कोई पीछे नहीं रहेगा

समावेश संग सेवा: द ट्रांस कैफे, जहां सपनों को मिलती है उड़ान

मुंबई में द ट्रांस कैफे की प्रेरक कहानी जानें, जहां ट्रांस जेंडर समुदाय के लोग बना रहे अपनी एक नई पहचान

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नई दिल्ली: मालिनी ने बड़ा होकर होटल मैनेजमेंट में अपना करियर बनाने और अपने चुने हुए क्षेत्र में पहचान बनाने का सपना देखा था.

द ट्रांस कैफे की हेड शेफ मालिनी पुजारी कहती हैं, “लेकिन मेरी लैंगिक पहचान सबसे बड़ी बाधा साबित हुई, जिसके चलते समाज हम पर सेक्स वर्क और भीख मांगने का दबाव डालता है.”

इस कड़वी हकीकत से निराश होकर मालिनी ने घर छोड़ दिया और अपनी शर्तों पर अपना जीवन संवारने का साहसिक निर्णय लिया.

मालिनी कहती हैं, ”मैंने जिस भी नौकरी के लिए अप्‍लाई किया, मुझे रिजेक्शन ही मिला. दो साल तक मैं बेघर रही और जीवन में एक स्टेबिलिटी और सामाजिक स्वीकृति पाने के लिए संघर्ष करती रही.”

फिर द ट्रांस कैफे का जन्म हुआ, तो लगा जैसे कोई वरदान मिल गया हो. ट्रांसजेंडर समुदाय के हाथों चलाए जाने वाले इस अनोखे कैफे ने मालिनी को एक प्रमुख शेफ के रूप में अपनी पाक कला को प्रदर्शित करने का एक बेहतरीन मौका दिया. आज उनकी रेसिपी, खासतौर पर उनकी वेज और नॉन-वेज थाली काफी मशहूर हो चुकी है.

वर्सोवा के अंधेरी इलाके में स्थित, द ट्रांस कैफे का कॉन्सेप्ट 2023 में एक ट्रांस जेंडर अधिकार कार्यकर्ता जैनब पटेल ने तैयार किया था.

ट्रांसजेंडर लोगों के अधिकारों के लिए काम करने वाली जैनब पटेल की परिकल्पना पर बना यह कैफे ट्रांसजेंडर समुदाय के लोगों को समाज की मुख्यधारा से जोड़कर उन्‍हें एक सामाजिक स्वीकृति दिलाने का प्रतीक बन चुका है.

मालिनी कहती हैं, ”जैनब मैम का दिल से शुक्रिया ! उनका मकसद बहुत सीधा और सरल था. समाज ट्रांसजेंडर समुदाय के बारे में नहीं सोचेगा, समुदाय से ही किसी व्यक्ति को अपने साथियों को ऊपर उठाने में मदद करनी होगी.”

मिलिए द ट्रांस कैफे की हेड शेफ मालिनी पुजारी से

द ट्रांस कैफे के ग्राहक इस खुशनुमा जगह में एक प्रकार की सांत्वना और अपनेपन का अहसास पाते हैं. यहां खाना पुरानी यादों में खोने और और एक सुकून का अनुभव कराता है, यह उन्हें अपने घर के खाने की याद दिलाता है.

पिछले साल अक्टूबर में खुले इस इस रेस्टोरेंट में अक्सर भोजन करने वाले नियमित ग्राहकों में से एक ने कहा, “जब मुझे इस अनोखे रेस्टोरेंट के बारे में पता चला, तो मैं यहां आकर इसे देखने से खुद को रोक नहीं सका.”

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एक अन्य ग्राहक ने कहा,

”यह जगह मेरे जैसे लोगों के लिए घर से दूर एक घर जैसी है. ऐसा लगता है जैसे मेरी मां मेरे लिए खाना बना रही है.”

ट्रांस कैफे की सफलता मालिनी की व्यक्तिगत यात्रा से कहीं बढ़कर है. यह ट्रांसजेंडर समुदाय के कई युवाओं के लिए सामाजिक मानदंडों को चुनौती देकर अपने सपनों को पूरा करने के एक मंच के रूप में स्थापित हो चुका है.

जैनब कहती हैं, ट्रांस कैफे ट्रांसजेंडर समुदाय के समर्थन और वर्जनाओं को तोड़ने की शक्ति का एक प्रतीक बन चुका है. यह मालिनी जैसी शख्सियतों के लिए आशा की एक किरण जैसा है, जो अपनी जेंडर आइडेंटिटी को अपनी महत्वाकांक्षाओं की राह में बाधा नहीं बनने देना चाहते.

ट्रांस कैफे की दीवारें सामुदायिक सहयोग और वर्जनाओं को तोड़ने की कहानियों से भरी पड़ी हैं.

इस अनूठे कैफे को फिलहाल आठ कर्मचारियों के साथ चलाया जा रहा है. जैनब कहती हैं कि उनका सपना है कि इसे ट्रांसजेंडर समुदाय के हजारों कर्मचारियों के साथ हर नुक्कड़ और देश के कोने-कोने तक चलाया जाए.

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