NDTV-Dettol Banega Swasth Swachh India NDTV-Dettol Banega Swasth Swachh India

कोई पीछे नहीं रहेगा

क्वीर समुदाय से आने वाली 18 साल की ओजस्वी और उसके मां के संघर्ष की कहानी

एक क्वीर बच्चे, उसकी मां और उनकी स्वीकृति की यात्रा के व्यक्तिगत अनुभव पर एक नजर

Read In English
क्वीर समुदाय से आने वाली 18 साल की ओजस्वी और उसके मां के संघर्ष की कहानी

नई दिल्ली: 23 साल की मीनाक्षी उपाध्याय को 2005 में एक बेटा हुआ. उसका नाम ओजस रखा गया- जिसका अर्थ है शक्ति और प्रतिभा. मीनाक्षी ने बताया कि वो उस समय परिवार में पैदा होने वाला एकमात्र लड़का था। उन्होंने बताया, “ओजस से पूरे परिवार को खासकर उसके पापा को काफी उम्मीदें थीं, लेकिन जिंदगी का तो कुछ और ही प्लान था. 16 साल की उम्र तक हमने उसे एक लड़के की तरह ही पाला भी था. एक रात वो मेरे पास आया और मुझसे कहने लगा कि वह जेंडर फ्लूइड है और आगे की जिंदगी एक लड़की की तरह रहना चाहता है. उसी दिन मैंने दो बेटों की मां से एक बेटे की मां और बेटे से बेटी बनने की नई हकीकत को स्वीकार लिया है. जिसका नाम अब हमने ओजस्वी उपाध्याय रखा है.”

जून के महीने को पूरी दुनिया प्राइड मंथ के रूप में मनाती है. ऐसे में टीम बनेगा स्वस्थ इंडिया ने मां-बेटी के इस जोड़ी के साथ उनकी एक्सप्टेंस की जर्नी और इसमें उनके चुनौतियों के बारे में बात की.

‘जब आपको पता चले, तो स्वीकार करें’

18 साल की ओजस्वी उपाध्याय ने कहा,

भारत के हर घर में मां अपने बच्चों को कभी लड़का, तो कभी लड़की की तरह तैयार करती है. ऐसा ही मेरे साथ भी हो रहा था. कई बार मम्मी ने मुझे लड़की की तरह तैयार किया. ऐसे में मुझे काफी अच्छा लगता था. जैसे-जैसे मैं बड़ा होता गया ये सब अचानक से बंद हो गया. जब मैं थोड़ा और बड़ा हुआ, तो मुझे महसूस हुआ कि मुझमें कुछ अलग है. फिर मैंने इस बारे में पढ़ना शुरू किया, आखिरकार मुझे महसूस हुआ कि मैं जेंडर फ्लूइड यानि नॉन-बाइनरी हूं.

ओजस्वी ने बताया कि उसने 2018 में अपनी सच्चाई को दुनिया के सामने लाने का फैसला किया. इसके लिए सबसे पहले वह अपने छोटे भाई के पास गई और उससे अपनी सच्चाई बताई. उसने अपने छोटे भाई को ही सबसे पहले ये सब क्यों बताया, इस पर बात करते हुए ओजस्वी ने कहा,

मुझे लगता है कि क्वीर (queer) लोगों के लिए बच्चे सबसे सेफ होते हैं. क्योंकि उस उम्र में लैंगिक पक्षपात यानि जेंडर बाइसनेस उनमें नहीं होती है. इसीलिए मैने अपने 13 साल के भाई को सबसे पहले ये सच्चाई बताई. भगवान का शुक्र है कि वह इस बारे में काफी ओपन था और उसने मुझे एक्सेप्ट भी कर लिया.

ओजस्वी ने कहा कि उसी साल वह अपनी मां के पास भी गईं कि उन्हें ये बताऊं. तब वो नहीं मानीं और कहा कि इस बारे में फैसला लेने के लिए मैं काफी छोटी हूं. उस दिन के बारे में याद करते हुए ओजस्वी ने कहा,

उस समय मम्मी ने मुझसे कहा था कि मैं इस बारे में फैसला लेने के लिए काफी छोटी हूं. हालांकि उन्होंने ये भी कह दिया था कि अगर फ्यूचर में ऐसा कुछ रहा था, तो वह मुझे सपोर्ट करेंगी. इसलिए दोबारा 2021 में मैं दोबारा पूरे रिसर्च और नॉलेज के साथ उनके पास गई और अपनी पूरी बात रखी. इसके बाद मैं कमरे से बाहर निकल आई.

‘वह हमारी बच्ची है और हमेशा रहेगी’

इस बात को एक्सेप्ट करना कितना मुश्किल था, इस बारे में बात करते हुए मीनाक्षी उपाध्याय ने कहा,

हां वो टफ टाइम था. हालांकि ओजस्वी ने पहले ही हमें कुछ संकेत दिए थे, लेकिन हम ही समझ नहीं पाए थे. उसने हमें बताया, वह लंबे बाल रखना चाहती है, वह अपने कान छिदवाना चाहती है, लेकिन हम कभी समझ नहीं पाए, क्योंकि उसकी पर्सनालिटी एक लड़के जैसी थी. साल 2021 में जब ओजस्वी ने खुलकर हमें सच्चाई बताई, तो पता नहीं कहां से मुझे ये ताकत मिली कि बिना किसी देरी से मैंने उसे स्वीकार कर लिया.

इसे भी पढ़ें: एक ‘क्वीर बच्चे’ को स्वीकार करने का एक माता का अनुभव 

अपने बेटे से बेटी बनी ओजस्वी को कहे पहले शब्दों को याद करते हुए मीनाक्षी ने कहा,

मैंने उससे कहा, तुम हमारी बच्ची हो और हमेशा रहोगी. जेंडर से कोई फर्क नहीं पड़ता. सबसे महत्वपूर्ण है कि तुम अपनी लाइफ में सक्सेस हासिल करो और यही सबसे जरूरी है.

अपने बेटे ओज्जुस को एक बेटी ओजस्वी के रूप में स्वीकार करना कितना उसके पिता के लिए कितना कठिन था? इस बारे में मीनाक्षी उपाध्याय ने कहा कि उन्हें इस नई पहचान को स्वीकार करने में एक साल का समय लग गया था. इस बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा,

जब उन्हें ये सब पता चला तो उन्होंने ज्यादा कुछ नहीं कहा. जब वे ओजस्वी को लड़कियों के कपड़ों में देखते वे बहुत ज्यादा कॉन्शियस हो जाते थे.

दोस्तों और परिवार के बारे में बात करते हुए मीनाक्षी ने कहा,

कुछ ने तो तुरंत ही उसे स्वीकार कर लिया, वहीं कुछ ने नहीं किया. हमारे परिवार के कई लोगों ने कहा कि ओजस्वी हमारी बच्ची है और हमेशा रहेगी. वहीं कुछ लोगों ने इसके लिए हमें जिम्मेदार भी ठहराया. उन्होंने सोचा कि हमने ओजस्वी को पर्याप्त समय नहीं दिया. दिक्कत ये है कि हम सभी जेंडर की जड़े काफी गहरी हैं. हम सिर्फ पुरुष, महिला और किन्नर को ही समाज का हिस्सा मानते हैं. उनके लिए ओजस्वी भी उसी का हिस्सा है. बाइनरी, नॉन-बाइनरी, बाइसेक्सुअल जैसे टर्म आज भी सोसाइटी के लिए काफी नए हैं.

‘क्वीर लोगों के लिए चुनौतियां काफी बड़ी हैं’

ये सच्चाई लोगों के सामने आने से पहले और बाद में ओजस्वी और उसकी मां ने किन चुनौतियों का सामना किया, इस बारे में बात करते हुए उसने कहा,

मेरे लिए किशोरावस्था के आसपास चुनौतियां शुरू हुईं. कई लोगों ने मेरे साथ धमकाना, चिढ़ाना, गलत तरीके से छूने जैसी हरकतें की. सबसे अजीब बात ये थी कि मुझे लगा कि ये नॉर्मल है और सबके साथ होता है.

ओजस्वी ने कहा कि क्वीर के लिए वाशरूम ज्यादा सेफ जगह नहीं होता है. स्कूल में मेल वॉशरूम में नर्क जैसा था. वहां बहुत ज्यादा धमकाना-डराना होता है. ऐसी बातें किसी को भी तोड़ सकती हैं.

जजमेंट्स, लुक्स और घूरने को लेकर ओजस्वी ने कहा,

हमारे समाज में अगर हम लोगों की निर्धारित मानसिकता में फिट नहीं होते हैं, तो आमतौर पर लोग हमें जज करते हैं. जैसे ही मैं एक महिला के तौर पर सामने आती हूं, तो लोग अजीब तरीके से घूरते और लुक्स भी देते हैं।

ऐसी ही एक घटना को याद करते हुए ओजस्वी ने कहा,

मुझे याद है कि मैं अपनी माँ के साथ एक बार साड़ी पहनकर मेट्रो में गई थी. मैंने वूमन लाइन के इस्तेमाल का फैसला लिया. मेरे लिए यह आगे बढ़ने और मनोबल बनाए रखने दोनों की परीक्षा थी, क्योंकि मुझे लगा कि मुझे वहां स्वीकार नहीं किया गया था. उन्होंने मेरे फिजिकल लुक के कारण मुझे मेल लेन में जाने के लिए कहा. हालांकि मेरी मां मेरे बचाव में तुरंत आ गईं और आखिरकार तब उन्होंने मुझे महिलाओं की लाइन में जाने की परमिशन दी. चेकिंग के दौरान जिस तरह से मेरी तलाशी ली गई, मैं बहुत सहज महसूस नहीं कर रही थी. चेकिंग स्टाफ ने मुझे परेशान भी किया था. मुझे एहसास हुआ, भले ही एक महिला की तरह कपड़े पहनना मुझे ताकत दे रहा था, क्योंकि मुझे लगा कि इससे मेरे अलग होने के बारे में ज्यादा चिंता करने की जरूरत नहीं है. मेरे पास मेरे शरीर का साथ है, लेकिन यही साथ मुझे कमजोर भी बना रहा है.

इसे भी पढ़ें: मिलिए एक ट्रांसवुमन के. शीतल नायक से, जिन्होंने ट्रांसजेंडरों के अधिकारों के लिए इंजीनियरिंग की पढ़ाई छोड़ी

मीनाक्षी उपाध्याय ने ओजस्वी के स्कूल टीचर को उसकी पहचान के बारे में समझाने की चुनौती को याद करते हुए कहा,

मैं यह जानकर हैरान रह गई कि उसके स्कूल के शिक्षकों को इस विषय के बारे में कोई ज्ञान नहीं था. उनके लिए भी यह टॉपिक बहुत नया था. वे एक एज्युकेशन सिस्टम का हिस्सा हैं, उन्हें एक हाउसवाइफ की तुलना में इसकी ज्यादा जानकारी होनी चाहिए. इसके बारे में उन्हें समझाना मेरे लिए बहुत अजीब था. मैं ओजस्वी का शुक्रिया अदा करती हूं, जिसने मुझे इस बारे में अच्छी तरह से समझााया था.

‘हम चाहते हैं कि भारत में समलैंगिक लोगों के लिए हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर और इलाज इतना कठिन न हो’

सबसे बड़ी चुनौती के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा कि हमारे परिवार को सही डॉक्टरों को ढूंढने में ज्यादा मेहनत करनी पड़ी. इसमें सबसे बड़ा टास्क का ओजस्वी के लिए एक मनोचिकित्सक ढूंढना था. उसकी मां ने बताया,

ओजस्वी नॉर्मल डॉक्टर के पास जाने में सहज नहीं है. हम जैसे परिवारों के लिए भारत में यह बहुत मुश्किल सफर है. हमारे डॉक्टरों को इस विषय में ज्यादा नॉलेज नहीं है. इसके अलावा, हमारा हेल्थ सेक्टर ओजस्वी जैसे लोगों के लिए सपोर्ट और सुविधाओं से लैस नहीं है. हमारे लिए भी ओजस्वी के इलाज और स्वास्थ्य संबंधी जरूरतों को समझना बहुत कठिन था।

एक किस्सा सुनाते हुए मीनाक्षी ने कहा,

हमें एक बार एक मनोचिकित्सक ने कहा था कि आप हमें बताएं कि आप हमसे क्या चाहते हैं? अगर आप अपने बच्चे को यह सब बताना चाहते हैं, कि ये सही नहीं है, हम उसे उसी के अनुसार बताएंगे. यह कितना अजीब था, क्योंकि हम यह सोचकर डॉक्टर के पास गए कि हम अपने सेफ जोन में होंगे. हमने इसकी उम्मीद नहीं की थी और तभी हमें एहसास हुआ कि जब स्वीकृति की बात आती है तो हम सच्चाई से कितने दूर हैं.

मीनाक्षी ने कहा, भारत में क्वीर लोगों के लिए हार्मोन थेरेपी, प्यूबर्टी ब्लॉकर्स, चेस्ट को बदलने के लिए सर्जरी, बाहरी जननांग, आंतरिक जननांग, चेहरे की विशेषताओं और और शरीर की रूपरेखा को लेकर हेल्थकेयर ट्रीटमेंट 18 साल की उम्र के बाद शुरू होते हैं. लेकिन उन्हें लगता है इससे पहले भी कुछ इलाज या तरीके उपलब्ध होने चाहिए. उन्होंने कहा,

मुझे लगता है, जैसे ही उन्हें पता चले, इस प्रोसेस को शुरू कर देना चाहिए. यह वास्तव में उनकी जर्नी को आसान बनाने में मदद करेगा.

मीनाक्षी ने कहा कि आज ओजस्वी 18 साल की हो गई है. ऐसे में हम उसके लिए उपलब्ध इलाज के विकल्पों की तलाश कर रहे हैं, लेकिन उन्हें इसके बारे में अधिक जानकारी की आवश्यकता है. वे ओजस्वी के लिए उपलब्ध विकल्पों के लिए AIIMS गए थे और उन्हें पता चला कि अस्पताल अभी सेक्स चेंज सर्जरी शुरू करने के प्रोसेस में है. उन्होंने कहा,

क्वीर लोगों के लिए कैसे हेल्थकेयर ट्रीटमेंट उपलब्ध हैं, इस बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है. इसके साथ इलाज की कॉस्ट भी काफी ज्यादा ज्यादा है, जो हमारी पहुंच से काफी दूर है. मुझे लगता है कि सरकार को कुछ योजनाएं शुरू करनी चाहिए ताकि एक मिडिल क्लास फैमिली के लिए ये जर्नी आसान हो जाए.

‘क्वीर लोगों के लिए स्वीकार्यता शिक्षा के जरिये ही आएगी’

मीनाक्षी और ओजस्वी दोनों को लगता है कि भारत में क्वीर लोगों के लिए समावेशिता का रास्ता लंबा है. मीनाक्षी ने कहा,

समावेशिता में एजुकेशन एक प्रमुख भूमिका निभाएगा. मुझे लगता है, बहुत ही बेसिक क्लासेस से यह ज्ञान दिया जाना चाहिए. सभी लिंगों के बारे में लोगों को जागरूक किया जाना चाहिए. हेल्थकेयर अधिकार, समानता के अधिकार एक बार हमारे पास सबसे बेसिक चीज होने के बाद आ जाएगी और वह शिक्षा है.

ओजस्वी ने कहा,

कानून बनते हैं, फैसले होते हैं, लेकिन लोगों को उन कानूनों का पालन करने में बहुत समय लगता है. धरातल पर बदलाव में भी काफी समय लगता है. हमें लैंगिक पहचान से दूर हटना चाहिए और पहले इंसानों के साथ इंसानों जैसा व्यवहार करना शुरू करना चाहिए.

मीनाक्षी को यह भी लगता है कि यदि स्त्री रोग विशेषज्ञ शुरुआत में ही जेंडर के बारे में समझाएं, तो इससे बहुत फर्क पड़ेगा क्योंकि इससे लोगों को इस विषय को बेहतर ढंग से समझने में मदद मिलेगी. वह आगे कहती हैं,

साथ ही, मुझे लगता है कि समाज के सभी वर्गों में तीसरे लिंग के लिए भी व्यवस्था करने के लिए सरकार की ओर से गाइडलाइंस होनी चाहिए. एक ऐसे बच्चे की मां होने के नाते मुझे जीवन में हमेशा यह डर बना रहेगा कि मेरे बच्चे का भविष्य क्या होगा. समाज में उसकी क्या इमेज बनेगी? क्या उसे स्वीकार किया जाएगा?

इसे भी पढ़ें: अभ‍िजीत से अभिना अहेर तक, कहानी 45 साल के ‘पाथ ब्रेकर’ ट्रांसजेंड एक्ट‍िविस्ट की…

अंत में, मीनाक्षी ने कहा कि जब लोग अपने काम से काम रखना शुरू करेंगे तो भारत समावेशी होगा. उन्होंने कहा,

किसी के जेंडर के बारे में पूछना किसी के मतलब का काम नहीं है. कोई क्या बनना चाहता है, किस रूप में जीना चाहता हैं और क्या पहनना चाहता है, ये संबंधित व्यक्ति की पसंद होनी चाहिए.

‘माता-पिता का प्यार बिना शर्त होता है, स्वीकृति में समय लग सकता है, लेकिन वो समझ जाएंगे’

उन्होंने इस बारे में जो सीखा उस वे LGBTQIA+ समुदाय के अन्य बच्चों और उनके माता-पिता के साथ क्या शेयर करना चाहते हैं. मां-बेटी की इस जोड़ी के पास साझा करने के लिए ये था,

चाहे कुछ भी हो, पैरेंट्स को अपने बच्चों के साथ खड़ा होना चाहिए. यह आपके हाथ में नहीं है और न ही उनके हाथ में है. आपको उन्हें वैसे ही स्वीकार करना चाहिए जैसे वे हैं और उन्हें आगे बढ़ने देना चाहिए. अपने डर को बीच में न आने दें. मजबूत बनें और अपने बच्चे को भविष्य में आने वाली सभी चुनौतियों के लिए तैयार करें. उनके साथ बात करें, विषय पर चर्चा करें, एक कम्फर्ट जोन बनाने की कोशिश करें और हमेशा उनके व्यवहार पर नजर रखें, ताकि वे खुद को नुकसान न पहुंचाएं.

अपनी मां की बात को आगे बढ़ाते हुए ओजस्वी उपाध्याय का उन बच्चों से ये कहना चाहती हैं, जो अभी तक अपने पेरेंट्स से सच्चाई नहीं बता पाए हैं. ओजस्वी कहती है,

अपने पेरेंट्स को पहले संकेत दें और उनकी प्रतिक्रिया पर गौर करें. उनकी बातों को समझें और जानें कि क्या वे इस चेंज को एक्सेप्ट करने के लिए तैयार हैं. दूसरे, सुनिश्चित करें कि आप सुरक्षित हैं. हमारे समाज में, कई बार, हमने देखा है कि अगर कोई बच्चा अपनी सच्चाई बताता है तो माता-पिता सबसे पहले उसके सपनों के पंख काट देते हैं. माता-पिता बच्चे को कठोर रूप से आंकने वाले पहले व्यक्ति होते हैं. माता-पिता का प्यार बिना शर्त होना चाहिए, लेकिन पहचान अलग होने पर यह प्रभावित होता है, क्योंकि वे अपने बच्चे को एक संपत्ति के रूप में देखते हैं. जिससे बच्चों का बाहर निकलना मुश्किल हो जाता है. तीसरा, सुनिश्चित करें कि आप उन पर पूरी तरह से आर्थिक रूप से निर्भर न हों. क्योंकि यदि अपनी सच्चाई के साथ बाहर आते हैं उनका रिएक्शन निगेटिव होता है, तो आपके पास जाने के लिए एक जगह होनी चाहिए.

‘टीचर बन समाज की ये व्यवस्था बदलना चाहती हैं ओजस्वी ’

फ्यूचर देखते हुए मीनाक्षी के मन में आशा और भय दोनों हैं. उन्होंने कहा,

मैं चाहती हूं कि ओजस्वी मैथ्स की टीचर बने, लेकिन मुझे एक डर है. हम उसे सामान्य जीवन दे रहे हैं लेकिन क्या भविष्य में वह नौकरी और सम्मान पा सकेगी. मैं चाहती हूं कि वह एक टीचर बने ताकि वह आने वाली पीढ़ियों को इस विषय के बारे में शिक्षित कर सके और हमारी जर्नी में हमें जिन भी चुनौतियों का सामना करना पड़ा, उम्मीद है कि वह सिस्टम का हिस्सा बनकर इसे बदलने में सक्षम होगी।

अपने मां की बात को आगे बढ़ाते हुए ओजस्वी ने कहा,

समाज को रिटर्न करने का मेरा तरीका एक टीचर बनकर और विभिन्न जेंडर्स के बारे में अधिक से अधिक लोगों को शिक्षित करना है. टीचिंग के अलावा, मुझे आर्ट, डूडलिंग और स्केचिंग पसंद है. मुझे उम्मीद है कि एक दिन मैं अपना खुद का एनीमेशन स्टूडियो बनाऊंगी और क्वीर समाज के लोगों को समान अवसर दूंगी.

आखिर में ओजस्वी ने कहा,

हमें पता होना चाहिए कि हमारे निर्णय लोगों को बना या बिगाड़ सकते हैं. यह किसी के व्यक्तित्व को नुकसान पहुंचा सकता है. हमें कोशिश करनी चाहिए और सभी को समान प्यार, सम्मान और मानवीय उपचार देना चाहिए, क्योंकि आप समाज को जो देते हैं वही आपको वापस मिलता है.

यह देखे: दृष्टिकोण बदलने की जरूरत है: ट्रांस कम्युनिटी को मुख्यधारा में शामिल करने पर ट्रांसजेंडर राइट्स एक्टिविस्ट लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी

Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This website follows the DNPA Code of Ethics

© Copyright NDTV Convergence Limited 2024. All rights reserved.