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Van Mahotsav 2022: वनों के बारे में तथ्य जो आपको जानने चाहिए

भारत हर साल जुलाई के पहले सप्ताह में वन महोत्सव मनाता है. जानिए वनों के बारे में कुछ फैक्‍ट्स.

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नई दिल्ली: भारत एक ऐसे देश के रूप में जाना जाता है जो पेड़ों से संबंधित कई त्योहार मनाता है. इन्हीं त्योहारों में से एक है वन महोत्सव. धरती मां को बचाने और देश के हरित आवरण को फिर से भरने के उद्देश्य से वन महोत्सव को धर्मयुद्ध के रूप में शुरू किया गया था. वन महोत्सव का मुख्य उद्देश्य भारत के प्रत्येक नागरिक को हफ्ते में एक पौधा लगाने के लिए प्रोत्साहित करना है. साथ ही, पेड़ों के लाभ और संरक्षण और पेड़ों को काटने से होने वाले नुकसान के बारे में जागरूकता अभियान चलाए जाते हैं, इसे जीवन के त्योहार के रूप में प्रचारित किया जाता है.

पेश हैं वनों के बारे में कुछ कठोर तथ्य हैं-

  1. वन हमारे ग्रह के लगभग 31 प्रतिशत भूमि क्षेत्र को कवर करते हैं.
  2. संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, वन जानवरों, पौधों और कीड़ों की सभी 80 प्रतिशत स्थलीय प्रजातियों का घर हैं.
  3. संगठन का कहना है कि लुप्त जंगलों का मतलब ग्रामीण समुदायों में आजीविका का गायब होना, कार्बन उत्सर्जन में वृद्धि, जैव विविधता में कमी और भूमि का क्षरण है.
  4. संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि हर साल 10 मिलियन हेक्टेयर जंगल नष्ट हो जाते हैं.
  5. संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, पृथ्वी पर दो बिलियन हेक्टेयर भूमि खराब हो गई है, जिससे लगभग 3.2 बिलियन लोग प्रभावित हुए हैं, जो प्रजातियों को विलुप्त होने और जलवायु परिवर्तन को तेज करने के लिए प्रेरित कर रहे हैं.
  6. इंडिया स्टेट ऑफ फॉरेस्ट रिपोर्ट 2021 के अनुसार, भारत में वृक्षों के आवरण का अनुमान 95,748 वर्ग किमी है जो देश के भौगोलिक क्षेत्र का 2.91 प्रतिशत है. इसमें 2019 में पिछले आकलन से 721 वर्ग किमी की वृद्धि दर्ज की गई है.
  7. भारत का वन क्षेत्र 7,13,789 वर्ग किमी है जो देश के भौगोलिक क्षेत्र का 21.71% है. रिपोर्ट में कहा गया है कि इसमें 2019 में पिछले आकलन से 1,540 वर्ग किमी की वृद्धि दर्ज की गई है.
  8. यूरोपीय पर्यावरण एजेंसी का कहना है कि एक वर्ष में, एक परिपक्व पेड़ वातावरण से लगभग 22 किलोग्राम कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित कर सकता है, और बदले में ऑक्सीजन छोड़ता है.
  9. इस रिर्पोट में कहा गया है कि हर साल, 1.3 मिलियन पेड़ हवा से 2,500 टन से अधिक प्रदूषकों को हटाते हैं.

 

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