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बदलाव के ब्रश स्ट्रोक: लोगों को जलवायु परिवर्तन की हकीकत समझाने में जुटे कलाकार
भारत के अलग-अलग हिस्सों से उभरते हुए कलाकारों का समूह क्लाइमेट चेंज के प्रति जागरूकता का संदेश फैलाने आया एक साथ
नई दिल्ली: रचना की शाम के समय काफी व्यस्त रहती थीं. वह महाराष्ट्र के अलीबाग में सरल समुद्र तट पर फेंके गए कूड़े-कचरे को इकट्ठा करने के लिए बीचों पर घूमने लगी थीं. पर बात यहीं खत्म नहीं हुई और उनके भीतर के कलाकार ने लोगों को उनके द्वारा फेंके गए इस कचरे के जरिये ही उन्हें उनकी इस हरकत के नतीजे समझा कर जागरूक करने के लिए संदेश देने की ठानी. बस, फिर क्या था, उन्होंने सारे कचरे को इकट्ठा किया और उससे एक कलाकृति बना डाली, जिसका संदेश यह था कि- कुछ भी बेकार नहीं होता (देयर इज नो सच थिंग कॉल्ड वेस्ट), जरूरत है तो बस उसका क्रिएटिव ढंग से इस्तेमाल करने की. रचना ने प्लास्टिक, लकड़ी, रस्सियों से लेकर कॉयर जैसी फेंक दी गई चीजों से दर्जनों कलाकृतियां, टेपेस्ट्री और मूर्तियां बना डालीं. इन कलाकृतियों को बनाने के लिए रचना ने मुंबई के नारी शक्ति स्वयं सहायता समूह (एसएचजी) की मदद से कूड़े में फेंकी गई चीजों को एकत्र किया. अपने इस काम के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा,
हमने टेपेस्ट्री, कपड़ा, मूर्तियां आदि बनाईं. इसके लिए सभी सामग्री समुद्र तट (बीच) से ली गई थी. इसमें मछली पकड़ने के जाल, थर्मोकोल, पॉलीथिन, नायलॉन की रस्सियां, कपड़े, प्लास्टिक बैग, प्लास्टिक शीट, प्लास्टिक की मालाएं जैसी चीजें शामिल थीं. मैं लोगों को यह दिखाना चाहती थी कि हम प्रकृति पर क्या फेंकते हैं. यह समुद्र तटों को गंदा करने और आसपास रहने वाले लोगों के स्वास्थ्य को प्रभावित करने के साथ-साथ समुद्र को भी दूषित करता है. इसके साथ ही मैं यह भी समझाना चाहती थी कि समुद्र तट पर फेंकी गई ज्यादातर चीजों को दोबारा इस्तेमाल और रिसाइकल किया जा सकता है और इस तरह उन्हें लंबे समय तक उपयोगी बनाए रखा जा सकता है.’
अपनी कलाकृतियों के जरिये मुंबई की पर्यावरणविद् और कलाकार रचना तोशनीवाल ने इको सिस्टम के संतुलन और चीजों को दोबारा इस्तेमाल करने की सर्कुलर इकोनॉमी की ओर लोगों का ध्यान आकर्षित किया. यह पारंपरिक लो-बनाओ-इस्तेमाल करो और फेंक दो (टेक-मेक-कंज्यूम-डिस्पोज) के चलन को छोड़ने और रिन्यूएबल व दोबारा इस्तेमाल योग्य संसाधनों का बेहतर इस्तेमाल कर पर्यावरण को बचाने का संदेश देता है.
चंडीगढ़ की समकालीन कलाकार मनजोत कौर ने इकोसिस्टम के महत्व की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए अपनी कलाकृति ‘द पार्लियामेंट ऑफ फॉरेस्ट्स’ के माध्यम से जंगलों को बचाने और बढ़ाने का संदेश दिया. पर्यावरण संबंधी मुद्दों को उठाने में कला के महत्व के बारे में बात करते हुए मनजोत ने कहा,
कला में प्रकृति की सुंदरता के साथ ही पर्यावरण में आ रही खामियों और उनके नतीजों और संभावित समाधानों को प्रत्यक्ष रूप से प्रदर्शित करने की क्षमता है, जो दर्शकों को गहराई से प्रभावित कर सकती है और इसे लेकर कुछ करने को भी प्रेरित कर सकती है. इसमें समय लग सकता है, लेकिन लगातार ऐसी कोशिशों से आखिरकार कुछ न कुछ होता हुआ देखने को मिलेगा. कला में भाषा की बाधाओं को पार करने और दुनिया भर में अलग-अलग तरह के लोगों के साथ जुड़ने की क्षमता होती है, जो इसे पर्यावरण के प्रति जागरूकता और सामाजिक परिवर्तन के लिए सचेत करने का एक असरदार माध्यम बनाती है
कलाकार देबस्मिता घोष की ‘लिविंग विद द लैंड’ एक कलाकृति है, जो ओडिशा के कोंध समुदाय में घरों के निर्माण के लिए मिट्टी के पारंपरिक इस्तेमाल में धीरे-धीरे होती जा रही औद्योगिक सामग्री की मिलावट और उसके परिणामों को प्रदर्शित करती है.
तीनों कलाकारों ने सस्टेना इंडिया कला प्रदर्शनी में अपनी कला को प्रदर्शित किया, जो काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वाटर (सीईईडब्ल्यू) और मल्टी डिसिप्लिनरी आर्टिस्ट जितेन ठुकराल और सुमीर टैगरा की एक पहल है. प्रदर्शनी ने धरती के साथ हमारे संबंधों को समझाने के लिए कलाकृतियों, कलाकारों और रोजमर्रा की चीजों के बीच एक महत्वपूर्ण रिश्ते को चित्रित किया.
प्रदर्शनी के एक दर्शक अभिनव ने कहा कि जलवायु परिवर्तन और स्थिरता जैसे पर्यावरणीय मुद्दों के बारे में सार्वजनिक स्तर पर जागरूकता बढ़ाने के लिए ऐसी प्रदर्शनियां बहुत जरूरी हैं.
हम स्कूल के दिनों से ही अपनी किताबों में जलवायु परिवर्तन और स्थिरता के बारे में पढ़ते आ रहे हैं. लेकिन इसे एक कला प्रदर्शनी के जरिये देखने-समझने का मौका कम ही मिलता है. इस प्रदर्शनी में निश्चित रूप से यह दर्शाया गया कि आज दुनिया में क्या हो रहा है. इस तरह की प्रदर्शनियां स्थिरता और जलवायु परिवर्तन को लेकर समाज में एक चर्चा शुरू करने में मददगार साबित होती हैं.’
प्रदर्शनी के सह-क्यूरेटर ठुकराल और टागरा ने कहा,
फेलोशिप प्राप्त कलाकार, मनजोत कौर, रचना तोशनीवाल और देबस्मिता घोष ने जलवायु के प्रति जागरूकता के दृष्टिकोण को प्रस्तुत किया है. इसके लिए सस्टेना इंडिया जैसे एक मंच की आवश्यकता थी, जो कलाकारों की विचारशीलता भरे कामों को आगे बढ़ाने और लोगों को उससे रूबरू कराने का मौका दे. साथ ही यह कलाकारों को उन चुनौतियों पर काम करते हुए ऐसी कलाकृतियां बनाने को प्रेरित करे, जिससे लोगों को जानकारी और सीख दोनों ही मिले.
इस तरह की प्रदर्शनी आयोजित करने का विचार मन में कैसे आया, इस बारे में काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वाटर (सीईईडब्ल्यू) की कंम्युनिकेशन एसोसिएट और प्रदर्शनी की सह-आयोजक सुयाशी स्मृति ने कहा कि कुछ महीने पहले उनकी मुलाकात ठुकराल और टैगरा से हुई थी, जब उन्होंने उन्हें वायु प्रदूषण को लेकर दिल्ली में उनकी प्रदर्शनी देखी थी.
लंबे समय से हम सस्टेनेबिलिटी को मेन स्ट्रीम में लाने की कोशिश कर रहे हैं और हमने महसूस किया कि रिसर्च महत्वपूर्ण है, लेकिन रिसर्च और उसके संदेश को लोगों के सामने लाना भी उतना ही जरूरी है, क्योंकि हर कोई जलवायु परिवर्तन और सस्टेनेबिलिटी के बारे में जानने के लिए रिपोर्टों को तो नहीं देखेगा. बड़े पैमाने पर दर्शकों तक पहुंचने के लिए अन्य तरीकों व माध्यमों का इस्तेमाल भी किया जाना चाहिए.