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विश्व पर्यावरण दिवस: कैसे ये सफाई साथी हिमालय को कचरे का पहाड़ बनने से बचा रहे हैं

ये सफाई साथी गैर-सरकारी संगठन ‘वेस्ट वॉरियर्स’ के साथ काम कर रहे हैं और उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में कचरे के प्रबंधन में मदद करके महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं

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World Environment Day: How These Safai Sathis Are Saving Himalayas From Becoming Garbage Mountains
वेस्ट वॉरियर्स उत्तराखंड में स्थित एक गैर-सरकारी संगठन है जो भारत के हिमालयी क्षेत्रों में ठोस अपशिष्ट प्रबंधन की समस्या को हल करने के लिए काम कर रहा है

नई दिल्ली: “पर्यटक हमारे पहाड़ों को कचरे के पहाड़ में बदल रहे हैं. लेकिन जो बात मुझे परेशान करती है वह यह है कि हम स्थानीय लोग भी अपने घरों से कचरे को डिस्पोज करने के मामले में लापरवाही बरतते हैं”. ये कहना है उत्तराखंड के नैनीताल जिले में कॉर्बेट नेशनल पार्क के पास एक छोटे से गांव सावलदे पूर्व की पर्यावरण उत्साही हेमा थापा का.

थापा के लिए, यह सब तब शुरू हुआ जब उन्होंने अपने गांव में बड़े पैमाने पर ठोस अपशिष्ट निपटान की समस्या देखी. उनके परिवार सहित ग्रामीण किसी भी खाली जगह में कचरा फेंक देते थे. उन्होंने देखा कि गांव के साफ-सुथरे और हरे-भरे इलाकों में कचरे के ढेर लग गए हैं. यह सब देख कर वह परेशान थीं, लेकिन समझ नहीं पा रही थीं कि समस्या को कम करने और अपने गांव को एक खतरनाक कचरे का ढेर बनने से बचाने के लिए वह क्या कर सकती है.

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सौभाग्य से एक गैर-सरकारी संगठन ‘वेस्ट वॉरियर्स’ ने ग्रामीण क्षेत्रों से निकले सॉलिड वेस्ट से निपटने के लिए ‘पर्यावरण सखी’ के अपने मॉडल के साथ उनकी ग्राम पंचायत का दौरा किया.

वेस्ट वॉरियर्स

वेस्ट वॉरियर्स उत्तराखंड में स्थित एक गैर-सरकारी संगठन है जो भारत के हिमालयी क्षेत्रों में ठोस अपशिष्ट प्रबंधन की समस्या को हल करने के लिए काम कर रहा है. वे ऐसे समाधान और मॉडल विकसित करने पर काम करते हैं, जो सिस्टमेटिक (व्यवस्थित), इंक्लूसिव (समावेशी) और सस्टेनेबल (स्थिर) हों. उनका बनाया ऐसा ही एक मॉडल है ‘पर्यावरण सखियां’ (पर्यावरण के मित्र). इसमें विविध पृष्ठभूमि की ग्रामीण महिलाएं एक साथ आकर ग्रामीण क्षेत्रों में डोर-टू-डोर कचरा संग्रहण सेवाएं प्रदान करने के लिए स्वयं सहायता समूह (SHGs) बनाती हैं. मॉडल का उद्देश्य महिलाओं को आर्थिक रूप से स्वतंत्र बनाकर ग्रामीण क्षेत्रों में अपशिष्ट प्रबंधन की समस्या को हल करना है.

पर्यावरण सखी – हेमा थापा

दिसंबर 2021 में, वेस्ट वॉरियर्स ने गांव में पर्यावरण सखियों के अपने मॉडल का विवरण देते हुए एक सत्र आयोजित किया. इसमें पंचायत के प्रमुख, ग्रामीणों और क्षेत्र में स्वयं सहायता समूहों का हिस्सा रहीं महिलाओं ने भाग लिया.

थापा पिछले पांच वर्षों से अपने गांव में ‘महक स्वयं सहायता समूह’ नाम के एक सेल्फ हेल्प ग्रुप का हिस्सा हैं और विभिन्न सामाजिक मुद्दों पर गांव में महिलाओं को प्रोत्साहित करने की दिशा में काम कर रही हैं. एनडीटीवी-डेटॉल बनेगा स्वस्थ इंडिया टीम से बात करते हुए, थापा ने कहा कि यह उनके समूह के लिए अपने गांव में बड़े पैमाने पर बदलाव लाने का एक सुनहरा अवसर था.

उन्होंने और समूह के अन्य सदस्यों ने वेस्ट वॉरियर्स टीम से उनकी पहल का हिस्सा बनने के लिए संपर्क किया.

इसके बाद, थापा और अन्य महिलाएं पिछले साल जुलाई में इस पहल में शामिल हुईं, उन्होंने कई शैक्षणिक और ट्रेनिंग सेशन आयोजित किए जहां उन्होंने अपशिष्ट प्रबंधन, सूखे और गीले कचरे के बीच के अंतर, कलेक्शन प्रोसीजर, पर्यावरण पर इसके लॉन्ग टर्म बेनिफिट्स, वेस्ट वॉरियर्स टीम के साथ बनाए रखने के लिए आधिकारिक रिकॉर्ड, और भी बहुत कुछ सीखा.

दस्ताने और मास्क पहनकर, पर्यावरण सखी थापा साप्ताहिक आधार पर घर-घर सूखा कचरा इकट्ठा करती हैं, ग्रामीणों को सूखे कचरे और गीले कचरे के बीच के अंतर, उचित अपशिष्ट प्रबंधन के महत्व और अन्य चीजों के बारे में शिक्षित करती हैं. इसके अलावा, वह परिवारों को डिस्पोजेबल बैग भी प्रदान करती हैं. इसमें सूखे और गीले कचरे को अलग करने के बारे में जानकारी भी होती है.

कचरे को इकट्ठा करने के बाद, वह इसे वेस्ट बैंक (दो से तीन कमरों वाली जगह) में डालती है, जहां सूखे कचरे को 20-22 तरीकों से अलग-अलग किया जाता है: कार्डबोर्ड, कागज, मल्टीलेयर्ड प्लास्टिक (MLP), बोतलें, कांच, रबर, आदि. उसके बाद, मटेरियल को या तो स्थानीय एग्रीगेटर्स को बेचा जाता है या वेस्ट वॉरियर्स की देहरादून फैसिलिटी में पहुंचाया जाता है.
व्यक्तिगत रूप से, थापा महिलाओं को ‘पर्यावरण सखी’ बनने के लिए प्रोत्साहित करती रही हैं. उन्हें समझाती रही हैं कि कैसे ये उन्हें आर्थिक रूप से स्वतंत्र बनने में मदद करेगी. इस अवसर का इस्तेमाल लोगों को पर्यावरण के बारे में संवेदनशील बनाने और आसपास के क्षेत्र में सफाई की आवश्यकता के लिए भी करती है. उन्होंने कहा, उनके परिवार के विपरीत, अधिकांश ग्रामीणों ने इस तरह की पहल का हिस्सा कास्ट के कारण बनने से इनकार कर दिया.

शुरुआत में, 10-12 महिलाएं थीं जो उनकी पहल में शामिल होने के लिए सहमत हुईं, लेकिन कई अपने परिवारों से समर्थन की कमी के कारण चली गईं. घर की महिलाओं को यह कहते हुए मना कर दिया कि कूड़ा बीनने का काम पुश्तैनी जमाने से इससे जुड़े कुछ लोगों का है, जो समाज के उस तबके से ताल्लुक रखता है जिसे हाशिए पर रखते हैं. ये कितना हतोत्साहित करने वाला है? आखिरकार, हम में से केवल छह ही थे जिन्होंने सखियों के रूप में काम किया.

अपने पति और ससुराल वालों का पूरा समर्थन होने के बावजूद, थापा को ‘पर्यावरण सखी’ बनने के बाद भी कई कठिनाईयों का सामना करना पड़ा. ग्रामीणों को इस बात के लिए समझाना मुश्किल था कि पर्यावरण सखियों को भी दूसरों की तरह सम्मान की दृष्टि से देखा जाए.

मेरे गांव में कई लोगों ने मेरा उपहास उड़ाया था. कई लोगों ने कहा कि मुझे इस तरह की नौकरी नहीं करनी चाहिए और सवाल किया कि क्या मेरे परिवार को आर्थिक संकट का सामना करना पड़ रहा है. जबकि कुछ ने स्पष्ट रूप से कहा कि वे मुझे ‘अछूत’ मानते हुए मेरे घर का पानी नहीं पीएंगे.

थापा को ‘पर्यावरण सखी’ के रूप में काम करते हुए एक साल हो गया है. वह कहती हैं कि उनके काम को हेय दृष्टि से देखने वाले ग्रामीणों की मानसिकता धीरे-धीरे बदली है. सखियों ने उन्हें घर-घर जाकर वेस्ट मैनेजमेंट के बारे में शिक्षित किया. कई रैलियां और सफाई अभियान चलाए जिससे उनकी मानसिकती बदली है.

वह लगभग 2000-3000 रुपए कमाती है. इसमें प्रत्येक ग्रामीण से डोर-टू-डोर कलेक्शन के लिए भुगतान किया गया उपयोगकर्ता शुल्क (30/- रुपए प्रत्येक) और गैप फंडिंग के माध्यम से वेस्ट वॉरियर की ओर से प्रदान की जाने वाली राशि शामिल है.

थापा ने कहा कि राशि तुलनात्मक रूप से कम है, फिर भी कई ग्रामीणों ने कचरा संग्रहण के लिए हस्ताक्षर नहीं किए हैं. लेकिन उन्हें उम्मीद है कि लोगों के जागरूक होने और पर्यावरण की देखभाल करने में समावेशी होने के बाद चीजें बेहतर होंगी.

वेस्ट वॉरियर्स के सहायक प्रबंधक, आउटरीच एंड एडवोकेसी- सुधीर कुमार मिश्रा ने हमें बताया कि पर्यावरण सखियां एनजीओ के सदस्यों की मदद से ऐसे स्थानों की पहचान भी करती हैं, जो छोटे लैंडफिल में बदल रहे हैं, उन्हें साफ करते हैं, ईको ईंट से बने बैन्च बनाते हैं. जगह को साफ रखने के संदेश के साथ बोर्ड भी लगाते हैं.

थापा के लिए, पर्यावरण को बचाते हुए आर्थिक रूप से स्वतंत्र और आत्मनिर्भर बनना किसी भी अन्य चीज से ज्यादा आवश्यक था. पर्यावरण को लाभ पहुंचाने वाले लक्ष्य की दिशा में काम करने की उनकी ईमानदारी के कारण अंततः समुदाय से उन्हें सम्मान मिला. वो कहती है,

मैं अब एक आर्थिक रूप से सशक्त महिला हूं और एक स्वच्छ और स्वस्थ वातावरण के प्रति मेरी लीडरशिप और समर्पण के लिए सभी का सम्मान मिलता है.

हेमा का मानना है कि वह जो काम कर रही हैं, वह हर नागरिक की जिम्मेदारी है.

मैं अपने क्षेत्र को लैंडफिल बनने से बचाने के लिए अपना छोटा सा प्रयास कर रही हूं. लेकिन केवल काम करने से समस्या का समाधान नहीं होगा; हम सभी को अपनी तरफ से यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि हम कचरे का उचित तरीके से निपटान कर रहे हैं.

थापा के गांव, सांवलदे पूर्व के अलावा, वेस्ट वॉरियर की पर्यावरण सखियों की अब नैनीताल की 11 पंचायतों में उपस्थिति है, जिनमें कनिया, रिंगोडा, ढिकोली, गर्गिया, क्यारी, हिम्मतपुर, और सांवलदे पश्चिम के गांव शामिल हैं. एनजीओ ने अपनी कई पहलों के माध्यम से कई लोगों के जीवन को बदल दिया है, समाज के आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग के लोगों को नामांकित किया है और उन्हें आजीविका का साधन प्रदान किया है.

ग्रीन वर्कर्स तूफान और सविता

टीम ने अन्य दो वेस्ट वॉरियर्स, तूफान और सविता से बात की जो हिमाचल प्रदेश में एनजीओ की धर्मशाला सेग्रीगेशन फैसिलिटी में काम करते हैं. दो बेटों और एक बेटी के माता-पिता, ये दंपति दो साल से अधिक समय से एनजीओ के साथ ‘ग्रीन वर्कर्स’ के रूप में काम कर रहे हैं. गरीबी से विकास तक की उनकी कहानी वास्तव में प्रेरणादायक है- सड़कों पर भीख मांगने और झोपड़ियों में रहने से लेकर ग्रीन वर्कर्स बनने और सिर पर पक्की छत होने तक, इस कपल की गरीबी से विकास तक की कहानी वास्तव में प्रेरणादायक है.

दो बेटों और एक बेटी के माता-पिता तूफान और सविता के परिवार दशकों पहले महाराष्ट्र से धर्मशाला चले गए थे. परिवार के पास आजीविका का कोई उचित साधन नहीं था और वे कबाड़ के डीलर और कचरा बीनने वाले के रूप में काम करते थे. कपल को जल्द ही धर्मशाला नगर निगम (DMC) में नौकरी मिल गई, जहां उन्होंने लगभग पांच वर्षों तक काम किया.
एक दुर्भाग्यपूर्ण रात, कपल की अस्थायी झोंपड़ी में पानी भर गया. एक और झोपड़ी बनाने के लिए, तूफान ने डीएमसी से तीन दिन की छुट्टी ली, लेकिन अपने परिवार के लिए झोपड़ी बनाने में उन्हें कुछ और दिन लग गए. इससे उनकी नौकरी चली गई, क्योंकि DMC के अधिकारी ने उन्हें काम पर रखने से मना कर दिया था. उस समय, उन्होंने अपनी चाची से वेस्ट वॉरियर्स के बारे में सुना, जो पहले से ही फैसिलिटी में काम कर रही थीं.

सुपरवाइजर और NGO मेंबर्स ने मुझे और मेरी पत्नी को कचरे को अलग करने के बारे में प्रशिक्षित किया. दो साल से ज्यादा हो गए हैं हम उनके साथ काम कर रहे हैं.

धर्मशाला फैसिलिटी में एनजीओ सुपरवाइजर अभिषेक भांगलिया का कहना है कि तूफान और सविता दोनों मेहनती सदस्य हैं. भांगलिया ने बताया-

उनके पास कभी पक्की छत नहीं थी और वे टिन की चादरों और प्लास्टिक तिरपाल से बने एक अस्थायी आश्रय के साथ जीवन भर रहे. जिस अनहेल्दी कंडीशन में वे रह रहे थे, उसके कारण बच्चों के बीमार पड़ने की उन्हें हमेशा चिंता रहती थी. लेकिन प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत आवास खरीदने के लिए अब उनके पास आर्थिक सहायता है.

अन्य ग्रीन वर्कर्स के साथ, ये दंपति ग्रामीण क्षेत्र से प्रतिदिन एकत्र किए गए 700-800 किलोग्राम कचरे को अलग करते हैं और बेलर मशीन पर काम करते हैं जिसमें कचरे को कम्प्रेस किया जाता है. दंपति 15,000 रुपए कमाते हैं, और एनजीओ ने उन्हें कर्मचारी राज्य बीमा निगम (ईएसआईसी) और भविष्य निधि (पीएफ) के तहत कवरेज प्राप्त करने में भी मदद की है.

मेरे परिवार को अगले दिन खाना मिलेगा या नहीं इसका डर रहता था; हम कई दिनों तक बिना रोशनी या पानी की आपूर्ति के रहे, और हमारे पास कोई सुरक्षा नहीं थी. वेस्ट वॉरियर्स मेरे परिवार के लिए वरदान बनकर आए. आज, मेरे पास मेरे सपने से कहीं अधिक है: एक पक्की छत, पर्याप्त पानी और बिजली की आपूर्ति, और वित्तीय सुरक्षा. यहां के सुपरवाइजर और एनजीओ सदस्य सहायक और बहुत ही मिलनसार हैं. मैं हमेशा चाहता था कि मेरे बच्चे उन कठिनाइयों का सामना न करें जो मैंने देखी हैं. अब, वे स्कूल जाते हैं और अपने विषयों में उत्कृष्ट प्रदर्शन कर रहे हैं.

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