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सरकार हेल्थकेयर इंफ्रास्ट्रक्चर को बढ़ाने और उस तक लोगों की पहुंच सुनिश्चित करने के लिए काम कर रही है: केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मांडविया
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. मनसुख मांडविया ने स्वास्थ्य देखभाल को सुलभ और किफायती बनाने, ट्यूबरक्लॉसिस और सिकल सेल एनीमिया जैसी बीमारियों को देश से खत्म करने के लिए सरकार द्वारा किए जा रहे प्रयासों के बारे में बताया
नई दिल्ली: 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस के मौके पर एनडीटीवी – डेटॉल ने सबसे लंबे समय तक चलने वाले और सबसे बड़े पब्लिक हेल्थ कैंपेन में से एक ‘बनेगा स्वस्थ इंडिया’ के सीजन 9 के पूरा होने का जश्न मनाया. इस अवसर पर एक पैनल में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मांडविया ने देश के कई जाने-माने डॉक्टर और पद्म पुरस्कार विजेताओं के साथ भारत के हेल्थ केयर सिस्टम और इससे जुड़ी चुनौतियों से निपटने पर चर्चा की.
हेल्थ केयर इंफ्रास्ट्रक्टर और उस तक पहुंच में वृद्धि
डॉ. मांडविया ने कहा कि सरकार हेल्थ केयर के इंफ्रास्ट्रक्चर को बढ़ाने और दूरदराज के इलाकों तक स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच बढ़ाने पर लगातार काम कर रही है.
देश के दूरदराज हिस्सों में स्वास्थ्य सेवाएं सुनिश्चित करने के लिए सरकार ने 6000-7000 की आबादी के बीच एक स्वास्थ्य और कल्याण केंद्र प्रदान करने का निर्णय लिया है. पिछले नौ सालों में केंद्र ने दूरदराज के इलाके के लोगों को प्राथमिक उपचार मुहैया करने के लिए 1,60,000 प्राथमिक स्वास्थ्य और कल्याण केंद्र स्थापित किए हैं.
इन कल्याण केंद्रों में मरीज की स्वास्थ्य देखभाल से जुड़ी सभी आवश्यक चीजें मौजूद हैं. यदि किसी मरीज को सेकेंडरी ट्रीटमेंट की जरूरत होगी, तो उन्हें इसके लिए इन केंद्रों द्वारा गाइड भी किया जाएगा. इस तरह से अस्पतालों पर पड़ने वाला बहुत सारा बोझ भी कम हो जाएगा, जो गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं के लिए होते हैं जैसे कि कैंसर, पल्मोनरी डिजीज, कार्डियोवैस्कुलर डिजीज आदि.
स्वास्थ्य मंत्री ने कहा कि इसके अलावा केंद्र ने विभिन्न राज्यों में 22 अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (Indian Institute of Medical Sciences- AIIMS) स्थापित करने का निर्णय लिया है, उनमें से 16 पहले ही शुरू हो चुके हैं.
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आयुष्मान भारत योजना के जरिए स्वास्थ्य सेवा को किफायती बनाना
समाज के आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए स्वास्थ्य सेवा को किफायती बनाने की सरकारी नीतियों के बारे में बात करते हुए डॉ. मांडविया ने कहा कि सरकार की आयुष्मान भारत योजना गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले परिवारों को हेल्थ कवर प्रोवाइड करती है. इस योजना के जरिए सरकार का मकसद हर साल 10 करोड़ से ज्यादा गरीब और कमजोर परिवारों को स्वास्थ्य लाभ पहुंचाना तथा 5 लाख रुपये तक का मेडिकल बीमा कवर देना है. डॉ. मांडविया ने कहा,
अब तक करीब 5.5 करोड़ लोग इस योजना का लाभ उठा चुके हैं. इस योजना के जरिए अब गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले परिवारों को भी अब बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं मिल रही हैं. जिसने स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर गरीब और अमीर के बीच का अंतर मिटाया है.
दूरदराज तक स्वास्थ्य सेवा पहुंचाने के लिए टेली कंसल्टेशन सर्विस
कुछ बीमारियां जैसे कैंसर या हार्ट से जुड़ी बीमारियों का इलाज एक ही दिन में नहीं किया जा सकता है. इनके इलाज के लिए मरीज को बार-बार अस्पताल में भर्ती होने की जरूरत होती है. मरीजों को कई बार अस्पताल के चक्कर लगाने पड़ते हैं. इससे निम्न सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि वाले व्यक्ति की रोज की कमाई का काफी नुकसान होता है जिसका प्रभाव उसके परिवार पर पड़ता है.
इसलिए हमारे देश में एक ऐसे हेल्थकेयर / मॉडल की आवश्यकता है जो कैंसर जैसी बीमारियों से पीड़ित मरीजों के लिए जिन्हें लंबे समय तक इलाज की जरूरत होती है उनकी इस मुश्किल को हल कर सके. ऐसे मरीजों की समस्या हल करने के लिए सरकार ने प्राथमिक स्वास्थ्य और कल्याण केंद्रों पर टेली-कंसल्टेशन सर्विस की व्यवस्था की हैं. डॉ. मनसुख मांडविया ने बताया कि टेली कंसल्टेशन के माध्यम से मरीज सेकेंडरी ट्रीटमेंट (माध्यमिक उपचार) के लिए मार्गदर्शन यानी गाइडेंस भी प्राप्त कर सकते हैं.
टीबी के खिलाफ भारत की जंग
डॉ. मांडविया ने देश से ट्यूबरक्लोसिस (टीबी) को जड़ से खत्म करने में केंद्र के प्रयासों पर भी प्रकाश डाला. स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय (MoHFW) ने 2030 तक टीबी उन्मूलन के ग्लोबल टारगेट से पांच साल पहले 2025 तक देश से टीबी खत्म करने के लिए जो प्रयास किए जा रहे हैं उनमें तेजी लाने के लिए सितंबर 2022 में ‘प्रधानमंत्री टीबी मुक्त भारत अभियान’ नाम की एक पहल शुरू की.
डॉ. मांडविया ने सरकार की ओर से टीबी रोगियों को जो सहायता प्रदान की जा रही है उसके बारे में बताया:
- टीबी रोगियों की निशुल्क जांच
- टीबी रोगियों के लिए हर महीने दी जाने वाली फूड बास्केट
- टीबी को लेकर जागरूकता बढ़ाने और स्वास्थ्य-संबंधी व्यवहार में सुधार लाने के लिए IEC (इन्फॉर्मेशन, एजुकेशन और कम्युनिकेशन) कैंपेन
- स्वास्थ्य अधिकारियों द्वारा टीबी के रोकथाम में तेजी लाना
- केस-बेस्ड वेब-बेस्ड पोर्टल नि-क्षय मित्र के माध्यम से टीबी मामलों को ट्रैक करना
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‘नि-क्षय मित्र’ पोर्टल के जरिए लोग खुद को पोर्टल पर जाकर रजिस्टर कर सकते और टीबी के मरीजों को गोद ले सकते हैं ताकि उनकी देखभाल की जा सके. डॉ. मांडविया ने बताया कि 30 दिनों के अंदर गैर सरकारी संगठनों, व्यापारिक संगठनों, व्यक्तियों और राजनीतिक दलों सहित लगभग 90,000 लोगों ने करीब 10,000 टीबी के मरीजों को स्पोंसर्ड किया था. डॉ. मांडविया ने कहा,
इससे यह पता चलता है कि टीबी को कम करने की दिशा में कलेक्टिव एफर्ट यानी सामूहिक प्रयास कैसे काम करता है. जिस तरह से टीबी को जड़ से खत्म करने के लिए हम सब मिलकर कोशिश कर रहे हैं उससे मुझे यकीन है कि हमारा देश 2025 तक टीबी से मुक्त हो जाएगा.
उनसे यह पूछे जाने पर कि क्या भारत को अपने स्वास्थ्य सेवा के मॉडल में बदलाव लाने की जरूरत है, डॉ. मांडविया ने कहा,
हमें स्वास्थ्य और स्वास्थ्य सेवाओं को एक अलग नजरिए से देखने की जरूरत है. यह जरूरी नहीं है कि हम ग्लोबल हेल्थ मॉडल को ही फॉलो करें. हर देश की जनसंख्या, जलवायु, बीमारियों के मामलों की दर और आर्थिक स्थितियां अलग-अलग होती हैं. इन सब बातों को ध्यान में रखकर ही किसी देश के हेल्थ मॉडल की नींव रखी जानी चाहिए और सरकार हमारे देश की इन सभी वास्तविकताओं को ध्यान में रखकर हेल्थ मॉडल को डेवलप करने के लिए लगातार काम कर रही है और उसे सफलता भी मिल रही है.
भारत से सिकल सेल एनीमिया डिजीज को खत्म करने का सरकार का प्रयास
सिकल सेल एनीमिया डिजीज एक जेनेटिक ब्लड डिसऑर्डर है जो असामान्य हीमोग्लोबिन की वजह से होता है. असामान्य हीमोग्लोबिन की वजह से रेड ब्लड सेल्स सिकल के आकार के हो जाते हैं. इस तरह यह उनकी ऑक्सीजन ले जाने की क्षमता और रक्त प्रवाह की मात्रा को कम करता है. भारत में, सिकल सेल एनीमिया के मामले आदिवासी समुदाय में काफी देखने को मिलते हैं.
इस बीमारी को जड़ से खत्म करने पर भारत की स्थिति के बारे में बात करते हुए डॉ. मांडविया ने बताया कि स्वास्थ्य मंत्रालय ने हाल ही में 2047 तक इस बीमारी को खत्म करने के लक्ष्य के साथ राष्ट्रीय सिकल सेल एनीमिया उन्मूलन (National Sickle Cell Anaemia Elimination) मिशन शुरू किया है.
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केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने कहा कि इस तरह की बीमारी से निपटने के लिए समय पर सिस्टमैटिक और फोकस्ड एफर्ट की जरूरत होती है जो भारत लगातार कर रहा है.
यूरोप का इटली देश सिकल सेल डिजीज से फ्री यानी मुक्त है. जापान भी सिकल सेल डिजीज से मुक्त देश है. तो भारत ऐसा क्यों नहीं कर सकता? भारत में 278 जिले, 12 राज्य, 7 करोड़ आदिवासी आबादी है, अगर हम अपनी पूरी आबादी की स्क्रीनिंग शुरू कर दें, तो हम 2047 तक भारत को इस बीमारी से मुक्त कर सकते हैं.