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ब्लॉग : पार्टिकुलेट मैटर हमारी सेहत के लिए किस तरह है खतरनाक, समझिए
शोध अध्ययनों के मुताबिक वायु प्रदूषण और दिल के दौरे, स्ट्रोक, प्रजनन संबंधी समस्याओं, स्तन कैंसर और कोविड -19 के गंभीर मामलों के प्रति बढ़ती संवेदनशीलता के बीच है गहरा संबंध
हम जिस हवा में सांस लेते हैं, जो जीवन की सबसे पहली जरूरत है, वह खुद हमारी एक्टिविटीज के चलते जहरीली होती जा रही है. पार्टिकुलेट मैटर (पीएम), जिसमें पीएम 10, पीएम 2.5 जैसे अलग-अलग आकार के छोटे कणों के साथ-साथ गैसों और विषाक्त पदार्थों के बढ़ते स्तर ने हमारे वातावरण को बुरी तरह प्रभावित किया है. जैसे ही हम प्रदूषित हवा में सांस लेते हैं, गैसें हमारे फेफड़ों के सबसे गहरे हिस्सों तक पहुंच जाती हैं, जबकि बड़े कण ऊपरी श्वसन मार्ग में फंस जाते हैं. छोटे कण, खासकर PM 2.5, फेफड़ों में गहराई तक प्रवेश करते हैं और सांस के जरिये लगातार समय के साथ जमा होते जाते हैं. पार्टिकुलेट मैटर निष्क्रिय नहीं होता; यह अपने साथ विषैले तत्वों को लेकर आता है. इन कणों के साथ रसायनों और एसिड की एक पूरी शृंखला जुड़ी होती है, जो हमारे फेफड़ों में जमा हो जाती है, जिससे ऐसी भौतिक और रासायनिक क्षति होती है, जो ठीक नहीं हो पाती. इससे भी बुरी बात यह है कि ये पदार्थ हमारे रक्त प्रवाह में प्रवेश कर जाते हैं और मस्तिष्क से लेकर हाथ-पैर तक शरीर के हर अंग को प्रभावित करते हैं. चौंकाने वाली बात यह है कि इन प्रदूषकों का संपर्क जन्म से पहले ही शुरू हो जाता है, क्योंकि गर्भवती महिलाएं प्रदूषित हवा में सांस लेती हैं. इसके चलते विषाक्त पदार्थ गर्भनाल (प्लेसेंटा) में प्रवेश करके विकासशील भ्रूण को प्रभावित करते हैं.
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पैदा होने से पहले से लेकर वयस्क होने तक हम पर प्रदूषण का असर
प्रदूषण हमारी सेहत को कई तरह से प्रभावित कर सकता है, जो जीवन के अलग-अलग चरणों में देखने को मिलता है. भ्रूण के विकास पर वायु प्रदूषण का प्रभाव गर्भावस्था के दौरान ही पड़ना शुरू हो जाता है और जन्म के पूर्व हर तिमाहियों के साथ यह बच्चे में जन्मजात विकारों के खतरे और शारीरिक-मानसिक विकास से जुड़ी जटिलताओं को बढ़ता जाता है. अत्यधिक प्रदूषित हवा के संपर्क में आने वाले शिशुओं, जिनमें PM2.5 का स्तर 200 या उससे अधिक दर्ज किया जाता है, को प्रतिदिन दस सिगरेट पीने के बराबर सेहत संबंधी नुकसानों का सामना करना पड़ता है. यह प्रारंभिक जोखिम तुरंत ही श्वसन संबंधी चुनौतियों और न्यूरो डेवलपमेंट से जुड़े विकारों को जन्म देता है, जिससे बच्चे को बचपन में कैंसर, अस्थमा, मोटापा और न्यूरोलॉजिकल हानि जैसी गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं. इन चीजों से बच्चे की बुद्धिमत्ता यानी आईक्यू पर भी काफी बुरा असर पड़ता है.
इसके अलावा वायु प्रदूषण का असर पड़ना वयस्कता तक जारी रहता है, जिससे क्रोनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी), फेफड़ों का कैंसर और टीबी जैसी गंभीर बीमारियां तक हो जाती हैं. शोध अध्ययनों में वायु प्रदूषण और दिल के दौरे, स्ट्रोक, प्रजनन संबंधी समस्याएं, स्तन कैंसर और कोविड-19 के गंभीर मामलों के प्रति बढ़ती संवेदनशीलता जैसी गंभीर स्वास्थ्य स्थितियों के बीच संबंध होने की बात सामने आई है. यह निष्कर्ष जीवन के अलग-अलग चरणों में मनुष्य के स्वास्थ्य पर वायु प्रदूषण के गंभीर और दूरगामी प्रभाव को प्रदर्शित करते हैं.
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वैश्विक प्रभाव और आर्थिक टोल
विश्व स्वास्थ्य संगठन का वायु प्रदूषण के कारण प्रतिवर्ष सात मिलियन से अधिक असामयिक मौतों का गंभीर अनुमान हमें ग्लोबल हेल्थ इमरजेंसी की भयावह स्थिति से अवगत कराता है. भारत में वायु प्रदूषण के कारण लोगों की आयु में औसतन पांच से छह वर्ष तक की कमी देखने को मिल रही है. उत्तर भारत में तो स्थिति और भी गंभीर है, जहां आयु में औसतन 9 से 10 साल तक का बड़ा नुकसान देखने को मिला है. मानव स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव डालने के साथ ही वायु प्रदूषण एक बड़ा आर्थिक नुकसान भी पहुंचाता है, जो भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में लगभग सात से आठ फीसदी की बड़ी हिस्सेदारी के लिए जिम्मेदार है. यह आर्थिक बोझ मुख्य रूप से अलग-अलग स्रोतों से उत्पन्न होता है, जिसमें जीवाश्म ईंधन (तेल-गैस) का उपयोग, अनियमित निर्माण गतिविधियां, अंधाधुंध कचरा पैदा होना और फसल जलाने जैसी नुकसानदायक चलन और इसके साथ ही औद्योगिक गतिविधियों से होने वाला उत्सर्जन भी शामिल है.
वायु प्रदूषण से निपटने की रणनीतियां
वायु प्रदूषण से निपटने के लिए एक ऐसी व्यापक रणनीति की आवश्यकता है जिसमें रोकथाम और उपचार दोनों के ही प्रयास शामिल हों. जल प्रदूषण के विपरीत, दूषित वायु से निपटना ज्यादा चुनौती भरा काम है, जो रोकथाम के उपायों को प्राथमिकता देने की आवश्यकता पर ज्यादा जोर देता है. वायु प्रदूषण पर काबू पाने के उपायों में कचरा और पराली जलाने पर रोक लगाना, रिन्यूएबल एनर्जी के स्रोतों से स्वच्छ ऊर्जा विकल्पों को अपनाने की ओर कदम बढ़ाना और औद्योगिक और कंस्ट्रक्शन जैसे क्षेत्रों में उत्सर्जन संबंधी कड़े नियमों को लागू किया जाना शामिल है. इसके अलावा वैश्विक स्तर पर जीवाश्म ईंधन के इस्तेमाल को निर्णायक रूप से चरणबद्ध तरीके से खत्म करना न केवल वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने में, बल्कि इसके चलते हो रहे जलवायु परिवर्तन की बड़ी चुनौती से निपटने में भी एक महत्वपूर्ण कदम साबित होगा.
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सामूहिक स्तर पर कार्य करने की जरूरत और भूमिकाएं
जब सरकार ने प्रदूषण के स्रोतों को कम करने के लिए सीधी पहल की है, जैसे कि 2030 तक बिजली की कुल खपत का 30% सौर ऊर्जा से प्राप्त करने पर फोकस करने वाले सौर ऊर्जा कार्यक्रम की शुरुआत, हवा की गुणवत्ता में महसूस किए जा सकने वाले सुधार, जो कि खासतौर पर दिल्ली जैसे क्षेत्रों में दुर्लभ बने हुए थे. इन उपायों की प्रगति में कमी मुख्य रूप से प्रदूषण को कम करने में व्यक्तिगत स्तर पर लोगों की पर्याप्त भागीदारी न होने के कारण देखने को मिल रही है. प्रदूषण को कम करने में व्यक्तिगत स्तर पर योगदान को बढ़ाने पर तुरंत ध्यान देने की जरूरत है, क्योंकि कि व्यक्तिगत उत्सर्जन में 10% की मामूली कटौती भी प्रदूषण के स्तर को घटाने में एक सामूहिक प्रभाव के रूप में महत्वपूर्ण असर दिखा सकती है.
इस मुद्दे के केंद्र में वायु प्रदूषण से प्रभावी ढंग से निपटने के लिए सामुदायिक भागीदारी, अलग-अलग प्रकार के कचरे को कुशलता पूर्वक अलग किया जाना और वाहनों के अनावश्यक उपयोग को कम करने जैसे उपायों पर जोर दिया जाना बेहद जरूरी है. “डॉक्टर फॉर क्लीन एयर” जैसी पहलें सामुदायिक जागरूकता को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं. समुदायों को कार्रवाई के लिए सक्रिय रूप से शिक्षित और संगठित करके उन्हें इन प्रयासों के उद्देश्य और स्थिति की गंभीरता के प्रति जागरूक करके लोगों के बीच सामूहिक समझ पैदा करने की जरूरत है.
इसके लिए सामूहिक स्तर पर किए जाने वाले प्रयासों पर जोर देना सबसे जरूरी हो जाता है. वायु प्रदूषण पर लगाम लगाने के उद्देश्य से व्यक्तिगत और सरकारी दोनों स्तर पर काम किए जाने को प्रोत्साहित करने के लिए सामूहिक आंदोलन और सार्वजनिक सहयोग के प्रयास काफी महत्वपूर्ण हैं. लोगों की सक्रिय भागीदारी और पर्यावरण के संरक्षण के लिए साझा प्रतिबद्धता के बिना हवा की गुणवत्ता में बड़ा सुधार लाने का लक्ष्य एक कोरी कल्पना बन कर रह जाएगा.
जन्म से पहले की अवस्था से लेकर वयस्कता तक मानव स्वास्थ्य पर पड़ता सूक्ष्म कणों का गहरा प्रभाव तुरंत और सामूहिक स्तर पर कार्रवाई किए जाने की तात्कालिक आवश्यकता को प्रदर्शित करता है. वायु प्रदूषण को प्रभावी ढंग से कम करने के लिए सहयोगात्मक और एकजुट प्रयास किए जाने की जरूरत है, जिसमें सरकार, समुदाय और व्यक्ति समान रूप से भागीदारी करें. नियंत्रण के उपायों को सख्ती से लागू किया जाना, स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों की ओर एक समझदारी भरा बदलाव और सामुदायिक स्तर पर सक्रिय भागीदारी के साथ व्यापक जागरूकता उत्पन्न करके ही हम आने वाली पीढ़ियों को प्रदूषण की कैद से को मुक्त रख सकेंगे. लोगों की भलाई सुनिश्चित करते हुए हमें एक स्वस्थ भविष्य की दिशा एक लंबा रास्ता तय करना होगा.
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(यह लेख मेदांता अस्पताल, गुरुग्राम के लंग ट्रांसप्लांट विभाग के अध्यक्ष डॉ. अरविंद कुमार द्वारा लिखा गया है.)
डिस्क्लेमर : लेख में व्यक्त विचार लेखक की निजी राय हैं.