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केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय, वेक्टर जनित रोग नियंत्रण बोर्ड ने नेग्लेक्टेड ट्रॉपिकल डिजीज के खिलाफ भारत की लड़ाई की प्रतिबद्धता दोहराई
एनटीडी से निपटने में वैश्विक एकता के प्रतीक के रूप में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय एवं राष्ट्रीय वेक्टर जनित रोग नियंत्रण केंद्र (एनसीवीबीडी) ने नई दिल्ली रेलवे स्टेशन को बैंगनी और नारंगी रंग में रोशन किया
नई दिल्ली: दुनिया भर की सबसे गरीब आबादी पर नेग्लेक्टेड ट्रॉपिकल डिजीज (एनटीडी) के विनाशकारी प्रभाव के बारे में बेहतर जागरूकता पैदा करने के उद्देश्य से दुनिया भर में 30 जनवरी को विश्व उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोग (एनटीडी) दिवस मनाया गया. विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार, उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोग (एनटीडी) 20 रोगों का एक बड़ा समूह है, जिसमें गिनी वर्म, चिकनगुनिया, डेंगू, काला अजार (विसेरल लीशमनियासिस), और एलिफेंटाइसिस (लिंफेटिक फाइलेरियासिस) शामिल हैं. भारत में इनमें से 12 एनटीडी पाई जाती हैं.
एनटीडी से निपटने में वैश्विक एकता को प्रदर्शित करने के लिए स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय एवं राष्ट्रीय वेक्टर जनित रोग नियंत्रण केंद्र (एनसीवीबीडी) ने नई दिल्ली रेलवे स्टेशन को बैंगनी और नारंगी रंग में रोशन किया. एनटीडी के बारे में जागरूकता बढ़ाने और उनके उन्मूलन के लिए देश की प्रतिबद्धता को प्रदर्शित करने के लिए यह पहल की गई थी.
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इस पहल में शामिल होते हुए स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के संयुक्त सचिव, राजीव मांझी ने नेग्लेक्टेड ट्रॉपिकल डिजीज (एनटीडीएस) से निपटने में देश के प्रयासों की सराहना की और इन स्थितियों को खत्म करने के साझा लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए ग्लोबल भागीदारों के साथ देश के सहयोग पर जोर दिया. उन्होंने कहा,
‘यह रोशनी सिर्फ दिखावटी नजारे से कहीं अधिक है, क्योंकि यह वैश्विक ताकतों के साथ सहयोग करने और एनटीडी को खत्म करने के वैश्विक लक्ष्य की दिशा में आगे बढ़ने के भारत के संकल्प का प्रतीक है. इन अक्सर नजरअंदाज की जाने वाली बीमारियों के उन्मूलन की दिशा में आगे बढ़ने के प्रयास में भारत ने पिछले साल नेग्लेक्टेड ट्रॉपिकल डिजीज (एनटीडी) को ‘प्राथमिकता प्राप्त’ ट्रॉपिकल डिजीज (पीटीडी) के रूप में नया वर्गीकरण करने की घोषणा की, जो ‘नेग्लेक्टेड’ ट्रॉपिकल डिसीज से हटकर है. इस प्रकार हम इन बीमारियों के खिलाफ अपनी लड़ाई जारी रखे हुए हैं, इन बीमारियों के बारे में सभी समुदाय के लोगों को जागरूक करना और देश में पाई जाने वाली सभी 11-12 प्रकार की एनटीडी को खत्म करने के लिए सभी का समर्थन प्राप्त करना बहुत जरूरी है.’
नेशनल सेंटर फॉर वेक्टर बोर्न डिजीज कंट्रोल (एनसीवीबीडी) की निदेशक डॉ. तनु जैन और संयुक्त निदेशक डॉ. छवि पंत जोशी ने भी एनटीडी को खत्म करने के लिए भारत की प्रतिबद्धता दोहराई और एनटीडी के उन्मूलन के लिए चल रही पहल पर प्रकाश डाला.
लिम्फैटिक फाइलेरियासिस के उन्मूलन के लिए कार्रवाई का आह्वान करते हुए डॉ. तनु जैन ने कहा,
‘उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोगों (एनटीडी) का उन्मूलन लगातार देश के लिए प्राथमिकता रही है. इनमें से लिम्फैटिक फाइलेरियासिस, जिसे आमतौर पर हाथी पांव के नाम से जाना जाता है, एक लाइलाज, लेकिन रोकथाम योग्य बीमारी है. यह मच्छरों के काटने से होती है. सार्वजनिक दवा वितरण (मास ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन, एमडीए) के दौरान दी जाने वाली निवारक दवाओं के सेवन से इस बीमारी के फैलाव को रोका जा सकता है. केंद्र सरकार वर्ष में दो बार, 10 फरवरी और 10 अगस्त को एमडीए राउंड के दौरान स्थानिक राज्यों में मुफ्त दवाएं प्रदान करती है. हालांकि सामुदायिक स्तर पर सक्रिय भागीदारी के बिना इस बीमारी को समाप्त नहीं किया जा सकता है. इसलिए, आप सभी से आग्रह है कि इन अभियानों के दौरान स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं द्वारा दी गई दवाओं का सेवन करें.’
भारत में उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोगों की व्यापकता और इसके उन्मूलन की दिशा में प्रयास
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार भारत 12 एनटीडी का एक बड़ा बोझ ढो रहा है, जिसमें लिम्फैटिक फाइलेरियासिस, विसेरल लीशमनियासिस, कुष्ठ रोग, डेंगू, रेबीज और मृदा-संचारित हेल्मिंथियासिस जैसे रोग शामिल हैं, जो विशेष रूप से समाज के उपेक्षित वर्ग को प्रभावित करते हैं. भारत में नेग्लेक्टेड ट्रॉपिकल डिसीज (एनटीडी) की व्यापकता के बारे में बात करते हुए, डॉ. गांगुली ने कहा,
वर्तमान में भारत में कुल एनटीडी-संवेदनशील आबादी लगभग 700 मिलियन है और दुनिया भर में कुल 1.7 बिलियन लोग इससे प्रभावित हैं. 20 एनटीडी में से लगभग 11-12 भारत में प्रचलित हैं और देश में मौजूद शीर्ष तीन एनटीडी काला अजार, एलिफेंटियासिस, कुष्ठ रोग हैं.’
बेहतर पक्ष यह है कि भारत ने अधिकांश एनटीडी को खत्म करने और उनमें से कुछ को उन्मूलन चरण के करीब लाने में महत्वपूर्ण प्रगति की है. डॉ. गांगुली ने इस बारे में विस्तार से बताते हुए कहा,
भारत ने 2000 में गिनी वर्म को खत्म कर दिया 2005 में सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए एक बड़े खतरे कुष्ठ रोग को खत्म किया जा चुका है और 2017 में संक्रामक ट्रैकोमा उन्मूलन चरण में आ गया. काला अजार की बात करें तो, देश के 90 प्रतिशत जिलों में इस बीमारी को खत्म कर दिया गया है. अब केवल छह जिले बचे हैं. इनमें से चार झारखंड में और दो बिहार में. तो, यह बहुत बड़ी प्रगति है, जो हमने की है. भारत में प्रचलित प्रमुख एनटीडी में से एक एलिफेंटिएसिस (लिम्फेटिक फाइलेरियासिस) के लिए, हमने लगभग 133 जिलों में सामूहिक दवा प्रशासन यानी मास ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन को बंद कर दिया है.
भारत में मौजूद एक अन्य प्रमुख एनटीडी लिम्फैटिक फाइलेरियासिस को भी पिछले साल कार्यवाही के केंद्र में लाया गया है. केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. मनसुख मंडाविया ने जनवरी 2023 में एक उन्नत पांच-आयामी रणनीति शुरू की और इन बीमारियों से निपटने में सक्रिय उपायों की दिशा में एक राजनीतिक बदलाव को रेखांकित करने के लिए एनटीडी को ‘प्राथमिकता प्राप्त’ उष्णकटिबंधीय रोगों (पीटीडी) यानी प्रियॉरटाइज्ड ट्रॉपिकल डिसीसेज के रूप में पुनर्वर्गीकृत किया.
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