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करुणा के धागे: बेघर और बेसहारा लोगों को सर्दी से बचाने का काम कर रहे हैं बेकार जीन्स से बने स्लीपिंग बैग
17 साल के निर्वाण सोमानी अपने प्रोजेक्ट जींस – ब्लू टू ग्रीन के माध्यम से बेकार पड़ी जींस को दोबारा इस्तेमाल करके स्लीपिंग बैग बनाते हैं और गरीबों में बांटते हैं
नई दिल्ली: जो काम एक स्कूल प्रतियोगिता के रूप में शुरू हुआ, वह एक मिशन में बदल गया है. 13 साल की उम्र में, निर्वाण सोमानी को एक स्कूल प्रतियोगिता के हिस्से के रूप में एक बिजनेस आइडिया देना था. उन्होंने प्रोजेक्ट जीन्स – ब्लू टू ग्रीन का प्रस्ताव रखा उसके बाद इस आइडिया ने इतिहास रच दिया.
प्रोजेक्ट जींस क्या है?
आइडिया सिंपल है – बेकार या पुरानी जींस को बेघरों और बेसहारा लोगों के लिए स्लीपिंग बैग के जरिए दोबारा उपयोग में लाया जाए. इस तरीके से उन्हें शहर की कठोर सर्दियों में बचने और जिंदा रहने में मदद होगी. इस आइडिया से निर्माण ने अब तक 9,000 जीन्स जो जमीन पर फेंके जाने वाले थे, उनका सही उपयोग करके लैंडफिल के खतरों से बचाया है. 100 मिलियन लीटर पानी सुरक्षित किया है. निर्माण के इस आइडिया से अब तक, पुणे, बेंगलुरु, चेन्नई, दिल्ली और कोलकाता सहित भारत के कई शहरों में 2,000 स्लीपिंग बैग वितरित किए जा चुके हैं.
प्रोजेक्ट के बारे में बात करते हुए निर्वाण ने कहा,
मुझे यह आइडिया 2019 में आया जब मैं यंग एंटरप्रेन्योर्स एकेडमी का एक हिस्सा था, जो मेरे स्कूल में आयोजित एक प्रतियोगिता थी, जहां हमें निवेशकों के सामने एक बिजनेस आइडिया पेश करना था. मैं एक ऐसा बिजनेस आइडिया पेश करना चाहता था, जिसका पर्यावरण के साथ-साथ समाज पर भी असर हो. मैंने पहले से ही किसी प्रोडक्ट की रीसाइक्लिंग के बारे में सोचा था, लेकिन प्रोडक्ट पर निर्णय नहीं लिया था.
इस बीच, जैसे ही दिल्ली में कड़ाके की सर्दी हुई, निर्वाण ने शहर में ठंड के मौसम के बीच बेघरों की दुर्दशा से खुद को बहुत परेशान पाया.
दिल्ली में हममें से कई लोग अक्सर सड़कों पर रहने वाले लोगों को कंबल देते हैं. हालांकि, मुझे एहसास हुआ कि यह ठंड से बचने का अच्छा समाधान नहीं है क्योंकि कंबल लंबे समय तक नहीं टिक पाते. लेकिन एक अच्छा स्लीपिंग बैग ठंड से बचने के लिए बहुत काम आएगा.
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इस आइडिया ने निर्वाण को इस समस्या की गहराई से जांच करने और इसके समाधान के लिए विभिन्न मटेरियल का पता लगाने के लिए प्रेरित किया, जिससे उन्हें डेनिम की खोज करने में मदद मिली. लेकिन उन्हें एक सोशल मीडिया पोस्ट के माध्यम से प्रोडक्ट के पर्यावरणीय प्रभाव की मात्रा का एहसास हुआ,
मैंने यूनाइडेट नेशन का एक सोशल मीडिया पोस्ट देखा, जिसमें कहा गया था कि जींस की एक जोड़ी बनाने में लगभग 10,000 लीटर का पानी लगता है. वह चौंकाने वाला था. इसका मतलब है कि मैंने अपनी पांच जोड़ी जींस को देखते हुए 50,000 लीटर पानी बर्बाद कर दिया. तभी मैंने दान की गई जींस से स्लीपिंग बैग बनाने के बारे में सोचा.
2020 के कोरोनोवायरस महामारी के दौरान, निर्वाण ने, अपने परिवार के साथ मिलकर, स्थानीय दर्जियों के साथ स्लीपिंग बैग के प्रोटोटाइप को तैयार करने में दो साल बिताए. 2022 तक प्रोडक्ट तैयार हो गया. फिर उन्होंने अपने लक्षय के लिए दान मांगने के लिए सोशल मीडिया का प्रयोग किया.
पहले कुछ महीनों के भीतर, हमने लगभग 1,000 जींस एकठ्ठा कर लिए और उन्हें स्लीपिंग बैग में बदल दिया. मैंने अपने इलाके के पीछे ग्रामीण बस्तियों में रहने वाली कुछ महिलाओं को भी इसक काम में शामिल किया. इसलिए इस परियोजना ने न केवल पर्यावरण, बेघरों की जरूरतों को पूरा किया, बल्कि उन महिलाओं को सशक्त बनाने में भी मदद की, जिनके हाथों में कोई काम नहीं था.
प्रोजेक्ट जींस दिल्ली में अपने दूतावासों के माध्यम से तुर्की और सीरिया में आए भूकंप के पीड़ितों तक भी पहुंचा है. इसके अतिरिक्त, निर्वाण ने जरूरतमंदों तक परियोजना की पहुंच बढ़ाने के लिए कई गैर सरकारी संगठनों और बहुराष्ट्रीय निगमों के साथ मिलकर भी काम किया है.
प्रोजेक्ट के बारे में बात करते हुए निर्वाण कहते है कि
यदि मैं एक प्रोडक्ट के साथ दो तरीकों से बदलाव लाने में सक्षम हूं, तो हर कोई अपने तरीके से योगदान दे सकता है.
17 साल के निर्वाण का कहना है कि ये रीसायकल जींस एकजुटता की कहानियां बताती हैं, जो बर्बादी के धागों को आशा के धागों में बदल देती हैं