खुद की देखभाल
एक मां और उद्यमी प्रियंका रैना के साथ, स्वास्थ्य, मातृत्व और खुद की देखभाल पर बातचीत
मातृत्व, मां के रिश्ते और समाज पर मां के प्रभाव का सम्मान करने का दिन है मदर्स डे. इस मदर्स डे पर, ‘टीम बनेगा स्वस्थ इंडिया ने ‘माते (Maate)’ की को-फाउंडर प्रियंका रैना से बात की.
नई दिल्ली: दो छोटे बच्चों की मां प्रियंका रैना ने 2019 में एक बेबी केयर ब्रांड ‘माते’ की सह-संस्थापक के रूप में शुरुआत की. ये ब्रांड आपके बच्चे के पोषण के लिए अच्छी क्वालिटी वाले केमिकल-फ्री प्रोडक्ट्स तैयार करता है. प्रियंका का कहना है कि माते की शुरुआत ” एक मां की जिज्ञासा से पैदा हुई थी”. वह बताती हैं-
जब मैं खुद मां बनी, तो मैं बाजार में मौजूद ऐसे प्रोडक्ट्स की तलाश में थी, जिस पर मैं भरोसा कर सकती थी. मैं अपने बच्चों के लिए ऐसे प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल करना चाहती थी, जो पूरी तरह से प्राकृतिक, प्रीमियम और असरदार हों. क्योंकि मैं अपने बच्चों को ऐसा ही कुछ देना चाहती थी, तो इस तरफ मेरी दिलचस्पी बढ़ गई और मैंने खोजना शुरू कर दिया कि प्रोडक्ट बनाने के लिए सबसे जरूरी क्या है? प्रोडक्ट के अंदर क्या होता है? और बच्चों के लिए कौन सी चीजें सही होती हैं? क्या काम करता है और क्या नहीं?
प्रियंका आयुर्वेद में विश्वास रखती हैं. हमारी दादी-नानी अच्छे स्वास्थ्य और तंदुरुस्ती को सुनिश्चित करने के लिए जैसे रसोई में रखी चीजों का उपयोग करती थीं, ठीक वैसे ही तरीकों और नुस्खों को आगे बढ़ाते हुए प्रियंका ने ‘माते’ की नींव रखी. प्रियंका बताती हैं कि-
‘माते’ आयुर्वेद से बहुत प्रेरित है और सारी पारंपरिक विधियों का पालन करता है. यह एक ऐसा ब्रांड नहीं है जो सिर्फ अच्छा दिखता हो या जिसकी सिर्फ खुशबू अच्छी हो. ये बच्चे की त्वचा, सिर और शरीर को ध्यान में रखकर तैयार किए गए हैं. ये प्राकृतिक रूप से तैयार किए गए प्रोडक्ट्स हैं, जो सुरक्षित के साथ-साथ असरदार भी हैं. यह एक ऐसी चीज है, जिसे एक मां ने दुनिया की बाकी माताओं के लिए बनाया है.
अच्छी क्वालिटी वाले प्रोडक्ट्स को तैयार करने के अलावा, ‘माते’ उनके टिकाऊ होने पर भी ध्यान देता है, जो आज के समय की जरूरत भी बन गई है. कैसे ‘माते’ सस्टेनेबिलिटी को ध्यान में रखकर काम कर रहा है, इस बारे में प्रियंका ने कहा-
मुझे लगता है कि सस्टेनेबिलिटी एक ऐसी प्रैक्टिस है जिसे दुनियाभर में और खास तौर पर भारत में अब हर स्टार्टअप को अपनाना चाहिए. अच्छे ब्रांड बनाते समय, हमें यह ध्यान रखना होगा कि हम अपने बच्चों को जो सबसे बड़ा उपहार दे सकते हैं, वह ये ग्रह ही है. एक जिम्मेदार मां और ब्रांड के मालिक के रूप में, मैं अपने ब्रांड में सस्टेनेबिलिटी का ध्यान रखना चाहती हूं.
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प्रियंका बताती हैं कि स्किनकेयर सेगमेंट में सभी प्रोडक्ट्स के लिए, कांच की बोतल का इस्तेमाल कर पाना थोड़ा चुनौतीपूर्ण हो सकता है. उदाहरण के लिए, क्लींजिंग रेंज के प्रोडक्ट्स का उपयोग बाथरूम और शॉवर में किया जाता है. कांच की बोतलें फिसल कर टूट सकती हैं. उद्यमी आगे कहती हैं-
एक ब्रांड के रूप में जहां तक मुमकिन हो, हम ग्लास पैकेजिंग का उपयोग करते हैं और किसी भी तरह से, जैसे फिलर्स या श्रिंक रैप (Shrink wrap) या किसी प्लास्टिक टेप के तौर पर प्लास्टिक के इस्तेमाल को कम करने की कोशिश करते हैं. जो थोड़ा सा प्लास्टिक हम इस्तेमाल करते भी हैं, तो उसमें भी हमारी कोशिश रहती है कि, वह शत प्रतिशत रिसाइकिल होने लायक हो. हम प्रोडक्ट्स पैकेजिंग के लिए रीसाइक्लिंग को प्रोत्साहित करते हैं. हम रीफिल पैक पर भी काम कर रहे हैं ताकि प्लास्टिक का इस्तेमाल कम से कम हो.
महिलाओं को सशक्त बनाने वाली महिला
प्रियंका ‘ग्रेशिया रैना फाउंडेशन’ भी चलाती हैं, जिसका मकसद महिलाओं को उनके प्रेगनेंसी पीरियड के दौरान सशक्त बनाना है. प्रियंका ने पहले बच्चे को जन्म देने के ठीक बाद, अपनी बेटी ग्रेसिया रैना के नाम पर फाउंडेशन को लॉन्च किया था. युवा लड़कियों को शरीर, लिंग और सेक्सुएलिटी एवं प्रजनन स्वास्थ्य पर सही शिक्षा देनी कितनी जरूरी है, इस बारे में बात करते हुए, प्रियंका कहती हैं-
मुझे खुद, मां बनने के बाद अहसास हुआ, कि एक मां के लिए मातृत्व का पूरा सफर कितना मुश्किल हो सकता है. वह मानसिक, शारीरिक और भावनात्मक रूप से कई बदलावों से गुजरती है. फाउंडेशन के माध्यम से मैं ऐसे कार्यक्रम शुरू करना चाहती थी, जहां मैं वास्तव में वंचित महिलाओं की मदद कर सकूं, खासकर उनकी, जिनकी सही स्वास्थ्य सेवा, जानकारी और ज्ञान हासिल करने की तक पहुंच नहीं है. हमने मां के स्वास्थ्य के लिए ‘एवरी मदर’ नाम का एक कार्यक्रम शुरू किया है. यह गर्भवती और युवा माताओं को शिक्षित करता है.
‘एवरी मदर’ प्रीनेटल और पोस्टनेटल फेज एवं पोस्टपार्टम डिप्रेशन पर भी फोकस करता है. प्रियंका का मानना है कि पोस्टपार्टम डिप्रेशन के बारे में ऐसी गलतफहमियां और बहुत सी ऐसी बातें हैं, जिसके पता न होने की वजह से, इस बारे में ज्यादा बात नहीं की जाती है.
युवा माताएं कभी-कभी वास्तव में यह नहीं समझ पाती हैं कि वे इतना घबराई हुई और भावुक क्यों महसूस कर रही हैं? यह जरूरी है कि वे सभी हार्मोनल बदलावों को समझें और साथ ही परिवार भी इस दौरान उनका साथ दे.
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जमीनी स्तर पर काम करने के दौरान, टीम ने महसूस किया कि, भारत में किशोरावस्था में गर्भधारण, कम उम्र में गर्भधारण और अवांछित गर्भधारण की संख्या बहुत ज्यादा है. इसलिए, उन्हें लगा कि कम उम्र की लड़कियों को इस इस पूरे बदलाव के बारे में समझना जरूरी है. और, ये शुरुआत उस उम्र से होनी चाहिए जब से एक लड़की गर्भ धारण करने में सक्षम हो जाती है. इसके लिए उन्होंने ‘राइट एज’ नाम का एक कार्यक्रम भी शुरू किया हैं. प्रियंका ने कहा-
एक लड़की जैसे ही किशोरावस्था में कदम रखती है, तभी से उन्हें ये समझाना जरूरी है कि वो अपने शरीर में आ रहे बदलावों के साथ खुद को किस तरह ढालें. प्रियंका इसी क्षेत्र में सक्रियता से काम करना चाहती हैं. बकौल प्रियंका इसके लिए उन्होंने खास कार्यक्रम भी शुरू किया है जिसमें उन्हें बढ़ती उम्र के साथ शरीर में आ रहे बदलाव और उनसे जुड़ी इच्छाओं और सोच में आ रहे परिवर्तन के बारे में बताया जाता है. इस बीच अगर लड़कियां किसी उलझन से गुजरती हैं तो वो किस तरह हेल्थकेयर एक्सपर्ट या फिर अपने माता पिता की मदद ले सकती हैं ये भी उन्हें समझाया जाता है. ताकि वो बेझिझक बातचीत शुरू कर सकें.
प्रियंका बताती हैं कि ग्रेसिया रैना फाउंडेशन की टीम, शैक्षिक कार्यक्रमों के दौरान, शारीरिक बदलावों, भावनात्मक बदलावों और मासिक धर्म के बारे में बात करती है. साथ ही यौन संचारित रोग (एसटीडी), संक्रमण और सर्वाइकल कैंसर के बारे में भी उन्हें शिक्षित करती है. युवा उद्यमी का मानना है कि इस तरह के कार्यक्रमों को लागू करना माता-पिता, शिक्षकों और उनके जैसे संगठनों की मिली- जुली जिम्मेदारी है. वह आगे कहती हैं-
यह भी बहुत जरूरी है कि हमारी शैक्षणिक प्रणाली भी ऐसे कार्यक्रमों को शामिल करना शुरू करें , जहां छोटे बच्चों को उनके शरीर, मानसिक और फिजिकल वेल बीइंग और उन सभी बदलावों के बारे में शिक्षा दी जाए है, जिनसे वे गुजर रहे हैं. साथ ही, यह भी जरूरी है कि घर पर माता-पिता बच्चों के साथ खुलकर बातचीत करें, क्योंकि बच्चों में जानकारी का अभाव और भ्रम की स्थिति भी बहुत सारी समस्याओं का कारण बनती है.
मातृत्व का दबाव और संतुलन
व्यवसाय, काम और परिवार की देखभाल करते समय, महिलाएं अक्सर अपनी जरूरतों का ध्यान रखना भूल जाती हैं. प्रियंका रैना कैसे खुद की देखभाल और परिवार की सेहत के बीच संतुलन बनाती हैं? प्रियंका, प्लान, ऑर्गनाइज एण्ड प्रॉयोरिटीज यानि पी. ओ. पी. – इन तीन शब्दों का पालन करती हैं. वह कहती है-
मुझे लगता है कि सभी माताएं, मेरे साथ सहमत होंगी कि जीवन में संतुलन बना पाना आसान नहीं है. हर दिन नए संघर्ष लेकर आता है. लेकिन, मुझे लगता है, एक बार जब आप मां बन जाती हैं, तो आप में एक ही वक्त में कई जगहों पर होने और मल्टीटास्किंग की खास काबिलियत भी आ जाती है. ऑर्गनाइज होने से मुझे काफी मदद मिली है? मैं अपने दिन की शुरुआत यह तय करने से करती हूं, कि मैं पहले क्या कर सकती हूं और क्या नहीं. साथ ही, आगे की चीजों की प्लानिंग करने में भी मैं बहुत यकीन रखती हूं. मुझे लगता है कि जिन चीजों को मैं नहीं कर सकती उन्हें मना करने में कोई हर्ज नहीं है, क्योंकि मेरी प्राथमिकता मेरे बच्चे, मेरा परिवार, मेरा काम और मेरी खुद की देखभाल है.
प्रियंका का मानना है कि माताएं अपना दायरा बढ़ाते हुए अपने सपनों को हासिल करने के साथ ही घर में भी चीजों को बैलेंस करने की कोशिश कर रही हैं. हालांकि, वह अपनी देखभाल करने और यह देखने की सलाह देती हैं कि आपके लिए सबसे अच्छा क्या है, क्योंकि,
अगर आप खुद खुश नहीं हैं या आपका स्वास्थ्य सही नहीं हैं, तो आप एक खुशहाल और स्वस्थ परिवार नहीं बना सकती हैं.
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