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सर्वाधिक बचपन टीकाकरण कवरेज वाले शीर्ष देशों में शामिल है भारत : विश्व स्वास्थ्य संगठन

2022 के राष्ट्रीय टीकाकरण कवरेज के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन और यूनिसेफ ने मंगलवार (18 जुलाई) को अनुमान जारी किए. इसमें दर्शाया गया कि विश्व स्वास्थ्य संगठन के दक्षिण पूर्व एशिया क्षेत्र में डिप्थीरिया, काली खांसी और टिटेनस के टीकों यानी डीपीटी3 की कवरेज दर 91 प्रतिशत रही जो कि महामारी से पहले के स्तर की तुलना में और 2021 में 82 प्रतिशत के रिकॉर्ड से काफी बेहतर है

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डीपीटी वैक्सीन का पहला डोज भी जिन्हें नहीं मिला, ऐसे बच्चों की संख्या 2021 में 46 लाख थी, जो 2022 में आधी यानी 23 लाख रह गई है

नई दिल्ली: बच्चों के टीकाकरण के लिए की जा रही कोशिशों को और तेज किए जाने पर जोर देते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन ने मंगलवार (18 जुलाई) को इस बात पर फोकस करने की बात कही कि टीकाकरण से वंचित 23 लाख और आंशिक टीकाकरण का ही लाभ लेने वाले 6,50,000 बच्चों तक पहुंचना होगा. विश्व स्वास्थ्य संगठन के दक्षिण पूर्व एशियाई क्षेत्र ने सदस्य देशों को बच्चों के उस टीकाकरण कवरेज के लिए सरहाना की, जिसने महामारी से पहले के स्तर वाले आंकड़ों की लगभग बराबरी कर ली है.

विश्व स्वास्थ्य संगठन के दक्षिण पूर्व एशिया क्षेत्र की रीजनल डायरेक्टर डॉ पूनम खेत्रपाल सिंह ने कहा कि नियमित टीकाकरण के माध्यम से जानलेवा बीमारियों से सुरक्षा हर बच्चे को मिलनी चाहिए, यह उसका अधिकार है.उन्होंने कहा,

बेहतरीन कोशिशों और टीकाकरण सेवाओं की बहाली ने जिस तरह गति पकड़ी है, उसे बरकरार रखा ही जाना चाहिए ताकि हर बच्चे को एक स्वस्थ और उपयोगी जीवन प्राप्त हो सके.

वर्ष 2022 के राष्ट्रीय टीकाकरण कवरेज के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन और यूनिसेफ ने मंगलवार (18 जुलाई) को एस्टीमेट जारी किए. इसमें यह दर्शाया गया कि विश्व स्वास्थ्य संगठन के दक्षिण पूर्व एशिया क्षेत्र में डिप्थीरिया, काली खांसी और टिटेनस के टीकों यानी डीपीटी3 की कवरेज दर 91 प्रतिशत रही जो कि महामारी से पहले के स्तर की तुलना में और वर्ष 2021 में 82 प्रतिशत के रिकॉर्ड से काफी बेहतर दिखाई दी. इस क्षेत्र में 2021 की तुलना में 2022 में चेचक या खसरे के टीके के कवरेज में भी छह प्रतिशत का सुधार देखा गया और इस साल कवरेज दर 86 से 92 प्रतिशत हो गई.

जिन बच्चों को डीपीटी का पहला डोज भी नहीं दिया जा सका, उनकी संख्या वर्ष 2021 में 46 लाख थी, जो वर्ष 2022 में 23 लाख यानी पिछले साल से सिर्फ आधी रह गई.

इसी तरह टीकाकरण का लाभ आंशिक रूप से पाने वाले बच्चों – यानी जिन्हें डीपीटी टीके का कम से कम पहला डोज तो मिला है लेकिन तीन डोज की प्राथमिक सीरीज से ये बच्चे वंचित हैं – की संख्या 2021 में 13 लाख थी, जो 2022 में 6,50,000 रह गई.

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विश्व स्वास्थ्य संगठन के तमाम क्षेत्रों की तुलना की जाए तो दक्षिण पूर्व एशिया क्षेत्र में टीकाकरण मुहिम की बहाली सबसे बेहतर ढंग से हुई है. सिंह ने कहा कि इस उपलब्धि का बड़ा श्रेय भारत और इंडोनेशिया में की गई कोशिशों के हिस्से में जाता है.

उन्होंने कहा कि महामारी से पहले डीपीटी3 कवरेज का ऑल टाइम हाई आंकड़ा वर्ष 2019 में 91 प्रतिशत था जबकि भारत में 2022 में 93 प्रतिशत कवरेज दर्ज किया गया है, यानी यहां रिकॉर्ड तोड़ दिया गया है. यही नहीं, यह आंकड़ा 2021 के 85 प्रतिशत की तुलना में भी अच्छी खासी बढ़ोतरी दिखाता है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के दक्षिण पूर्व एशिया क्षेत्र की रीजनल डायरेक्टर ने कहा,

भविष्य की स्वास्थ्य आपात स्थितियों में अपनी क्षमताओं को मजबूत करने के बारे में हमने महामारी के दौर से सबक लिये, हमें उन देशों से सीख लेना ही चाहिए जिन्होंने महामारी से जूझने के समय में भी टीकाकरण की दर को वैसा ही बनाए रखा. ओवरऑल टीकाकरण कवरेज के स्तर जबकि अच्छे दिख रहे हैं और इसमें प्रगति भी उत्साहजनक नजर आ रही है, तब खास तौर से बड़ी आबादी वाले देशों के उप राष्ट्रीय स्तरों पर कवरेज में विभिन्नताएं भी दिखाई दे रही हैं. टीकाकरण कवरेज में असमानताओं के कारण टीकाकरण से वंचित बच्चों की संख्या बढ़ रही है, जिससे खसरा, डिप्थीरिया और अन्य टीका-रोकथाम योग्य बीमारियों के फैलने का खतरा पैदा हो गया है. सिंह ने कहा, इन कमियों को दूर किया जाना चाहिए

उन्होंने यह भी कहा कि टीकों से वंचित बच्चों को चिह्नित करने के लिए संबंधित देशों और सहयोगी एजेंसियों को अपनी कोशिशों को और तेज करना चाहिए. स्वास्थ्य अमले की क्षमताएं और मजबूत करने के साथ ही जोखिम वाली आबादी के प्रति बेहतर समझ व उनसे संवाद बनाने और हर बच्चे तक पहुंचने की कारगर रणनीतियां बनाने के प्रयास किए जाने चाहिए.

जीरो डोज बच्चे यानी जिन बच्चों को डीपीटी का पहला डोज भी नहीं मिल सका, उनकी संख्या 2021 में 46 लाख थी, जो 2022 में 23 लाख यानी आधी रह गई है. इसी तरह, आंशिक रूप से टीकाकृत हुए बच्चों यानी जिन्हें डीपीटी टीके का कम से कम पहला डोज तो मिला है लेकिन तीन डोज की प्राथमिक सीरीज से वंचित हैं, की संख्या 2021 में 13 लाख थी जो 2022 में 6,50,000 रह गई – यहां भी 50 प्रतिशत की कमी आई है.

रीजनल डायरेक्टर ने कहा कि विश्व स्वास्थ्य संगठन के तमाम क्षेत्रों की तुलना की जाए तो दक्षिण पूर्व एशिया क्षेत्र में टीकाकरण की बहाली सबसे बेहतर हुई है. इसका बड़ा श्रेय भारत और इंडोनेशिया में की गई व्यापक कोशिशों को दिया जाना चाहिए.

वर्ष 2022 में भारत ने डीपीटी3 का 93 प्रतिशत कवरेज दर्ज किया है, जो महामारी से पहले के रिकॉर्ड स्तर यानी 91 प्रतिशत की तुलना में भी अधिक है, और 2021 में 85 प्रतिशत के रिकॉर्ड से भी काफी बेहतर है.

इंडोनेशिया में डीपीटी3 टीकाकरण का कवेरज 85 प्रतिशत तक हुआ, यह महामारी से पहले के यानी 2019 के आंकड़े के बराबर पहुंच गया है. लेकिन इस देश ने 2021 में 67 प्रतिशत के कवरेज के लिहाज से टीकाकरण में बहुत तेज बहाली दर्ज की है.

डीपीटी3 कवरेज के मामले में भूटान 98 प्रतिशत और मालदीव 99 प्रतिशत के आंकड़ों के साथ महामारी के पहले की टीकाकरण दर के रिकॉर्ड से आगे निकल सके.

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कोविड-19 महामारी से निपटने के दौरान और उसके बाद नियमित टीकाकरण कवरेज में निरंतरता दिखाते हुए बांगलादेश में 98 प्रतिशत और थाईलैंड में 97 प्रतिशत कवरेज हुआ. डॉ खेत्रपाल सिंह ने कहा,

भविष्य में स्वास्थ्य संबंधी आपात स्थितियों में अपनी क्षमताओं को मजबूत करने के बारे में जबकि हमने महामारी के दौर से सबक लिये, तब हमें उन देशों से सीखना चाहिए जिन्होंने महामारी से जूझने के समय में भी टीकाकरण की दर को वैसा ही बनाए रखा. काफी कुछ हासिल किया जा चुका है और अभी काफी कुछ शेष भी है. ओवरऑल टीकाकरण कवरेज के स्तर जबकि अच्छे दिख रहे हैं और इसमें प्रगति उत्साहजनक भी, तब खास तौर से बड़ी आबादी वाले देशों के उप राष्ट्रीय स्तरों पर कवरेज में विभिन्नताएं भी नजर आ रही हैं. सिंह ने कहा कि टीकाकरण के असमान कवरेज के चलते ऐसा हुआ है कि स्थान विशेष में टीकों से वंचित बच्चों की संख्या ज्यादा हो गई है. ऐसे बच्चे चेचक, डिप्थीरिया और टीकों के जरिये टाली जा सकने वाली अन्य बीमारियों के खतरे में हैं. इस तरह की असमानताएं दूर की जानी चाहिए.

(यह स्टोरी एनडीटीवी स्टाफ द्वारा संपादित नहीं की गई है और एक सिंडिकेटेड फीड से प्रकाशित हुई है.)

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