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Mother’s Day Special: डांसर गीता और शरण्या चंद्रन ने बताया मातृत्व और सेल्फ केयर से कैसे जुड़ा है ‘नृत्य’

मदर्स डे के मौके पर, एनडीटीवी-डेटॉल बनेगा स्वस्थ इंडिया की टीम ने गीता चंद्रन और शरण्या चंद्रन की मां-बेटी की जोड़ी से मातृत्व, सेल्फ केयर, मेंटल वेल-बीइंग और डांस को जागरूकता फैलाने के लिए इस्तेमाल करने पर वार्ता की

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इस मदर्स डे, मिलिए मां-बेटी की डांसर जोड़ी गीता और शरण्या चंद्रन से

नई दिल्ली: भरतनाट्यम डांसर और पद्म श्री पुरस्कार विजेता गीता चंद्रन कहती हैं कि “एक मां की भूमिका कभी खत्म नहीं होती और वह हमेशा बच्चे के लिए उपस्थित होती है.” गीता चंद्रन को उनकी मां ने 5 साल की उम्र में नृत्य और 7 साल की उम्र में कर्नाटक संगीत से परिचित कराया था. वह आगे कहती हैं, “शुरुआत में, एक मां की भूमिका बच्चे के प्रति शारीरिक रूप से होती है, उसके बाद बच्चे को शिक्षित करना, सर्वोत्तम मूल्य देना और जैसे-जैसे वे आगे बढ़ते हैं, उन्हें सही उम्र में सलाह देते रहने का काम रहता है. आपके लिए बच्चे को यह विश्वास दिलाना बहुत महत्वपूर्ण है कि आप उसके लिए हैं; आप उनसे हमेशा बातचीत करने और उन्हें सुनने के लिए हैं, यही मैं शरण्या (मेरी बेटी) के साथ आईं हूं और आगे भी करूंगी. यही-नहीं कई बार तो वह मेरी शिक्षिका होती है.”

गीता चंद्रन की बेटी शरण्या चंद्रन भी भरतनाट्यम डांसर और डेवलपमेंट इकोनॉमिस्ट हैं साथ ही में वो 3 साल के बच्चे की मां भी हैं. उन्होंने अपनी मां को अपनी दादी से सीखें हुए मूल्यों और परम्पराओं को आगे लाते हुए देखा हैं और वो भी अपनी मां के नक्शे कदमों पर चलना चाहती हैं. वह कहती हैं,

मैंने हमेशा अपनी मां को मेरी दादी के फिलॉसिपी को फॉलो करते हुए देखा है. मैं ऐसे महौल में बड़ी हुईं हूं जहां समय का बहुत मूल्य है और जहां जीवन एक फॉर्म में रहा है. वह एक रोल मॉडल की तरह थी. हम उनसे इसीलिए प्रेरित हैं क्योंकि वो हमेशा से ही मल्टीटास्किंग करती आईं हैं. वो हर काम बहुत ही खूबसूरती से निभाती हैं. मैं भी अब उनकी तरह ही काम करने की अपेक्षा रखती हूं.

मदर्स डे के मौके पर, एनडीटीवी-डेटॉल बनेगा स्वस्थ इंडिया की टीम ने गीता चंद्रन और शरण्या चंद्रन की मां-बेटी की जोड़ी से मातृत्व, सेल्फ केयर, मेंटल वेल-बीइंग और डांस को जागरूकता फैलाने के लिए इस्तेमाल करने पर वार्ता की.

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किसी की जिंदगी में मां का क्या महत्व होता है?

मां-बेटी की जोड़ी को लगता है कि “लगातार सीखना और सीखाना” उनके बीच का फंडा रहा है. शरण्या कहती हैं,

मेरी मां मेरी जिंदगी में 2 बड़ी भुमिकाएं निभाती हैं, एक मेरी जननी होने की और दूसरी गुरु होने की. यह मेरे लिए बहुत बड़ा आशीवार्द है कि वो मेरी मां होने के साथ-साथ एक दोस्त,गुरु,गाइड और को-कोरियोग्राफर भी हैं,हम दोनों साथ में स्टेज शेयर करते हैं और साथ ही में मैंने उनके लिए नट्टुवंगम भी किया हैं. उन्होंने ने भी मेरे लिए नट्टुवंगम किया हैं. इन बदलते किरदारों के संग रंग, कुदरत और रिश्ता भी अपने आप बदलता रहता है और हमारा रिश्ता लगातार सुख ही प्रदान करता आया है.

यह तो बात हो गई कि एक बेटी इस रिश्ते के बारे में क्या कहती है आइए आपको बताते है कि शरण्या की मां यानी गीता चंद्रन का क्या कहना है. वो कहती हैं,

यह सब कुछ एक जैसा ही है, जिन बातों के लिए मैं अपनी मां पर गुस्सा किया करती थी वही चीजें आज मैं अपनी बेटी के साथ किया करती हूं.

वो अपनी मां के साथ अपना रिश्ता खूबसूरत कहती हैं. और आगे कहती हैं कि,

मैं उससे किसी भी तरीके की बात साझा कर सकती हूं, यह बनावटी नहीं है, उसके साथ सब कुछ बिल्कुल पानी-सा साफ़ लगता है, वो मेरी सहेली पहले हैं फिर बेटी, उसके साथ घूमना, बातें करना और साथ रहना मन को बहुत लुभाता है. यह रिश्ता बराबरी का है.

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जागरूकता फैलाने के लिए नृत्य को एक उपकरण बनाना

गीता चंद्रन बताती हैं कि भरतनाट्यम एक नृत्य के रूप में मुख्य तरह से महिला केंद्रित है और अधिकतर कहानी एक नायिका के इर्द-गिर्द है जो या तो अपने दोस्त से या सीधे भगवान से बात कर रही हो या भक्ति में खोई हुईं हो. पारंपरिक प्रदर्शनों की लिस्ट में ऐसे कई रूपांतर हैं, और किसी-किसी को यह चुनने का मौका मिलता है कि उन्हें क्या करना है और क्या नहीं करना है.

नृत्य में बहुत सारी कम्पोजीशन हैं जिनसे हर तरह के मूड को व्यक्त किया जा सकता है. जैसे कि ‘अष्ट नायिका’ जिसमें आठ नायिकाएं होती हैं और ‘नवरस’ जिसमें हम 9 तरह के भावनाएं साझा कर सकते हैं. मुझे ऐसा लगता है कि नृत्य की मजबूत व्याकरण से सब कुछ साझा किया जा सकता है. एक कलाकार के तौर पर मुझ पर कई सोशल जिम्मेदारियां भी हैं, गीता जी ने आगे कहा.

गीता जी ने समाज के प्रति कलाकार के तौर पर अपनी जिम्मेदारी निभाते हुए अपने नृत्य से समाज के बुराईयों पर भी प्रकाश डाला हैं. उन्होंने सामाजिक शोषण के प्रति जागरूकता फैलाई हैं. जैसे कि जब उनकी सहेलियां टॉक्सिक शादी के बंधन में थी तब उन्होंने औरतों के सशक्तिकरण और उनकी समाज में जंग से जुड़े भागीदारी को दर्शाया हैं.

उन्होंने कहा कि,

हमने अपने नृत्य से यह साझा किया कि कैसे महाभारत का पुरा दोष द्रौपदी पर लगाया गया था और द्रौपदी को ही इस महायुद्ध का जिम्मेदार ठहराया गया था फिर भी द्रौपदी ने बड़ी सहजता से अंत में कहा कि वो इस बदले की आग को वहीं नष्ट करना चाहती हैं, उन्होंने काफी सह लिया और कहा कि “युद्ध हर अन्याय रुपी सवाल का जवाब नहीं होता.” हमने नृत्य की मदद से बहुत कुछ लोगों के मन और दिल तक पहुंचाया है और लोगों ने इसपर प्रतिक्रिया भी दी हैं. मुझे अपने नृत्य में कुछ मिलावट की जरूरत नहीं पड़ी बल्कि मैं भरतनाट्यम के स्पर्श को साथ लेकर चलती आईं और कहानी को एक नया मोड़ भी दे पाईं.

पद्म श्री पुरस्कार विजेता गीता चंद्रन ने डांस के जरिए महिला और महिला सशक्तिकरण की बात कही

उन्होंने अपने नृत्य से जेंडर, एनवायरनमेंट, स्टिग्मा और मल्टीपल रियलिटी को दर्शाया हैं. साल 2018 में, गीता चंद्रन ने शौचालय-उपयोग अभियान शुरू किया, जहां उन्होंने लोगों के स्वच्छ शौचालय के अधिकारों के बारें में आवाज़ उठाई थी. उन्होंने कहा, “आपको एक स्वच्छ शौचालय का अधिकार है, लेकिन आपके बाद शौच में कदम रखने वाले व्यक्ति को भी एक स्वच्छ शौचालय का समान अधिकार है.”

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अभियान के बारे में अधिक बात करते हुए वह कहती हैं,

देश-विदेश की यात्रा के बाद यह महसूस हुआ कि हम अपने बच्चों को शौचालय का उपयोग करना नहीं सिखाते हैं. वे बहुत बड़े घर से हो सकते हैं लेकिन वे अभी भी नहीं जानते कि एक बार बाहर आने के बाद शौचालय कैसे छोड़ना है और आने वाले अगले व्यक्ति को भी स्वच्छ शौचालय का अधिकार है. मैंने अपने स्टूडियो शौचालय से शुरुआत की, जहां मैंने देखना शुरू किया और यह पाया कि ये वे बच्चे हैं जो दिल्ली जैसे महानगरीय शहरों में पले-बढ़े हैं और बहुत अच्छे स्कूलों में जाते हैं लेकिन फिर भी वे पब्लिक शौचालय को साफ नहीं रखते. हमने अपनी ही जगह से शुरुआत की और हमने उन्हें पढ़ाना शुरू किया कि अगले व्यक्ति के लिए शौचालय को साफ रखना कितना महत्वपूर्ण है. मैं अपने हर कार्यक्रम में भी इसके बारे में बात करने लगी और इससे पहले कि मैं कोई कार्यक्रम शुरू करूं, मैं इससे जुड़ा एक तरह का संदेश कहती हूं और इसके बारे में सोचने के लिए दर्शकों पर छोड़ देती हूं.

जब हम स्वच्छता के बारे में बात करते हैं, तो हम महिलाओं के स्वास्थ्य और स्वच्छता, विशेष रूप से मासिक धर्म स्वच्छता को नजरअंदाज नहीं कर सकते हैं, जो आज भी कहीं न कहीं कालीन के नीचे छुपा हुआ है. जबकि भारत में ऐसी जगहें भी हैं जो मासिक धर्म को प्रजनन क्षमता के संकेत के रूप में ख़ुशी से मनाती हैं, तो वहीं भारत में अभी भी ऐसे स्थान हैं जहां महिलाओं को उनके मासिक धर्म के दौरान बहिष्कृत किया जाता है. आगे उन्होंने कहा,

मैं केरल से आती हूं और मुझे याद है कि मेरे पुश्तैनी घर में उन महिलाओं के लिए एक अलग कमरा था, जिनके पीरियड्स होते थे और खाना उन्हें दूर से फेंक दिया जाता था. वहां से अब मेरा परिवार चला गया है और मुझे लगता है कि एक पीढ़ीगत बदलाव है, और इस बदलाव में ‘पैडमैन’ जैसी फिल्में भी मदद कर रही हैं. मुझे लगता है कि हमें अभी भी इसके बारे में बात करने की जरूरत है; इसमें स्कूलों और शिक्षकों की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका है.

डांस,औरतें और सेल्फ-केयर

गीता चंद्रन का कहना है कि नृत्य केवल एक प्रदर्शनकारी कला नहीं है बल्कि यह एक उपकरण है और सभी के लिए इसका अलग अर्थ है. जबकि कुछ के लिए, नृत्य जैसी गतिविधि रचना है या कुछ अन्य लोगों के लिए एक सौंदर्य अनुभव है. कुछ इसे हमारी संस्कृति की एक कड़ी के रूप में देखते हैं और अन्य इसे संचार उपकरण या आध्यात्मिक अभ्यास के रूप में देखते हैं.

डांस में अलग-अलग तरह की खिड़कियां होती हैं जो आपके लिए अलग-अलग रास्ते खोलती है. डांस तक पहुंचना भी अपने आप में एक प्रक्रिया है जो सबसे पहले ख़ुशी से होकर गुजरता है. डांस आपको खुश रखता है और अपने आपको खुश रखना खुद का ख्याल रखने जैसा है. लॉकडाउन के दौरान, नृत्य जैसी गतिविधियां हमें अंधकार की ओर जाने से रोक रही थीं. हम शारीरिक रूप से सक्रिय होने के कारण आगे बढ़ रहे थे.वह कहती हैं, नृत्य ने लोगों का ध्यान केंद्रित किया जिससे उनके मन और बॉडी ने एक तालमेल बनाया जिससे सब लोग स्वस्थ नज़र आए.

डांसर गीता चंद्रन विभिन्न सामाजिक मुद्दों के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए डांस का उपयोग करती हैं

यह पूछे जाने पर कि जो महिलाएं दिन-ब-दिन कई काम करती हैं, वे अपना ख्याल कैसे रख सकती हैं, उनका यह मंत्र था, “अपने लिए एक घंटा” वह हर दिन अपने लिए एक घंटा निकालने और वह करने का सुझाव देती है जो आपको पसंद है.

समय ही जीवन का रस है. आपको अपने लिए कुछ समय रखने की जरूरत है कि या तो पढ़ने के लिए, टहलने जाएं, नृत्य करें, गाएं या यहां तक कि संगीत सुनें और एक कोने में बैठें और कुछ न करें. वह कहती हैं कि ‘मी-टाइम’ और ‘नथिंग-टाइम’ माताओं के लिए जरूरी हैं.

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