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World Health Day 2022: क्‍या है पर्यावरण स्‍वास्‍थ्‍य और मानव स्वास्थ्य के बीच की कड़ी?

इस साल, विश्व स्वास्थ्य दिवस, जो हर साल 7 अप्रैल को मनाया जाता है, ‘हमारा ग्रह, हमारा स्वास्थ्य’ थीम के साथ स्वास्थ्य और पर्यावरण के बीच महत्वपूर्ण कड़ी को उजागर कर रहा है.

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स्वस्थ वातावरण बीमारी के वैश्विक बोझ के लगभग एक-चौथाई हिस्से को रोक सकता है: विश्व स्वास्थ्य संगठन

New Delhi: ‘केवल एक स्वच्छ भारत ही स्वस्थ भारत हो सकता है,’ इस उद्देश्य के साथ, एनडीटीवी और डेटॉल का बनेगा स्वस्थ भारत अभियान ग्रह के स्वास्थ्य और मानव स्वास्थ्य और कल्याण के साथ इसके संबंध के बारे में जागरूकता बढ़ा रहा है. थीम वन हेल्थ, वन प्लैनेट, वन फ्यूचर. इस साल, विश्व स्वास्थ्य दिवस, जो हर साल 7 अप्रैल को मनाया जाता है, संयुक्त राष्ट्र (यूएन) के साथ इस साल की थीम के रूप में ‘हमारा ग्रह, हमारा स्वास्थ्य’ चुनने के साथ इस महत्वपूर्ण कड़ी को भी उजागर कर रहा है.

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार, स्वस्थ वातावरण बीमारी के वैश्विक बोझ के लगभग एक-चौथाई हिस्से को रोक सकता है. साथ ही कहा कि सभी वैश्विक मौतों में से 24 प्रतिशत पर्यावरण से जुड़ी हैं, जो सालाना लगभग 13.7 मिलियन मौतें हैं.

‘स्वच्छ हवा, एक स्थिर जलवायु, पर्याप्त पानी, सेनेटाइजेशन और हाइजीन, रसायनों का सुरक्षित उपयोग, विकिरण से सुरक्षा, स्वस्थ और सुरक्षित कार्यस्थल, अच्छी कृषि पद्धतियां, स्वास्थ्य-सहायक शहर और निर्मित वातावरण, और एक संरक्षित प्रकृति अच्छे स्वास्थ्य के लिए सभी आवश्यक शर्तें हैं.’ – डब्‍ल्‍यूएचओ

इस बात पर जोर देते हुए कि मानव स्वास्थ्य सीधे ग्रह से जुड़ा है, भारत के पर्यावरणविद् फाउंडेशन के संस्थापक अरुण कृष्णमूर्ति कहते हैं-

जल-वायु-मिट्टी और प्राकृतिक संसाधनों के दूषित होने से स्वस्थ जीवन, जीवन प्रत्याशा पर प्रभाव पड़ता है. फेफड़े-जिगर-आंतों की जटिलताएं, रोगाणुओं के नए/दवा प्रतिरोधी उपभेदों, तनाव और मानसिक स्वास्थ्य सभी पर्यावरणीय नुकसान के कई तरीकों से जुड़े हुए हैं. स्वस्थ ग्रह संभव है, हमारे जीवन विकल्पों के आधार पर, हमारा स्वस्थ जीवन एक स्वस्थ ग्रह पर निर्भर करता है.

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इसके अलावा, जलवायु परिवर्तन भी लोगों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है, जिससे लू बढ़ जाती है, और डेंगू, मलेरिया जैसी वेक्टर जनित बीमारियां होती हैं. व्यापक स्तर पर, जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता का नुकसान और भूमि क्षरण अप्रत्यक्ष रूप से पारिस्थितिक तंत्र को खतरे में डालकर मानव कल्याण को प्रभावित करता है, जैसे कि मीठे पानी और खाद्य उत्पादन तक पहुंच. एस एन त्रिपाठी वरिष्ठ पर्यावरण शोधकर्ता और आईआईटी कानपुर के प्रोफेसर का कहना है कि जलवायु परिवर्तन को कम करने का एकमात्र तरीका जलवायु परिवर्तन के प्रति अनुकूलन है.

एंथ्रोपोसिन में सतत विकास (जिस समय के दौरान मनुष्यों का हमारे ग्रह पर पर्याप्त प्रभाव पड़ा है) वैश्विक मानव स्वास्थ्य को सुरक्षित करते हुए पर्यावरण संरक्षण प्राप्त करने का एकमात्र तरीका है. बदलती जलवायु के लिए अनुकूलन और पर्यावरण की स्थिति में बदलाव भविष्य में स्वास्थ्य देखभाल की कुंजी होगी.

जब वायु प्रदूषण की समस्या की बात आती है, तो डब्ल्यूएचओ इसे सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल मानता है. पर्यावरण, जलवायु परिवर्तन और स्वास्थ्य विभाग की निदेशक डॉ मारिया नीरा बताती हैं कि यह हर साल 70 लाख से अधिक अकाल मौतों के लिए जिम्मेदार है. वह यह भी कहती हैं कि दुनिया भर में हर 10 में से नौ लोग, विशेष रूप से शहरों में रहने वाले, ऐसी हवा में सांस ले रहे हैं जो डब्ल्यूएचओ के वायु गुणवत्ता दिशानिर्देशों के अनुसार अच्छे मानकों के अनुरूप नहीं है.

ग्रीनपीस इंडिया के वरिष्ठ जलवायु प्रचारक अविनाश चंचल ने एनडीटीवी को बताया कि हाल के सालों में वायु प्रदूषण जैसा पर्यावरण संकट सबसे अहम सार्वजनिक स्वास्थ्य मुद्दों में से एक बन गया है.

खराब वायु गुणवत्ता का सार्वजनिक स्वास्थ्य और भलाई पर बुरा प्रभाव पड़ता है. एम्‍बिएंट पीएम 2.5 भारत में मौतों का तीसरा सबसे बड़ा जोखिम कारक है, जिसके कारण भारत में हर साल अनुमानित 1.1 मिलियन मौतें होती हैं. वायु प्रदूषण से अकाल मृत्यु और अस्थमा, समय से पहले जन्म, जन्म के समय कम वजन, अवसाद, सिज़ोफ्रेनिया, मधुमेह, स्ट्रोक और फेफड़ों के कैंसर सहित कई चिकित्सीय स्थितियों की संभावना बढ़ जाती है.

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सुनील दहिया, सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर (सीआरईए), ने एनडीटीवी को बताया कि हमारे आस-पास की हवा और पर्यावरण की गुणवत्ता नागरिकों और समाजों के स्वास्थ्य और आर्थिक कल्याण को नियंत्रित करती है.

प्रदूषण से पीड़ित समाज में बार-बार अस्पताल जाना, काम से अनुपस्थित दिन, कार्य कुशलता में कमी और पुरानी बीमारियों के कारण समय से पहले मौत हो जाती है, जो अंततः समाज के आर्थिक विकास में व्यक्ति का योगदान कम या बिलकुल खत्‍म कर देता है. और परिवारों और समाज पर बड़े पैमाने पर आर्थिक बोझ बढ़ने का कारण बनता है.

वे आगे कहते हैं-

सरकारों को रूफटॉप सोलर जैसे विकेन्द्रीकृत नवीकरणीय ऊर्जा समाधानों को बढ़ावा देना चाहिए, एकीकृत सार्वजनिक परिवहन, गैर-मोटर चालित परिवहन (एनएमटी) के अनुकूल बुनियादी ढांचे का निर्माण करना चाहिए और अपशिष्ट जलाने, निर्माण क्षेत्र, औद्योगिक उत्सर्जन और बायोमास जलने जैसे अन्य योगदानकर्ताओं को संबोधित करना चाहिए.

स्वच्छता और सफाई व लोगों के स्वास्थ्य पर इसके प्रभाव की बात करते हुए वाटरएड इंडिया के राज्य कार्यक्रम निदेशक अनुराग गुप्ता बताते हैं कि –

भारतीय तटीय राज्य ओडिशा और विशेष रूप से इसके तटीय जिले अक्सर विनाशकारी चक्रवातों के शिकार होते हैं. चरम मौसम की घटनाओं के हिस्से के रूप में पानी, स्वच्छता और सफाई संबंधी सेवाओं में रुकावट का आबादी के स्वास्थ्य, पोषण, शिक्षा और आजीविका पर भारी प्रभाव पड़ता है. इन स्थितियों और प्राकृतिक आपदाओं के प्रभाव के लिए सबसे कमजोर बच्चे हैं. यह स्वच्छता सुविधाओं की खराब पहुंच, अपर्याप्त हाथ धोने और सुरक्षित पेयजल बचपन की बीमारी और मृत्यु में अहम योगदान देता है. कई और बच्चे परजीवी या संक्रमण के कारण कमजोरी और कुपोषण का शिकार होते हैं, जिससे उनकी स्कूल जाने, शिक्षा प्राप्त करने और जीवन में अपनी पूरी क्षमता हासिल करने की क्षमता खत्म हो जाती है. वाटरएड इंडिया लचीला पानी और स्वच्छता मॉडल के माध्यम से आवर्ती चक्रवातों का सामना करने, अनुकूलन करने और उनसे उबरने की समुदाय की क्षमता का निर्माण करने के लिए सामुदायिक लचीलापन बनाने के लिए भद्रक जिले में काम कर रहा है. प्रमुख हस्तक्षेपों में व्यापक आपदा जोखिम में कमी और लचीला पेयजल प्रणालियों, स्वच्छता सुविधाओं और तूफानी जल प्रबंधन मॉडल के प्रदर्शन पर सामुदायिक संस्थानों की क्षमता निर्माण शामिल है. उन्होंने समझाया कि बढ़ा हुआ लचीलापन आपदाओं की बेहतर प्रत्याशा और आपदा नुकसान को कम करने के लिए बेहतर योजना बनाने की अनुमति देता है. रेजिलिएंट वॉश (WASH) में संशोधित वाश इंफ्रास्ट्रक्चर और सशक्त समुदायों दोनों को अधिक सूचित तरीके से झटके से निपटने के लिए शामिल किया गया है. गुप्ता के अनुसार, इनमें रेजिलिएंट वॉटर और सेनिटाइजेशन मॉडल, ज्‍यादा शौचालय, पानी की अध‍िक उपलब्‍धता- ऊंचे उठे हुए हैंडपंप, स्टैंड पोस्ट; तूफान जल प्रबंधन प्रणाली – जल निकासी, बफर स्पेस, पुनर्भरण गड्ढे और और खाइयां; चक्रवात केंद्रों में पर्याप्त वॉश सुविधाएं, सामुदायिक स्तर पर सक्षम वॉश टास्क फोर्स, आपदाओं के दौरान और बाद में वॉश संकट से निपटने के लिए सामुदायिक स्तर पर वॉश आकस्मिक योजना व अन्य श‍ामिल हैं.

रेजिलिएंट वॉश (WASH) बुनियादी ढांचा आपदा और आपदा के बाद की अवधि में पेयजल और स्वच्छता सेवाएं प्रदान करना जारी रखता है. सक्षम समुदाय आपदा से निपटने में सक्षम हैं, उन्होंने बताया कि ये कैसे काम करते हैं.

जूनोटिक रोगों को उन बीमारियों या संक्रमणों के रूप में परिभाषित किया जाता है जो वायरस, बैक्टीरिया, परजीवी, कवक या प्रियन के कारण होते हैं, और जो मनुष्यों और जानवरों के बीच संचरित हो सकते हैं. जूनोटिक रोगों के कुछ उदाहरणों में प्लेग, कोरोनावायरस जैसे कोविड -19, रेबीज, लाइम रोग, इबोला, निपाह वायरस शामिल हैं.

अध्ययन में कहा गया है कि उभरते हुए संक्रामक रोगों में ज़ूनोज़ का हिस्सा 60 प्रतिशत है और वैश्विक स्वास्थ्य के संदर्भ में उनका महत्व लगातार बढ़ रहा है.

विज्ञान स्पष्ट है कि अगर हम वन्यजीवों का शोषण करते रहे और अपने पारिस्थितिक तंत्र को नष्ट करते रहे, तो हम आने वाले सालों में इन बीमारियों की एक स्थिर धारा जानवरों से मनुष्यों में कूदने की उम्मीद कर सकते हैं. महामारी हमारे जीवन और हमारी अर्थव्यवस्थाओं के लिए विनाशकारी हैं, और जैसा कि हमने पिछले महीनों में देखा है, यह सबसे गरीब और सबसे कमजोर लोग हैं, जो सबसे अधिक पीड़ित हैं. भविष्य के प्रकोपों ​​​​को रोकने के लिए, हमें अपने प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा के बारे में और अधिक जागरूक होना होगा. यूएनईपी के कार्यकारी निदेशक इंगर एंडरसन ने कहा.

सभी सबूत इस बात की ओर इशारा करते हैं कि किस तरह मनुष्यों द्वारा प्‍लेनेट की ट्रि‍टमेंट उनके स्वास्थ्य और कल्याण को कैसे प्रभावित करती है. डब्‍ल्‍यूएचओ के अनुसार, जहां कोविड-19 महामारी ने हमें विज्ञान की उपचार शक्ति दिखाई, इसने हमारी दुनिया में असमानताओं को भी उजागर किया. महामारी ने समाज के सभी क्षेत्रों में कमजोरियों को उजागर किया है और पारिस्थितिक सीमाओं को तोड़े बिना अभी और आने वाली पीढ़ियों के लिए समान स्वास्थ्य प्राप्त करने के लिए प्रतिबद्ध स्थायी कल्याण बनाने की तात्कालिकता को रेखांकित किया है. ग्रह और मानव स्वास्थ्य के लिए विनाश के इन चक्रों को तोड़ने के लिए विधायी कार्रवाई, कॉर्पोरेट सुधार और व्यक्तियों को स्वस्थ विकल्प बनाने के लिए समर्थन और प्रोत्साहन की जरूरत है.

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