प्रतिशत प्री-स्कूलों में टॉयलेट ही नहीं था . हालांकि, 2014 में स्वच्छ भारत मिशन की शुरूआत, 2015 में स्वच्छ भारत: स्वच्छ विद्यालय (एसबीएसवी) पहल का उद्देश्य सभी 1.2 मिलियन सरकारी स्कूलों में जेंडर बेस्ट टॉयलेट तक सबकी पहुंच की सुविधा देना और वॉश कार्यक्रमों के माध्यम से स्कूल स्वच्छता पर नीतिगत जोर देना था. इन बातों ने चीजों को बदलने में मदद की.
स्कूलों में वॉश कार्यक्रमों के बच्चों के जीवन को कैसे बदला?
WASH प्रोग्राम के जरिए बच्चों के जीवन में आए बदलाव पर प्रकाश डालते हुए, लाभार्थियों में से एक काजल ने कहा,
2019 में मेरे लिए कुछ चीजों ने 360 डिग्री मोड़ लिया. मेरे स्कूल ने स्वच्छ भारत: स्वच्छ विद्यालय इनिशिएटिव के रूप में WASH पाठ्यक्रम को अपनाया. जिसके जरिए लड़कियों को सैनिटरी नैपकिन, कूड़ेदान जैसी बुनियादी मासिक धर्म स्वच्छता सुविधा के साथ एक अलग टॉयलेट मिला. उस दिन के बाद से मैंने कभी भी स्कूल जाना बंद नहीं किया.
स्कूलों में पेयजल, सेनेटाइजेशन और हाइजीन: 2018 ग्लोबल बेसलाइन रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय स्कूल केवल एक दशक में 50% से 100% के करीब पहुंच गए हैं. देश में WASH प्रोग्राम के कार्यान्वयन की प्रगति की समीक्षा करने वाली रिपोर्ट में कहा गया है, “भारतीय स्कूलों ने एक बड़ी उपलब्धि हासिल की है क्योंकि 2016 में देश के लगभग सभी स्कूलों में किसी न किसी प्रकार की स्वच्छता सुविधा थी, जबकि भारत में एक दशक पहले ही आधे स्कूलों में किसी भी प्रकार की स्वच्छता सुविधा नहीं थी. ”
डब्ल्यूएचओ/यूनिसेफ संयुक्त निगरानी कार्यक्रम फॉर वाटर सप्लाई, सैनिटेशन एंड हाइजीन (जेएमपी) द्वारा स्कूलों में वॉश पर नवीनतम रिपोर्ट में कहा गया है कि 2000 और 2016 के बीच भारत में बिना किसी स्वच्छता सुविधा वाले स्कूलों के अनुपात में कमी आई है. इसमें आगे कहा गया है कि भारत में अनुमान है कि 2016 में देश के लगभग सभी स्कूलों में किसी न किसी प्रकार की स्वच्छता सुविधा थी, जबकि 10 साल पहले भारत में आधे स्कूलों में स्वच्छता की कोई सुविधा नहीं थी. इसने इस बात पर भी प्रकाश डाला कि 2000 और 2016 के बीच, भारत में स्कूली बच्चों की संख्या 352 मिलियन से बढ़कर 378 मिलियन हो गई.
स्कूलों में उचित WASH अरेंजमेंट्स को शामिल करने से होने वाले फायदों पर प्रकाश डालते हुए, यूनिसेफ के सहयोग से केरल में किए गए एक अध्ययन से पता चला है कि स्कूलों में WASH प्रोग्राम के बाद, उपस्थिति में नियमितता बढ़ गई है और बच्चों को जरूरत पड़ने पर घर जाने की आवश्यकता महसूस नहीं होती है. लड़कियों ने अपने पीरियड्स के दौरान काफी कम समस्याओं के बारे में बताया (नियंत्रण समूह के स्कूलों की तुलना में जहां WASH की सुविधा नहीं थी); और बच्चों को हाथ धोने और स्वच्छता के महत्व के बारे में बेहतर जानकारी दी गई. वास्तव में, अध्ययन में बताया गया है कि “95% या अधिक बच्चे स्कूलों में इस प्रोग्राम के बाद खाने से पहले हाथ धोते हैं वहीं, केवल 61% बच्चे आम स्कूलों में (स्थानीय शिक्षा प्राधिकरण के वित्तीय समर्थन पर निर्भर स्कूल)”. अध्ययनों से यह भी पता चलता है कि स्कूलों में WASH बच्चों में दस्त, मिट्टी से फैलने वाले कीड़े, तीव्र श्वसन संक्रमण और अन्य WASH से संबंधित बीमारियों को रोकने में मदद करता है.
अपनी बात रखते हुए और कैसे अपने स्कूल में वॉश कार्यक्रम के कार्यान्वयन ने उनकी जान बचाई, वाराणसी के गौशाबाद प्राइमरी स्कूल के 12 वर्षीय सरफराज ने कहा,
“दो साल पहले, जब मेरे सभी दोस्त स्कूल जा रहे थे और अपने घरों के बाहर खेल रहे थे, मैं दस्त से परेशान होने के चलते घर में ही रहता था. ज्यादातर दिनों में, मुझे पेट में दर्द, उल्टी, दस्त की शिकायत होती थी. मैं महीने में 10 दिन ही स्कूल जाता था.”
उन्होंने आगे कहा कि जब मेरी हेल्थ सही नही थी, तब मेरे स्कूल ने WASH प्रोग्राम को अपनाया. उन्होंने आगे कहा,
“वॉश प्रोग्राम के माध्यम से, मेरे स्कूल ने सुरक्षित पेयजल उपलब्ध कराना शुरू किया, यहा अच्छी स्वच्छता सुविधाएं थीं और मैंने बुनियादी स्वच्छता की आदतें सीखीं. मैंने टॉयलेट का इस्तेमाल करने के बाद और खाना खाने से पहले हाथ धोना शुरू कर दिया. मैंने यह जाना कि चप्पल पहनना हेल्दी रहने का एक महत्वपूर्ण हिस्सा था. कुछ महीनों तक इन आदतों को पालन करने के बाद, मेरे स्वास्थ्य ने सकारात्मक प्रभाव दिखाना शुरू कर दिया. डॉक्टर के पास जाना कम हो गया और मैं ज्यादा दिन स्कूल जाने लगा.”
यह अनुमान लगाते हुए कि भारत में WASH प्रोग्राम से लाखों स्कूली बच्चे लाभान्वित हो रहे हैं, वाटरएड स्कूल WASH रिसर्च: इंडिया कंट्री रिपोर्ट में कहा गया है कि “साबुन से हाथ धोना WASH प्रोग्राम के एक भाग के रूप में उल्लेखनीय सफलता हासिल कर रहा है, जिसे अब एक जरूरत के रूप में मुख्यधारा में लाया जा रहा है. राष्ट्रव्यापी मिडडे मील योजना से 1.3 मिलियन प्राथमिक और उच्च प्राथमिक विद्यालयों में लगभग 110 मिलियन बच्चे लाभान्वित होते हैं.
WASH प्रोग्राम के महत्व पर प्रकाश डालते हुए, नीरज जैन, कंट्री डायरेक्टर, प्रोग्राम फॉर एप्रोप्रिएट टेक्नोलॉजी इन हेल्थ (PATH), भारत ने कहा कि बचाव और उपचारात्मक उपायों पर ध्यान देने की जरूरत है, यहां बचाव के लिए उपयुक्त WASH (पानी, स्वच्छता और स्वच्छता) है और उपचारात्मक स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच है. उन्होंने जोड़ा,
खराब स्वच्छता और पर्यावरण के कारण बीमारियां फैलती हैं. भारत एक बड़ा देश हैं जहां सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्यक्रम की सफलता के लिए स्केलेबल सॉल्युशन महत्वपूर्ण हैं. हम स्वास्थ्य सेवा में बड़े पैमाने पर वित्त पोषण देख रहे हैं, और हमें देश की स्वास्थ्य प्राथमिकताओं के तहत WASH को संरेखित करने की आवश्यकता है।
बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन-इंडिया की उप निदेशक मधु कृष्णा ने कहा, “वॉश प्रोग्राम, जिसमें स्वच्छता के साथ-साथ सुरक्षित और टिकाऊ स्वच्छता प्रदान की जाती है, टीकाकरण की तरह है और इसकी आवश्यकता बढ़ रही है.”
चुनौतियां
WaterAid India में नीति प्रबंधक अरुंधति मुरलीधरन कहती हैं,
“पोषण और वॉश प्रोग्राम लंबे समय से देश में एक-साथ चल रहे हैं. स्कूलों में स्वच्छ विद्यालय अभियान के माध्यम से स्वच्छ भारत मिशन ने इसे बदल दिया और शैक्षणिक संस्थानों में स्वच्छता, पेयजल और हाथ धोने पर ध्यान दिया गया और इसमें हाइजीन एजुकेशन को शामिल किया गया. हालांकि ग्रामीण और शहरी भारत के कई स्कूलों में अब टॉयलेट के इस्तेमाल और हाथ धोने के कदमों को लेकर दीवार पर पेंटिंग और पोस्टरों के साथ जेड़र बेस्ड टॉयलेट हैं. वहीं यहां, हाथ धोने की जगह हो सकती है, लेकिन उनमें अक्सर पानी और साबुन नहीं होता, जो स्वास्थ्य को बढ़ावा देने की आदत के लक्ष्य को कम करती है. पोषण अभियान हाथ धोने सहित हाइजीन बिहेवियर पर नए सिरे से ध्यान देता है. फिर भी, ग्रामीण और शहरी भारत में कई आंगनवाड़ियों में पर्याप्त पानी और साबुन नहीं है, केवल हाथ धोने की जगह है. यह इस बात की जरूरत पर प्रकाश डालता है कि ऐसी योजनाओं और भविष्य के निवेशों का उचित कार्यान्वयन, जो तब सार्थक रूप से प्रभावित कर सकता है जब बच्चों के स्वास्थ्य और भलाई के लिए काम करें और सफल परिणाम सुनिश्चित करें.”
भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (सीएजी) द्वारा केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों (सीपीएसई) द्वारा स्कूलों में बनाए गए टॉयलेट के हालिया सर्वे में सेवाओं के उपलब्ध होने और इन्हें चलाने की समान चुनौती पर प्रकाश डाला गया था. सर्वेक्षण से पता चला कि भारत में निर्मित 30 प्रतिशत टॉयलेट सफाई की कमी और पानी ने होने के चलते इस्तेमाल ही नहीं किया जा रहे. सर्वेक्षण से यह भी पता चला कि सर्वेक्षण किए गए 2,326 टॉयलेट में से 1,279 (55 प्रतिशत) में वॉश बेसिन या हाथ धोने की सुविधा उपलब्ध नहीं थी.
WaterAid India के नीति प्रमुख वी आर रमन ने कहा कि सीएजी द्वारा उठाए गए गुणवत्ता के मुद्दे और अन्य बातें निश्चित रूप से चिंताजनक हैं, लेकिन यह COVID-19 महामारी से निपटने के दौरान स्कूलों को खोलने की तैयारियों पर भी संदेह पैदा करता है. रमन ने कहा,
“कैग रिपोर्ट एक बहुत ही महत्वपूर्ण राष्ट्रीय मुद्दे पर ध्यान देती है, और यह उपयोगी होगा यदि यह ध्यान सभी संस्थागत परिसरों में सुरक्षित, सुलभ और गुणवत्तापूर्ण स्वच्छता सुविधाओं को सुनिश्चित करने के मामले में स्थिति में बहुत जरूरी बदलाव को उत्प्रेरित करने में सक्षम हो, खासतौर पर सभी लिंगों और विशिष्ट कमजोर समूहों की जरूरतों को पूरा करने के लिए. वास्तव में, COVID-19 के दौरान स्कूलों को फिर से खोलने के लिए सामान्य स्थिति की तुलना में बहुत अधिक सुविधाओं की आवश्यकता होती है. ”
आगे एसवीए (स्वच्छ विद्यालय अभियान) के लक्ष्य और जमीनी हकीकत के बारे में बात करते हुए, जहां सर्वेक्षण किए गए 11 प्रतिशत शौचालय या तो मौजूद नहीं थे या आंशिक रूप से निर्मित थे, श्री रमन ने कहा,
“स्वच्छ भारत मिशन के चल रहे दूसरे चरण को इस मुद्दे को व्यवस्थित तरीके से प्राथमिकता देनी चाहिए और स्कूलों और संस्थागत परिसरों में आवश्यक WASH मानकों को प्राप्त करने की दिशा में एक केंद्रित दृष्टिकोण का निर्माण करना चाहिए. हमें यह ध्यान रखने की आवश्यकता है कि इन संस्थागत स्थानों को महामारी के साथ-साथ आपदा से निपटने के लिए भी तैयार करना होगा.