ताज़ातरीन ख़बरें
World Neglected Tropical Diseases Day: NTD के उन्मूलन पर भारत की क्या स्थित है?
राष्ट्रीय वेक्टर बोर्न डिजिज कंट्रोल प्रोग्राम (एनवीबीडीसीपी) के पूर्व निदेशक डॉ. नीरज ढींगरा ने बनेगा स्वस्थ इंडिया टीम से उन बीमारियों और स्थितियों के बारे में बात की जो उपेक्षित हैं और भारत में प्रचलित हैं.
नई दिल्ली: निगलेक्टिड ट्रोपिकल डिजिज (एनटीडी) ट्रोपिकल एरिया में फेमस कई बीमारियों/स्थितियों का एक ग्रुप है. वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार, ये कई अफ्रीकी, एशियाई और लैटिन अमेरिकी देशों में पाए जा सकते हैं, जहां लोगों की पहुंच साफ पानी और स्वच्छता तक नहीं है. NTDs ने विश्व स्तर पर एक अरब से अधिक लोगों को प्रभावित किया है, और इनमें से कई रोग भारत में भी प्रचलित हैं. लोगों पर इसके विनाशकारी प्रभाव के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए 30 जनवरी को विश्व स्वास्थ्य सभा (WHA) वर्ल्ड निगलेक्टिड ट्रोपिकल डिजिज डे (NTDs) मनाती है. इस दिन के महत्व और उन मुद्दों पर प्रकाश डालने के लिए जिन पर ध्यान देने की जरूरत है, एनडीटीवी-डेटॉल बनेगा स्वस्थ इंडिया की टीम ने राष्ट्रीय वेक्टर बोर्न डिजिज कंट्रोल प्रोग्राम (एनवीबीडीसीपी) के पूर्व निदेशक और डब्ल्यूएचओ में NTD पर रणनीतिक और ग्रुप तकनीकी सलाहकार के सदस्य डॉ. नीरज ढींगरा से बात की.
एनडीटीवी: निगलेक्टिड ट्रोपिकल डिजिज क्या हैं और एनटीडी में ‘निगलेक्टिड‘ से क्या तात्पर्य है?
डॉ. नीरज ढींगरा: निगलेक्टिड ट्रोपिकल डिजिज (एनटीडी) में वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा सूचीबद्ध 20 स्थितियां शामिल हैं. ये रोग ज्यादातर ट्रोपिकल एरिया में फेमस हैं, जहां की जलवायु गर्म और आर्द्र रहती है. एनटीडी ज्यादातर गरीब समुदायों, विशेषकर महिलाओं और बच्चों को प्रभावित करते हैं. इसके अलावा, ये बहुत अधिक अस्वस्थता, सामाजिक-आर्थिक परिणाम का कारण बनते हैं. ये रोग कभी-कभी जटिल होते हैं क्योंकि उनका ट्रांसमिशन कई पर्यावरणीय स्थितियों से जुड़ा होता है. इनमें से कई स्थितियां वेक्टर जनित हैं, जानवरों के जलाशय हैं, और इनमें कॉम्प्लेक्स लाइफ साइकिल भी होता है. इसलिए, ये सभी कारक पब्लिक हेल्थ कंट्रोल को देश के लिए एक चुनौती बनाते हैं. जब हम ‘उपेक्षित‘ कहते हैं, तो हमारा मतलब है कि ये स्थितियां या बीमारियां ग्लोबल हेल्थ एजेंडे में नहीं थीं, और उनके इलाज के लिए निवेश और धन कम था. इसके अलावा, इनमें से कुछ बीमारियों से जुड़े सामाजिक कलंक और सामाजिक बहिष्कार ने भी इन बीमारियों की उपेक्षा में योगदान दिया है. इसलिए, एनटीडी से प्रभावित होने वाली आबादी के लिए उनके एजुकेशनल परिणाम और पेशेवर क्षमताएं भी प्रभावित होती हैं.
इसे भी पढ़ें: बुनियादी स्वास्थ्य देखभाल की कमी के कारण 2021 में हर 4.4 सेकंड में एक बच्चे या युवा की मौत: संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट
एनडीटीवी: ग्लोबल लेबल पर कितने लोगों को एक या दूसरे निगलेक्टिड ट्रोपिकल डिजिज (NTDs) होने का जोखिम है?
डॉ. नीरज ढींगरा: वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन (डब्ल्यूएचओ) का अनुमान है कि ग्लोबल लेवल पर लगभग 1.7 बिलियन लोगों को कम से कम एक एनटीडी के लिए रोकथाम और ट्रीटमेंट की जरूरत है. इसके अलावा, एनटीडी से अब तक ग्लोबल लेवल पर 2 लाख मौतें हुई हैं, और हर साल लगभग 19 मिलियन दिव्यांगता-समायोजित जीवन वर्ष एनटीडी के कारण खो जाते हैं. ये रोग मुख्य रूप से अविकसित और विकासशील देशों में पाए जाते हैं और इन देशों में इंडायरेक्ट हेल्थ कॉस्ट और उत्पादकता में कमी लाते हैं.
एनडीटीवी: भारत में फेमस टॉप चार-पांच निगलेक्टिड ट्रोपिकल डिजिज कौन से हैं?
डॉ. नीरज ढींगरा: भारत में, कई एनटीडी हैं, उदाहरण के लिए, काला अजार (आमतौर पर “ब्लैक फीवर” और वैज्ञानिक रूप से “विसरल लीशमैनियासिस” के रूप में जाना जाता है), लिम्फेटिक फाइलेरियासिस (आमतौर पर “एलिफेंटियासिस” के रूप में जाना जाता है), डेंगू, चिकनगुनिया , खाज, सांप का काटना आदि. लेकिन मैं आपको बता दूं, भारत ने कुछ अन्य एनटीडी के इलाज और उन्मूलन में बहुत अच्छा काम किया है, उदाहरण के लिए, देश ने गिनी कृमि रोग को सफलतापूर्वक खत्म किया है. हमने कुष्ठ और ट्रेकोमा के मामलों की संख्या में भी भारी कमी देखी है.
इसे भी पढ़ें: Omicron XBB 1.5 और BF.7: नए COVID वैरिएंट के बीच भारत की क्या स्थिति है?
एनडीटीवी: लगभग 670 मिलियन भारतीयों को लिम्फेटिक फाइलेरियासिस (LF) होने का खतरा है, जो इस बीमारी के ग्लोबल बोझ का 40 प्रतिशत वहन करता है. इन्हें रोकने में हमारी रणनीतियां क्या हैं?
डॉ. नीरज ढींगरा: हां, हमारे पास काफी बड़ी संख्या है. लेकिन यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि भारत उन कुछ देशों में से एक है जिसने लसीका फाइलेरिया (एलएफ) की रोकथाम के लिए बड़े पैमाने पर ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन का संचालन किया है. यदि आप एलएफ की रोकथाम को देखें, तो यह बहुत आसान है, क्योंकि हमारे पास इसके लिए दवाएं उपलब्ध हैं. हमने डायथाइलकार्बामाज़ीन के साथ शुरुआत की, उसके बाद एल्बेंडाज़ोल, और अब हम इवरमेक्टिन नामक तीसरी दवा का इस्तेमाल कर रहे हैं. एक व्यक्ति को इस दवा को साल में एक बार, लगातार, कुछ वर्षों तक, बीमारी के आधार पर लेना होता है. ये दवाएं परजीवियों और कृमि को मार देती हैं, और ट्रांसमिशन को और रोक दिया जाता है. लेकिन दवाएं तभी उपयोगी साबित होंगी, जब 65 फीसदी आबादी उनका सेवन करेगी और यह एक चुनौती बनी हुई है. इनमें से कुछ स्थितियों और दवाओं से जुड़ी गलत सूचनाओं और मिथकों के कारण लोग इसका पालन करने से बचते हैं. यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि भारत ने दवाओं के प्रशासन में काफी अच्छा प्रदर्शन किया है. लगभग 328 जिले ऐसे थे जिनमें एनटीडी क्षेत्र विशेष का था, लेकिन अब लगभग 131 जिले खतरे से बाहर हैं. हम भी उन कुछ देशों में से एक हैं जिन्होंने एलएफ के लिए तीसरी दवा का प्रबंध करना शुरू किया है और हमने जिलों में पायलट प्रोजेक्ट के साथ शुरुआत की है. सर्वे को छह महीने के अंदर एक प्रोग्राम में बदल दिया गया और इसे 31 जिलों तक बढ़ा दिया गया.
इसे भी पढ़ें: मिलें 15 साल की अनन्या से, जो ग्रामीण लड़कियों को मेंस्ट्रुअल हेल्थ पर जागरूक कर रही हैं
एनडीटीवी: निगलेक्टिड ट्रोपिकल डिजिज से निपटने के लिए कौन से प्रमुख प्रोग्राम मौजूद हैं?
डॉ. नीरज ढींगरा: भारत में कई एनटीडी के लिए विभिन्न प्रोग्राम हैं, उदाहरण के लिए, हमारे पास लसीका फाइलेरिया को खत्म करने के लिए नेशनल प्रोग्राम है, जिसे राष्ट्रीय वेक्टर जनित रोग कंट्रोल प्रोग्राम (एनवीबीडीसीपी) द्वारा मैनेज किया जाता है. इसके अलावा, हमारे पास स्वास्थ्य मंत्रालय के तहत काला अजार से संबंधित उन्मूलन कार्यक्रम, मृदा-संचारित कृमि के लिए कृमिनाशक कार्यक्रम हैं. इसके अतिरिक्त, हमारे पास राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) की छत्रछाया में एनवीबीडीसीपी, राष्ट्रीय कुष्ठ उन्मूलन कार्यक्रम के तहत डेंगू और चिकनगुनिया के लिए उन्मूलन कार्यक्रम हैं. भारत ने पोलियो और गिनी कृमि रोग का सफलतापूर्वक उन्मूलन किया है, इसलिए इससे सीखे गए सबक का उपयोग अन्य एनटीडी के उन्मूलन के लिए किया जा सकता है.