जलवायु परिवर्तन

COP28 स्पेशल: जलवायु परिवर्तन को देखते हुए एग्रीकल्चर को सस्टेनेबल और वाटर पॉजिटिव कैसे बनाएं

इंटरनेशनल फंड फॉर एग्रीकल्चरल डेवलपमेंट (IFAD) के भारत के कंट्री डायरेक्टर और रिप्रेजेंटेटिव उलैक डेमिराग (Ulac Demirag) ने NDTV-डेटॉल बनेगा स्वस्थ इंडिया से भारत में एग्रीकल्चर सेक्टर में आने वाली चुनौतियों और उन्हें कम करने के लिए जरूरी उपायों के बारे में बात की

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एक्सपर्ट ने कहा कि भारत को उन देशों की भी सराहना करनी चाहिए, जिन्होंने एग्रीकल्चर को सस्टेनेबल बनाने में उदाहरण पेश किया है

नई दिल्ली: जलवायु परिवर्तन यानी क्लाइमेट चेंज और फूड सिस्टम के बीच संबंध दो-तरफा होता है. फूड सिस्टम यानी खाद्य प्रणालियां जलवायु के प्रति ज्यादा संवेदनशील होती हैं, और जलवायु में हो रहे बदलाव का इन पर बुरा असर पड़ रहा है. दुबई में आयोजित हुए COP28 शिखर सम्मेलन में जलवायु परिवर्तन से कृषि और खाद्य प्रणाली पर पड़ने वाले असर पर भी बात की गई.

पहली बार, फूड और एग्रीकल्चर को 2023 की यूनाइटेड नेशन क्लाइमेट कॉन्फ्रेंस में खास मुद्दा बनाया गया, जिसमें 130 से ज्यादा देशों ने एक घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर किए, जिसमें उनकी खाद्य प्रणालियों को उत्पादन से लेकर उपभोग तक जलवायु परिवर्तन की समस्या से निपटने के लिए प्रतिबद्धता व्यक्त की गई. इन लक्ष्यों को पूरा करने के लिए, देशों ने इनोवेशन में तेजी लाने और एग्रीकल्चर-बेस्ड क्लाइमेट सॉल्यूशंस के लिए फाइनेंस बढ़ाने पर अपनी सहमति जताई.

ये सभी देश UN के सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल्स के मुताबिक, फूड सिस्टम यानी खाद्य प्रणालियों को मजबूत करने, जलवायु परिवर्तन के प्रति अनुकूल बनाने, वैश्विक उत्सर्जन को कम करने और भूख के खिलाफ वैश्विक लड़ाई में योगदान देने की दिशा में भी काम करेंगे.

भारत के संदर्भ में बात करते हुए कि जलवायु परिवर्तन ने कृषि को कैसे प्रभावित किया है, NDTV-डेटॉल बनेगा स्वस्थ इंडिया की टीम ने इंटरनेशनल फंड फॉर एग्रीकल्चरल डेवलपमेंट (IFAD) के भारत के कंट्री डायरेक्टर और रिप्रेजेंटेटिव उलैक डेमिराग (Ulac Demirag) से बात की. एक्सपर्ट ने देश में एग्रीकल्चर को सस्टेनेबल बनाने और पानी की समस्या से निजात पाने के लिए जरूरी उपायों पर भी चर्चा की. जानिए एक्सपर्ट ने NDTV के सवालों का क्या जवाब दिया.

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NDTV: भारत में कृषि यानी एग्रीकल्चर के सस्टेनेबल न होने की वजह क्या है?

उलैक डेमिराग: जब हम जलवायु परिवर्तन के बारे में बात करते हैं, तो हम केवल मैक्रोक्लाइमेट और सेंट्रलाइज ग्लोबल वार्मिंग के बारे में सोच रहे होते हैं. हालांकि, जलवायु परिवर्तन आगे चलकर मेसोक्लाइमेट (mesoclimate) और माइक्रोक्लाइमेट (microclimate) में बंट जाता है. माइक्रोक्लाइमेट मूल रूप से वो क्लाइमेट है जो वेजिटेशन कवर (vegetation cover) से सीधे प्रभावित होता है. ऐसे में यदि कृषि के अपर्याप्त तरीके वेजिटेशन कवर को रिमूव कर देते हैं, तो इसका मतलब है हम monocrop यानी एक फसल की ओर जा रहे हैं. हम माइक्रोक्लाइमेट और मिट्टी की स्थितियों में बदलाव ला रहे हैं. इसके अलावा, हम देख रहे हैं कि मिट्टी से बहुत सारा कार्बन कम हो रहा है क्योंकि हम अब मिट्टी को उपजाऊ बनाने के लिए पारंपरिक और भू-पारिस्थितिक प्रक्रियाओं पर निर्भर नहीं हैं. इससे मिट्टी में पानी को अपने अंदर रोककर रखने की जो क्षमता होती है उसमें कमी आती है और हानिकारक प्रभाव पड़ता है, खासतौर पर जलवायु परिवर्तन की वजह से मौसम की स्थिति में काफी बदलाव होता है.

NDTV: हम एग्रीकल्चर के पारंपरिक तरीकों की जगह सस्टेनेबल तरीकों की ओर कैसे बढ़ सकते हैं?

उलैक डेमिराग: भारत के एग्रीकल्चर में बहुत विविधता है और इसमें एग्रीकल्चर प्रोडक्शन सिस्टम की एक बड़ी रेंज है. लेकिन भारत के उत्पादन का सबसे बड़ा हिस्सा, चावल और गेहूं जैसी प्रमुख फसलों को जिन्हें सार्वजनिक वितरण प्रणाली (Public Distribution System – PDS) में भी रखा जाता है, वो कृषि करने के पुराने तरीकों पर आधारित है. बेशक, इसका असर पर्यावरण पर पड़ता है. हमें कृषि के टिकाऊ तरीकों यानी सस्टेनेबल एग्रीकल्चर प्रैक्टिस को अपनाना होगा. साथ ही हमें छोटे किसानों को भी प्रोडक्शन सिस्टम में लाना होगा. कृषि को ज्यादा टिकाऊ बनाने के लिए कई दूसरे तरीके भी मौजूद हैं. उदाहरण के लिए, सस्टेनेबल फूड सिस्टम के लिए कृषि पारिस्थितिकी (agroecology) को बढ़ावा देना. हम, IFAD में, फार्म, लैंडस्केप, मार्केट और पॉलिसी लेवल पर कृषि-पारिस्थितिकी प्रथाओं को लागू करने पर फोकस कर रहे हैं, जो सभी स्माल होल्डर एग्रीकल्चर प्रोग्राम के लिए IFAD के जरिए क्लाइमेट चेंज एडेप्टेशन और मिटिगेशन इनिशिएटिव से जुड़े हैं. हम कृषि-पारिस्थितिकी को व्यवहार्य बनाने पर फोकस कर रहे हैं ताकि वे उस बाजार से जुड़ सकें, जहां कृषि-पारिस्थितिकी से उत्पादित वस्तुओं की मांग है.

सस्टेनेबल एग्रीकल्चर का एक और पहलू फसल उगाने के विकल्पों को बढ़ाना और बाजरा जैसी जलवायु परिवर्तन के अनुकूल फसलों का चुनाव करना है. अंतर्राष्ट्रीय मिलेट्स ईयर के साथ हम भारत में बाजरे को बढ़ावा देने के बारे में भी बात कर रहे हैं. हालांकि भारत में बाजरा नया नहीं है. यह हमेशा हमारे पारंपरिक खाद्य पदार्थों का हिस्सा रहा है. बाजरा जैसी फसलें पौष्टिक होती हैं और जलवायु परिवर्तन के अनुकूल होती हैं. इसका उत्पादन करना आसान है क्योंकि यह कम जल संसाधनों का इस्तेमाल करता है और मौसम की मार को झेल लेता है.

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NDTV: हम कृषि के लिए जल संसाधनों का टिकाऊ प्रबंधन कैसे कर सकते हैं और उन्हें ज्यादा घरों तक कैसे पहुंचा सकते हैं?

उलैक डेमिराग: कृषि के लिए पानी जरूरी है. दुनिया भर में ज्यादातर किसानों को पानी से जुड़ी कोई न कोई समस्या रहती है. या तो उनके पास पानी बहुत कम या बहुत ज्यादा होता है, या फिर वो बेमौसम बारिश या लंबे समय तक सूखे की मार झेल रहे होते हैं. इसलिए, सिंचाई को इस समस्या के हल के तौर पर देखा जा रहा है. लेकिन पानी की समस्या का ये हल तभी काम कर सकता है जब आपके पास ऐसी फसलें हों, जो सिंचाई के लिए पैसा जुटा सकें, क्योंकि इसमें पैसा लगता है. हमें यह समझना होगा कि पानी की एक कीमत होती है. वर्तमान में ऐसे कोई नियम नहीं हैं जो पानी के सावधानीपूर्वक इस्तेमाल किए जाने को प्रोत्साहित करते हों. कई किसान जमीन खोदकर पानी निकालने का विकल्प चुनकर पैसे बचाते हैं.

इसलिए, हमें पानी, जो बहुत दुर्लभ चीज है, का समझदारी से इस्तेमाल करने की दिशा में काम करना होगा और इसके लिए हमें पानी बचाने वाली टेक्नोलॉजी में निवेश करना होगा और किसानों को उनके बारे में शिक्षित भी करना बहुत जरूरी है.

उदाहरण के तौर पर, बाढ़ और गुरुत्वाकर्षण आधारित सिंचाई प्रणालियों (flood and gravity-fed irrigation systems) को स्प्रिंकलर और ड्रिप इरिगेशन के साथ दबाव युक्त सिंचाई प्रणालियों में बदला जा सकता है. यह पानी की मात्रा को नियंत्रित करेगा और इसे फसल की वास्तविक जरूरतों के मुताबिक खर्च करेगा. इस तरह, हम अपने इरिगेशन सिस्टम यानी सिंचाई प्रणाली का विस्तार कर सकते हैं, घरों में इस्तेमाल के लिए ज्यादा पानी बचा सकते हैं और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने में अपना योगदान दे सकते हैं.

NDTV: हम भारत में एग्रीकल्चर को और ज्यादा वॉटर-पॉजिटिव कैसे बना सकते हैं?

उलैक डेमिराग: एग्रीकल्चर को ज्यादा वॉटर-पॉजिटिव बनाने के कई तरीके हैं. वॉटर-पॉजिटिव का मतलब है, निकाले गए पानी की तुलना में मीठे पानी के स्रोतों में ज्यादा पानी लौटाना. एग्रीकल्चर को ज्यादा वॉटर-पॉजिटिव बनाने के लिए हमें सबसे पहले यह देखना होगा कि हम किस तरह की फसलें उगा रहे हैं. ऐसी कई फसलें हैं जो मिट्टी से बहुत सारा पानी खींचती हैं. हमें पानी की कमी वाले क्षेत्रों में ऐसी फसलें उगानी होंगी, जिन्हें कम पानी की जरूरत होती है, जैसे दालें और बाजरा. इसके अलावा, हमें शेड कवर लगाकर, पेड़ों को छोटी फसलों के साथ जोड़कर और भी कई दूसरे उपाय करके खेतों में माइक्रोक्लाइमेट क्रिएट करने पर भी ध्यान देना चाहिए.

भारत को उन देशों की भी सराहना करनी चाहिए, जिन्होंने एग्रीकल्चर को सस्टेनेबल बनाने में उदाहरण पेश किया है, जैसे कि ऑस्ट्रेलिया. इस देश में ज्यादातर खेती बारिश पर आधारित है. अब आप सोचेंगे कि फिर, वो उत्पादन कैसे करते हैं? दरअसल वो बहुत पहले ही संरक्षण कृषि (conservation agriculture) की ओर मुड़ चुके हैं और उनके पास काफी मात्रा में उपजाऊ जमीन है. वे मिट्टी को उसकी प्राकृतिक भू-पारिस्थितिकी स्थिति (natural geo-ecological condition) में छोड़ देते हैं, जिससे उसे जल धारण करने की बेहतर क्षमता मिलती है. ये कुछ ऐसे तरीके हैं जिनके बारे में हम सोच सकते हैं जिनका कृषि पर अच्छा प्रभाव पड़ता है, जो जलवायु परिवर्तन के अनुकूल होते हैं, और इंसानों के दूसरे जरूरी कामों के लिए भी पानी बचाते हैं.

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