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मासिक धर्म स्वच्छता दिवस 2023: 2030 तक माहवारी को जीवन की एक आम बात बनाने का लक्ष्‍य

जानिए, मासिक धर्म स्वच्छता दिवस मनाने की वजह, क्या है इसका महत्व और प्रासंगिकता

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विश्व बैंक के मुताबिक दुनिया भर में रोजाना 300 मिलियन से अधिक महिलाएं माहवारी से गुजरती हैं. इसके बावजूद करीब 500 मिलियन महिलाओं के पास माहवारी से जुड़े सुरक्षात्मक उत्पादों और मासिक धर्म स्वच्छता प्रबंधन (MHM) के लिए जरूरी सुविधाएं उपलब्ध नहीं हैं.

नई दिल्ली: विश्व बैंक का कहना है कि मासिक धर्म स्वास्थ्य और स्वच्छता (Menstrual Health and Hygiene, MHH) महिलाओं और किशोरियों की तंदुरुस्ती और महिला सशक्तिकरण के लिए बहुत जरूरी है. विश्व बैंक के मुताबिक दुनिया भर में रोजाना 300 मिलियन से अधिक महिलाएं माहवारी से गुजरती हैं. इसके बावजूद करीब 500 मिलियन महिलाओं के पास माहवारी से जुड़े सुरक्षात्मक उत्पादों और मासिक धर्म स्वच्छता प्रबंधन (MHM) के लिए जरूरी सुविधाएं उपलब्ध नहीं हैं.

शिक्षा की कमी, वर्जनाओं और तमाम तरह के निषेधों के कारण खराब माहवारी स्वच्छता, माहवारी से जुड़े उत्पादों तक सीमित पहुंच, स्वच्छता के बुनियादी ढांचे की कमी बनी हुई है. इसने दुनिया भर में महिलाओं और लड़कियों की शिक्षा, सेहत और सामाजिक स्थिति को कमजोर किया है. मासिक धर्म के बारे में चुप्पी को तोड़ने, जागरूकता बढ़ाने और नकारात्मक सामाजिक मानदंडों को बदलने के लिए 28 मई को मासिक धर्म स्वच्छता दिवस के रूप में मनाया जाता है.

28 मई को क्यों मनाया जाता है ‘मासिक धर्म स्वास्थ्य और स्वच्छता दिवस’

वॉश यूनाइटेड नाम की जर्मन एनजीओ ने 2013 में मासिक धर्म स्वच्छता दिवस की शुरुआत की. तब से ही 28 मई को यह दिवस मनाया जाता है. 28 मई की तारीख चुनने की खास वजह यह है कि महिलाओं और लड़कियों को औसतन प्रति माह 5 दिन मासिक स्राव (पीरियड) होता है और मासिक धर्म चक्र का औसत अंतराल 28 दिन होता है. इसीलिए 5वें महीने यानी मई के 28वें दिन को मासिक धर्म स्वास्थ्य और स्वच्छता दिवस के रूप में चुना गया.

मासिक धर्म स्वास्थ्य और स्वच्छता दिवस 2023 की थीम

मासिक धर्म स्वच्छता प्रबंधन के बारे में जागरूकता बढ़ाने और इससे जुड़ी वर्जनाओं और निषेधों को तोड़ने के लिए हर साल इस दिवस को एक विशेष विषय के साथ चिह्नित किया जाता है. पिछले दो वर्षों से इस दिन को खास थीम के साथ चिह्नित किया जा रहा है – ‘2030 तक मासिक धर्म को जीवन का एक सामान्य तथ्य बनाना’ 2023 की थीम है, जिसके तहत इस व्यापक लक्ष्य की दिशा में काम करने के उद्देश्य से 2030 तक एक ऐसी दुनिया बनाने की दिशा में काम किया जाएगा, जिसमें मासिक धर्म के चलते कोई महिला विकास की दौड़ में पीछे न रह जाए.

मासिक धर्म स्वच्छता दिवस को चिह्नित करने के लिए एजेंडा

इस दिवस को बनाने के पीछे सोच है कि साल 2030 तक ऐसे समाज का निर्माण हो, जहां कोई भी महिला या लड़की मासिक धर्म के कारण पीछे न रहे. इसका उद्देश्य एक ऐसी दुनिया का निर्माण है जहां,

• हर कोई अपनी पसंद के मासिक धर्म उत्पादों को खरीद सके

• पीरियड से जुड़ी पाबंदियों का युग समाप्त हो

• मासिक धर्म के बारे में सभी को बुनियादी जानकारी हो

• मासिक धर्म के दौरान हर महिला को पानी, स्वच्छता और साफ-सफाई की सुविधाएं उपलब्ध हों.

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मासिक धर्म स्वच्छता का भारत में परिदृश्य

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. मनसुख मंडाविया द्वारा 5 मई, 2022 को जारी राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 की राष्ट्रीय रिपोर्ट के अनुसार भारत में 15-24 आयु वर्ग की 64.4 प्रतिशत महिलाएं सेनेटरी नैपकिन का उपयोग करती हैं, 49.6 प्रतिशत कपड़े का उपयोग करती हैं, 15 प्रतिशत स्थानीय रूप से तैयार नैपकिन का उपयोग करती और केवल 0.3 प्रतिशत मेंस्ट्रुअल कप का उपयोग करती हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि कुल मिलाकर भारत में 77.6 प्रतिशत महिलाएं माहवारी में बचाव के लिए स्वच्छ तरीके का इस्तेमाल करती हैं. रिपोर्ट में यह बात भी सामने आई कि मासिक धर्म से जुड़े स्वास्थ्य संबंधी बातों को लेकर महिलाओं में जागरूकता बढ़ी है. हालांकि कुछ रिपोर्ट्स ऐसी भी आई हैं, जिन्होंने एक अलग ही सच्चाई को उजागर किया है.

बीएमसी (बायो मेडिकल सेंट्रल) पब्लिक हेल्थ में ‘ग्रामीण भारत में किशोर महिलाओं के बीच मासिक धर्म स्वच्छता प्रथाओं’ शीर्षक से प्रकाशित एक क्रॉस-सेक्शनल अध्ययन रिपोर्ट के अनुसार यद्यपि भारत दुनिया की किशोरियों की आबादी का लगभग पांचवां हिस्सा रहता है, पर दुर्भाग्यवश उनमें से ज्यादातर, खासतौर पर ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाली किशोरियों को माहवारी के दौरान आमतौर पर कई तरह के प्रतिबंधों का सामना करना पड़ता है. ये प्रतिबंध उन्हें सामाजिक जीवन के कई पहलुओं, पूजा, स्नान, खाना पकाने और यौन गतिविधियों में भाग लेने से रोकते हैं. इस अध्ययन में 95,551 किशोरियों से राय ली गई थी. राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS-5) की नवीनतम रिपोर्ट में यह बात भी सामने आई है कि भारत में लाखों किशोरियां कई गतिविधियों पर प्रतिबंध, स्कूलों में टॉयलेट और डिस्‍पोजल सुविधाओं की कमी, मासिक धर्म के खून की गंध और दाग के डर या शर्म के कारण हर साल स्कूल छोड़ देती हैं. यौवन और मासिक धर्म के बारे में व्यापक अज्ञानता, मासिक धर्म स्वच्छता उत्पादों तक पहुंच न होने और पर्याप्त पानी, हाइजीन और स्वच्छता सुविधाएं न होने के चलते स्थिति और भी खराब हो जाती है, जिसके कारण मासिक धर्म स्वच्छता की आदतें खराब होती हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि माहवारी के दौरान स्वच्छता की कमी की वजह से चकत्ते, खुजली, दुर्गंध और प्रजनन और मूत्र मार्ग में संक्रमण सहित कई प्रकार की यौन समस्याएं हो सकती हैं. खराब मासिक धर्म स्वच्छता के चलते भी महिलाओं के शैक्षिक और आर्थिक अवसरों में कमी आ सकती है.

DMIMS (दत्ता मेघे इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज) स्कूल ऑफ एपिडेमियोलॉजी एंड पब्लिक हेल्थ द्वारा प्रकाशित मध्य भारत के एक आदिवासी क्षेत्र में किशोर लड़कियों के बीच मासिक धर्म स्वच्छता प्रथाओं पर एक अन्य अध्ययन भी काफी महत्‍वपूर्ण बातें बताता है. यह अध्ययन जनवरी से मार्च 2022 तक नागपुर जिले के एक आदिवासी क्षेत्र में रहने वाली किशोर लड़कियों (10-19 वर्ष) के बीच किया गया था. इसके मुताबिक औसतन केवल 45.17% लड़कियों को मासिक धर्म शुरू होने से पहले इसके बारे में जानकारी थी. लगभग 73.79% लड़कियां सैनिटरी पैड का इस्तेमाल कर रही थीं, जबकि 26.21% लड़कियां कपड़े का इस्तेमाल कर रही थीं. माहवारी के दौरान सबसे ज्‍यादा 97.93% लड़कियों पर लगाए जाने वाले सबसे अहम प्रतिबंध के तहत उन्‍हें धार्मिक कार्यों में भाग लेने की अनुमति नहीं दी जा रही थी, इसके अलावा 65.86% को माहवारी के दौरान स्‍कूल जाने की अनुमति नहीं थी.

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माहवारी में स्वच्छता का महत्व

अधिकांश महिलाओं के लिए मासिक धर्म को जीवन का एक सामान्य और स्वस्थ हिस्सा माना जाता है. यूनिसेफ की एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया भर में महिलाओं की आबादी का लगभग 26 प्रतिशत हिस्‍सा प्रजनन आयु की महिलाओं का है. इसमें कहा गया है कि ज्यादातर महिलाएं हर महीने लगभग दो से सात दिनों तक माहवारी में रहती हैं. मासिक धर्म के इतना आम होने पर भी दुनिया भर में मासिक धर्म को लेकर तरह-तरह की पाबंदियां महिलाओं पर थोपी जाती हैं.

विशेषज्ञों और शोधकर्ताओं ने समय-समय पर मासिक धर्म स्वच्छता के महत्व पर प्रकाश डाला है. उनका मानना है कि जब लड़कियों और महिलाओं के पास मासिक धर्म का सामना करने के लिए सुरक्षित और सस्ती स्वच्छता सामग्री उपलब्‍ध होती है, तो उन्‍हें इंफेक्‍शन के जोखिम काफी हद तक कम हो जाते हैं.

विश्व बैंक का कहना है कि मासिक धर्म के दौरान स्वच्छता की कमी का लड़कियों के यौन स्वास्थ्य और प्रजनन क्षमता पर गंभीर असर पड़ सकता है. इसमें यह भी कहा गया है कि मासिक धर्म के दौरान स्वच्छता का न होना स्वास्थ्य के लिए गंभीर जोखिम पैदा कर सकता है. इसमें प्रजनन और मूत्र मार्ग में संक्रमण, जिसके परिणामस्वरूप भविष्य में बांझपन और बच्चे के जन्म संबंधी जटिलताएं हो सकती हैं. इसके अलावा सेनेटरी नैपकिन जैसे मासिक धर्म के उत्पादों को बदलने के बाद हाथ न धोने से हेपेटाइटिस बी और थ्रश(thrush) जैसे गंभीर फंगल इंफेक्शन फैल सकते हैं.

विश्व बैंक यह भी कहता है कि यदि मासिक धर्म स्वास्थ्य और स्वच्छता को शुरू से ही अच्छी तरह से हैंडल किया जाए, तो इससे महिला सशक्तिकरण को प्रभावशाली ढंग से मजबूत किया जा सकता है.

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