NDTV-Dettol Banega Swasth Swachh India NDTV-Dettol Banega Swasth Swachh India

ताज़ातरीन ख़बरें

COP28 में ‘फॉसिल फ्यूल के इस्तेमाल को कम करने’ पर हुआ ऐतिहासिक समझौता

COP28: लगभग दो सप्ताह की व्यस्त बातचीत के बाद अपनाई गई पहली ग्लोबल स्टॉकटेक डील, देशों से बिजली के उत्पादन में इस्तेमाल होने वाले कोयले को चरणबद्ध तरीके से कम करने का आग्रह करती है. ग्लोबल स्टॉकटेक डील को संयुक्त अरब अमीरात की सहमति कहा जा रहा है

Read In English
Historic Deal On A ‘Transition Away From Fossil Fuels’, Adopted At COP28
लगभग 200 देशों ने एक ऐतिहासिक जलवायु समझौता किया, जिसमें फॉसिल फ्यूल के इस्तेमाल का कम करने का संकल्प लिया गया

दुबई: बुधवार (13 दिसंबर) को यहां वार्षिक जलवायु वार्ता COP28 के अंतिम सत्र में लगभग 200 देशों ने एक ऐतिहासिक जलवायु समझौता किया, जिसमें जलवायु संकट के प्रमुख कारण फॉसिल फ्यूल से “उचित और न्यायसंगत” तरीके से खत्म करने का संकल्प लिया गया.  लगभग दो सप्ताह की व्यस्त बातचीत के बाद अपनाई गई पहली ग्लोबल स्टॉकटेक डील, देशों से बिजली के उत्पादन में इस्तेमाल होने वाले कोयले को चरणबद्ध तरीके से कम करने का आग्रह करती है. ग्लोबल स्टॉकटेक डील को संयुक्त अरब अमीरात की सहमति कहा जा रहा है. इससे पहले भारत और चीन ने एक साथ कोयले के इस्तेमाल में कटौती का विरोध किया था.

COP28 के अध्यक्ष सुल्तान अल-जबर ने जैसे ही समझौते के बारे घोषणा की, वैसे ही जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (UNFCCC) के एनुअल कांफ्रेंस ऑफ पार्टीज (COP) में वार्ताकारों से भरा कमरा तालियों से गूंज उठा.

दुबई वार्ता का प्रस्ताव कुछ देर के बाद रिलीज किया गया. इसमें पेरिस समझौते के अप्रोच को जोड़कर ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करके दुनिया के कुल तापमान में जल्द से जल्द 1.5 डिग्री सेल्सियस की कमी लाना है.

इसे भी पढ़ें: विश्लेषण: जीवाश्म ईंधन पर COP28 डील के बावजूद, 1.5 डिग्री सेल्सियस का लक्ष्य पहुंच से बाहर होने की संभावना

ऐतिहासिक समझौते में इसके निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए आठ-सूत्रीय योजना बनाई गई, जिसमें 2050 तक नेट जीरो उत्सर्जन का टारगेट हासिल करने के लिए इस दशक में कार्रवाइयों में तेजी लाते हुए ऊर्जा प्रणालियों में “उचित, व्यवस्थित और न्यायसंगत तरीके से” फॉसिल फ्यूल के इस्तेमाल में कटौती लाना शामिल है.

इस प्रस्ताव में देशों से बिजली के उत्पादन में इस्तेमाल होने वाले कोयले को चरणबद्ध तरीके से बंद करने की दिशा में प्रयासों में तेजी लाने का आग्रह किया गया, जो कि 2021 में हुए ग्लासगो समझौते से एक मामूली स्तर तक ज्यादा है.

हालांकि, पिछले सम्मेलनों के विपरीत, इसमें “नए और निर्बाध कोयला बिजली उत्पादन की अनुमति को सीमित करने” के संदर्भ की कमी है. यह अनुपस्थिति भारत और चीन जैसे अत्यधिक कोयला-निर्भर देशों की ओर से एक मजबूत प्रतिक्रिया का संकेत देती है.

साथ ही इस 21 पन्नों के डॉक्यूमेंट में तेल और गैस का कोई उल्लेख नहीं है, जिन ईंधनों का उपयोग अमीर देश जारी रखते हैं.

इसे भी पढ़ें: भारत ने COP28 में समानता और जलवायु को बेहतर करने के लिए पेरिस समझौते को अमल में लाने का आग्रह किया

समझौते को अपनाने के बाद सभा को संबोधित करते हुए, सुल्तान अल-जबर ने कहा कि यह एक मजबूत कार्य योजना है जिसमें तापमान को 1.5 डिग्री के अंदर सीमित रखने के प्रयास किए गए हैं. उन्होंने कहा,

यह एक संतुलित योजना है जो उत्सर्जन को काबू करने, अनुकूलन के अंतर को पाटने, वैश्विक वित्त की दोबारा कल्पना करने और नुकसान और क्षति से बचाती है.

बारबाडोस के पीएम मोटले के विशेष जलवायु दूत अविनाश पर्सौड ने कहा कि जब धूल छट जाएगी और सुबह होगी, तो इसे सबसे ऐतिहासिक सीओपी में से एक के रूप में देखा जाएगा. उन्होंने कहा,

हमने एक हानि और क्षति निधि का संचालन किया है, हरित जलवायु निधि का पुनर्पूंजीकरण किया है, और एक अंतरराष्ट्रीय जलवायु वित्त प्रणाली की व्यवस्था की है जो साहसी विकास बैंकों और नए निजी क्षेत्र के प्रवाह के साथ-साथ नई लेवी के लिए तैयार करती है. आज, हम नवीकरणीय निवेश को तीन गुना करने और फॉसिल फ्यूल से उचित परिवर्तन के लिए प्रतिबद्ध हैं.

यह देखते हुए कि कुछ कार्यकर्ता निराश थे कि प्रस्ताव “फॉसिल फ्यूल को तत्काल समाप्त करने” के लिए प्रतिबद्ध नहीं है. तो उन्होंने कहा, फिर भी, इसे प्राप्त करने के लिए व्यापार, निवेश और वित्त के बिना, यह या तो विकासशील देशों को सबसे अधिक प्रभावित करेगा या फिर अर्थहीन होगा. उन्होंने कहा,

मैंने देखा कि कुछ बड़े विकसित देश के फॉसिल फ्यूल उत्पादक अपने मतदाताओं को इसके बारे में समझाने से पहले ही उस समूह में शामिल होने के लिए कतार में खड़े हो गए.

क्लाइमेट एक्शन नेटवर्क (साउथ एशिया) के निदेशक संजय वशिष्ठ कहते हैं,

“दुबई वार्ता का परिणाम बताता है कि ये दुनिया सिर्फ अमीर और प्रभावशाली विकसित देशों की है. आखिरी प्रस्ताव से इक्विटी और मानवाधिकार के सिद्धांत का परिलक्षित न होना दिखाता है कि विकासशील देशों को स्वयं को सुरक्षित रखने की जिम्मेदारी उनकी अपनी है और असली गुनहगार उनकी मदद के लिए कभी नहीं आएंगे.

उन्होंने कहा,

हम केवल जीवाश्म ईंधन शब्दावली को प्रस्ताव में अंकित कर देने से खुश नहीं हो सकते जब तक कि यह स्पष्ट नहीं हो जाता कि ये लागू कैसे होगा और इसमें एनर्जी ट्रांजिशन के लिए गरीब और विकासशील देशों के लिए वित्त का प्रावधान नहीं है. अगर यह ‘ऐतिहासिक परिणाम’ है तो यह गलत इतिहास लिखा गया है.

इसे भी पढ़ें: 2023 से क्या सीख मिली, इस साल भारत ने मौसम में भारी उतार चढ़ाव का सामना किया

Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This website follows the DNPA Code of Ethics

© Copyright NDTV Convergence Limited 2024. All rights reserved.