जलवायु परिवर्तन
ग्रीनपीस इंडिया का दावा, 2021 से भारत का हीटवेव संकट और गहराया
ग्रीनपीस इंडिया ने ग्लोबल वार्मिंग-प्रेरित संकट की बढ़ती तीव्रता को दिखाने के उद्देश्य से भारत के 10 राजधानी शहरों में अप्रैल के महीने में तापमान में औसत वृद्धि का अध्ययन करने के लिए एक्यूवेदर से प्राप्त आंकड़ों का विश्लेषण किया है.
नई दिल्ली: विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि जलवायु परिवर्तन के परिणामस्वरूप 21वीं सदी में वैश्विक तापमान और हीटवेव की आवृत्ति और तीव्रता में वृद्धि होगी. यह आगे बताता है कि तेज हवा का तापमान मानव स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकता है और अतिरिक्त मौतों का कारण बन सकता है. ग्रीनपीस इंडिया ने अपनी नवीनतम रिपोर्ट में ग्लोबल वार्मिंग-प्रेरित संकट की बढ़ती तीव्रता को दिखाने के उद्देश्य से भारत के 10 राजधानी शहरों में अप्रैल के महीने में तापमान में औसत वृद्धि का अध्ययन करने के लिए एक्यूवेदर से प्राप्त आंकड़ों का विश्लेषण किया है. जैसा कि अपेक्षित था, मैदानी और पहाड़ी क्षेत्रों में स्थित शहरों में हीटवेव की तीव्रता में भारी वृद्धि हुई है, जबकि तटीय शहरों ने अपेक्षाकृत बेहतर प्रदर्शन किया है.
पेश हैं ग्रीनपीस इंडिया स्टडी के निष्कर्ष:
1. नई दिल्ली में अप्रैल 2021 में 40-42 डिग्री सेल्सियस की तुलना में अप्रैल 2022 के महीने में अधिकतम तापमान 40-44 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया. शहर में 6 अप्रैल के बाद 40 डिग्री सेल्सियस से ऊपर तापमान दर्ज किया गया, जबकि 2021 में ये 12 अप्रैल के बाद देखा गया था. शहर ने 2022 में 20 दिनों के लिए इन तापमानों का अनुभव किया, जबकि 2021 में 9 दिनों तक शहर ने इस गर्मी को झेला था.
2. जयपुर में, जबकि दोनों वर्षों में अधिकतम तापमान 40-43 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया था, शहर में 40 डिग्री सेल्सियस से ऊपर का तापमान 2022 में 1 अप्रैल के बाद दर्ज किया गया, जबकि 2021 में 12 अप्रैल के आसपास ये तापमान रहा था. साथ ही, शहर में यह 2021 में ये गर्मी 11 दिनों तक रही थी, जबकि की 2022 में इसकी अवधि बढ़कर 26 दिन हो गई.
3. लखनऊ में अप्रैल 2021 में अधिकतम तापमान 40-42 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया, जबकि अप्रैल 2022 में 40-45 डिग्री सेल्सियस तापमान दर्ज किया गया. 40 डिग्री सेल्सियस से ऊपर का तापमान 2022 में 1 अप्रैल को रहा था जबकि 2021 में ये तापमान 5 अप्रैल को रहा था. 2021 में इसकी अवधि 11 दिन थी जबकि 2022 में ये अवधि बढ़कर 27 दिन हो गई.
4. शिमला में भी, अप्रैल 2021 में अधिकतम तापमान 40-42 डिग्री सेल्सियस से बढ़कर अप्रैल 2022 में 40-44 डिग्री सेल्सियस हो गया. शहर में 13 अप्रैल, 2021 की तुलना में 6 अप्रैल, 2022 के बाद 40 डिग्री सेल्सियस से ऊपर तापमान दर्ज किया गया. हिल स्टेशन के नागरिकों ने 2022 में 17 दिनों के लिए इस तरह के उच्च तापमान को झेला, जो 2021 की तुलना में 6 दिन अधिक है.
5. इसी तरह, हालांकि थोड़ा कम गंभीर, भोपाल और पटना में पैटर्न देखे गए, जहां शहरों में 2021 की तुलना में 2022 में 40 डिग्री सेल्सियस से अधिक तापमान दर्ज किया, और लंबे समय तक अत्यधिक गर्मी को झेला.
6. मुंबई, कोलकाता, हैदराबाद और चेन्नई में अपेक्षाकृत हल्का तापमान दर्ज किया गया, हालांकि कोलकाता और हैदराबाद में क्रमश: दो दिन और दस दिनों के लिए तापमान 40 डिग्री सेल्सियस से ऊपर रहा.
मानव स्वास्थ्य पर हीटवेव का प्रभाव
डब्ल्यूएचओ के अनुसार, दिन और रात के हाई टेम्परेचर की विस्तारित अवधि मानव शरीर पर शारीरिक तनाव पैदा करती है जो विश्व स्तर पर मृत्यु के शीर्ष कारणों को बढ़ा देती है, जिसमें श्वसन और हृदय रोग, मधुमेह, मेलिटस और गुर्दे की बीमारी शामिल हैं.
भारत में असहनीय गर्मी सामान्य होती जा रही है क्योंकि जलवायु परिवर्तन के प्रभाव तेजी से वास्तविक होते जा रहे हैं. इस वर्ष, भारत में मार्च के अंत और अप्रैल की शुरुआत से भीषण गर्मी देखी गई है. ग्रीनपीस इंडिया के विश्लेषण में कहा गया है कि गर्मी का पीक आमतौर पर अप्रैल और मई के अंत में होता है.
भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) के अनुसार, उत्तर, पश्चिम और मध्य भारत ने 122 वर्षों में सबसे गर्म मौसम झेला है. कई जलवायु मॉडलों के अनुसार, यदि पर्याप्त उपाय नहीं किए गए तो आने वाले दशकों में स्थिति और खराब हो सकती है.
ग्रीनपीस की रिपोर्ट में मानव स्वास्थ्य पर हीटवेव के विभिन्न प्रभावों पर भी प्रकाश डाला गया है जैसे कि हीट थकावट, हीटस्ट्रोक, जानलेवा जटिलताएं और पहले से मौजूद स्थितियों का बिगड़ना. बढ़ते तापमान की आर्थिक लागत भी होती है, जिसके परिणामस्वरूप फसल खराब होना, खाद्य असुरक्षा, काम के घंटों में नुकसान होना और बहुत कुछ होता है.
दिल्ली के एक रिक्शा चालक सूरज कहते हैं,
कुछ दिनों से गर्मी इतनी असहनीय हो रही है कि मैं बीमार पड़ रहा हूं. इस अत्यधिक तापमान से हमें बचाने के लिए हमारे पास कोई सुविधा नहीं है. हमें अधिक पानी पीने की सलाह दी जाती है लेकिन इस शहर में बार-बार स्वच्छ पेयजल पाने के लिए हमारे लिए कोई सुविधा नहीं है. मैं अपने और अपने रिक्शा को छाया देने के लिए कपड़े का उपयोग करके ठंडा रखने की कोशिश करता हूं लेकिन इसके बावजूद, गर्मियों के दौरान ग्राहक मिलना मुश्किल होता है.
ग्रीनपीस इंडिया के अभियान प्रबंधक और अध्ययन के सह-लेखक अविनाश कुमार चंचल ने एनडीटीवी को बताया कि निष्कर्ष बिल्कुल स्पष्ट है, हम ‘बिगड़ते जलवायु संकट’ के बीच जी रहे हैं.
हमें न्यायसंगत प्रतिक्रियाओं की आवश्यकता है. जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए आवश्यक अनुकूलन और शमन उपायों पर ध्यान केंद्रित करने वाली सरकारों और निगमों के अलावा, हमें भारत में हीटवेव जैसी चरम घटनाओं के दौरान आबादी की अनुकूलन क्षमता बढ़ाने के लिए विशिष्ट उपायों की भी आवश्यकता होगी. इन प्रतिक्रियाओं में प्रभावी संचार, कुशल वार्निग सिस्ट, कमजोर आबादी के लिए विशेष प्रतिक्रिया, हरित आवरण में वृद्धि और हमारे शहरों में जल निकायों के संरक्षण को शामिल करने की आवश्यकता है. हमें व्यावहारिक और तत्काल समाधान की आवश्यकता है, और हमें इनकी अभी से ही आवश्यकता है.