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गर्मी के कारण गाजीपुर लैंडफिल में लगी आग, जानिए ये 5 बातें
दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) का मानना है कि मीथेन उत्पादन और ज्यादा तापमान के कारण गाजीपुर लैंडफिल साइट पर आग लग गई
नई दिल्ली: सोमवार (12 जून) की दोपहर को दिल्ली के तीन कचरे के पहाड़ों में से एक, गाजीपुर डंपसाइट (जिसे आमतौर पर लैंडफिल के रूप में जाना जाता है) में भीषण आग लग गई. समाचार एजेंसी एएनआई ने दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) द्वारा जारी की गई प्रेस रिलीज के हवाले से बताया, आग दोपहर करीब 1:30-1:45 बजे लगी और तेज हवाओं के कारण तेजी से फैलने लगी. एमसीडी ने स्थिति को तुरंत संज्ञान में लिया और दिल्ली अग्निशमन विभाग से 8-10 फायर टेंडर और लैंडफिल साइट पर काम कर रहे 13-14 एक्सकेवेटर एवं 4-5 बुलडोजर को आग पर काबू पाने की कार्रवाई में लगाया गया.
VIDEO | Fire breaks out at the Ghazipur landfill site in Delhi. More details are awaited. pic.twitter.com/v26LntFS4e
— Press Trust of India (@PTI_News) June 12, 2023
एमसीडी का मानना है कि आग लगने का कारण राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में उच्च तापमान के साथ मीथेन गैस का पैदा होना था. हालांकि, इनर्ट मटेरियल का उपयोग करके इसे कंट्रोल किया गया था.
72 एकड़ भूमि में फैला गाजीपुर लैंडफिल दिल्ली का सबसे पुराना डंपसाइट है. इसे 1984 में शुरू किया गया था और 2002 में यह 20 मीटर की स्वीकृत ऊंचाई को पार कर गया था. तब से लेकर अब तक यह बढ़ता ही जा रहा है. एमसीडी के मुताबिक वर्तमान में इसकी ऊंचाई लगभग 40 मीटर हो गई है. एमसीडी से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार, जुलाई 2019 तक गाजीपुर साइट पर 140 लाख टन कचरा डाला गया है.
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लैंडफिल में आग लगने के 5 कारण:
- दिल्ली अग्निशमन सेवा के मंडल अधिकारी, अशोक कुमार जायसवाल ने एनडीटीवी को दिए एक इंटरव्यू में कहा, “यह गर्मी का समय है और गर्मी के बीच जैविक कचरे के डीकंपोजिशन से अक्सर केमिकल रिएक्शंस होते हैं, जिसमें कार्बन मोनोऑक्साइड और हाइड्रोजन सल्फाइड जैसी गैसें उत्पन्न होती हैं. सच कहूं तो गर्मी के मौसम में लैंडफिल अपने आप आग पकड़ लेते हैं. कल, हम 13 दमकल गाड़ियों की मदद से आग पर काबू पाने में कामयाब रहे.”
- MSW (म्युनिसिपल सॉलिड वेस्ट) टीम की सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट डिप्टी प्रोग्राम मैनेजर, डॉ. ऋचा सिंह बताती हैं, गाजीपुर लैंडफिल तकनीकी रूप से एक डंप साइट है. जमीन जमीन का एक ऐसा टुकड़ा जहां लापरवाही से कचरे को डंप किया जा रहा है. उन्होंने कहा, “सेनेटरी लैंडफिल वे साइंटिफिक स्ट्रक्चर्स या रोकथाम प्रणालियां हैं, जिन्हें आसपास के वातावरण से कचरे को अलग करने के लिए बनाया जाता है. ये केवल भूमि के टुकड़े हैं जिनमें प्रदूषण नियंत्रण के लिए कोई मैकेनिज्म नहीं है”
- डॉ. सिंह कहती हैं कि सैनिटरी लैंडफिल में उच्च घनत्व वाली पॉलीथीन लीचेट (वेस्ट के माध्यम से पानी रिसने से दूषित तरल उत्पन्न होता है) को इकट्ठा करने और उपचार करने के लिए मैकेनिज्म के साथ-साथ लैंडफिल गैस को इकट्ठा करने की क्षमता में भी रुकावट बनती है. इसमें मुख्य रूप से मीथेन होता है.
- डॉ. सिंह ने कहा, “डंप साइटों के करीब रहने से लोगों को स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों का सामना करना पड़ता है, क्योंकि लोग यहां मीथेन जैसी रंगहीन व गंधहीन गैसों, H2S (हाइड्रोजन सल्फाइड) जैसी ट्रेस गैसों के साथ ही पार्टिकुलेट मैटर और अमोनिया के उच्च स्तर के संपर्क में आते हैं.” ये गैसें कार्सिनोजेनिक प्रकृति की होती हैं, इनके संपर्क में लंबे समय तक रहने से लोगों में श्वास संबंधी दिक्कतें हो सकती हैं और कई बार यह कैंसर का कारण भी बन जाती हैं.
- डंपसाइट्स पर बायोडिग्रेडेबल या गीला कचरा समय के साथ डीकंपोज हो जाता है. जबकि कार्बनिक कचरे के एनारोबिक डीकंपोजिशन (ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में जैविक कचरे का टूटना) से मीथेन गैस उत्पन्न होती है जो ज्वलनशील होती है और गर्मी पैदा करती है. यही कारण है कि दिल्ली में कूड़े के ढेर अक्सर आग पकड़ लेते हैं खासकर गर्मियों के समय में. अगर आग नहीं, तो ये हमेशा टुकड़ों में सुलगते रहते हैं.
इस तरह की आग के प्रकोप को रोकने के लिए डॉ. सिंह ने एक अंतरिम समाधान की सिफारिश की(जब तक कि सभी पुराने कचरे का उपचार नहीं हो जाता) जिसमें शामिल हैं,
लैंडफिल गैसों के लिए एक गैस संग्रह और उपचार प्रणाली. इसके अलावा, लीचेट और लैंडफिल गैस की समस्या की रोकथाम के लिए सबसे पहले बायोडिग्रेडेबल और ज्वलनशील कचरे की लैंडफिलिंग नहीं की जानी चाहिए.
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