कोई पीछे नहीं रहेगा
तेलंगाना में चेंचू समुदाय के जीवन को रोशन कर रही अपोलो फाउंडेशन की ‘अर्जवा कैंडल्स’
मोमबत्ती बनाना चेंचू जनजाति के लिए आर्थिक तौर पर अजीविका में योगदान देने वाली एकमात्र पहल नहीं है बल्कि यहां शहद को बोतलों में भरने, मशरूम और जूट से जुड़ी यूनिट आदि भी हैं
नई दिल्ली: राज्यलक्ष्मी, जो दिहाड़ी मजदूर के रूप में काम करती थीं, लेकिन अब मोमबत्तियां बनाकर हर महीने 10 हजार रुपये कमाती हैं. राज्यलक्ष्मी चेंचू जनजाति की उन 30 महिलाओं में से एक हैं, जिन्हें मोम से मोमबत्ती बनाने की ट्रेनिंग दी गई. ये मोम उन्हीं के समाज के लोग तेलंगाना में अमराबाद टाइगर रिजर्व, जो उनका घर है, से एकत्रित किया जाता है. समुदाय के सदस्यों द्वारा एकत्र किए गए मधुमक्खियों के मोम का उपयोग करके मोमबत्तियां बनाने का प्रशिक्षण दिया जाता है. अपोलो फाउंडेशन की ग्रीन स्किलिंग मुहिम अर्जवा के तहत उसे ये सीखने और काम करने का मौका मिला.
सबसे पुरानी जनजाति में से एक मानी जाने वाली चेंचू जनजाति एक पारंपरिक शिकारी समुदाय है जो सदियों से नल्लामाला पहाड़ियों पर रहता है. अमराबाद टाइगर रिज़र्व भारत के सबसे बड़े बाघ अभयारण्यों में से एक है. ये एक ऐसे क्षेत्र में स्थित है जो परंपरागत तौर पर चेंचू समुदाय द्वारा बसाया गया है. इतिहास पर नजर डालें तो चेंचू आदिवासी द्रविड़ों से भी पहले से आंध्र क्षेत्र के निवासी हैं. वे भारत की सबसे पुरानी आदिवासी जनजातियों में से एक हैं. बीते कुछ वर्षों में जंगलों और प्राकृतिक संसाधनों के साथ उनके पारंपरिक संबंधों को बदल दिया गया है.
परंपरागत रूप से, चेंचू आदिवासी समुदाय अपनी आजीविका के लिए जंगल और प्रकृति पर निर्भर है. अपोलो फाउंडेशन की मुहिम के साथ वे एक बार फिर से जंगल पर आश्रित हो रहे हैं. राज्यलक्ष्मी, जो कि अब मोमबत्तियां बनाती हैं, कहती हैं,
पहले मैं दिहाड़ी मजदूरी के काम पर जाती थी. अपोलो फाउंडेशन के लोगों ने मुझे मोमबत्तियां बनाना सिखाया. मुझे काम पसंद आया और मैं यहां काम करके बहुत खुश हूं.
राज्यलक्ष्मी “एक गरिमापूर्ण जीवन” पाकर खुश हैं, इससे उन्हें “पहचान” मिली है। वह कहती है,
यह कमाई मेरे बच्चों की मदद करती है.
मोमबत्ती बनाना चेंचू जनजाति के लिए आर्थिक तौर पर अजीविका में योगदान देने वाली एकमात्र पहल नहीं है. यहां शहद को बोतलों में भरने, मशरूम और जूट से जुड़ी यूनिट भी है,
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अपोलो हॉस्पिटल्स की सीएसआर वाइस चेयरपर्सन उपासना कामिनेनी कोनिडेला ने इस मुहिम और इसकी प्रासंगिकता के बारे में एनडीटीवी से बात करते हुए कहा,
इन महिलाओं को आर्थिक रूप से और स्वतंत्र बनाने के लिए हमने ग्रीन स्किलिंग मुहिम की शुरूआत की. यहां सारी उपज जंगल के आसपास मिलने वाली या चीजों या तो कचरे से आती है. इसलिए महिलाएं ये उत्पाद बना रही हैं. उन्होंने इसकी शुरुआत मोमबत्ती से की. ग्रीन स्किलिंग मुहिम इन महिलाओं और उनके समुदायों का सशक्तिकरण करने का एक मजबूत तरीका है.
महिलाओं को सशक्त बनाना परिवार, समुदाय और देश के स्वास्थ्य और सामाजिक विकास की कुंजी है. अर्जवा मोमबत्ती जंगल की प्राकृतिक खूशबू बसी हैं, लेकिन इसके साथ-साथ ग्रीन स्किलिंग मुहिम ने राज्यलक्ष्मी जैसी चेंचू समुदाय की कई महिलाओं को जीवन जीने का उद्देश्य दिया है. यह न केवल उन्हें एक वित्तीय स्थिरता प्रदान कर रहा है बल्कि उन्हें सम्मान से जीवन जीने में भी सहायता भी कर रहा है.
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