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मासिक धर्म स्वच्छता दिवस: मिलिए कश्मीर की ‘पैडवुमन’ से, जो सेनेटरी नैपकिन बना रही हैं और मासिक धर्म स्वच्छता के बारे में ग्रामीण महिलाओं को जागरूक कर रही हैं
कश्मीर के अनंतनाग जिले के नरुपुरा गांव की रहने वाली रिदवाना अख्तर अपने स्वयं सहायता समूह अल क़रिया की महिलाओं के साथ मिलकर सैनिटरी पैड बना रही हैं. वह महिलाओं को संवेदनशील बना रही हैं और मासिक धर्म स्वास्थ्य -स्वच्छता व स्वस्थ जीवन जीने के लिए इसके महत्व के बारे में जागरूकता पैदा कर रही हैं
नई दिल्ली: “एक महिला को ब्लीडिंग हो रही है और कुछ भी नहीं, फिर वह हर चीज से दूर क्यों रहे? हम अपनी प्रजनन प्रणाली, अपने शरीर की कार्यप्रणाली पर कैसे शर्मिंदा हो सकते हैं, और कब तक हम सदियों पुराने सिस्टम से बंधे रहेंगे और अपने स्वास्थ्य की उपेक्षा करेंगे?” अनंतनाग जिले के कोकेरनाग के नरुपुरा गांव की रहने वाली 38 वर्षीय रिदवाना अख्तर ये सवाल पूछती हैं.
बुटीक की मालकिन अख्तर, दो लड़कों और एक बेटी की मां हैं, अपने पति और ससुराल वालों के साथ नरुपुरा में रहती हैं. उर्दू में एमफिल ग्रेजुएट, अख्तर मेंस्ट्रुअल हेल्थ के बारे में जागरूक थीं और उन्होंने अपने घर में भी ऐसा ही माहौल देखा था. लेकिन उन्होंने नोटिस किया कि वह उन कुछ महिलाओं में से एक थी जिन्हें माहवारी के बारे में जानकारी थी. शादी के बाद यह बात उन्हें और भी खटकने लगी.
उन्होंने देखा कि उनके गांव में कई नैतिक, धार्मिक और सांस्कृतिक मान्यताएं थीं, जो मासिक धर्म के बारे में मिथकों और गलत सूचनाओं में उलझी हुई थीं. क्षेत्र की अधिकांश महिलाओं ने वास्तविकता को स्वीकार कर लिया, जबकि अन्य अपने मासिक धर्म या सामान्य रूप से अपने स्वास्थ्य के बारे में अनजान थीं.
अपने काम में उलझी अख्तर भी इस मिसइंफर्मेशन को अनदेखा करने और चलने देने का विकल्प चुन सकती थीं. लेकिन उनके मन में मासिक धर्म को लेकर प्रचलित रूढ़ियों दूर करने के लिए उनके मन में एक तीव्र इच्छा पैदा हो रही थी. हालांकि वह निश्चित नहीं थी कि इसे प्रभावी रूप से साथ कैसे किया जा सकता है.
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2021 का समय था, नेशनल बैंक फॉर एग्रीकल्चर एंड रूरल डेवलपमेंट (NABARD) के माध्यम से एक अवसर आया, जिसने ‘माई पैड माई राइट’ नाम का एक पैन-इंडिया प्रोग्राम शुरू किया था. इसके तहत स्वयं सहायता समूहों (SHGs) को अनुदान के आधार पर मुफ्त सैनिटरी पैड-मेकिंग असेम्बली मशीन दी जा रही थी. इसके साथ दो महीने का कच्चा माल और मजदूरी, एसेसरीज के साथ पैकेजिंग सामग्री और तीन चरणों में पांच दिवसीय प्रशिक्षण दिया जा रहा था.
अख्तर को उनके बहनोई इनामुल हक रफीकी से कार्यक्रम के बारे में पता चला. उन्होंने ही अख्तर को नाबार्ड-सहायता प्राप्त पहल की बारीकियों को समझने में मदद की. यह अख्तर लिए किसी सुनहरे मौके से कम नहीं था. उन्होंने सोचा कि सैनिटरी नैपकिन के निर्माण में महिलाओं को शामिल करने से न केवल उन्हें आर्थिक रूप से मदद मिलेगी, बल्कि इस अवसर का उपयोग महिलाओं और उनके परिवारों को मेन्सुरेशन हेल्थ के बारे में सेंसेटाइज करने व मेंसुरेशन हाइजीन और स्वस्थ जीवन जीने के लिए इसके महत्व के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए भी किया जा सकता है.
वह अपने गांव की महिलाओं को शिक्षित करने के लिए घर-घर गई और SHG में शामिल होने के लाभों का वर्णन करने के बाद उनसे अपने स्वयं सहायता समूह (एसएचजी) ‘अल-करिया’ में शामिल होने का आग्रह किया. अख्तर कहती हैं कि ‘अल-करिया’ नाम का मतलब सफलता या प्रगति है.
2021 में, उन्होंने प्रोजेक्ट को लेने और उस पर काम करने के लिए नाबार्ड की सहायक कंपनी एनएबी फाउंडेशन को दस्तावेज जमा किए. फाउंडेशन ने उनके आवेदन को स्वीकार कर लिया. फाउंडेशन ने मशीन को स्थापित करने और सामग्री को स्टॉक करने के लिए 700 वर्ग फीट से 1000 वर्ग फीट की जगह की आवश्यकता सहित परियोजना के कार्यान्वयन के लिए शर्तें रखीं.
अख्तर इस अवसर का लाभ उठाने के लिए दृढ़ थीं. अपने परिवार के सहयोग से, उन्होंने केवल मशीन स्थापित करने के उद्देश्य से परिवार के स्वामित्व वाली भूमि पर एक शेड का निर्माण किया. संबंधित दस्तावेजों के वेरिफिकेशन के बाद, अख्तर को आखिरकार सितंबर 2022 में स्वीकृति पत्र मिला. नवंबर में, मशीनरी अनंतनाग जिले में पहुंची और इस साल 9 मार्च को स्थापित की गई.
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नाबार्ड ने ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं के बीच मासिक धर्म स्वच्छता जागरूकता और उद्यमिता को बढ़ावा देने के प्रयासों के तहत अल-करिया SHG को औपचारिक रूप से NAB फाउंडेशन से पहली बार सेनेटरी पैड निर्माण इकाई प्रदान की गई थी. वह प्रेसिडेंट के रूप में ग्रुप का नेतृत्व करती हैं. ग्रुप में 18-50 वर्ष की आयु वर्ग के सदस्य हैं, जिन्होंने मासिक धर्म स्वच्छता के बारे में जागरूकता पैदा करने का संकल्प लिया है.
अल-क़रिया ‘NISSA’ नाम से सैनिटरी नैपकिन बनाने का काम करती हैं और आठ का पैक 75 रुपये में बेचती हैं. कीमत के बारे में बात करते हुए अख्तर ने कहा कि बाज़ार में सैनिटरी पैड काफ़ी सस्ते दामों पर उपलब्ध हैं, लेकिन गुणवत्ता खराब है. जबकि वे अपने सैनिटरी पैड के उत्पादन के लिए बेहतरीन कच्चे माल, जैसे एयरलेड पेपर या वुड पल्प, SAP वाले टिश्यू (पौधों के पानी वाले तरल पदार्थ), पॉलीथीन (PE) फिल्मों आदि का इस्तेमाल करते हैं.
ये स्पैन्डेक्स मटेरियल फ्लेक्सिबल, कंफर्टेबल, नॉन-क्रिंकल (जिन्हें मरोड़ा या ऐंठा न जा सके) हैं, जो जीरो लीकेज एश्योर करता है. यह किसी भी अन्य नियमित सैनिटरी नैपकिन की तुलना में मासिक धर्म के तरल पदार्थ को ज्यादा सोखता है.
उन्होंने कहा कि
‘इन सैनिटरी नैपकिन्स का इस्तेमाल स्पेशल मेटरनिटी पैड के रूप में भी किया जा सकता है, क्योंकि ये भारी रक्तस्राव को अवशोषित करने में मदद कर सकते हैं. डिलीवरी के बाद भी ये नई मांओं को आरामदायक और सिक्योर महसूस कराते हैं.’
समूह को विभिन्न प्रसूति अस्पतालों और क्लीनिकों से इसके लिए ऑर्डर मिल रहे हैं. प्रति दिन 600-800 पैड की उत्पादन क्षमता वाली अर्ध-स्वचालित इकाई आसपास के गांवों में भी वितरण के लिए उपलब्ध पैड का पर्याप्त स्टॉक सुनिश्चित करती है.
19 साल की ताहिरा जान, जो पास के एक कॉलेज में इतिहास में स्नातक की छात्रा है, पिछले दो वर्षों से अल-करिया के साथ काम कर रही है. वह सिलाई से लेकर आर्ट वर्क तक ग्रुप के किए जाने वाले विभिन्न कार्यों में शामिल रही हैं. अख्तर के कहने पर ताहिरा ग्रुप में शामिल हुई थी. अब वह अख्तर को सैनिटरी पैड बनाने में मदद करती हैं. कॉलेज से आने के बाद, वह मैन्युफैक्चरिंग यूनिट में जाती है और सेंसिटिव इंपल्स सीलिंग मेथड से कपड़े को लपेटने और सील करने में मदद करती है.
‘मुझे रिदवाना बाजी से अल-करिया की पहल के बारे में पता चला. 12वीं पास करने के बाद मैं ग्रुप में शामिल हो गई. हर दिन मैं कॉलेज में अपनी पढ़ाई पूरी करने और मैन्युफैक्चरिंग यूनिट में महिलाओं को ज्वाइन करती हूं.’
अख्तर ने कहा, कॉलेज के कारण वह यूनिट में 3-4 घंटे काम करती हैं, लेकिन उनका योगदान बहुत बड़ा है.
अख्तर की पड़ोस में रहने वाली, फरुका बानो भी सैनिटरी नैपकिन बनाने का काम करती हैं. 35 वर्षीय फरुका को डोर-टू-डोर कैंपेन के माध्यम से इस बारे में पता चला.
बानो को पता था कि सैनिटरी पैड उपलब्ध हैं, फिर भी वह माहवारी में कपड़े का उपयोग कर रही थीं, क्योंकि गांव में मासिक धर्म से जुड़े मिथक के कारण दवा की दुकान से खरीदने से डरती थीं.
मैन्युफैक्चरिंग यूनिट में शामिल होने के बाद, बानो ने मासिक धर्म के दौरान पुराने कपड़ों का उपयोग पूरी तरह से बंद कर दिया है और अपनी बेटी के लिए वही प्रदान करती हैं. वह मैन्युफैक्चरिंग यूनिट में सैनिटरी नैपकिन की पैकेजिंग से जुड़ी हैं.
‘मैंने अपने जीवन में कभी सैनिटरी नैपकिन का इस्तेमाल नहीं किया, क्योंकि मैं इसे केमिस्ट से खरीदने में झिझकती थी. लेकिन अब मैं गर्व से उस पैड का इस्तेमाल करती हूं जिसे मैं गांव की अन्य महिलाओं के साथ मिलकर बनाती हूं. मैं अभी भी एक दवा की दुकान से पैड खरीदने के लिए आश्वस्त नहीं हूं, लेकिन मैन्युफैक्चरिंग यूनिट एक वरदान के रूप में आई हैं.’
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पैड बनाने के अलावा, इन महिलाओं ने नरुपुरा गांव और आस-पास के स्कूलों की महिलाओं को मासिक धर्म स्वास्थ्य और स्वच्छता के बारे में शिक्षित करने का बीड़ा उठाया है. अख्तर ने मासिक धर्म स्वास्थ्य के पहलुओं पर चर्चा करने के लिए अपने गांव में कई जागरूकता सत्र आयोजित किए हैं. मासिक धर्म के दौरान बरती जाने वाली सावधानियां (जननांग क्षेत्र को साफ रखना, सही कपड़े पहनना आदि), मासिक धर्म चक्र के दौरान किस तरह की देखभाल की जरूरत है (पर्याप्त तरल पदार्थ पीना, घर पर व्यायाम करना) और इस विषय से जुड़े मिथक (मासिक धर्म के रक्त को अस्वच्छ मानते हुए प्रेयर नहीं करना) पर चर्चा की.
‘उन्होंने कहा कि,
मैं महिलाओं से यह भी आग्रह करती हूं कि वे अपनी युवा बेटियों को माहवारी से पहले मासिक धर्म, व्यक्तिगत स्वच्छता बनाए रखने और पारंपरिक तरीकों के स्थान पर सैनिटरी पैड का उपयोग करने के बारे में शिक्षित करें.’
अख्तर समूह द्वारा उत्पादित सैनिटरी नैपकिन को स्कूलों में युवा लड़कियों और समाज के आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों की महिलाओं को मुफ्त में वितरित करती हैं.
22 वर्षीय साबिया जान अख्तर, श्रीमती अख्तर की इस पहल की प्रशंसा करने से खुद को नहीं रोक सकी. जान नरुपुरा गांव की उन कई महिलाओं में से एक हैं, जिन्होंने अख्तर की जागरूकता पहल में भाग लेने के बाद सैनिटरी पैड का उपयोग करना शुरू कर दिया है.
‘मैंने अपने पीरियड्स के सभी छह दिनों में हमेशा कपड़ों का इस्तेमाल किया है. जब अख्तर घर-घर गईं, तो उन्होंने मेरे परिवार को सैनिटरी पैड के महत्व, कपड़े और पैड के बीच के अंतर को समझाया. ये बेहद आरामदायक हैं और मुझे इसे कम बार बदलना पड़ता है, इसलिए यह एक राहत की बात है.’
अनंतनाग जिले में अल-करिया एकमात्र एसएचजी है जो ‘माई पैड, माई राइट’ परियोजना पर काम कर रहा है. अख्तर ने ग्रुप को इस तरह की अनूठी परियोजना शुरू करने का अवसर देने के लिए नाबार्ड का आभार व्यक्त किया. उन्हें उनके जिले के लोगों और मीडिया के लोगों ने कश्मीर की ‘पैडवुमन’ का खिताब दिया है.
‘मासिक धर्म स्वच्छता, महिलाओं के स्वास्थ्य और युवा लड़कियों के सामने आने वाली समस्याओं के बारे में बहुत कम चर्चा होती थी. जब मेरे गांव में लड़कियों तक मासिक धर्म के उत्पादों की पहुंच नहीं होती थी, तो उन्हें काफी समस्या होती थी. मुझे यह कहते हुए गर्व हो रहा है कि हम महिलाओं को उनके मासिक धर्म स्वास्थ्य के बारे में चर्चा में शामिल करके, युवा लड़कियों के बीच जागरूकता सत्र आयोजित करके और उन्हें इसके बारे में शिक्षित करके इस समस्या को कुछ हद तक दूर करने में सफल रहे हैं.’
अख्तर ने कहा कि वह अब तक जो कुछ करने में कामयाब रही हैं, उस पर गर्व है कि वह अपने उद्यम में आस-पास के गांवों की अधिक महिलाओं को शामिल करके मासिक धर्म स्वास्थ्य और स्वच्छता के बारे में जागरूकता बढ़ाने का मिशन जारी रखेंगी.
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