नई दिल्ली: भारत का विंटर वंडरलैंड, गुलमर्ग जो बर्फ से ढकी ढलानों के लिए जाना जाता है और इस वजह से देश भर के स्कीइंग करने के शौकीन लोगों को अपनी और आकर्षित करता है. लेकिन इस बार यहां बर्फ नहीं गिरी. पिछले कई सालों में यह पहली जनवरी है जब गुलमर्ग और पहलगाम, जो अपने बर्फ से ढके लैंडस्केप के लिए जाने जाते हैं, वहां इस बार बर्फ दिखाई नहीं दी. भारत की सर्दियों पर पड़ रहे ग्लोबल वार्मिंग का असर साफ देखा जा सकता है जिसने लोगों की चिंता को और बढ़ा दिया है. इन क्षेत्रों में सर्दियों में आमतौर पर कम से कम चार से छह फीट मोटी बर्फ गिरती है, लेकिन इस सर्दी में मुश्किल से थोड़ी बहुत बर्फबारी हुई है. इस वजह से सोशल मीडिया गुलमर्ग की पहले की तस्वीरें और इस साल की तस्वीरें पोस्ट करने वालों से भरा पड़ा है. पिछले साल यह क्षेत्र बर्फ की मोटी चादर से ढका हुआ था और जमीन का एक इंच भी हिस्सा नजर नहीं आ रहा था. लेकिन इस साल, यह क्षेत्र शुष्क दिखाई दे रहा है, जमीन को बर्फ ने नहीं ढका है.
मौसम विशेषज्ञों के साथ-साथ कमाई के लिए पर्यटन पर निर्भर रहने वाले लोगों ने इस सर्दी में बर्फबारी न होने पर अपनी चिंता जाहिर की है.
न्यूज एजेंसी ANI द्वारा X (जिसे पहले ट्विटर के नाम से जाना जाता था) पर पोस्ट किया गया वीडियो भी गुलमर्ग की शुष्क स्थिति को दर्शाता है, जहां जमीन पर कहीं-कहीं बस नाममात्र की बर्फ दिखाई दे रही है.
#WATCH | Baramulla, J&K: Tourist destination Gulmarg witnesses dry spell this winter. The Kashmir Valley has experienced a 79% rainfall deficit throughout December and an absence of snow. According to the meteorological department, dry weather conditions will persist until… pic.twitter.com/8WS0bIXr9t
— ANI (@ANI) January 8, 2024
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शुष्क सर्दी की वजह
मौसम विभाग के मुताबिक, पर्यटन के लिए मशहूर इस शहर में इस साल सर्दी में शुष्क मौसम देखा गया है क्योंकि कश्मीर घाटी में बारिश में 79 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है. मौसम विभाग ने कहा है कि तत्काल राहत की उम्मीद नहीं है क्योंकि शुष्क मौसम की स्थिति अगले महीने तक बनी रहेगी. न्यूज एजेंसी ANI से बात करते हुए कश्मीर मौसम विज्ञान केंद्र के निदेशक मुख्तार अहमद ने कहा,
पूरा दिसंबर और जनवरी का पहला सप्ताह शुष्क रहा है. आने वाले दिनों में ज्यादा बर्फबारी की संभावना नहीं है. 16 जनवरी की दोपहर तक मौसम शुष्क रह सकता है. पिछले तीन-चार सालों से शुरुआती बर्फबारी का पैटर्न बना हुआ है, जो इस साल नजर नहीं आया. अल नीनो (एक प्रभाव जो समुद्र की सतह के तापमान को सामान्य से ज्यादा गर्म कर देता है जिस वजह से मौसम चक्र प्रभावित होता है और पूरी दुनिया में इसका असर नजर आता है) नवंबर से बना हुआ है और अगले महीने तक जारी रह सकता है.
स्काईमेट वेदर के वाइस प्रेसिडेंट महेश पलावत (Mahesh Palawat) ने NDTV से बात करते हुए कहा कि इस सीजन में भारत में देर से और कम सर्दी पड़ेगी. उन्होंने कहा,
आमतौर पर, पश्चिमी विक्षोभ (western disturbances) अक्टूबर के आसपास शुरू होते हैं और साल के आखिरी दो महीनों में उत्तर में भारी बर्फबारी और कड़ाके की सर्दी होती है. दरअसल, पश्चिमी विक्षोभ भूमध्यसागरीय क्षेत्र में उत्पन्न होने वाला एक तूफान है जो भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तर-पश्चिमी हिस्सों में अचानक सर्दियों की बारिश लाता है. अब, ये विक्षोभ कमजोर हो रहे हैं और बर्फबारी कम हो रही है. हर साल अक्टूबर से फरवरी तक गर्मी बढ़ती जा रही है, जिससे सर्दियां कम हो रही हैं.
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2023 – सबसे गर्म साल रहा
मौसम विज्ञानी कम बर्फबारी की वजह अल नीनो को बताते हैं, जिसकी वजह से 2023 सबसे गर्म साल रहा. कॉपरनिकस क्लाइमेट चेंज सर्विस (C3S) ने भी 9 जनवरी, 2024 को एक रिपोर्ट जारी की और इस बात पर प्रकाश डाला कि 1850 से अब तक के ग्लोबल टेम्परेचर डेटा रिकॉर्ड में 2023 को सबसे गर्म कैलेंडर ईयर के रूप में दर्ज किया गया है, जिसमें ग्लोबल टेम्परेचर 1.5 डिग्री सेल्सियस के करीब है. कॉपरनिकस क्लाइमेट चेंज सर्विस (C3S) यूरोपीय यूनियन का अर्थ ऑब्जरवेशन प्रोग्राम है, इस रिपोर्ट में जिन अन्य महत्वपूर्ण बातों पर प्रकाश डाला गया उन पर एक नजर:
- रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि साल 2023, 1991-2020 के औसत से 0.60 डिग्री सेल्सियस और 1850-1900 प्री-इंडस्ट्रियल लेवल की तुलना में 1.48 डिग्री सेल्सियस ज्यादा गर्म था.
- इसमें यह भी कहा गया है कि 2023 में हर दिन 1850-1900 प्री-इंडस्ट्रियल लेवल से 1 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा रहा है.
- लगभग 50 प्रतिशत दिन 1850-1900 के स्तर से 1.5 डिग्री सेल्सियस ज्यादा गर्म थे, और नवंबर में दो दिन पहली बार इस स्तर की तुलना में 2 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा गर्म थे.
- 2023 में जून से दिसंबर तक हर महीना पिछले किसी भी साल के इन महीने की तुलना में ज्यादा गर्म थे.
- रिकॉर्ड के मुताबिक, साल 2023 में जुलाई और अगस्त सबसे गर्म दो महीने थे.
- दिसंबर 2023 विश्व स्तर पर रिकॉर्ड में सबसे गर्म दिसंबर रहा, इस महीने का औसत तापमान 13.51 डिग्री सेल्सियस, 1991-2020 के औसत से 0.85 डिग्री सेल्सियस और 1850-1900 के स्तर से 1.78 डिग्री सेल्सियस ऊपर था.
कोपरनिकस क्लाइमेट चेंज सर्विस की डिप्टी डायरेक्टर सामंथा बर्गेस (Samantha Burgess) ने कहा,
2023 एक असाधारण साल था जिसमें क्लाइमेट रिकॉर्ड dominoes की तरह लुढक रहे थे. न केवल 2023 रिकॉर्ड में सबसे गर्म साल दर्ज किया गया है, बल्कि यह पहला साल भी है जिसमें सभी दिन प्री-इंडस्ट्रीयल पीरियड की तुलना में 1 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा गर्म रहे हैं. पिछले 1 लाख सालों में साल 2023 सबसे गर्म रहा है.
कॉपरनिकस क्लाइमेट चेंज सर्विस के डायरेक्टर कार्लो बूनटेम्पो (Carlo Buontempo) ने कहा,
पिछले कुछ महीनों में हमने मौसम में जो भारी उतार-चढ़ाव देखें हैं, वे इस बात का प्रमाण देते हैं कि अब हम उस जलवायु से कितनी दूर हैं जिसमें हमारी सभ्यता विकसित हुई थी. इसका पेरिस समझौते और सभी मानवीय प्रयासों पर गहरा असर पड़ रहा है. यदि हम अपने क्लाइमेट रिस्क पोर्टफोलियो को सफलतापूर्वक मैनेज करना चाहते हैं, तो हमें भविष्य की तैयारी के लिए क्लाइमेट डेटा और नॉलेज का इस्तेमाल करते हुए अपनी इकोनॉमी को तत्काल डीकार्बोनाइज (Decarbonise) करने की जरूरत है.
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जलवायु परिवर्तन चिंता का विषय क्यों है?
जलवायु परिवर्तन यानी क्लाइमेट चेंज हममें से हर किसी को प्रभावित कर रहा है और मानवीय आपात स्थितियों में सीधे योगदान दे रहा है. लू, जंगल की आग, बाढ़, उष्णकटिबंधीय तूफान (Tropical storm) जैसी मौसम में भारी उतार चढ़ाव की घटनाओं का ट्रेंड बढ़ रहा है और साथ ही उनकी तीव्रता भी बढ़ रही है. विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि लगभग 3.6 अरब लोग पहले से ही जलवायु परिवर्तन के प्रति ज्यादा संवेदनशील क्षेत्रों में रह रहे हैं और 2030 एवं 2050 के बीच, जलवायु परिवर्तन के कारण सिर्फ कुपोषण, मलेरिया, डायरिया और गर्मी के तनाव से हर साल करीब 2,50,000 अतिरिक्त मौतें होने की आशंका है.
WHO का यह भी कहना है कि हाल ही में हुई रिसर्च गर्मी से होने वाली 37 प्रतिशत मौतों का कारण मानव-प्रेरित जलवायु परिवर्तन को मानती है. इसमें यह भी कहा गया है कि दो दशकों में 65 साल से अधिक उम्र वालों की गर्मी की वजह से हुई मौतों में 70 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है.
WHO का मानना है कि पिछले 50 सालों में हमने डेवलपमेंट, ग्लोबल हेल्थ और गरीबी को कम करने में जो प्रगति की है उसे जलवायु संकट बर्बाद कर सकता है और आबादी के बीच स्वास्थ्य असमानताओं को लेकर जो अंतर है उसे और बढ़ा सकता है. इसमें कहा गया है कि 93 करोड़ से ज्यादा लोग – दुनिया की लगभग 12 प्रतिशत आबादी – स्वास्थ्य देखभाल पर अपने घरेलू बजट का कम से कम 10 प्रतिशत हिस्सा खर्च करती है. गरीब लोगों के पास बीमा न होने की वजह से, स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं और तनाव पहले से ही हर साल लगभग 10 करोड़ लोगों को गरीबी में धकेल रहा है और जलवायु परिवर्तन से होने वाले प्रभाव हालातों को और खराब कर रहे हैं.
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