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2023 की मुख्य विशेषताएं: सिकल सेल एनीमिया को 2047 तक खत्म करने के मिशन को पूरा करने के लिए भारत को किन कदमों की है जरूरत?
सिकल सेल एनीमिया (एससीए) हीमोग्लोबिन से जुड़ी एक बीमारी है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2047 तक इस बीमारी को खत्म करने के लक्ष्य के साथ जुलाई 2023 में राष्ट्रीय सिकल सेल एनीमिया उन्मूलन मिशन (एनएससीईएम) शुरू किया
नई दिल्ली: वर्ष 2023 समाप्त हो चुका है. आइए, एक नजर स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र को मजबूत करने के लिए बीते साल सरकार की ओर से उठाए गए महत्वपूर्ण कदमों पर डाल लेते हैं. इस वर्ष सरकार की ओर से की गई प्रमुख पहलों में से एक थी सिकल सेल एनीमिया (एससीए) से निपटने की ओर कदम बढ़ाना, जिसे सिकल सेल रोग (एससीडी) के नाम से भी जाना जाता है. यह देश की आदिवासी समुदाय में पाई जाने वाली एक आनुवंशिक बीमारी है. राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) के अनुमान के मुताबिक, देश में सिकल एनीमिया के करीब 15 लाख मरीज हैं. रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि दुनिया भर में हर साल एससीए के तीन लाख बच्चों में से 50,000 भारत में होते हैं. लगभग 20 फीसदी आदिवासी बच्चे दो साल की उम्र तक पहुंचने से पहले और 30 फीसदी 25 साल की उम्र तक पहुंचने से पहले इस बीमारी का शिकार हो जाते हैं. इनमें से लगभग 50 फीसदी 40 साल तक दम तोड़ देते हैं और इनकी औसत जीवन प्रत्याशा भी सामान्य लोगों से 30 साल कम होती है.
फरवरी 2023 में केंद्रीय बजट पेश करते वक्त केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा था कि सरकार 2047 तक सिकल सेल एनीमिया (एससीए) को खत्म करने के लिए एक मिशन शुरू करेगी. इसके बाद जुलाई 2023 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रीय सिकल सेल को लॉन्च किया. एनीमिया उन्मूलन मिशन (एनएससीईएम) के तहत 2047 तक इस बीमारी को खत्म करने का लक्ष्य रखा गया है. यह एससीए की बीमारी को खत्म करने के लिए सरकार की ओर से की गई अपनी तरह की विशेष पहल है.
प्रधानमंत्री ने लाभार्थियों को सिकल सेल जेनेटिक स्टेटस कार्ड भी जारी किए.
इन कार्डों के मिलान से पता चलेगा कि शादी कर रहे जोड़े के भविष्य में पैदा होने वाले बच्चों में सिकल सेल एनीमिया होने की कितनी संभावना है. स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय और जनजातीय मामलों के मंत्रालय द्वारा जारी
दिशा-निर्देशों के अनुसार, यदि सिकल सेल रोग या वाहक से पीड़ित कोई भी व्यक्ति शादी करता है, तो बीमारी की जांच कराने वाले प्रत्येक व्यक्ति को कार्ड प्रदान किया जाएगा. इस कार्ड के सामने की ओर व्यक्ति की स्थिति अर्थात सामान्य, वाहक या रोगग्रस्त, लिंग और परीक्षण रिपोर्ट (सिकल सेल रोग/सिकल सेल वाहक/सामान्य) की जानकारी दी गई होती है. कार्ड की स्थिति के आधार पर व्यक्ति को उपचार और परामर्श सेवाएं दी जाएंगी. कार्ड के पीछे की ओर गर्भधारण के संभावित परिणामों का विवरण दिया गया होता है.
एनडीटीवी-डेटॉल बनेगा स्वस्थ इंडिया टीम से बात करते हुए केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. मनसुख मंडाविया ने कहा कि एससीए जैसी बीमारी से निपटने के लिए समय पर व्यवस्थित और सटीक प्रयास किए जाने की आवश्यकता है, जो भारत सरकार कर रही है. मिशन के बारे में बात करते हुए डॉ. मंडाविया ने कहा,
इटली और जापान सिकल सेल रोग से मुक्त हो चुके हैं. तो भारत ऐसा क्यों नहीं कर सकता? इसी सोच के साथ हमने एनएससीईएम की शुरुआत की है. इस मिशन के तहत सरकार ने अगले तीन वर्षों में देश के 12 राज्यों के 278 जिलों में रहने वाली सात करोड़ आदिवासी आबादी की स्क्रीनिंग करने का निर्णय लिया है.
सिकल सेल रोग क्या है और यह जनजातीय आबादी में यह क्यों प्रचलित है? रोग उन्मूलन के 2047 लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए कौन से कदम उठाने की आवश्यकता है? बनेगा स्वस्थ इंडिया ने इस वर्ष घोषित इस प्रमुख पहल पर गहराई से चर्चा करते हुए स्वामी विवेकानंद मेडिकल मिशन के मुख्य चिकित्सा अधिकारी व हेमेटोलॉजिस्ट पद्मश्री डॉ. धनंजय दिवाकर सागदेव, महाराष्ट्र स्थित सुदाम केट रिसर्च फाउंडेशन के संस्थापक-निदेशक डॉ. सुदाम केट और नागपुर की सिकल सेल एसोसिएशन की अध्यक्ष डॉ. अनुराधा श्रीखंडे के साथ बात की.
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सिकल सेल एनीमिया क्या है?
डॉ. सागदेव ने बताया कि सिकल सेल एनीमिया (एससीए) एक खून की वंशानुगत बीमारी है, जो हीमोग्लोबिन संबंधी विकार के चलते होती है. यह शरीर के सभी भागों में ऑक्सीजन ले जाने के लिए लाल रक्त कोशिकाओं (आरबीसी) में हीमोग्लोबिन की क्षमता को घटा देती है, जिसके कारण लाल रक्त कोशिकाएं कमजोर हो जाती हैं और टूटने लगती हैं. इस बीमारी के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा,
यह बीमारी अनुवांशिक होती है. वैज्ञानिक रूप से समझा जाए, तो यह मानव हीमोग्लोबिन के एक आनुवंशिक प्रकार जिसे सिकल हीमोग्लोबिन (एचबी एस) कहा जाता है के कारण होती है. आमतौर पर मनुष्यों में पाए जाने वाले हीमोग्लोबिन को हीमोग्लोबिन ए (एचबी ए) कहा जाता है. जिन लोगों को सिकल सेल एनीमिया होता है, उन्हें माता-पिता से दो दोषपूर्ण हीमोग्लोबिन जीन, यानी एचबी एस विरासत में मिलते हैं.
डॉ. सागदेव ने बताया कि जिन व्यक्तियों को केवल एक दोषपूर्ण जीन विरासत में मिलता है (माता-पिता में से केवल एक में एचबी एस होता है और दूसरे में एचबी ए होता है) वे तुलनात्मक रूप से स्वस्थ पैदा होते हैं, फिर भी उनमें यह बीमारी विकसित होने की 25 फीसदी संभावना होती है.
जनजातीय समुदाय में सिकल सेल एनीमिया क्यों पाया जाता है?
डॉ. सुदाम केट, जो पिछले 40 वर्षों से महाराष्ट्र में सिकल सेल एनीमिया का अध्ययन कर रहे हैं, ने बताया कि यह बीमारी आदिवासी समुदाय में अधिक प्रचलित क्यों है.
ऐतिहासिक रूप से देखा जाए, तो आदिवासी आबादी भारत के घने जंगलों वाले इलाकों में रहती रही है, जहां मलेरिया संक्रमण का खतरा अधिक था. इसके चलते आदिवासी लोग वर्षों से मलेरिया से ग्रस्त रहे, जिससे कई मौतें तो हुईं ही, साथ में पीढ़ी दर पीढ़ी एक अनुवांशिक लक्षण के रूप में उनकी लाल रक्त कोशिकाएं सामान्य गोल आकार के बजाय हंसिया के आकार की होती चली गईं. इस तरह से सिकल सेल एनीमिया जीन इस आबादी में उत्पन्न हुआ. इस बीमारी के प्रति उनकी संवेदनशीलता बढ़ गई और यह पीढ़ी-दर-पीढ़ी आगे बढ़ती ही जा रही है.
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सिकल सेल एनीमिया का उपचार और रोकथाम
डॉ. सागदेव ने कहा कि सिकल सेल एनीमिया का ऐसा कोई इलाज नहीं है, जो आम आदमी की पहुंच में हो. इससे निपटने के लिए मरीजों को अस्थि मज्जा प्रत्यारोपण यानी बोन मैरो ट्रांसप्लांट कराना पड़ता है, लेकिन यह तरीका भी केवल 16 वर्ष से कम उम्र के मरीजों पर ही कारगर होता है, इससे ज्यादा उम्र वालों पर नहीं. डॉ सागदेव ने कहा कि जीन थेरेपी इसका एक और उपचार है, लेकिन फिलहाल यह केवल अमेरिका में ही उपलब्ध है.
स्वास्थ्य विशेषज्ञ ने बताया कि इसकी एक दवा हाइड्रोक्सी यूरिया है, जो बार-बार एक्यूट चेस्ट सिंड्रोम से जूझने वाले रोगियों को दी जाती है. केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से भी इस दवा का सुझाव दिया गया है.
सिकल सेल संचरण को खत्म करने और मिशन 2047 की सफलता के लिए जरूरी कदम
सिकल सेल एसोसिएशन नागपुर की अध्यक्ष डॉ. अनुराधा श्रीखंडे ने सिकल सेल एनीमिया के साथ बच्चे पैदा होने को रोकने के लिए बीमारी के बारे में जागरूकता बढ़ाने और विवाह पूर्व परामर्श आयोजित करने को इसका एक प्रमुख उपाय बताया.
डॉ. सुदाम केट ने भावी पीढ़ियों को इस बीमारी से बचाने के लिए व्यापक जांच (प्रसवपूर्व और 40 वर्ष तक की उम्र तक स्क्रीनिंग) और निगरानी पर जोर दिया. उन्होंने कहा कि आदिवासियों को सिकल सेल एनीमिया के बारे में शिक्षित करने के लिए सामुदायिक स्तर पर प्रयासों की जरूरत है. डॉ. केट ने कहा कि अंतिम व्यक्ति तक पहुंचने के लिए विवाह पूर्व परामर्श प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर उपलब्ध कराया जाना चाहिए.
इसके साथ ही डॉ. सागदेव ने सरकार को अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में बोन मैरो ट्रांसप्लांट (बीएमटी) को किफायती दरों पर उपलब्ध कराने की भी सलाह दी.
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विशेषज्ञों की ओर से दिए गए सुझाव राष्ट्रीय सिकल सेल एनीमिया उन्मूलन मिशन (एनएससीईएम) के अनुरूप हैं. एनएससीईएम के तहत सरकार ने कहा है कि वह 2047 तक सिकल सेल एनीमिया को खत्म करने के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए आदिवासियों को शिक्षित करने, निगरानी बढ़ाने, शीघ्र निदान, सार्वभौमिक जांच और विवाह पूर्व परामर्श पर फोकस करेगी.
इस मिशन को एससीए से सबसे ज्यादा प्रभावित 17 राज्यों में लागू किया जा रहा है, इनमें गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान, मध्य प्रदेश, झारखंड, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, तमिलनाडु, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, असम, उत्तर प्रदेश, केरल, बिहार और उत्तराखंड शामिल हैं.