जलवायु परिवर्तन

ग्रीनहाउस गैसों और जलवायु परिवर्तन से है फूड वेस्टेज का संबंध, जानिए कैसे

भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) के अनुसार, भारत में एक तिहाई खाना खाने से पहले ही बर्बाद या खराब हो जाता है

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भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) के अनुसार, भारत में एक तिहाई खाना खाने से पहले ही बर्बाद या खराब हो जाता है

नई दिल्ली: एफएसएसएआई (भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण) का कहना है कि भारत में एक तिहाई खाना खाने से पहले ही बर्बाद या खराब हो जाता है. संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) फूड वेस्ट इंडेक्स रिपोर्ट 2021 के अनुसार, भारत में डोमेस्टिक फूड वेस्ट प्रति व्यक्ति सालाना लगभग 50 किलोग्राम होने का अनुमान है. एक पर्यावरण एनजीओ ‘चिंतन’ ने ‘भारत में खाद्य अपशिष्ट’ पर प्रकाशित अपनी रिपोर्ट में कहा है कि देश में भोजन की बर्बादी का अनुमानित मूल्य लगभग 92 हजार करोड़ रुपये है. चिंतन पर्यावरणीय स्थिरता और सामाजिक न्याय के लिए काम करता है. यह एक ऐसा मुद्दा है जिस पर ध्यान देने की आवश्यकता है क्योंकि देश में पर्याप्त खाद्य उत्पादन के बावजूद, लगभग 190 मिलियन भारतीय अल्पपोषित हैं.

भोजन की बर्बादी और पर्यावरण पर इसका प्रभाव

इतना ही नहीं, भोजन की बर्बादी का दूसरा चिंताजनक हिस्सा पर्यावरण पर इसका नकारात्मक प्रभाव है. यूएनईपी के अनुमान के अनुसार, वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का 8-10 प्रतिशत हिस्सा ऐसे भोजन से जुड़ा है जिसका सेवन नहीं किया जाता है.

तर्क – जब हम भोजन बर्बाद करते हैं, तो हम उसे उगाने, फसल काटने, परिवहन करने और पैकेज करने में लगने वाली सारी ऊर्जा और पानी भी बर्बाद कर देते हैं. विश्व वन्यजीव कोष इस तथ्य को समझने के लिए एक उल्लेखनीय उदाहरण पेश करता है और कहता है कि अकेले अमेरिका में बर्बाद हुए भोजन का उत्पादन 32.6 मिलियन कारों के बराबर ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन उत्पन्न करता है.

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इसके अलावा, इसमें कहा गया है कि यदि भोजन लैंडफिल में जाता है और सड़ता है तो यह मीथेन पैदा करता है – यह एक ग्रीनहाउस गैस है जो कार्बन डाइऑक्साइड से भी अधिक शक्तिशाली है. डब्ल्यूडब्ल्यूएफ का कहना है कि अगर हम खाना बर्बाद करना बंद कर दें तो मानव-जनित ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का लगभग 6%-8% तक कम किया जा सकता है.

कुपोषण को खत्म करने, विटामिन ए और एनीमिया जैसी कमियों से निपटने पर काम करने वाले अंतरराष्ट्रीय गैर सरकारी संगठन विटामिन एंजल्स इंडिया के अध्यक्ष, सुनीश जौहरी ने बनेगा स्वस्थ इंडिया टीम के साथ बात करते हुए कहा,

जलवायु परिवर्तन और हमारी मौजूदा खाद्य प्रणालियां आंतरिक रूप से जुड़ी हुई हैं. एक ओर, अस्थिर कृषि पद्धतियां, उर्वरकों का उपयोग, जीवाश्म ईंधन, खाद्य प्रोसेसिंग, पैकेजिंग, वितरण, ये सभी सीधे तौर पर तापमान को बढ़ाते हैं, दूसरी ओर, तापमान बढ़ने के कारण अनियमित वर्षा, बाढ़, आग आदि होती हैं. खेती में उर्वरकों के उपयोग से 1980 के बाद से हर साल वायुमंडल में नाइट्रस ऑक्साइड की सांद्रता में औसतन 1.4 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है. इसके अलावा कृषि मशीनरी, खाद्य प्रोसेसिंग, पैकेजिंग, परिवहन और खुदरा क्षेत्र में जीवाश्म ईंधन का उपयोग भी ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ाने में प्रमुख योगदान देते हैं. ये सभी उपलब्ध एवीडेंस बताते हैं कि भारत की खाद्य सुरक्षा भी जलवायु परिवर्तन से खतरे में है.

संयुक्त राष्ट्र विश्व खाद्य कार्यक्रम के प्रमुख (कार्यक्रम संचालन) प्रदन्या पैठनकर ने कहा,

दुनिया में भोजन की बर्बादी और भूख एक साथ मौजूद हैं और यह स्थिति अब एक बड़ी समस्या के रूप में उभर रही है. सवाल यह है कि सबको साथ लेकर एक न्यायसंगत वितरण कैसे हासिल किया जाए और घाटे और बर्बादी के कारण बर्बाद हुए 1.3 अरब टन भोजन को दुनिया भर के करीब 1.6 अरब लोगों को कैसे उपलब्ध कराया जाए, जिन्हें वास्तव में इसकी जरूरत है. खाद्य आपूर्ति श्रृंखलाओं पर संवेदनशीलता, परिवहन को कम करना, फसलों को बुद्धिमानी से चुनना इसकी शुरुआत करने के कुछ तरीके हैं. मैं यह भी सोचता हूं, व्यक्ति ग्रेट चेंज मेकर बन सकते हैं, यदि वे अपने घर से ही भोजन की बर्बादी को कम करना शुरूआत कर दें, इसका भविष्य में दीर्घकालिक और सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा.

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भोजन की बर्बादी से उत्पन्न ग्रीनहाउस गैसों की सूची

संयुक्त राष्ट्र का यह भी कहना है कि भोजन से संबंधित ग्रीनहाउस गैसों का सबसे बड़ा हिस्सा कृषि और भूमि उपयोग से आता है. इस सूची में शामिल हैं:

•    मवेशियों की डाइजेशन प्रोसेस से मीथेन

•    फसल उत्पादन के लिए उपयोग किए जाने वाले उर्वरकों से नाइट्रस ऑक्साइड

•    कृषि भूमि के विस्तार के लिए जंगलों को काटने से कार्बन डाइऑक्साइड

•   अन्य कृषि उत्सर्जन जैसे खाद प्रबंधन, चावल की खेती, फसल अवशेषों को जलाने और खेतों पर ईंधन के उपयोग से

भोजन की बर्बादी से निपटने के लिए व्यक्ति क्या कर सकते हैं?

अब जब हम यह समझ गए हैं कि हमारे भोजन विकल्पों का पर्यावरण पर गंभीर प्रभाव पड़ता है, तो भोजन की बर्बादी को कम करने में आपकी मदद करने के लिए यहां कुछ सुझाव दिए गए हैं:

योजना बनाना महत्वपूर्ण है: पहले से योजना बनाएं और केवल वही खरीदें जिसकी आपको आवश्यकता है

बचे हुए खाने का करें उपयोग: अपनी रसोई को सही स्थिति में रखें, बचा हुआ खाना खाने की कोशिश करें, उन भोजन के बारे में सोचें जिन्हें आप बाहर खा सकते हैं, और समय से पहले अपनी किराने की सूची की योजना बनाकर रखें व अनावश्यक खरीदारी से बचें.

अपने फ्रीजर का उपयोग करें, फ्रोजन खाना पौष्टिक होता है: हम में से कई लोग उस युग में रहते हैं जहां हम अक्सर मानते हैं कि फ्रोजन खाना हमारे स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं है और पौष्टिक नहीं है. विश्व वन्यजीव कोष के अनुसार, जहां ताजा भोजन खाने के बहुत सारे फायदे हैं, वहीं जमे हुए खाद्य पदार्थ भी पौष्टिक हो सकते हैं. वे अधिक समय तक खाने योग्य भी रहते हैं. जमा हुआ सीफूड खरीदकर आप उस प्रोडक्ट की शेल्फ लाइफ को काफी हद तक बढ़ा सकते हैं. भोजन को पकाना और जमा देना – विशेष रूप से उत्पादित भोजन – खराब होने से पहले, भोजन की बर्बादी से बचने का एक शानदार तरीका है.

छिलकों को न फेंकें

छिलके और बीज खाने योग्य हैं! कोई भी व्यक्ति वास्तव में आलू और खीरे को छिलके सहित खा सकता है, जो कि ढेर सारे विटामिन और खनिजों से भरपूर होता है.

इनोवेट! उन तरीकों के बारे में सोचें, जिनमें आप छिलकों का उपयोग कर सकते हैं, उदाहरण के लिए, आलू के छिलके कुरकुरे पकौड़े बन सकते हैं, यदि आप उन्हें अलग-अलग तलेंगे तो. केले के छिलके को पॉलिश के विकल्प के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है.

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इसके लिए आवाज उठाओ!

लोगों को भोजन की बर्बादी के बारे में जागरूक करें, साथ ही उन तरीकों के बारे में जागरूकता फैलाएं, जिनसे लोग घर पर ही भोजन की बर्बादी को कम कर सकते हैं, इस तरह आप लाखों टन ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम कर सकते हैं.

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