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हमारे शिशुओं की सुरक्षा: नवजात मृत्यु दर से निपटने के उपाय

इंसान की जिंदगी के पहले 28 दिन बड़े ही संवेदनशील होते हैं, इस दौरान बीमारी और मौत का खतरा सबसे अधिक होता है

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यह नवजात एक महीने से कम उम्र का है

नई दिल्ली: नन्ही लक्ष्मी जब सो जाती है, तो उसकी मां उसके सिर को धीरे से सहलाती है. यह प्यार की सबसे सुंदर तस्वीर तभी हो सकती थी, जब तक यह जोड़ी अस्पताल से न जुड़ी होती.

समय से पहले जन्मी लक्ष्मी के फेफड़े पूरी तरह से विकसित नहीं हैं, जिसके कारण उसे सांस लेने में काफी तकलीफ होती है. बच्‍ची को वेंटिलेटर पर हर एक सांस के लिए लड़ते हुए देखकर उसकी मां का दिल दुखता है. लेकिन उसे उम्‍मीद है.

सर गंगा राम अस्पताल में नियोनेटोलॉजी विभाग की अध्यक्ष, पद्म भूषण डॉ. नीलम क्लेर कहती हैं कि “समय से पहले जन्मे शिशुओं में संक्रमण काफी आम बात है.”

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डॉ. क्लेर नियोनेटोलॉजी में विशेषज्ञ हैं. वह 0-28 दिन के बच्चों की स्वास्थ्य संबंधी जरूरतों का ध्यान रखती हैं.

नवजात शिशु सबसे ज्‍यादा सेंसिटिव होता है और इस दौरान बीमारी और मृत्यु का खतरा सबसे अधिक होता है. समय से पहले जन्म होने पर संक्रमण, जन्म के समय सांस की समस्‍या, जन्मजात बीमारियों का रिस्‍क इस दौरान काफी बढ़ जाता है.

डॉ. क्लेर कहती हैं कि नवजात मृत्यु दर में 5 साल से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु दर 40-50 प्रतिशत है. उन्होंने कहा,

मरने वाले लगभग 40-50 प्रतिशत बच्चे समय से पहले या जन्म के समय कम वजन वाले होते हैं. उनमें से लगभग 20 प्रतिशत को सेप्सिस हो सकता है; 15-18 प्रतिशत को श्वास की समस्‍या हो सकती है, 9-10 प्रतिशत शिशुओं में जन्मजात विकृतियां हो सकती हैं, जिसके परिणामस्वरूप उनकी मृत्यु हो सकती है.

नवजात मृत्यु दर के रोकधाम के उपाय

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 के अनुसार, भारत में नवजात मृत्यु दर 2015-16 में प्रति 1,000 जीवित जन्मों पर 29.5 से घटकर 2019-21 में 24.9 हो गई है. इस गिरावट की प्रवृत्ति को बरकरार रखने के लिए, डॉ क्लेर सुझाव देती हैं:

  1. मातृ स्वास्थ्य में सुधार
  2. विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवा की आसान पहुंच
  3. नवजात आईसीयू में अधिक बिस्तर और सुविधाएं
  4. जन्म के समय बेहतर प्रसवपूर्व देखभाल और कुशल देखभाल

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