जलवायु परिवर्तन

जानिए COP28 में की गई प्रमुख घोषणाएं और भारत अपने लक्ष्यों को पूरा करने के कितना करीब है

COP 28 शिखर सम्मेलन और इसमें भारत के रुख को समझने के लिए सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट में क्लाइमेट चेंज की प्रोग्राम मैनेजर अवंतिका गोस्वामी के साथ NDTV ने की खास बातचीत

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इस साल COP28 समिट में कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर बात हुई, जैसे कि जलवायु वार्ता में 30 सालों में पहली बार, जीवाश्म ईंधन की भूमिका पर ध्यान दिया गया

नई दिल्ली: इस साल संयुक्त अरब अमीरात (UAE) में आयोजित हुई COP 28 क्लाइमेट मीटिंग से कई महत्वपूर्ण नतीजे सामने आए, जैसे पहली बार इसमें जीवाश्म ईंधन यानी फॉसिल फ्यूल से दूरी बनाने की जरूरत को स्वीकार किया गया और पहली बार मीथेन एमिशन को कम करने का वादा किया गया. भारत की ओर से, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, जो COP28 शिखर सम्मेलन का नेतृत्व कर रहे थे, ने सभी देशों से ग्लोबल एमिशन में भारी कटौती करने के लिए मिलकर काम करने का आग्रह किया, और एक “ग्रीन क्रेडिट” इनिशिएटिव की घोषणा की जो लोगों की भागीदारी के जरिए कार्बन एमिशन को कम करने पर केंद्रित है.

COP28 की प्रमुख घोषणाओं और समिट में भारत के रुख के बारे में जानने के लिए, टीम बनेगा स्वस्थ इंडिया ने सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट में क्लाइमेट चेंज की प्रोग्राम मैनेजर, अवंतिका गोस्वामी से बात की. आपके लिए इस चर्चा के खास अंश:

NDTV: इस साल COP 28 में की गई प्रमुख घोषणाएं कौन सी रहीं?

अवंतिका गोस्वामी: इस साल COP28 का आयोजन संयुक्त अरब अमीरात के दुबई शहर में किया गया था. यह एक महत्वपूर्ण इवेंट था क्योंकि इस साल क्लाइमेट रिपोर्ट्स की एक सीरीज पेश की गई, जो क्लाइमेट चेंज से होने वाले परिणामों को उजागर करती हैं. लक्ष्य के मुताबिक, अगर हमें पेरिस एग्रीमेंट के गोल को हासिल करने के लिए ग्लोबल वार्मिंग को 1 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करना है, तो दुनिया को 2030 तक ग्लोबल ग्रीन हाउस गैस एमिशन में 43 फीसदी की कटौती करने की जरूरत है. यही वजह है कि COP जैसे समिट इतना महत्व रखते हैं. यह समिट क्लाइमेट एम्बिशन, फाइनेंसिंग और क्लाइमेट जस्टिस जैसे इश्यू को हाइलाइट करने में मदद करता है. इस बार COP समिट ऐसे मुश्किल हालातों में हुआ, जब दो ग्लोबल वॉर चल रहे हैं और मौसम में भारी उतार-चढ़ाव की घटनाएं भी बढ़ रही हैं. कई देश, खासतौर पर गरीब और विकासशील देश जलवायु संकट के प्रभावों को महसूस कर रहे हैं. यही बात इस इवेंट को अहम बनाती है.

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इस साल COP28 समिट में कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर बात हुई, जैसे कि जलवायु वार्ता में 30 सालों में पहली बार, जीवाश्म ईंधन की भूमिका पर ध्यान दिया गया, जो COP शिखर सम्मेलन के डिसीजन टेक्स्ट में लिखा गया है. वैज्ञानिक इस बारे में बात कर रहे हैं कि कैसे जीवाश्म ईंधन जलाने से ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन हो रहा है और ग्लोबल वार्मिंग बद से बदतर हो रही है, लेकिन फिर भी हम इसका इस्तेमाल कर रहे हैं. यह पहला COP था, जिसमें हम डिसीजन टेक्स्ट में जीवाश्म ईंधन (fossil fuels) को शामिल करने में कामयाब रहे. इसलिए, ये एक बहुत बड़ी उपलब्धि है. COP28 में ग्लोबल स्टॉक टेक का फाइनल डॉक्यूमेंट फॉसिल फ्यूल से दूरी बनाने और नेट जीरो एनर्जी सिस्टम की ओर बढ़ने की आवश्यकता पर जोर देता है.

एक और बड़ा अचीवमेंट लॉस और डैमेज फंड का संचालन था, पिछले साल COP 27 में विकासशील देशों के लिए एक बड़ी कामयाबी यह रही कि एक फंड पर सहमति बनी थी. यह फंड दरअसल एक अनुदान आधारित फंड है जिसे गरीब और कमजोर देशों में वितरित किया जाएगा, जो जलवायु परिवर्तन की वजह से मौसम में भारी उतार चढ़ाव होने के चलते गंभीर क्षति का सामना कर रहे हैं. हालांकि इस फंड में कौन भुगतान करेगा, फंड से किसे पैसा मिलेगा इस पर काफी गहन चर्चा हुई, लेकिन इस COP तक फंड को शुरू नहीं किया गया था. लेकिन, COP28 के पहले ही दिन इस COP की अध्यक्षता करने वाला संयुक्त अरब अमीरात, इसे शुरू करने में कामयाब रहा. इस फंड के लिए विभिन्न देशों से करीब 700 मिलियन डॉलर जुटाया जाएगा. हालांकि, यह समझना जरूरी है कि इस मसले से निपटने के लिए 700 मिलियन डॉलर कोई बहुत बड़ी रकम नहीं है. लेकिन यह फंड शुरू करना निश्चित रूप से एक अच्छी शुरुआत है. इस तरह COP28 की ये दो बड़े नतीजे रहे.

NDTV: COP 28 जमीनी स्तर पर जीवन और आजीविका को कैसे प्रभावित कर रहा है?

अवंतिका गोस्वामी: COP समिट एक हाई लेवल का प्रोसेस नजर आता है. क्लाइमेट एक्टिविस्ट, साइंटिस्ट, एकेडमिक्स की एक कम्युनिटी है, जो हर साल इस समिट के लिए जाती है. हालांकि यह लोगों के रोजमर्रा के जीवन से जुड़ा नहीं लगता, लेकिन सच्चाई यह है कि COP विश्व स्तर पर एक ऐसा मंच है, जहां दुनिया के 200 देश जलवायु परिवर्तन से निपटने के बारे में चर्चा करने के लिए एक साथ आते हैं. यहां हर देश को अपनी बात रखने का समान मौका मिलता है, इसलिए, आप जिस भी देश से हैं, आपका देश COP समिट में उपस्थित होने और जलवायु परिवर्तन की समस्या से निपटने के लिए कुछ समाधानों की वकालत कर सकता है. COP28 पूरी दुनिया के लिए एक संकेत है कि हम क्लाइमेट पॉलिसी पर कैसे आगे बढ़ रहे हैं, यह निवेशकों और व्यवसायों के लिए भी एक संकेत है कि किस तरह की टेक्नोलॉजी भविष्य में आगे बढ़ेगी और सरकारों के लिए एक संकेत है कि किस तरह की डोमेस्टिक क्लाइमेट पॉलिसी उन्हें बनानी चाहिए.

NDTV: COP 28 में भारत की स्थिति क्या है?

अवंतिका गोस्वामी: भारत ने कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन में केवल तीन फीसदी का योगदान दिया है. 1870 से 2019 के बीच दुनिया के देशों द्वारा उत्सर्जित सभी कार्बन डाइऑक्साइड में भारत की हिस्सेदारी केवल 3 प्रतिशत है. आज, सालाना आधार पर, भारत अभी भी ग्लोबल एनुअल कार्बन डाइऑक्साइड एमिशन में केवल 7 प्रतिशत के लिए जिम्मेदार है. जलवायु परिवर्तन की समस्या में हम एक छोटे भागीदार हैं. हमारा प्रति व्यक्ति उत्सर्जन वर्ल्ड एवरेज से काफी नीचे है. भारत में एक नेशनल डेवलपमेंट काउंसिल (NDC) भी है, जो कि पेरिस समझौते में की गई जलवायु प्रतिज्ञा है. NDC के तीन भाग हैं, और भारत वास्तव में पेरिस समझौते में दिए गए तीन लक्ष्यों में से कम से कम दो को पूरा करने की राह पर है. इसलिए COP समिट में, भारत निश्चित रूप से विकसित देशों को याद दिलाता है कि जलवायु कार्रवाई पर नेतृत्व करने की उनकी भी जिम्मेदारी है और अन्य विकासशील देशों को प्रेरित करता है कि उन्हें जीवाश्म ईंधन को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने की दिशा में और ज्यादा तेजी से कार्रवाई करनी चाहिए. भारत समानता की अवधारणा का एक बड़ा समर्थक है और विकसित देशों को जलवायु कार्रवाई में नेतृत्व करने और विकासशील देशों को डीकार्बोनाइजेशन में मदद करने के लिए भी प्रेरित करता है. हालांकि भारत अपने NDC में किए गए वादे के बाद अब कोई भी नया लक्ष्य या कोई नई प्रतिज्ञा लेने के लिए इच्छुक नहीं है. ऐसा इसलिए है, क्योंकि बड़ी जिम्मेदारी विकसित देशों पर होनी चाहिए.

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NDTV: इस साल COP28 के जरिए क्या मिला और क्या रह गया, इस बारे में बताएं.

अवंतिका गोस्वामी: COP28 इस लिहाज से मिला-जुला रहा. इसके दो सबसे बड़े फायदों में पहला लॉस और डैमेज फंड का संचालन था, और दूसरी बड़ी कामयाबी थी कि ग्लोबल स्टॉक डेट डॉक्यूमेंट में जीवाश्म ईंधन का उल्लेख करना. इसमें जीवाश्म ईंधन से दूरी बनाने की आवश्यकता को साफ तौर पर जाहिर किया गया था. हालांकि, इस साल के COP समिट की बड़ी चूक यह थी कि हम जीवाश्म ईंधन की भूमिका को परिभाषित करने के तो बहुत करीब दिखे, लेकिन हम यह परिभाषित करने में नाकामयाब रहे कि किन देशों को पहले चरणबद्ध तरीके से जीवाश्म ईंधन को समाप्त करना चाहिए. CSE का मानना है कि यह चूक हुई है. वहीं कई देशों को इस बारे में चिंता है कि फाइनल डॉक्यूमेंट में एडेप्टेशन के लिए फाइनेंस को सही तरीके से आउटलाइन नहीं किया गया, और यह इस शिखर सम्मेलन की दूसरी बड़ी चूक है.

डॉक्यूमेंट कोयले को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने के लिए बहुत दबाव डालता है, लेकिन जलवायु परिवर्तन को खराब करने में तेल और गैस की भूमिका का उस तरह जिक्र नहीं करता और कोयले के साथ-साथ तेल और गैस को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने के लिए पर्याप्त दबाव नहीं बनाता है. तो यह एक ऐसा प्‍वाइंट है, जहां भारत, इंडोनेशिया, दक्षिण अफ्रीका जैसे देश निश्चित तौर पर पीछे हैं क्योंकि ये विकासशील देश हैं जिन्हें अपनी अर्थव्यवस्था को बढ़ाने और बढ़ती ऊर्जा की मांग को पूरा करने के लिए बड़ी मात्रा में सस्ती बेस लोड पावर की जरूरत होती है. तो इस बारे में निश्चित रूप से ध्यान दिया जाना चाहिए था.

NDTV: क्या भारत अपने जलवायु परिवर्तन लक्ष्यों को पूरा करने की राह पर है?

अवंतिका गोस्वामी: भारत ने अपने NDC के तहत पेरिस समझौते के लिए तीन लक्ष्य निर्धारित किए हैं. पहला है 2030 तक अपनी GDP की उत्सर्जन तीव्रता (emissions intensity) में 45 प्रतिशत की कमी लाना. दूसरा 2030 तक 50 प्रतिशत गैर-जीवाश्म स्थापित बिजली क्षमता (non-fossil installed power capacity) हासिल करना. तीसरा है अतिरिक्त जंगलों और पेड़ों के माध्यम से अपने कार्बन सिंक को 2.5 से 3 गीगाटन तक बढ़ाना. पर्यावरण मंत्रालय ने घोषणा की है कि भारत वास्तव में अपने जलवायु परिवर्तन लक्ष्यों को पूरा करने की राह पर है. भारत ने 2005 से 2019 के बीच पहले ही अपनी GDP की उत्सर्जन तीव्रता को 33 फीसदी कम कर दिया है. अपनी नॉन-फॉसिल फ्यूल कैपेसिटी के मामले में, वर्तमान में भारत के पास 41 प्रतिशत क्लीन पावर है. केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण का वास्तव में अनुमान है कि 2030 तक भारत अपने लक्ष्य को पार कर जाएगा और उसके पास लगभग 62 प्रतिशत नॉन-फॉसिल पावर कैपेसिटी होगी. तो, निश्चित तौर पर भारत तीन में से दो लक्ष्यों को पूरा करने की राह पर है और यह एक बहुत ही अच्छा संकेत है.

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