ताज़ातरीन ख़बरें

आपके समग्र स्वास्थ्य की कुंजी, 5 बीमारियां जिन पर हाथ धोने से लगेगी लगाम

Global Handwashing Day: यहां उन पांच बीमारियों के बारें में बताया गया है, जिन पर हम केवल हाथ धोने पर ध्यान देकर ही लगाम गला सकते हैं

Published

on

Highlights
  • डब्ल्यूएचओ का कहना है कि हाथ बैक्‍टीरिया संचरण के मुख्य मार्ग हैं
  • इसलिए हाथ धोना बहुत जरूरी माना जाता है: WHO
  • अगर हम हाथ धोने को लेकर गंभीर नहीं होते हैं, तो लाखों बच्चे मर जाएंगे: WHO

नई दिल्ली: “हाथ धो लो” ये शायद तीन सबसे महत्वपूर्ण शब्द हैं, जिन्हें दुनिया ने कोविड-19 ब्रेकआउट के बाद से सुना है – 100 सालों में दुनिया को हिट करने वाली सबसे बुरी और भयावह महामारी. यहां तक ​​​​कि कोविड से पहले समय में, हाथ धोने को बीमारी के बोझ को कम करने के लिए एक कोस्‍ट इफेक्‍ट‍िव पब्‍लिक हेल्‍थ इंटरवेशन माना जाता था, लेकिन इसका महत्व और आदत हमेशा से एक चुनौती रहा, खासकर भारत में. राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 4 (2015-16) ने देश में हाथ धोने की गंभीर स्थिति पर प्रकाश डाला. सर्वेक्षण के अनुसार, जबकि भारत में लगभग सभी घरों में (97% तक वॉशबेसिन हैं), शहरी क्षेत्रों में केवल अमीर और अधिक शिक्षित परिवार ही हाथ धोने के लिए साबुन का उपयोग करते हैं. सर्वेक्षण में यह भी बताया गया है कि 10 में से केवल 2 गरीब घर 10 में से 9 अमीर घरों की तुलना में साबुन का उपयोग करते हैं.

इसे भी पढ़ें : #SwasthBharat: जानें कितनी तरह के होते हैं कीटाणु, इनसे कैसे बचा जा सकता है

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) का कहना है कि हाथ रोगाणु संचरण के मुख्य मार्ग हैं और इस प्रकार संक्रमण के प्रसार से बचने और लोगों को स्वस्थ रखने के लिए हाथ की स्वच्छता सबसे अहम उपाय है. जानकारी के लिए अगर विश्व के नेता हाथ धोने में निवेश करना जारी नहीं रखते हैं, तो हम देखते रहेंगे कि दुनिया भर में हर साल पांच साल से कम उम्र के दस लाख से अधिक बच्चे अनावश्यक रूप से मर रहे हैं. डब्ल्यूएचओ के अनुसार साबुन या अल्कोहल-आधारित हैंड रब से हाथों को अच्छी तरह से साफ करने से कई तरह की बीमारियों को रोकने में मदद मिलती है, जिसमें विश्व स्तर पर अंडर-फाइव्स के सबसे बड़े हत्यारे शामिल हैं: निमोनिया और दस्त.

डब्ल्यूएचओ का कहना है कि 2019 में 5 साल से कम उम्र के अनुमानित 5.2 मिलियन बच्चों की मृत्यु ज्यादातर रोके जाने योग्य और उपचार योग्य कारणों से हुई. 1 से 11 महीने की उम्र के बच्चों में इन मौतों में से 1.5 मिलियन थे जबकि 1 से 4 साल की उम्र के बच्चों में 1.3 मिलियन मौतें हुईं. शेष 2.4 मिलियन मौतों के लिए नवजात (28 दिनों से कम) का योगदान है. और 2019 में अतिरिक्त 500,000 बड़े बच्चों (5 से 9 वर्ष) की मृत्यु हो गई. डब्ल्यूएचओ (WHO) ने यह भी कहा कि 2019 में सभी पांच साल से कम उम्र के आधे बच्चों की मौत सिर्फ पांच देशों में हुई: नाइजीरिया, भारत, पाकिस्तान, कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य और इथियोपिया. अकेले नाइजीरिया और भारत में सभी मौतों का लगभग एक तिहाई हिस्सा है. 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों में मृत्यु के प्रमुख कारणों में समय से पहले जन्म की जटिलताएं, निमोनिया, जन्मजात विसंगतियां, दस्त और मलेरिया हैं, इन सभी को स्वच्छता, पर्याप्त पोषण, सुरक्षित पानी और भोजन सहित सरल, किफायती उपायों तक पहुंच से रोका या इलाज किया जा सकता है.

ग्लोबल हैंडवाशिंग डे 2021 पर, जानिए कैसे हाथ की सफाई पर ध्यान केंद्रित करके कैसे हम भारत से उन कुछ बीमारियों को दूर भगा सकते हैं, जो देश में कई लोगों की जान ले लेती है: 

डायरिया: डब्ल्यूएचओ के अनुसार डायरिया एक गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल संक्रमण है, जो कई तरह के बैक्टीरिया, वायरल और परजीवी जीवों के कारण हो सकता है. संक्रमण दूषित भोजन या पीने के पानी के माध्यम से या खराब स्वच्छता के परिणामस्वरूप एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैलता है. यह शिशुओं को हो सकता है अगर वे अपने जीवन के पहले 6 महीनों में विशेष रूप से स्तनपान नहीं करते हैं.

डब्ल्यूएचओ यह भी कहता है कि पहले गंभीर निर्जलीकरण और तरल पदार्थ का नुकसान दस्त से होने वाली मौतों का मुख्य कारण था, लेकिन अब सेप्टिक जीवाणु संक्रमण जैसे अन्य कारणों से डायरिया से जुड़ी सभी मौतों के बढ़ते अनुपात के कारण होने की संभावना है.

राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के आंकड़ों के अनुसार, भारत में हर साल लगभग एक लाख बच्चे डायरिया से मर जाते हैं. रोग नियंत्रण और रोकथाम केंद्र कहता है कि लोगों को हाथ धोने के बारे में सिखाने से उन्हें और उनके समुदायों को स्वस्थ रहने में मदद मिलती है. इसमें आगे कहा गया है कि हाथ धोने से:

ए. दुनिया में डायरिया से बीमार होने वालों की संख्या 23-40% कम करें.

बी. कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली वाले दुनिया भर के लोगों में दस्त की बीमारी को 58 प्रतिशत तक कम करें.

वाटरएड इंडिया की पॉलिसी मैनेजर अरुंधति मुरलीधरन ने हाथ की स्वच्छता के महत्व के बारे में बताते हुए कहा, “तो आपके पास शौचालय हैं, जिनका उपयोग आप खुद को राहत देने के लिए कर रहे हैं लेकिन फिर आप अपने हाथ नहीं धो रहे हैं, इसलिए मल से जुड़ा गंद आपके हाथों में है. आपको अपने हाथों को साबुन और पानी से धोने की जरूरत है और यह एक ऐसी चीज है जिस पर हमें गौर करने की जरूरत है – स्वच्छता को कैसे बढ़ावा दिया जाए. मुझे लगता है कि स्वच्छता हमारे देश में पहेली का सबसे बड़ा गायब टुकड़ा है. यहां तक ​​कि माताओं के लिए, जब आप अपने बच्चों को दूध पिला रही हों, शिशुओं की देखभाल कर रही हों, और विभिन्न दैनिक गतिविधियां कर रही हों, तो उन्हें यह सुनिश्चित करने की ज़रूरत है कि उनके हाथ भी साफ हैं. हमें अच्छे स्वास्थ्य के प्रमुख चालक के रूप में स्वच्छता को बढ़ावा देने के लिए मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता या आशा कार्यकर्ताओं और आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को शामिल करने की जरूरत है.”

भारत में हाथ धोने की प्रथाओं को बनाए रखने की जरूरत और इसके साथ चुनौतियों के बारे में बात करते हुए, अभिषेक शर्मा, वरिष्ठ प्रबंधक, अनुसंधान, संबोधि रिसर्च एंड कम्युनिकेशंस प्राइवेट लिमिटेड, जिन्होंने WASH,आजीविका और बाल स्वास्थ्य को कवर करने वाली परियोजनाओं पर बड़े पैमाने पर काम किया है, कहते हैं, “हमारे देश में , हाथ की स्वच्छता पर व्यवहार परिवर्तन के पारंपरिक दृष्टिकोण जागरूकता अभियानों के जरिए से शैक्षिक संदेशों तक सीमित कर दिए गए हैं. शोध से पता चलता है कि खराब हाथ स्वच्छता से जुड़े स्वास्थ्य जोखिमों पर शिक्षा जरूरी नहीं कि व्यवहार में निरंतर परिवर्तन हो. हाथ धोने से जुड़े कई कारक हैं – भावनाएं, आदतें, सेटिंग्स, बुनियादी ढांचा, गरीबी, रवैया और इच्छाशक्ति की कमी. ये स्वच्छता संबंधी ज्ञान को व्यवहार में बदलने और आदत में बदलने से रोकते हैं.”

कुपोषण: विश्व स्वास्थ्य संगठन का अनुमान है कि दुनिया भर में बच्चों के कुपोषण के 50% मामले बार-बार होने वाले दस्त और खराब स्वच्छता की स्थिति या सुरक्षित पानी की कमी के कारण आंतों में संक्रमण के कारण होते हैं. भारत में, 2002 से 2017 तक मैप किए गए रुझानों के अनुसार, 12 मई, 2020 को द लैंसेट में प्रकाशित, बच्चे, मातृ कुपोषण के कारण 5 वर्ष से कम उम्र के 68% मौतों की सूचना दी गई थी. डब्ल्यूएचओ का कहना है कि अच्छा पोषण प्राप्त करने और बनाए रखने के लिए साबुन से हाथ धोना एक महत्वपूर्ण निर्धारक है.

पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया (पीएचएफआई) के अतिरिक्त प्रोफेसर डॉ श्वेता खंडेलवाल कहते हैं, “अच्छे पोषण के लिए पौष्टिक खाद्य पदार्थों तक पहुंच की जरूरत होती है: इसके लिए शरीर को उस भोजन में पोषक तत्वों को अवशोषित करने में सक्षम होना चाहिए जो एक इंसान इस्‍तेमाल करता है. अगर हाथ गंदे हैं, जिसके कारण रोगाणु मानव शरीर में प्रवेश करते हैं, तो वे आंत में जा सकते हैं. वहां, वे भोजन से पोषक तत्वों को अवशोषित करने और उपयोग करने की शरीर की क्षमता को नुकसान पहुंचा सकते हैं.”

कृमि संक्रमण या आंत के कीड़े : विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, भारत में 1-14 वर्ष की आयु के लगभग 241 मिलियन बच्चों को परजीवी आंतों के कीड़े होने का खतरा होता है, जिन्हें सॉइल-ट्रांसमिटेड हेल्मिन्थ्स (एसटीएच) के रूप में जाना जाता है. यानी इस आयु वर्ग के 68 प्रतिशत या 10 में से 7 बच्चों को एसटीएच संक्रमण का खतरा है. केवल हाथ की स्वच्छता में सुधार करके कृमि संक्रमण को रोका जा सकता है.

अच्छे हाथों की स्वच्छता बनाए रखने के महत्व पर जोर देते हुए एम्स के निदेशक डॉ रणदीप गुलेरिया ने कहा, “हाथ की स्वच्छता एक सबसे महत्वपूर्ण प्रभावी चीज है जो एक अच्छे स्वास्थ्य के लिए कर सकता है और यह किसी भी प्रकार के संक्रमण से बचाने में एक प्रमुख भूमिका निभाता है.”

हैजा: डब्ल्यूएचओ का कहना है कि हैजा एक गंभीर अतिसार रोग है, जिसका इलाज न होने पर कुछ ही घंटों में मौत हो सकती है. यह आगे बताता है कि शोधकर्ताओं ने अनुमान लगाया है कि हर साल हैजा के 1.3 से 4 मिलियन मामले होते हैं, और हैजा के कारण दुनिया भर में 21,000 से 143000 मौतें होती हैं. हालांकि, अगर हाथ धोने और अच्छी स्वच्छता लागू की जाए तो इसे आसानी से रोका जा सकता है.

राष्ट्रीय संचारी रोग संस्थान के अनुसार, हैजा भारत में स्थानिक अवस्था में है. 1817 से 1926 तक, यह बीमारी दुनिया भर में फैल गई थी, जिसके परिणामस्वरूप छह महामारियां हुईं. 1961 में इंडोनेशिया से शुरू हुई सातवीं महामारी दक्षिण एशिया, मध्य पूर्व, अफ्रीका, दक्षिणी यूरोप और पश्चिमी प्रशांत क्षेत्रों में फैल गई. वर्तमान में, मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, अगस्त 2021 में भारत में 447 हैजा के मामले अधिसूचित किए गए थे, और ये मामले हरियाणा के बलटाना में सामने आए थे.

हेपेटाइटिस ए: रोग नियंत्रण और रोकथाम केंद्र (सीडीसी) के अनुसार, हेपेटाइटिस का मतलब है यकृत की सूजन. लीवर एक महत्वपूर्ण अंग है, जो पोषक तत्वों को संसाधित करता है, रक्त को फिल्टर करता है और संक्रमण से लड़ता है. हेपेटाइटिस ए (एचएवी) वायरल संक्रमण का कारण बन सकता है जो जिगर की समस्याओं, पीलिया, पेट दर्द का कारण बन सकता है और अक्सर उन लोगों द्वारा तैयार दूषित भोजन के माध्यम से फैलता है जिन्होंने अपने हाथों को ठीक से साफ नहीं किया है.

यूएस नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ के अनुसार, हेपेटाइटिस ए भारत में स्थानिक यानी एंडेमिक है, अधिकांश आबादी जीवन भर की प्रतिरक्षा के साथ बचपन में स्पर्शोन्मुख रूप से संक्रमित होती है. पिछले एक दशक में भारत के विभिन्न हिस्सों में हेपेटाइटिस ए के कई प्रकोप दर्ज किए गए हैं, जैसे कि एंटी-एचएवी सकारात्मकता 26 से 85% तक भिन्न होती है. 1-5 वर्ष की आयु के लगभग 50% बच्चे एचएवी के प्रति संवेदनशील पाए गए.

सीडीसी का कहना है कि हाथ की अच्छी स्वच्छता का अभ्यास करना – जिसमें बाथरूम का उपयोग करने के बाद साबुन और पानी से अच्छी तरह से हाथ धोना, डायपर बदलना और खाना बनाने या खाने से पहले – हेपेटाइटिस ए सहित कई बीमारियों के प्रसार को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है.

इसे भी पढ़ें : सेल्फ केयर: रोज़ाना इन 5 टिप्स को जरूर करें फॉलो

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Exit mobile version