कोई पीछे नहीं रहेगा
जेंडर इक्वलिटी और महिला सशक्तिकरण की मिसाल पेश कर रहे हैं तेलंगाना के चेंचू आदिवासी
NDTV-डेटॉल बनेगा स्वस्थ इंडिया ने चेंचू जनजाति के दो कपल्स से यह जानने के लिए बात की, कि वे कमाई के साथ-साथ घर और बच्चों की जिम्मेदारियों को कैसे बांटते हैं
नई दिल्ली: किसी भी देश की प्रगति इस बात पर निर्भर करती है कि वहां की महिलाओं के विकास पर कितना काम किया जा रहा है. इसीलिए, जेंडर इक्वलिटी न केवल एक मौलिक अधिकार है, बल्कि एक शांतिपूर्ण और समृद्ध समाज का आधार है. ऐसे ही तेलंगाना के अमराबाद टाइगर रिजर्व क्षेत्र में रहने वाले आदिवासी समुदाय के लोग, देश के बाकी हिस्सों के लिए जेंडर इक्वलिटी और महिला सशक्तिकरण की एक मिसाल पेश कर रहे हैं.
NDTV-डेटॉल बनेगा स्वस्थ इंडिया ने चेंचू जनजाति की राज्यलक्ष्मी और दसारी अंजनेयुलु से मुलाकात की. इन दोनों की शादी को 8 साल पूरे हो चुके हैं. वे अमराबाद में अपने 3 बच्चों के साथ रहते हैं.
अपनी शादी की शुरुआत से ही, कपल ने अपने घर और बच्चों की जिम्मेदारियों को बराबर शेयर किया है. अपनी सामुदायिक संस्कृति के बारे में बात करते हुए राज्यलक्ष्मी ने बताया,
पहले दोनों पति-पत्नी में खूब लड़ाई होती थी. समाज में केवल पुरुषों को ही घर से बाहर जाकर काम करने की इजाजत थी, लेकिन अब स्थिति बहुत अलग है. अब पुरुष और महिला दोनों काम पर जाते हैं. इसे ही जेंडर इक्वलिटी कहते हैं. मुझे ये कहते हुए गर्व हो रहा है कि मेरे पति मुझे बहुत सपोर्ट करते हैं. हम हर बात साझा करते हैं, उस पर चर्चा करते हैं और फिर काम करते हैं.
उसने कहा कि चेंचू समुदाय में सभी अपनी जिम्मेदारियां बांट लेते हैं. पति घर के सभी कामों में पत्नी का हाथ बंटाता है.
राजलक्ष्मी के पति अंजनेयुलु ने कहा कि पत्नी पुरुष के जीवन का अहम हिस्सा होती है. एक कामयाब रिश्ते का राज कपल के बीच में अच्छी समझ होती है. दोनों के बीच अच्छी समझ होनी चाहिए. एक पुरुष के लिए अपनी पत्नी और बच्चों की मदद और उनकी सुरक्षा करना जरुरी है. उसने कहा,
हम एक साथ रहते हैं और हम दोनों समान हैं, खासकर बच्चों के साथ. मेरा मानना है कि एक पति को हमेशा पत्नी का सपोर्ट सिस्टम होना चाहिए और उसके कठिन समय में उसके साथ खड़ा रहना चाहिए.
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केवल गांवों में ही नहीं, वन क्षेत्रों में भी रहने वाले चेंचू समुदाय के लोगों के बीच भी यही मान्यता है. वे सभी अपने साथी को अपने बराबर ही मानते हैं.
चेंचू समुदाय के ही, लिंगया और लिंगमा मल्लापुर पेंटा में अमराबाद फॉरेस्ट रिजर्व क्षेत्र में रहते हैं. समुदाय से संबंधित किसी भी मामले पर निर्णय लेने और गांव के कामकाज के बारे में बात करते हुए लिंगया ने कहा,
हमारे यहां, चाहे कोई भी अवसर या आर्थिक मामला हो, गांव में हर कोई मिलता है और चर्चा करता है कि क्या किया जाना चाहिए.
अपने कर्तव्यों और जिम्मेदारियों के बारे में बात करते हुए, कपल ने कहा कि एक-दूसरे की व्यवहार्यता के हिसाब से काम बटा हुआ है. पति-पत्नी ने बताया,
जब मैं जंगल जाकर चीजें इकट्ठा करता हूं और घर पहुंचता हूं, तब मेरी पत्नी गांव में अंडे, दाल और बाकी फूड आइटम्स के सप्लाई और डिस्ट्रीब्यूशन का काम करती है. हम दोनों खुशी-खुशी कमा रहे हैं. हमारा घर हम दोनों के नाम पर है.
लिंगमा ने अपने पति के व्यवहार में बदलाव के बाद से बेहतर हुई चीजों के बारे में कहा,
मेरे पति का व्यवहार काफी बदल गया है. वो पहले जैसे नहीं रहे हैं. मैं खुश हूं कि मुझे काम मिल गया है और हमने अपने काम को भी बांट लिया है. इससे बाहर और घर के कई काम आसान हो गए हैं. हम अपने बेटे को डॉक्टर बनाना चाहते हैं और उसके लिए हम दोनों मिलकर कमाएंगे.
चेंचू एक कमजोर जनजाति है, जो देश के अंदरूनी इलाकों में रहते हैं. लेकिन अगर आप उनकी सोच को जानेंगे, तब आपको पता चलेगा कि वे बाकी लोगों के बजाय काफी प्रगतिशील तरीके से आगे बढ़ रहे हैं. इस जनजाति में ना केवल पति-पत्नी अपनी जिम्मेदारियों को बांटते हैं, बल्कि संपत्ति और जमीन भी शेयर करते हैं.
लिंगमा और लिंगया के घर में पत्नी घर की पहली मालकिन है. सच में यही असली जेंडर इक्वलिटी है.
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