जलवायु परिवर्तन
ओपिनियन: फूड सिक्योरिटी के लिए समुदायों और महिलाओं पर केंद्रित मॉडल की है जरुरत
अंतरराष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान (International Food Policy Research Institute) का कहना है कि खाद्य प्रणालियों को प्रकृति, विकास और जलवायु लक्ष्यों के मुताबिक बनाने के लिए 2030 तक 350 अरब डॉलर के सालाना निवेश की जरूरत होगी
हाल ही में दुबई में संपन्न हुई संयुक्त राष्ट्र (UN) की जलवायु बैठक, COP28 में टिकाऊ कृषि (sustainable agriculture), लचीली खाद्य प्रणालियों (resilient food systems) और जलवायु कार्रवाई (climate action) पर की गई घोषणा, एक वैश्विक समझौते की पेशकश करती है जो खाद्य असुरक्षा (food insecurity) की चुनौती को संबोधित करना चाहता है. इस घोषणा (declaration) में खाद्य प्रणालियों यानी फूड सिस्टम को ट्रांसफॉर्म करने का कमिटमेंट किया गया है. इस कमिटमेंट को पूरा करने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान और राष्ट्रीय अनुकूलन योजनाओं (national adaptation plans) में भोजन और जमीन इस्तेमाल के लिए लक्ष्य को निर्धारित करना शामिल है.
हालांकि भारत ने खाद्य सुरक्षा को लेकर अपनी प्राथमिकताओं का हवाला देते हुए इस घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं, भारत सरकार ने कहा कि वह कृषि क्षेत्र को जलवायु के अनुकूल बनाने के लिए अपनी तरफ से सभी संभव प्रयास कर रही है.
कमजोर समुदायों और छोटे किसानों की आजीविका, पोषण और खाद्य सुरक्षा को मजबूत करने के लिए मौसम के अनुकूल और टिकाऊ कृषि के बारे में भारत के अनुभव और सीख घोषणा के कई पहलुओं से मेल खाते नजर आते हैं.
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जमीन और समुदायों में निवेश
मेरा ध्यान दुबई से तीन हजार किलोमीटर दूर ओडिशा के गंजम जिले (Ganjam district) में महिलाओं के स्वयं सहायता समूहों (women’s self-help groups) के पास चला गया, जहां जलवायु परिवर्तन के वास्तविक और पूर्वानुमानित प्रभावों पर उच्च स्तरीय चर्चा हो रही थी.
सौर उपकरणों (solar devices) को इस्तेमाल करने की ट्रेनिंग जो सब्जियों को प्रोसेस करने में मदद करती है. ट्रेनिंग के दौरान ये भी सिखाया जाता है कि solar drying यानी सौर ऊर्जा के माध्यम से सब्जियों को सुखाकर कैसे प्रिजर्व किया जा सकता है और सप्लाई सीमित होने और डिमांड ज्यादा होने पर बेचा जा सकता है. ये महिलाएं सोलर फॉर रेजिलिएंस (Solar For Resilience) नाम के एक अवॉर्ड विनिंग इनिशिएटिव का हिस्सा हैं. मैंने देखा कि कैसे महिला किसान उद्यमी (entrepreneurs) बन सकती हैं और कम लागत वाली तकनीक और फाइनेंस के अवसरों का फायदा उठा सकती हैं. इस पहल से न केवल उनकी इनकम बढ़ेगी बल्कि रिन्यूएबल एनर्जी के इस्तेमाल से खाने की बर्बादी यानी फूड लॉस भी कम होगा. यानी कुल मिलाकर इस पहल से ज्यादा सस्टेनेबल फूड सिस्टम बनाने में मदद मिलेगी.
राष्ट्रीय सरकारों, गेट्स फाउंडेशन और वर्ल्ड बैंक द्वारा CGIAR (Consultative Group on International Agricultural Research) को 890 मिलियन डॉलर दिए गए हैं. पब्लिकली फंडेड यह नेटवर्क छोटे किसानों को नई फसल की किस्मों और भूमि प्रबंधन तकनीकों सहित मौसम के अनुकूल और टिकाऊ खाद्य प्रणाली बनाने में मदद करने के लिए प्रौद्योगिकियों और तकनीकों पर रिसर्च करेगा. अंतरराष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान का कहना है कि खाद्य प्रणालियों को प्रकृति, विकास और जलवायु लक्ष्यों के अनुरूप बनाने के लिए 2030 तक 350 अरब डॉलर के सालाना निवेश की आवश्यकता होगी.
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यह एक स्वागत योग्य कदम है और जबकि छोटे किसानों पर केंद्रित खाद्य प्रणाली परिवर्तन यानी फूड सिस्टम ट्रांसफॉर्मेशन जितना महत्वपूर्ण है, उतना ही जरूरी टेक्नोलॉजी और फाइनेंस तक पहुंच के मामले में महिला नेतृत्व को सशक्त बनाना भी है.
फ्रंट-लाइन कम्युनिटीज पर ध्यान केंद्रित करना
आने वाले समय में आपदाएं बढ़कर सालाना 560 हो जाएंगी, यानी प्रति दिन लगभग 1.5 आपदाओं का सामना करना होगा. जलवायु परिवर्तन के कारण भूख और कुपोषण 20% बढ़ गया है, जबकि खाद्य उत्पादकता में 21% की गिरावट का अनुमान है. इन चुनौतियों से निपटने के लिए वर्ल्ड फूड प्रोग्राम उन समुदायों को मजबूत समर्थन देने की वकालत करता है जिन्हें खाद्य असुरक्षा यानी फूड-इनसिक्योरिटी का सामना करना पड़ रहा है.
जलवायु परिवर्तन से होने वाले नुकसान और क्षति को रोकने और इन चुनौतियों को संबोधित करने के लिए, WFP अर्ली वॉर्निंग और क्लाइमेट इंफॉर्मेशन सिस्टम, इकोसिस्टम- और इंफ्रास्ट्रक्चर पर आधारित समाधान, क्लाइमेट रिस्क इंश्योरेंस, शॉक-रिस्पॉन्सिव सोशल प्रोटेक्शन, फसल और पशुधन का विविधीकरण और आपातकालीन तैयारियों और प्रतिक्रिया को मजबूत करने और बढ़ाने की सिफारिश करता है.
जहां खाद्य असुरक्षा को लेकर ज्यादा खतरा है, वहां जलवायु कार्रवाई को प्राथमिकता देने के लिए, शुरुआती कार्यों, जलवायु जोखिम बीमा (climate risk insurance) और राष्ट्रीय सामाजिक सुरक्षा प्रणालियों का फायदा उठाने के साथ ही स्थानीय प्रणालियों और क्षमताओं को मजबूत करने के लिए ज्यादा फंड निर्देशित किया जाना चाहिए.
खाद्य प्रणालियों में बदलाव के माध्यम से जलवायु कार्रवाई को बढ़ाना, जलवायु पूर्वानुमान और सुरक्षा में लगाए गए निवेश के साथ खाद्य प्रणालियों को भी खतरे से मुक्त करता है. इसे कृषि-पारिस्थितिकी (agroecological) और पुनर्योजी (regenerative) कृषि पद्धतियों को प्राथमिकता देकर, स्थानीय खरीद और लचीली खाद्य आपूर्ति श्रृंखलाओं के लिए टिकाऊ ऊर्जा समाधानों के माध्यम से जलवायु-अनुकूल स्कूली भोजन को बढ़ाकर और जलवायु-स्मार्ट कृषि पद्धतियों और जलवायु-अनुकूल, स्वदेशी और पौष्टिक फसलों के जरिए किसानों को सपोर्ट करके हासिल किया जा सकता है.
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200 किसान समूहों, अग्रणी समुदायों, व्यवसायों, परोपकारी संगठनों और शहरों के गठबंधन ने लोगों के लिए, प्रकृति और जलवायु के लिए खाद्य प्रणालियों को बदलने के लिए नॉन-स्टेट एक्टर्स कॉल टू एक्शन पर हस्ताक्षर किए. इसका मकसद अमीरात में की गई घोषणा को पूरा करने के लिए इसके कार्यान्वयन का समर्थन करना और खाद्य प्रणालियों को बदलने में सरकारों की भूमिका को मजबूत करना है. हस्ताक्षरकर्ताओं के साथ C40 सिटीज, वर्ल्ड फार्मर ऑर्गनाइजेशन, नेस्ले, वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फंड और बेजोस अर्थ फंड (Bezos Earth Fund) भी फ्रंटलाइन फूड सिस्टम एक्टर्स को सपोर्ट करने और स्वदेशी लोगों के अधिकारों का सम्मान करने के लिए प्रतिबद्ध है.
कोलेबोरेशन और पार्टनरशिप
WFP और ओडिशा सरकार ने आजीविका समर्थन और बाजरा सहित जलवायु के अनुरूप दूसरी फसलों को बढ़ावा देने के माध्यम से महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए पार्टनरशिप की है. ये पार्टनरशिप दो महत्वपूर्ण पहलुओं को जोड़ती है: पहला महिलाओं को समान अवसर देकर पोषण सुरक्षा हासिल करना, और दूसरा जलवायु-अनुरूप खाद्य उत्पादन और पोषण सुरक्षा का समर्थन करने के लिए बाजरे जैसे फसलों की खेती करना, विशेष रूप से कमजोर समुदायों के बीच.
WFP ओडिशा के आदिवासी क्षेत्रों में बाजरे की फसल को बढ़ावा देने के प्रमुख कार्यक्रम, ओडिशा मिलेट्स मिशन (Odisha Millet Mission) से सीख लेने के लिए ओडिशा सरकार के साथ सहयोग भी कर रहा है, जिसका उद्देश्य खेतों और प्लेटों में बाजरा को फिर से जगह दिलाना है.
WFP और ओडिशा सरकार ने “सिक्योर फिशिंग” ऐप के जरिए भी कोलेबोरेशन किया है. ये ऐप तटीय मछली पकड़ने वाले समुदायों की सुरक्षा और वो हर रोज जितनी मछली पकड़ते हैं उसमें सुधार करने में मदद करता है. यह ऐप सरकारी अधिकारियों को मत्स्य पालन क्षेत्र (fishery sector) में हो रही गतिविधियों पर नजर रखने में भी मदद करता है. स्थानीय समुदाय को इस ऐप के जरिए दी जा रही जानकारी समझ में आए इसलिए स्थानीय भाषा में ही लिखित, वीडियो और ऑडियो मैसेज के कॉम्बिनेशन का इस्तेमाल किया जाता है. यह ऐप क्लाइमेट और ओशन स्टेट सर्विसेज (ocean state information services) तक पहुंच भी प्रदान करता है.
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अंत में इतना ही कहना है कि, हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि खाद्य प्रणालियां सामाजिक सुरक्षा प्रणालियों से जुड़ी हों, खासतौर पर क्राइसिस यानी संकट के दौरान. इसका मतलब यह होगा कि छोटे किसानों सहित फूड प्रोडक्शन चेन के सभी स्टेकहोल्डर्स को हेल्दी और पौष्टिक आहार तक पहुंच प्राप्त है और वे स्थानीय लोगों के लिए स्थानीय खाद्य उत्पादन को बनाए रख सकते हैं.
(यह लेख भारत में WFP की रिप्रेजेंटेटिव और कंट्री डायरेक्टर एलिजाबेथ फॉरे (Elisabeth Faure) द्वारा लिखा गया है.)
डिस्क्लेमर: ये लेखक की अपनी निजी राय हैं.