जलवायु परिवर्तन

COP28 स्पेशल: तकनीक के जरिये जलवायु परिवर्तन से निपटने में भारत के किसानों की कैसे करें मदद?

जलवायु परिवर्तन एक ऐसी समस्‍या है, जिसका भारत के छोटे किसानों को सामना करना पड़ रहा है. इससे उनकी फसलों की पैदावार भी प्रभावित हो रही है. भारत में खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) के प्रतिनिधि ताकायुकी हागिवारा बताते हैं कि इस समस्‍या से निपटने में किस तरह से किसानों की मदद की जा सकती है

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एफएओ के देश प्रमुख ने कहा कि डिजिटल टेक्नोलॉजी किसानों को मिट्टी के प्रकार और इसके लिए सबसे उपयुक्त फसल समझने में भी मदद कर सकती है

नई दिल्ली: दुबई में आयोजित COP28 शिखर सम्मेलन में खाद्य और कृषि क्षेत्र चर्चा का एक प्रमुख विषय बनकर उभरा. सम्मेलन में 130 से अधिक वैश्विक नेताओं ने उत्पादन से उपभोग तक की अपनी खाद्य प्रणालियों को राष्ट्रीय रणनीति का केंद्र बिंदु बनाने की घोषणा पर हस्ताक्षर किए हैं. आधिकारिक बयान के अनुसार, सतत कृषि (सस्‍टेनेबल एग्रीकल्‍चर), लचीली खाद्य प्रणालियों और जलवायु कार्रवाई को लेकर COP28 में की गई यूएई घोषणा में नेताओं ने परिवर्तन के लिए और अधिक काम करने के अलावा, कृषि से संबंधित जलवायु समस्याओं से निपटने, किसानों के लिए अनुकूलन और लचीलेपन के प्रयासों को बढ़ाने के लिए 2.5 बिलियन डॉलर से अधिक की राशि इकट्ठा की है.

भारत की बात करें, तो कृषि आज भी देश में लोगों के रोजगार के सबसे बड़े स्रोतों में से एक है. खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) के अनुसार, लगभग 70 फीसदी ग्रामीण परिवार अपनी रोजी-रोटी के लिए मुख्य रूप से खेती पर ही निर्भर हैं. इनमें से 82 फीसदी किसान छोटे और सीमांत कृषक हैं. फसल उत्पादन बढ़ाने और उपज बेचने में इन छोटे किसानों को कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है, जो कहीं न कहीं इनके खानपान और खाद्य सुरक्षा को भी प्रभावित करती है.

छोटे पैमाने के किसानों के सामने आने वाली चुनौतियों और उनकी मदद की रणनीतियों के बारे में जानने के लिए ‘एनडीटीवी-डेटॉल बनेगा स्वस्थ इंडिया’ ने भारत के एफएओ प्रतिनिधि ताकायुकी हागिवारा से बात की.

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भारत के छोटे किसानों की प्रमुख समस्याएं

हागिवारा ने कहा कि भारत में किसानों के सामने सबसे बड़ी चुनौती जलवायु परिवर्तन की है. इसलिए उन्हें भविष्य में जलवायु के हिसाब से लचीली कृषि पद्धतियों को अपनाने की जरूरत है. भारत में मौसम का मिजाज बहुत अनियमित है और कहीं पानी की उपलब्धता बहुत अधिक, तो कहीं बहुत कम है. हागिवारा ने कहा,

हमें किसानों को न केवल मौसम के मिजाज के बारे में, बल्कि फसल प्रबंधन प्रणाली के बारे में भी शिक्षित करने की जरूरत है.

खाद्य उत्पादन बढ़ाने में एफएओ कैसे कर रहा है किसानों की मदद?

हागिवारा ने कहा कि भारत में लगभग 60 फीसदी कृषि वर्षा आधारित है। इसलिए, देश में ज्यादातर खेती मौसम पर निर्भर है. एफएओ बड़े पैमाने पर मौसम संबंधी भविष्यवाणियां किसानों तक पहुंचाने का काम कर रहा है. हागिवारा ने कहा,

किसानों को मौसम के बदलते मिजाज के बारे में सूचित करने की आवश्यकता है, ताकि वे समझ सकें कि उन्‍हें कब अपनी फसल की बुआई और कटाई करनी चाहिए. हम कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र और हिमाचल प्रदेश सहित कई राज्यों में मौसम पूर्वानुमान पर काम कर रहे हैं. हम पानी के बेहतर ढंग से उपयोग और इसे नियंत्रित करने की दिशा में भी काम कर रहे हैं.

छोटे धारकों की मदद कैसे कर सकती है सरकार?

हागिवारा ने कहा कि कृषि में सरकार की महत्वपूर्ण भूमिका है, क्योंकि वह जल संसाधनों को नियमित कर सकती है और किसानों को फसल की जरूरतों के अनुसार पानी का इस्तेमाल करने पर विचार करने के लिए कह सकती है. उन्होंने कहा कि जल संसाधनों के नियंत्रित इस्तेमाल से पानी को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाया जा सकता है. साथ ही सरकार सिंचाई व कृषि पद्धतियों में सुधार के जरिये भी फसल उत्पादन बढ़ा सकती है. हागिवारा ने कहा,

सरकार बेहतर उपज के लिए सिंचाई जैसी कृषि पद्धतियों में निवेश कर सकती है. सिंचाई के लिए बड़े निवेश की आवश्यकता होती है और सरकार निजी क्षेत्रों के साथ साझेदारी में ऐसा कर सकती है.

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डिजिटल पहल किस तरह छोटे किसानों को पहुंचा सकती है लाभ?

हागिवारा ने बताया कि किसान आमतौर पर फसल उगाने के पारंपरिक तरीकों पर निर्भर रहते हैं. वे फसल को देखकर ही उपज का अंदाजा लगा लेते हैं. यह काम अनुभव पर आधारित होता है, इसलिए पूर्वानुमान पूरी तरह सटीक होने की कोई गारंटी नहीं होती. डिजिटल जानकारी अधिक सटीक जानकारी प्राप्त करने में किसानों की मदद कर सकती है और इस जानकारी के आधार पर, किसान फसल की जरूरत के मुताबिक खाद या कीटनाशक डाल सकते हैं. कृषि में यह सटीकता एक महत्वपूर्ण चीज है.

एफएओ के देश प्रमुख ने कहा कि डिजिटल तकनीक किसानों को अपने खेत की मिट्टी के प्रकार और वह किस फसल की खेती के लिए सबसे उपयुक्त रहेगी, यह समझने में भी मदद कर सकती है.

उन्होंने विस्तार से बताया,

किसान उपग्रह चित्रों के माध्यम से मिट्टी की स्थिति में भिन्नता, विकास और उपज की भविष्यवाणी के बारे में जान सकते हैं.

हागिवारा ने कहा कि सैटेलाइट इमेज से किसानों को फसल, खाद डालने के सही समय और अपनी उपज की मार्केटिंग की योजना बनाने जैसी महत्वपूर्ण चीजों के बारे में सोच-समझ कर बेहतर निर्णय लेने में मदद मिलेगी.

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हागिवारा ने कहा कि छोटी जोत वाली कृषि का डिजिटलीकरण खेती के जोखिम को कम कर उत्पादन और आय बढ़ा सकता है. साथ ही यह महिलाओं को भी सशक्त बना सकता है और दुनिया की तेजी से बढ़ती आबादी को खिलाने के लिए पौष्टिक भोजन के उत्पादन की बड़ी समस्या को हल करने में भी मदद कर सकता है.

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