कोई पीछे नहीं रहेगा

दिल्ली में क्वीर प्राइड परेड ने मनाया LGBTQ+ समुदाय का जश्न

दिल्ली क्वीर प्राइड परेड लेस्बियन, गे, बाइसेक्सुअल और ट्रांसजेंडर लोगों (संपूर्ण समलैंगिक समुदाय) और उनके समर्थकों का सम्मान करने और जश्न मनाने के लिए एक वार्षिकोत्सव है

Published

on

2008 से, दिल्ली क्वीर प्राइड कमेटी नवंबर के हर आखिरी रविवार को क्वीर प्राइड परेड का आयोजन कर रही है

नई दिल्ली: “मैं एक गे हूं, मैं यहां पर हूं, मैं अपने घर पर नहीं छुपा हूं. मैं अपने घर पर नहीं छुपूंगा क्योंकि आप मेरी सच्चाई नहीं समझ पा रहें हैं.” ये शब्द थे दिल्ली की क्वीयर प्राइड परेड में भाग लेने वाले एक प्रतिभागी के, जिसने इस प्राइड परेड के उद्देश्य के बारे में बताया. साल 2008 से हर साल दिल्ली की क्वीर प्राइड कमेटी इस क्वीयर प्राइड परेड का आयोजन नवंबर के आखिरी रविवार को करती आ रही है. यह लेस्बियन, गे, बाइसेक्सुअल और ट्रांसजेंडर लोगों (संपूर्ण समलैंगिक समुदाय) और उनके समर्थकों का सम्मान करने और जश्न मनाने के लिए एक वार्षिकोत्सव है. यह परेड आमतौर पर दिल्ली के बाराखंभा रोड से शुरू हो कर टॉलस्टॉय मार्ग से होते हुए जंतर-मंतर तक जाती है.

दिल्ली में हो रहे नगर निगम के चुनावों के चलते इस परेड का 13वां संस्करण नवंबर 2022 की जगह 9 जनवरी 2023 के लिए स्थगित कर दिया गया. एनडीटीवी-डेटॉल बनेगा स्वस्थ इंडिया की टीम ने 2023 की पहली प्राइड मार्च में भाग लिया, जिसमें भारी भीड़ उमड़ी थी.

रंगारंग मार्च में लोगों को दिल्ली की सड़कों पर नाचते, नारे लगाते और खुद को जाहिर करते हुए देखा गया. ऐसे आयोजनों के महत्व के बारे में एनडीटीवी से बात करते हुए, एक प्रतिभागी ने कहा,

अगर आपको याद हो, जब सुप्रीम कोर्ट ने धारा 377 को बहाल किया था, जो ब्रिटिश काल का एक विवादास्पद कानून था, जो सहमति से समलैंगिक यौन संबंधों पर प्रतिबंध लगाता था, तो उन्होंने कहा था कि यह एक छोटा अल्पसंख्यक वर्ग है. क्या 15,000 लोग जो यहां सड़क पर एक मामूली अल्पसंख्यक हैं? नहीं, ऐसा नहीं है और इसीलिए यह महत्वपूर्ण है क्योंकि नारा कहता है, ‘मैं समलैंगिक हूं, मैं यहां हूं’.

जून को प्राइड मंथ कहा जाता हैं जो एलजीबीटीक्यू समुदाय के बीच पार्दर्शिता और एकता को बढ़ावा देता है. इसके अलावा उन्हें साथ आने, अपनी पहचान का जश्न मनाने और खुद को जाहिर करने का मौका देता है. यह समाज में उनकी जगह, उनकी आवाज और उनकी पहचान को बराबरी के रूप में खोजने के लिए एकजुटता की भावना पैदा करता है.

इसे भी पढ़ें: क्वीर समुदाय से आने वाली 18 साल की ओजस्वी और उसके मां के संघर्ष की कहानी 

एक और प्रतिभागी ने कहा कि,

जब भी मैं इस परेड का हिस्सा होता हूं तो मेरी नजर वहां से गुजर रहे लोगों पर पड़ती है, जो इस मार्च का हिस्सा नहीं हैं. लेकिन वो देखते हैं और उनके लिए यह देखना बहुत जरूरी है कि, ‘ओह, यही प्रगति हुई है. ऐसा हो सकता है कि मैं अपनी पहचान समलैंगिक के रूप में कर सकूं या हो सकता है कि मेरी पहचान हमेशा समलैंगिक के रूप में रही हो, लेकिन मुझे यह नहीं पता था कि समाज में इस तरह की अपनाने का भाव मौजूद है.

जून महीने को ही प्राइड मंथ चुनने के पीछे की वजह दशकों पुरानी है. दरअसल, अमेरिका के न्यूयार्क शहर के सबसे लोकप्रिय गे बार स्टोनवॉल इन में 28 जून 1969 के दिन पुलिस ने बिना लाइसेंस शराब बेचने के आरोप में छापेमारी की थी. स्टोनवॉल इन की इस रेड की खबर आग की तरह चारों तरफ फैल गई और स्टोनवॉल के समर्थक के साथ ही आस-पास के आम लोगों ने मिलकर पुलिस द्वारा की गई इस बर्बरता का मुकाबला 6 दिनों तक किया.

पहली प्राइड मार्च 28 जून 1970 के दिन स्टोनवॉल विद्रोह की पहली सालगिरह पर निकाली गई थी. अमरीका की कांग्रेस लाइब्रेरी वेबसाइट पर मौजूद जानकारी के मुताबिक,

सभी आकड़ों के अनुसार उस दिन तीन से पांच हजार लोगों ने न्यूयार्क के इस परेड में हिस्सा लिया था. यह संख्या आज की तारीख में लाखों तक पहुंच गई है. साल 1970 से हर साल LGBTQ+ समुदाय के लोग जून में इकठ्ठा होकर मार्च करते हैं और बराबर अधिकारों के लिए आवाज उठाने का काम करते हैं.

दुनियाभर में LGBTQ+ समुदाय के लोगों की तरफ से अपने वजूद और अधिकारों की लड़ाई लगातार जारी है. इस मार्च में शामिल होने के पीछे का कारण बताते हुए एक प्रतिभागी ने कहा,

हम यहां आए हैं ताकि लोग हमें पहचाने, हमारे बारे में जाने और हमारे परेशानियों को भी समझे. हम चाहते हैं कि लोग हमें समझे और हम जैसे हैं हमें वैसे ही अपनाए.

इसे भी पढ़ें: मिलिए रुद्रानी छेत्री से, एक ट्रांसवुमन जो अपने समुदाय को कर रही हैं सशक्त 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Exit mobile version