जलवायु परिवर्तन
पर्यावरण को बेहतर बनाने में अपना योगदान दे रहे हैं ये इको-वॉरियर्स!
वेस्ट वॉरियर्स (Waste Warriors) की पहल, प्रोजेक्ट युवा के तहत, पिछले एक साल में युवाओं ने 5,870 किलोग्राम कचरे को लैंडफिल से हटाया
नई दिल्ली: देहरादून के 12 साल के पर्यावरण प्रेमी प्रिंस कहते हैं, “पहले मैं सोचता था कि कचरा साफ करना सिर्फ एक काम है, लेकिन अब मैं इसे बदलाव लाने की एक प्रक्रिया के तौर पर देखता हूं.” प्रिंस को पर्यावरण संबंधी समस्याओं के बारे में ज्यादा कुछ नहीं पता. यहां तक कि वेस्ट डिस्पोजल (waste disposal) कॉन्सेप्ट के बारे में उसे नहीं पता था. उसे लगता था कि कूड़े की समस्या से निपटने का तरीका बस उसे पास के गड्ढे में फेंक देना है.
लेकिन ये कल कि बात थी. आज वो एनवायरमेंट पर ह्यूमन एक्टिविस्ट के प्रभाव को भलीभांति समझने लगा है.
अब वह जानता है कि वेस्ट यानी कचरे को सही तरीके से कैसे डिस्पोज किया जाता है. वो अब रीसाइक्लिंग के बारे में भी जानने लगा है. प्रिंस ने ई-वेस्ट, विंड मिल और टेबल लैंप जैसी बेकार पड़ी चीजों से कई प्रोडक्ट बनाए हैं.
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इस विषय पर मिली जानकारी को उन्होंने अपने तक ही सीमित नहीं रखा. वह न केवल इस बात का ध्यान रखता है कि उसके घर के सभी लोग कचरा सही जगह पर डालें, बल्कि इसका भी ख्याल रखता है कि उसके पड़ोसी भी ऐसा ही करें.
अपने इस नए सोशल पेंशन के बारे में बात करते हुए, प्रिंस ने कहा,
अब मैं पर्यावरण को लेकर अपनी जिम्मेदारी को समझता हूं. मेरा मानना है कि इसके बारे में कक्षा 1 से ही स्कूलों में पढ़ाया जाना चाहिए.
15 साल का वंश (Vansh), जो देहरादून से है, वो नहीं जानता था कि उसके परिवार में बार-बार डायरिया और कई दूसरे इन्फेक्शन किस वजह से हो रहे हैं. वो इन बीमारियों के पीछे की वजह से पूरी तरह से बेखबर था. उसे पता ही नहीं था कि ऐसा खुले में कचरा फेंकने के कारण हुआ है.
प्रिंस और वंश प्रोजेक्ट युवा से जुड़े कई टीनेज एनवायरमेंट वॉरियर्स में से एक हैं.
उनके परिवार के लोग अब सही जगह पर कूड़ा डालते हैं. जिससे अब वो बीमार कम पड़ते हैं. वंश के परिवार में पिछले दो महीने से डायरिया का कोई केस सामने नहीं आया है.
ये टीनेजर्स यानी किशोर परिवारों, दोस्तों और पड़ोसियों को सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट के बारे में शिक्षित करते हैं. वे नुक्कड़ नाटक, स्वच्छता अभियान और ‘स्वच्छता चौपाल’ के माध्यम से उन्हें इसके बारे में समझाते हैं. इन युवा पर्यावरणविदों ने पिछले एक साल में 5,870 किलोग्राम कचरे को लैंडफिल से हटाया है.
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