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पोषण माह 2023: न्यूट्रिशनिस्ट ईशी खोसला ने बताया कि पेट को कैसे हेल्दी रखें और लाइफस्टाइल से जुड़ी बीमारियों से कैसे निपटें

डॉ. ईशी खोसला ने एक हेल्दी लाइफ स्टाइल हासिल करने के लिए आंत को स्वस्थ यानी हेल्दी रखने पर जोर दिया, खासकर महिलाओं और बच्चों के बीच क्योंकि ये दोनों ही आंत से जुड़ी समस्याओं के प्रति ज्यादा संवेदनशील होते हैं. डॉ. खोसला ने उन खाद्य पदार्थों के बारे में बताया जो एनीमिया यानी खून की कमी और कई लाइफस्टाइल से संबंधित बीमारियों से निपटने में मददगार हैं

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डॉ. ईशी खोसला ने आजकल के तेजी से पॉपुलर होते नए फूड ऑप्शन जिनके पीछे हममें से ज्यादातर लोग भागते हैं उसकी तुलना में पारंपरिक भारतीय खाने और इससे स्वास्थ्य को होने वाले फायदों के बारे में बताया

नई दिल्ली: बच्चों और महिलाओं के बीच कुपोषण के स्तर को कम करने के लिए प्रधानमंत्री की व्यापक योजना ‘राष्ट्रीय पोषण माह’ जिसे नेशनल न्यूट्रीशनल मंथ के तौर पर भी जाना जाता है, अपने छठे वर्ष में प्रवेश कर रही है. इस मौके पर एनडीटीवी-डेटॉल बनेगा स्वस्थ इंडिया ने क्लिनिकल और पब्लिक हेल्थ न्यूट्रिशनिस्ट और 4-G कोड टू गुड हेल्थ की लेखिका डॉ. ईशी खोसला से बात की, जिन्होंने पेट के स्वास्थ्य में सुधार और जीवनशैली से जुड़ी कई बीमारियों से निपटने में पारंपरिक भारतीय खाने का महत्व बताया. विशेषज्ञ ने चर्चा के दौरान यह भी बताया की कि कैसे स्वदेशी खाद्य पदार्थ पोषण संबंधी जरूरतों को पूरा करने में मदद कर सकते हैं.

एनीमिया और लाइफस्टाइल से संबंधी बीमारियों से निपटने के लिए आंत का स्वस्थ रहना जरूरी है

डॉ. खोसला ने कहा हेल्थ से जुड़ी किसी भी चर्चा में आंत के स्वास्थ्य (Gut health) पर बातचीत करना जरूरी है.

हमारी आंत ही निर्धारित करती है कि हम कितने हेल्दी यानी स्वस्थ या बीमार हैं और हम कुपोषित हैं या नहीं. आंत में जो कुछ भी जाता है वह आंत की वनस्पतियों, आंत के सूक्ष्मजीवों और वहां रहने वाले छोटे कीड़ों (Bugs) द्वारा कंट्रोल किया जाता है. ये हमारे संपूर्ण स्वास्थ्य को नियंत्रित करते हैं.

डॉ. खोसला ने कहा कि महिलाओं और बच्चों पर खास ध्यान देना जरूरी होता है क्योंकि वे आंत से जुड़ी समस्याओं के प्रति ज्यादा संवेदनशील होते हैं.

महिलाओं में हार्मोनल परिवर्तन होते रहते हैं, चाहे वह मासिक धर्म (Menstrual) की वजह से हो, गर्भावस्था की, स्तनपान की वजह से या रजोनिवृत्ति यानी मेनोपॉज की वजह से हो, इसलिए इन सभी फेज में उन्हें आंत से संबंधित समस्याएं होने का खतरा ज्यादा होता है.

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डॉ. खोसला ने कहा कि लोगों को अपनी आंत के स्वास्थ्य में सुधार के लिए कुछ बातों पर ध्यान देने की जरूरत है:

  1. ट्रिगर होने वाले खाद्य पदार्थों को खाने में शामिल न करें और समझें कि आपके पेट को किस तरह के खाद्य पदार्थों से दिक्कत हो रही है. केमिकल, पेस्टिसाइड यानी कीटनाशक, प्रेजरवेटिव, ज्यादा शुगर और रंगों वाले खाद्य पदार्थों की जगह सही तरह के खाद्य पदार्थों को अपने खाने में शामिल करें.
  2. कुछ हेल्दी अनाज में रागी, बाजरा, ज्वार और चावल की स्वास्थ्यवर्धक किस्में शामिल हैं. वे आपकी आंत के माइक्रोबायोम को पनपने में मदद करते हैं.
  3. खाने में रिफाइंड तेलों की जगह पर हेल्दी फैट का इस्तेमाल करें. रेनबो डाइट फॉलो करने से भी मिलेगी मदद.
  4. शरीर में ‘अच्छे’ बैक्टीरिया को इंप्रूव करने के लिए डाइट में प्रोबायोटिक्स (Probiotics) और प्रीबायोटिक्स (Prebiotics) शामिल करें. इसके कुछ विकल्पों में दही, फरमेंटेड यानी खमीर उठा हुआ खाना और कांजी जैसे पेय शामिल हैं.
  5. चीनी से बनने वाले पदार्थों में चीनी की जगह गुड़ का इस्तेमाल करें.
  6. खाने में पत्तेदार सब्जियां और मुट्ठी भर मेवे, बीज और चने शामिल करें.
  7. शरीर में विटामिन डी, विटामिन बी12 और फोलिक एसिड जैसी कमियों को सप्लीमेंट लेकर पूरा करें.

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डॉ. खोसला ने शरीर में सही पोषक तत्वों को शामिल करने एवं एनीमिया और लाइफस्टाइल से संबंधित बीमारियों को रोकने के लिए एक बार के खाने में सब्जियों, फलों और अंकुरित अनाज को शामिल करने पर जोर दिया. पोषण विशेषज्ञ ने कहा,

यदि आप अपने पेट को सही रखते है इसका मतलब है कि आपके पास ज्यादातर स्वास्थ्य समस्याओं का समाधान है.

हमारे शरीर को पांच तरह के पोषण समूहों की जरूरत होती है

डॉ. खोसला ने खाद्य पदार्थों के पांच इंपोर्टेंट ग्रुप बताए जो ऑस्टियोपोरोसिस, ओबेसिटी यानी मोटापा, डायबिटीज, हाई ब्लड प्रेशर, ऑटो-इम्यून समस्याओं आदि जैसी कई बीमारियों से निपटने के लिए जरूरी हैं:

  1. कार्बोहाइड्रेट से भरपूर भोजन जिसमें अनाज शामिल हैं.
  2. प्रोटीन युक्त भोजन खाएं जिसमें दालें, अंकुरित अनाज, चना, बीन्स और राजमा शामिल हों.
  3. डेयरी प्रोडक्ट में दूध, पनीर और दही शामिल है.
  4. एनिमल प्रोटीन रिच फूड यानी पशु प्रोटीन युक्त भोजन में मछली, चिकन और अंडे शामिल हैं.
  5. अच्छे फैट और ऑयल में मेवे, बीज, घर का बना घी, मक्खन, नारियल का तेल और तिल का तेल शामिल है.

डॉ. खोसला ने इन फूड ग्रुप को डाइट में डिवाइड करने के लिए 5-स्टेप प्रोसेस के बारे में विस्तार से समझाया. फूड, एक्सरसाइज और सप्लीमेंट सही समय पर लेने की योजना बनाने से इसकी शुरुआत होती है. उसके बाद आता है कि ज्यादातर भोजन सूर्यास्त से पहले कर लेना चाहिए, क्योंकि उसके बाद हमारी पाचन शक्ति कमजोर हो जाती है. इसके अलावा खाना कब खाना है यह तय करने के साथ, खाने के लिए हेल्दी ऑप्शन चुनने की जरूरत है. अंत में हर रोज अपने एक खाने में प्रोटीन रिच फूड शामिल करना चाहिए चाहें वो एनिमल प्रोटीन हो या प्लांट बेस्ड प्रोटीन, और एक खाने में प्रोटेक्टिव फूड शामिल करें जिसमें सब्जियां, फल, अंकुरित अनाज, प्रोबायोटिक्स, प्रीबायोटिक्स और मसाले शामिल हैं. उन्होंने कहा कि शरीर को हाइड्रेट रखने के लिए पर्याप्त मात्रा में पानी और तरल पदार्थ लेना भी जरूरी है.

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डॉ. खोसला ने कहा कि हेल्दी रहने के लिए कोई मैजिक डाइट या फॉर्मूला नहीं है; यह एक जर्नी है. अच्छी बात यह है कि पिछले सालों की तुलना में अपनी आहार संबंधी आदतों में सुधार पर काम करने वाले लोगों की संख्या में वृद्धि हुई है.

न्यूट्रीशनल गोल और खाने की आदतें: ग्रामीण बनाम शहरी

डॉ. ईशी खोसला ने आज के पॉपुलर फूड आइटम जिनके पीछे हममें से ज्यादातर लोग भागते हैं की तुलना में पारंपरिक भारतीय खाने और उससे होने वाले फायदों के बारे में बताया. शहरी आबादी के पास खाने के काफी विकल्प मौजूद हैं, लेकिन उनमें से ज्यादातर स्वास्थ्य के लिए अच्छे नहीं होते हैं. वहीं ग्रामीण लोगों के पास खाने के बहुत सीमित विकल्प हो सकते हैं, जैसे उनकी पहुंच गांव में ही उगाए जाने वाले खाद्य पदार्थों तक सीमित हो सकती है, लेकिन वे विकल्प स्वास्थ्य के लिए बेहतर होते हैं. खाद्य पदार्थों के मामले में ग्रामीण लोगों को होने वाले फायदों के बारे में बात करते हुए डॉ. खोसला ने कहा,

ग्रामीण आबादी फायदे में है क्योंकि उनका भोजन कम टॉक्सिक एनवायरमेंट में उगाया जाता है; वे उन हानिकारक उत्पादों के संपर्क में नहीं आते हैं जिनका शहरी आबादी सामना करती है, खासतौर से प्रिजरवेटिव, ट्रांस फैट, एक्सेसिव शुगर वाले खाने के आइटम आदि. गांव के लोग सादा और बेहतर खाना खाते हैं.

पारंपरिक भारतीय खाने के फायदों के बारे में बात करते हुए डॉ. खोसला ने कहा,

पारंपरिक भारतीय खाने में दाल-चावल, बाजरा, सब्जियां और फल शामिल हैं, जो स्थानीय रूप से उगाए जाते हैं और एक स्वस्थ शरीर के निर्माण के लिए हमें बस इतना ही चाहिए होता है. समस्या शहरों में आती है, जहां पर हमारे पास खाने के कई ऑप्शन हैं, लेकिन वो हेल्दी नहीं होते हैं.

क्लिनिकल न्यूट्रीशनिस्ट डॉ. खोसला ने कहा कि ग्रामीण लोग हेल्दी, अनप्रोसेस्ड यानी असंसाधित अनाज का सेवन करते हैं. ग्रामीण खाने में चीनी का स्थान गुड़ ने ले लिया है. वे अपना प्रोटीन दाल, सत्तू आदि से प्राप्त करते हैं. फलों में करौंदा, ब्लैकबेरी, क्रैनबेरी और फालसा कई ग्रामीण क्षेत्रों में आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं. इसके अलावा वे घर का बना घी, सरसों का तेल और तिल के तेल के रूप में बेहतर तरह के वसा यानी फैट का सेवन करते हैं. शहरों की तुलना में ग्रामीण इलाकों में दूध और डेयरी उत्पाद भी कहीं ज्यादा शुद्ध होते हैं.

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