कोई पीछे नहीं रहेगा
नक्षत्र की कहानी: वह लड़का जिसने खुद की पहचान बनाने की कोशिश की
नक्षत्र को हाल ही में ट्रांसजेंडर अवार्ड्स 2024 में पाथब्रेकर अवार्ड से सम्मानित किया गया था. उन्होंने बदलती नीतियों में एक बेंचमार्क स्थापित करने और कम्युनिटी की आवाज को उठाने की कोशिश की है
नई दिल्ली: फ्रॉक पहने एक लड़का सबकी नजरों में आने लगा था. ये बच्चा था नक्षत्र. उसे यह पसंद नहीं आया, इसलिए उसने चुपचाप प्रार्थना की. उसने भगवान से उस गलती को सुधारने के लिए प्रार्थना की, जो उसने एक लड़की में बदलकर की थी. नक्षत्र ने कहा, “जैसे-जैसे मैं बड़ा होता गया, मैं और ज्यादा असहज महसूस करने लगा. जब मैं हाई स्कूल पहुंचा, तो मुझे जो असुविधा महसूस हुई, वह आक्रामकता और आत्म-संदेह में बदल गई. इतना ही नहीं मैंने 15 साल की उम्र में अपना जीवन समाप्त करने का फैसला कर लिया.”
लेकिन नक्षत्र को जीना था. उसके भाई उसे बचाने आए. जल्द ही, उसके माता-पिता भी उसके साथ आकर खड़े हो गए.
एक मल्टीनेशनल कंपनी में एसोसिएट नक्षत्र कहते हैं, ”हमें समर्थन और प्यार के अलावा कुछ नहीं चाहिए.” जब उनसे उन यादों में से एक के बारे में पूछा गया, जहां उनकी जेंडर आइडेंटिटी का पॉजिटिव इम्पैक्ट पड़ा, तो उन्होंने आगे कहा,
मैं अपनी कंपनी में शामिल होने वाला पहला ट्रांस पुरुष था. मेरी भर्ती के बाद, कंपनी ने अतिरिक्त 20 ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को काम पर रखते हुए समावेशिता को अपनाया. यह माइलस्टोन मेरी प्रमुख यादों में दर्ज है, जो प्रगति और स्वीकृति का एक प्रमाण है.
नक्षत्र को हाल ही में ट्रांसजेंडर अवार्ड्स 2024 में पाथब्रेकर अवार्ड से सम्मानित किया गया था. उन्होंने बदलती नीतियों में एक बेंचमार्क स्थापित करने और कम्युनिटी की आवाज को उठाने की कोशिश की है.
कार्यक्रम के दौरान समुदाय के उत्थान में उनके योगदान के लिए सम्मानित किए गए कई अन्य लोगों में तेलंगाना के पहले ट्रांसजेंडर कल्याण बोर्ड के सदस्य रचना मुद्राबॉयिना, एवं सम्मानित ट्रांसजेंडर कार्यकर्ता गौरी सावंत और लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी शामिल थे.
अपने अनुभव से सीखी हुई यादों के बारे में विचार करते हुए, जहां उनकी जेंडर आइडेंटिटी ने एक महत्वपूर्ण प्रभाव डाला, रचना ने शेयर किया,
मैं भारत के पहले ट्रांसजेंडर क्लिनिक में कार्यरत एक ट्रांस हेल्थ एक्टपर्ट हूं. मैं काफी लंबे समय से अपने समुदाय के कानूनी अधिकारों की वकालत और उनके लिए लड़ाई लड़ रही हूं. ऐसा लगता है कि मेरे प्रयास सफल हुए हैं! एक ट्रांसजेंडर कल्याण बोर्ड मेरे राज्य तेलंगाना में स्थापित किया गया है.
गौरी सावंत ने उस पल को याद किया, जब 2014 में NALSA फैसले के साथ ट्रांसजेंडर समुदाय को कानूनी रूप से पहचान मिली थी.
सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई थी. मैं याचिकाकर्ताओं में से एक थी. यह वह मैमोरी है, जिसे मैं कभी नहीं भूलूंगी! इस याचिका के कारण, हमें तीसरे लिंग के रूप में मान्यता मिली. यह न्याय है!