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आंगनबाड़ी केंद्रों में 43 लाख बच्‍चे हैं मोटापे और ओवर वेट का शिकार: डेटा

वर्ल्ड ओबेसिटी फेडरेशन की तरफ से हाल ही में प्रकाशित एक वैश्विक स्टडी से पता चला है कि बचपन का मोटापा दुनिया भर में एक गंभीर चिंता का विषय है, और भारत भी इससे अछूता नहीं रह गया है. स्टडी में चेतावनी दी गई है कि अगर तुरंत समाधान नहीं किया गया तो भारत में बचपन के मोटापे में 2035 तक 9.1 प्रतिशत की सालाना बढ़ोतरी होने की संभावना है

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आहार असंतुलन में एक और प्रमुख योगदानकर्ता पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि गरीबों के आहार से सूक्ष्म पोषक तत्व गायब हो रहे हैं क्योंकि गांवों में पारंपरिक रसोई उद्यानों की जगह अब पैसे वाली फसलों ने ले ली है

नई दिल्ली: आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक पिछले महीने 0-5 आयु वर्ग के 43 लाख से अधिक बच्चों की पहचान मोटापे से ग्रसित या अधिक वजन (ओवर वेट) के रूप में की गई, जो देश भर के आंगनबाड़ी केंद्रों में सर्वेक्षण किए गए कुल बच्चों का लगभग छह फीसदी है. सरकार द्वारा संचालित आंगनबाड़ी केंद्रों से एकत्र किए गए आंकड़ों से यह भी पता चला है कि मोटे या अधिक वजन वाले बच्चों का प्रतिशत आंगनबाड़ियों में पाए जाने वाले कुपोषित बच्चों के तकरीबन बराबर ही था. ‘पोषण ट्रैकर’ ऐप से एकत्रित आंकड़ों से पता चलता है कि 0-5 वर्ष की आयु वर्ग में मापे गए 7,24,56,458 बच्चों में से 43,47,387 (लगभग 6%) बच्चों में मोटापे या अधिक वजन की समस्या पाई गई.

मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार, राजस्थान, उत्तराखंड और पश्चिम बंगाल सहित 13 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में मोटापे की दर राष्ट्रीय औसत छह प्रतिशत से अधिक पाई गई.

रिपोर्ट के मुताबिक, हाल के वर्षों में बचपन के मोटापे में चिंताजनक वृद्धि देखी गई है.

एनएचएफएस-4 (2015-16) और एनएफएचएस-5 (2019-) के आंकड़ों के अनुसार एनएफएचएस-4 की तुलना में एनएफएचएस-5 में अधिक वजन वाले पांच साल से कम उम्र के बच्चों के प्रतिशत में काफी ज्यादा बढ़ोतरी देखने को मिली है.

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2021 में ‘पोषण ट्रैकर’ ऐप की लॉन्चिंग से पहले राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) के तहत डेटा एकत्र किया जाता था.

एनएफएचएस-5 में मिजोरम, अरुणाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर में पांच साल से कम उम्र के ओवर वेट बच्चों का प्रतिशत सबसे अधिक दर्ज किया गया. इसके बाद सिक्किम और त्रिपुरा का स्थान रहा. दूसरी ओर, मध्य प्रदेश, बिहार और आंध्र प्रदेश में पांच साल से कम उम्र के अधिक वजन वाले बच्चों का प्रतिशत सबसे कम रहा.

सर्वेक्षण के आंकड़ों के मुताबिक तमिलनाडु और गोवा को छोड़कर हर राज्य में एनएफएचएस-5 में एनएफएचएस-4 की तुलना में पांच साल से कम उम्र के ओवर वेट बच्चों के प्रतिशत में वृद्धि देखी गई है.

वर्ल्ड ओबेसिटी फेडरेशन की हालिया रिपोर्ट से पता चला है कि बच्‍चों में मोटापे की समस्या दुनिया भर में एक गंभीर चिंता का विषय है और भारत भी इसका अपवाद नहीं है. स्टडी में चेतावनी दी गई है कि यदि तुरंत समाधान नहीं किया गया, तो 2035 तक भारत में ओवर वेट बच्‍चों की संख्‍या में 9.1 फीसदी तक की सालाना बढ़ोतरी देखने को मिल सकती है.

स्टडी में बताया गया है कि भारत में लड़कों के लिए मोटापे का खतरा 2020 में तीन फीसदी से बढ़कर अगले 12 वर्षों में 12 फीसदी हो सकता है. दूसरी ओर लड़कियों में मोटापे का जोखिम, जो 2020 में दो फीसदी था, वह बढ़कर सात फीसदी हो सकता है.

रिपोर्ट में यह भी अनुमान जताया गया है कि 2035 तक भारत की कुल आबादी में करीब 11 फीसदी लोग मोटापे की समस्या से ग्रसित होंगे. वयस्कों के मोटापे में 2020 से 2035 के बीच 5.2 फीसदी की बढ़ोतरी होने का अनुमान है.

स्टडी में सुझाव दिया गया है कि मोटापे की समस्या पर काबू पाने में विफलता के चलते 2035 तक 4.32 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर का वैश्विक आर्थिक प्रभाव पड़ सकता है, जो वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद (ग्लोबल जीडीपी) के तीन फीसदी के बराबर है. रिपोर्ट में संकेत दिया गया है कि भारत की जीडीपी पर संभावित प्रभाव 1.8 फीसदी के करीब होगा.

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बाल अधिकार संगठन सीआरवाई की सीईओ पूजा मारवाहा ने भारत में बढ़ते बचपन में मोटापे की कई प्रमुख वजहों की पहचान की है. इनमें असंतुलित आहार, प्रोसेस्‍ड और पैकेज्ड खाद्य पदार्थों की बढ़ती खपत और गतिहीन जीवन शैली शामिल है, जिससे शरीर में चर्बी के रूप में जमा अतिरिक्त कैलोरी की खपत नहीं हो पाती.

उन्होंने विशेष रूप से शहरी और अर्ध-शहरी परिवेश में बच्चों के आहार पैटर्न में बदलाव को भी बढ़ते मोटापे की एक बड़ी वजह बताया.

मारवाहा ने कहा कि बाजार में बिकने वाले स्नैक्स की खरीदारी बच्चों की प्राथमिकताओं से तेजी से प्रभावित हो रही है. वे काफी मात्रा में फास्ट फूड और मीठे ड्रिंक्स ले रहे हैं, जिससे शरीर में कैलोरी जमा हो जाती है, जिसे उनकी गतिहीन जीवनशैली उन्हें जलाने नहीं देती है.

आहार असंतुलन में एक दूसरे पहलू पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि गरीबों के आहार से सूक्ष्म पोषक तत्व गायब हो रहे हैं, क्योंकि गांवों में पारंपरिक घरेलू इस्तेमाल के लिए साग-सब्जियां उगाने की जगह केवल नकदी फसलों की खेती बढ़ती जा रही है.

उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि कई कम आय वाले परिवार पौष्टिक सब्जियों, फलों और दाल जैसी प्रोटीन वाली चीजें खाने का खर्च नहीं उठा पा रहे हैं.

मोटापे से निपटने के तरीके के बारे में पूछे जाने पर मारवाहा ने कहा कि बच्चों के बीच व्यवहार संबंधी अन्य समस्याओं की तरह बचपन के मोटापे का समाधान उचित पालन-पोषण से किया जा सकता है. उन्होंने कहा कि संतुलित आहार के बारे में बच्‍चों के माता-पिता के बीच जागरूकता बढ़ाना जरूरी है.

मारवाहा ने बताया कि शहरी क्षेत्रों में बच्चे अब ताजी सब्जियां और फल बहुत ही कम खाना पसंद करते हैं. कामकाजी माता-पिता के घर में अनुपस्थित रहने पर वह काफी ज्यादा जंक फूड खाते हैं, जो मोटापे और वजन में बढ़ोतरी का कारण बनता है.

उन्होंने कहा कि यह प्रवृत्ति केवल शहरी क्षेत्रों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि ग्रामीण इलाकों में भी जहां माता-पिता दोनों काम करते हैं, वहां भी देखने को मिल रही है. यहां भी अब बच्चों को कभी-कभी दोपहर के भोजन के लिए आलू के चिप्स के सस्ते पैकेट दिए जाते हैं.

मनस्थली संस्‍था की संस्थापक और निदेशक डॉ. ज्योति कपूर ने कहा कि मोटे बच्चों में टाइप-2 डायबिटीज, हृदय रोग, हाई ब्लड प्रेशर और स्लीप एपनिया यानी नींद न आने सहित कई तरह की स्वास्थ्य समस्याओं का खतरा बढ़ जाता है. बच्चों के जीवन की गुणवत्ता और जीवन प्रत्याशा (लाइफ एक्सपेक्टेंसी) पर इन स्थितियों के तात्कालिक और दीर्घकालिक परिणाम देखने को मिल सकते हैं. बचपन का मोटापा अक्सर बड़े होने पर भी बना रह जाता है, जिससे स्वास्थ्य समस्याएं और शीघ्र मृत्यु का खतरा बढ़ जाता है.

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(यह स्टोरी एनडीटीवी स्टाफ द्वारा संपादित नहीं की गई है और एक सिंडिकेटेड फीड से प्रकाशित हुई है.)

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