कोई पीछे नहीं रहेगा
कैसे पानी और स्वच्छता सुविधाओं तक पहुंच में सुधार से लैंगिक भेदभाव और पूर्वाग्रह को तोड़ा जा सकता है
स्वदेस फाउंडेशन के सीईओ मंगेश वांगे का कहना है कि महिलाओं को पानी और स्वच्छता सुविधाओं की कमी के कारण सबसे ज्यादा परेशानी होती है, क्योंकि वे पारंपरिक रूप से घर के पानी, भोजन और स्वच्छता जरूरतों के प्रबंधन के लिए जिम्मेदार होती हैं
नई दिल्ली: संयुक्त राष्ट्र जल (यूएन-वाटर) के अनुसार, सुरक्षित पेयजल के बिना, घर पर और कार्यस्थल और शिक्षा के स्थानों में पर्याप्त स्वच्छता और स्वच्छता सुविधाओं के बिना, महिलाओं और लड़कियों के लिए सुरक्षित, प्रोडक्टिव और स्वस्थ जीवन जीना बहुत मुश्किल है. एनडीटीवी में बनेगा स्वस्थ इंडिया की टीम ने स्वदेस (स्वदेश) फाउंडेशन के सीईओ मंगेश वांगे के साथ बात की कि कैसे पानी, स्वच्छता और स्वच्छता सुविधाओं तक पहुंच महिलाओं को लिंग भेद को तोड़ने के लिए सशक्त बना सकती है और उनके परिवारों को भी लाभ पहुंचा सकती है.
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यहां है मंगेश वांगे के साथ चर्चा के मुख्य अंश
एनडीटीवी : आप पानी, सेनेटाइजेशन और स्वच्छता के क्षेत्र में इतने लंबे समय से काम कर रहे हैं. हमें स्वदेस फाउंडेशन के काम और उसके प्रभाव के बारे में बताएं.
मंगेश वांगे: स्वदेस फाउंडेशन को काम करते हुए दो दशक से ज्यादा हो चुके हैं. हम पूर्ण संपूर्ण ग्रामीण सशक्तिकरण की दिशा में काम करते हैं. स्वदेस का वर्क मॉडल ‘संपूर्ण विकास’ है. इसके लिए हम सभी क्षेत्र में काम करते हैं, लेकिन शुरआत होती है पानी और स्वच्छता से. ये हमारा पहला काम होता है, जब हम किसी एरिया में जाते हैं. महाराष्ट्र के रायगढ़ और नासिक जिले में. पहले हम पानी और स्वच्छता पर काम करते हैं, फिर हम शिक्षा और स्वास्थ्य पर काम करते हैं और अंतत: उसमें जो परिणीति होती है वो आजीविका पर जाके होती है. इसे गांव के परिवार और पूरा गांव एक पूर्ण तारीके से आगे बढ़ता है. इसे हम 360-डिग्री मॉडल ऑफ डेवलपमेंट कहते हैं. हमारा मानना है कि जो आवाज है, वो कम्युनिटी से आने चाहिए. हमने 600 से ऊपर पानी की योजना बनाई है. 40,000 परिवार उससे जुड़े हैं, 2 लाख से ज्यादा आबादी को लाभ मिला है. हम गांव में पानी की एक समिति बनाते हैं जो योजना को चलायेगी और पानी की शुद्धाता को देखेंगी. इन समितियों में स्त्रियों की भगीदारी बहुत अच्छी है. जहां भी महिलाओं की भागिदारी अच्छी है, वहां हमें परणिाम भी बहुत अच्छे मिलते हैं.
एनडीटीवी: पानी, सेनेटाइजेशन और स्वच्छता तक पहुंच में लैंगिक असमानता क्यों मौजूद है और हम इसे कैसे बदल सकते हैं?
मंगेश वांगे: इस परेशानी को समाधान के लिए हमें दो चीजें समझनी होंगी. एक, हमारा समाज पुरुष प्रधान है और दूसरा, महिलायें खुद भी परिवार का ध्यान रखने को अपनी जिम्मेदारी समझती हैं. इन कारणों की वजह से ये समझा जाताहै कि स्त्री को ही घर चलाा है, उसे अपना परिवार संभलना है. इसको बदलने के लिए सबसे ज्यादा जरूरी ये है ये कि एक दो जानकरी बढ़ाई जाए और खासतौर से पुरुषों को ये समझाना जरूरी है कि ये जो समस्या है, ये सब को बांटने के जरूरी है. अभी अगर आप देखें, स्त्रियां ही पानी लेकर आती हैं चाहते हैं उन्हें 2-3 घंटे लगें, काफी दूर जाना पड़ता है. और शौच जाने के लिए भी, ज़्यादातर ग्रामीण महिलाओं को सूर्यास्त के बाद या सूर्योदय से पहले के समय का इंतज़ार करना पड़ा है. तो काफी परेशानियां महिलाओं को होती हैं. और जब तक, इस चीज की अनदेखी दूर नहीं होगी, तब तक समाधान नहीं होगा. महिलाओं के पानी, स्वच्छता सुविधा के संबंध में परेशानियों को दूर करने के लिए पुरूषों को भी आगे आना होगा. ये उनकी भी जिम्मेदारी है.
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एनडीटीवी : जलवायु परिवर्तन संकट को देखते हुए, हम महिलाओं पर जमीनी स्तर पर क्या प्रभाव देख रहे हैं और क्या पर्यावरणीय संकट के प्रभाव के संदर्भ में कोई लिंग विभाजन है?
मंगेश वांगे : ग्रामीण क्षेत्रों में तीन चीजें महिलाओं की सबसे बड़ी जिम्मेदारी होती है- पानी, इंधन, और भोजन. जलवायु परिवर्तन का सबसे ज्यादा प्रभाव महिलाओं पर पड़ता है, इस से उनका काम और मुश्किल हो जाता है. तापमान बढ़ गया है, बारिश बे-मौसम होने लगी है, जिस वजह से महिलायें जो पानी, इंधन और भोजन के लिए घर से बाहर निकलती हैं, उन्हें सबसे ज्यादा परेशानी होती है. जलवायु परिवर्तन से निपटने में महिला का अनुभव ज्यादा है, इसलिए वो हमारे किसी भी समाधान का महत्वपूर्ण हिस्सा बन सकती हैं. जैसे हमने एक गांव में देखा कि कैसे महिलाओं ने एक साथ आकार घर का जो अपशिष्ट जल है, उसे किचन गार्डन में इस्तेमाल किया.
एनडीटीवी : आप महिलाओं के बारे में क्या सोचते हैं और कैसे WASH सुविधाओं तक पहुंच उन्हें लैंगिक पूर्वाग्रह को तोड़ने और उनके परिवारों को लाभ पहुंचाने के लिए सशक्त बना सकती है?
मंगेश वांगे: पानी और स्वच्छता सुविधा से ज्यादा जरूरी कुछ नहीं है. बाकी सारी चीजें बाद में आती हैं. इसका प्रभाव समझना बहुत जरूरी है. सबसे पहले ये समझना रूरी है कि अगर पानी और शौच नहीं है, तो इसका सबसे ज्यादा प्रभाव महिलाओं के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ता है. रायगढ़ में हमने देखा कि पहाड़ी इलाको में भी, महिलायें पानी के हांडे उठा कर ऊपर चढाई करती हैं, गहराई में जाती हैं, कई किलोमीटर पानी उठा कर चलती हैं, तो उनके शरीर को बहुत नुकसान पहुंचता है. मानसिक रूप से सबसे ज्यादा परेशानी होती है जब उनको शौक के लिए अंधेरा होने का इंतजार करना पड़ता है. इसके अलावा, क्योंकि महिलाओं के अपने परिवार की चिंता होती है, इसलिए जब साफ पानी नहीं होता है, तो उनकी चिंता और भी बढ़ जाती है. अगर महिलाओं को घर में साफ पानी और शौक की सुविधा दे दी जाए, तो जो समय उनका पानी लाने में लगता है, उसमे वो अपना शारीरिक, मानसिक और आर्थिक स्वास्थ्य अच्छा कर सकती हैं. उनकी और उनके परिवार की उन्नति हो सकती है. WASH सुविधा तक पहुंच बहुत जरूरी है.
एनडीटीवी: पानी तक पहुंच से महिलाओं के स्वास्थ्य और पोषण मानकों में सुधार कैसे हो सकता है और बनेगा स्वस्थ इंडिया भारत के अंतिम लक्ष्य को प्राप्त करने में मदद कैसे मिल सकती है?
मंगेश वांगे: देश को स्वस्थ बनाने की शुरुआत पानी और स्वच्छता सुविधा से होती है. विश्व स्वास्थ्य संस्थान की भी एक रिपोर्ट है, जो कहती है कि जहां पर भी हाथ धोने को बढ़ा दिया गया है, वहा डायरिया के केस 42-47% कम हुए हैं. एक तो स्वच्छ पानी से बीमारियां नहीं होंगी और दूसरा, स्वच्छ पानी खाने के तत्वों को शरीर में लगने में मदद करता है. इसलिए स्वदेस फाउंडेशन ने इस चीज पर काम किया कि लोगों के घर के अंदर नल लगाए जाएं और उस नल में साफ पानी आए.
एनडीटीवी : पानी तक उनकी पहुंच में सुधार के लिए और क्या किया जा सकता है?
मंगेश वांगे: केवल नल में पानी पहुंचाने तक समस्या खत्म नहीं होती. हमारे जितने जल के श्रोत हैं जैसे तालाब, नदियां, उनमें गंदगी कम करके उन्हें पुनर्जीवन करना होगा. रेन वाटर हार्वेस्टिंग हमारे समाज का मिशन होना चाहिए. पानी की उपलब्धता के साथ पानी का स्वच्छ होना भी जरूरी है. पानी का इस्तेमाल भी कैसा हो रहा है, इस पर भी गौर करना होगा.
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