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भारत में ग्रामीण स्वास्थ्य सेवा की रीढ़ है हेल्थकेयर की प्राइमरी यूनिट
आशा कार्यकर्ता, आंगनवाड़ी कार्यकर्ता (AWW) और सहायक नर्स मिड-वाइव्स (ANM), ग्रामीण आबादी खासकर कमजोर समूहों को सुलभ, सस्ती और गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य देखभाल देने के लिए राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के तहत काम करती हैं
नई दिल्ली: इस साल मई में विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने स्वास्थ्य की रक्षा और बढ़ावा देने की दिशा में योगदान देने के लिए भारत की मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं (आशा) को मान्यता दी थी. आशा कार्यकर्ता डब्ल्यूएचओ महानिदेशक के ग्लोबल हेल्थ लीडर्स अवार्ड के छह प्राप्तकर्ताओं में से एक थीं, जिन्हें 75वीं विश्व स्वास्थ्य सभा में सम्मानित किया गया था. ‘आशा’, एक हिंदी शब्द है, जिसका अर्थ ‘उम्मीद’ है, यह भारत में दस लाख से अधिक मान्यता प्राप्त महिला स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को संदर्भित करता है, जो प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं को सुनिश्चित करने के लिए समुदाय को स्वास्थ्य प्रणाली से जोड़ती हैं.
भारत में प्राथमिक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं का समूह आशा कार्यकर्ता– अन्य दो आंगनवाड़ी कार्यकर्ता (एडब्ल्यूडब्ल्यू) और सहायक नर्स मिड-वाइव्स (एएनएम) हैं. वे ग्रामीण आबादी, विशेष रूप से कमजोर समूहों को सुलभ, वहनीय और गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य देखभाल देने के लिए प्रधानमंत्री द्वारा 12 अप्रैल, 2005 को शुरू किए गए राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (एनआरएचएम) के अंतर्गत मिलकर काम करती हैं.
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स्वास्थ्य सूचकांकों में सुधार लाने के लिए भारत में स्वास्थ्य सेवा की प्राथमिक इकाई की भूमिका:
- राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के प्रमुख घटकों में से एक देश के प्रत्येक गांव को एक ट्रेंड महिला सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता यानी आशा प्रदान करना है. वे ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में विशेष रूप से महिलाओं और बच्चों के लिए प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय (MoHFW) की सहायता करने वालीं जमीनी स्तर की स्वास्थ्य कार्यकर्ता हैं. आशा टीके से रोकी जा सकने वाली बीमारियों के खिलाफ, बच्चों के लिए मातृ देखभाल, ट्यूबरक्लोसिस, नेगलेक्टेड ट्रॉपिकल बीमारी, संचारी रोग की रोकथाम, कंट्रोल, पोषण, स्वच्छता और स्वस्थ जीवन के लिए टीकाकरण कराने के लिए प्रेरित करती हैं.
- आशा कार्यकर्ताओं को डायरिया, बुखार, सामान्य और बीमार नवजात बच्चों की केयर, बचपन की बीमारियों और प्राथमिक चिकित्सा जैसी छोटी बीमारियों के लिए प्राथमिक संपर्क हेल्थ केयर या सामुदायिक स्तर की उपचारात्मक देखभाल देने के लिए ज्ञान और दवा किट भी दी गई है. वे आवश्यक हेल्थ प्रोडक्ट के लिए एक डिपो होल्डर के रूप में भी काम करती हैं. जिनकी स्थानीय समुदाय को किसी भी समय आवश्यकता हो सकती है. इसमें ओरल रिहाइड्रेशन थेरेपी पैकेट (ओआरएस), आयरन फोलिक एसिड टैबलेट (आईएफए), क्लोरोक्वीन, डिस्पोजेबल डिलीवरी किट (डीडीके), ओरल पिल्स और कंडोम शामिल हैं.
- वह महिलाओं और परिवारों को जन्म की तैयारी, सेफ डिलीवरी, ब्रेस्टफीड और पूरक आहार, टीकाकरण, गर्भनिरोधक और रिप्रोडक्टिव ट्रेक्ट इंफेक्शन/सेक्चुअल ट्रेक्ट इंफेक्शन (आरटीआई / एसटीआई) और छोटे बच्चे की केयर समेत अन्य इंफेक्शन की रोकथाम के बारे में सलाह देती हैं.
- आंगनवाड़ी कार्यकर्ता महिला स्वयंसेवक हैं जो महिला और बाल विकास मंत्रालय (एमडब्ल्यूसीडी) द्वारा 2 अक्टूबर, 1975 को शुरू किए गए एकीकृत बाल विकास सेवा (आईसीडीएस) कार्यक्रम के तहत सेवाएं देती हैं, ताकि सभी गर्भवती महिलाओं, स्तनपान कराने वाली माताओं और 0-6 वर्ष के आयु वर्ग के बच्चों में कुपोषण से निपटा जा सके. देश में 25 लाख से अधिक आंगनवाड़ी कार्यकर्ता और हेल्पर हैं. उनके द्वारा किए गए कामों में बच्चों को सप्लीमेंट्री न्यूट्रीशन, न्यूट्रीशन और हेल्थ एजुकेशन, हेल्थ टेस्ट, टीकाकरण और प्री-स्कूल इनफॉर्मल एजुकेशन देना है.
- राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के अंतर्गत हर सब हेल्थ सेंटर (एसएचसी) पर कम से कम दो हेल्पर नर्स मिड-वाइव्स (एएनएम) दी जाती हैं. एएनएम महत्वपूर्ण हिस्सा हैं जो आशा और समुदायों को पब्लिक हेल्थ प्रोग्राम से जोड़ती हैं. इन वर्षों में, ट्रेडिशनल रिप्रोडक्टिव और चाइल्ड हेल्थ केंद्रित कार्यों के साथ कम्युनिकेबल एंड नॉन कम्युनिकेबल डिसीसिस को संबोधित करने के लिए उनकी भूमिका का विस्तार हुआ है.
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स्वास्थ्य सेवा की प्राथमिक डिलीवरी को मजबूत बनाना
एएनएम को सरकारी वेतन दिया जाता है, जबकि आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को मानदेय दिया जाता है और आशा नियमित कार्यों के लिए एक निश्चित राशि के साथ-साथ एक्टिविटी बेस्ड इंसेंटिव की हकदार होती हैं. हर इंस्टीट्यूशनल डिलीवरी के लिए आशा को ग्रामीण क्षेत्रों से 300 रुपये और शहरी क्षेत्रों से 200 रुपये मिलते हैं. इसी तरह, एक वर्ष से कम उम्र के बच्चे के पूर्ण टीकाकरण के 100 रुपये दिए जाते हैं.
कई आंगनवाड़ी और आशा कार्यकर्ताओं का मानना है कि उन्हें कम वेतन दिया जाता है और उनसे अधिक काम करवाया जाता है. वे बिना किसी हेल्थ इंश्योरेंस के अपनी जान जोखिम में डालकर कोविड-19 महामारी के खिलाफ भारत की लड़ाई में सबसे आगे थीं. कम पारिश्रमिक, किसी भी सामाजिक सुरक्षा के बिना और पर्याप्त बुनियादी ढांचे की कमी, यह कुछ ऐसी चुनौतियां हैं जिनका वे सामना कर रही हैं. हालांकि, आंगनवाड़ी वर्कर्स वेलफेयर एसोसिएशन, केरल की चेयरपर्सन कार्तियानी वीसी के अनुसार, अन्य राज्यों के विपरीत, राज्य सरकार उन्हें पेंशन और मुफ्त चिकित्सा देखभाल जैसे लाभ देती है.
ओडिशा सरकार में राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन, सामुदायिक प्रक्रिया के वरिष्ठ सलाहकार सुशांत कुमार नायक 2008 से राज्य में आशा प्रोग्राम को मैनेज कर रहे हैं. उनका मानना है कि आशा कार्यकर्ताओं की अपस्किलिंग के साथ-साथ इंसेंटिव भी महत्वपूर्ण है. उन्होंने कहा,
हमें यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है, कि सभी आशा कार्यकर्ता प्रेरित महसूस करें और सुनिश्चित करें कि उनकी सर्विस अच्छी तरह से की जा रही हैं. ओडिशा में, हम हर साल आशा कार्यकर्ताओं के इंसेंटिव को बढ़ाना सुनिश्चित करते हैं, ताकि वह सभी अपना काम करने के लिए प्रेरित रह सकें. भारत को आशा कार्यकर्ताओं को मिलने वाले वेतन की राशि में भी वृद्धि करने की आवश्यकता है. पिछले कुछ वर्षों में उनके द्वारा किए जाने वाले कार्यों और गतिविधियों की संख्या में वृद्धि हुई है. साथ ही, हमें उन्हें मासिक भुगतान करने, उनका उत्थान करने और उनकी स्थिति को मजबूत करने की आवश्यकता है.
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