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2013 से वैश्विक वायु प्रदूषण में 59 प्रतिशत की बढ़ोतरी के लिए अकेला भारत जिम्मेदार: रिपोर्ट

शिकागो यूनिवर्सिटी के एनर्जी पॉलिसी इंस्टीट्यूट (EPIC) द्वारा जारी एयर क्वालिटी लाइफ (AQL) इंडेक्स के मुताबिक, तेजी से होते औद्योगीकरण और जनसंख्या वृद्धि को देश की एयर क्वालिटी में गिरावट के लिए जिम्मेदार बताया गया है

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दिल्ली को 'दुनिया का सबसे प्रदूषित मेगासिटी' कहा गया है। 2021 में वार्षिक PM2.5 स्तर 126.5 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर था, जो WHO दिशानिर्देश से 25 गुना अधिक है

नई दिल्ली: वायु प्रदूषण (Air pollution) ग्लोबल हेल्थ के लिए एक बड़ा खतरा बना हुआ है. 29 अगस्त को शिकागो यूनिवर्सिटी के एनर्जी पॉलिसी इंस्टीट्यूट (EPIC) की तरफ जारी एयर क्वालिटी लाइफ (AQL) इंडेक्स के मुताबिक, दक्षिण एशिया दुनिया के सबसे प्रदूषित देशों और वैश्विक आबादी (global population) का एक चौथाई हिस्सा है. सबसे ज्यादा प्रदूषित छह देशों में बांग्लादेश, भारत, नेपाल, पाकिस्तान, नाइजीरिया और इंडोनेशिया शामिल हैं.

पिछले साल बांग्लादेश, नेपाल और पाकिस्तान के साथ भारत दुनिया के चार सबसे प्रदूषित देशों में शामिल था.

रिपोर्ट में ये भी बताया गया है कि वायु प्रदूषण के बढ़ते स्तर के कारण इन देशों के लोगों का औसत जीवन पांच साल तक कम हो सकता है. रिपोर्ट के मुताबिक दक्षिण एशिया में कण प्रदूषण (PM 2.5) का स्तर 2013 से 2021 तक 9.7 प्रतिशत बढ़ गया है, जिससे इन चार देशों में लोगों की जिंदगी 6 महीने और कम हो गई है.

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रिपोर्ट की खास बातें:

  1. वैश्विक स्तर पर औसत PM2.5 का स्तर 2020 और 2021 के बीच 28 से बढ़कर 28.2 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर हो गया, जो विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के 5 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर की गाइडलाइन से पांच गुना ज्यादा है
  2. पिछले एक दशक में औसत विश्व प्रदूषण स्तर में थोड़ी गिरावट आई है, और इसमें अधिकतम सुधार चीन की तरफ से किया गया है, जहां 2013 के बाद से PM2.5 में 40 प्रतिशत से ज्यादा की गिरावट देखी गई है. इस देश के प्रदूषण स्तर में काफी सुधार देखा गया है, लेकिन यह अभी भी WHO की 5 माइक्रोग्राम की गाइडलाइन से काफी ज्यादा है
  3. भारत के बारे में इस रिपोर्ट में कहा गया है कि 2013 से लेकर 2021 तक इस देश ने अकेले वैश्विक वायु प्रदूषण में लगभग 59 प्रतिशत की वृद्धि की है. रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर प्रदूषण का मौजूदा स्तर बना रहता है तो इस देश के लोगों की जीवन प्रत्याशा (life expectancy) औसतन पांच साल कम होने की आशंका है
  4. 2013 से 2021 के दरम्यान भारत के कण प्रदूषण (PM2.5) का स्तर 9.5 प्रतिशत बढ़ गया है. तेजी से होते औद्योगीकरण और जनसंख्या वृद्धि को देश की एयर क्वालिटी में आई गिरावट के लिए जिम्मेदार बताया गया है
  5. 2020-21 के बीच भारत में प्रदूषण का स्तर 56.2 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर से बढ़कर 58.7 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर हो गया है, जो विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की गाइडलाइन (5 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर) से 10 गुना से भी ज्यादा है
  6. उत्तरी राज्य और केंद्र शासित प्रदेश भारत के सबसे प्रदूषित क्षेत्र हैं और अनुमान है कि इसके चलते वहां के निवासियों की जीवन प्रत्याशा (life expectancy) औसतन आठ साल तक कम हो जाएगी
  7. रिपोर्ट में दिल्ली को ‘दुनिया की सबसे प्रदूषित मेगासिटी’ कहा गया है. 2021 में इसका सालान PM2.5 स्तर 126.5 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर था, जो WHO की गाइडलाइन से 25 गुना ज्यादा है. इस वजह से दिल्ली के लोगों की जिंदगी औसतन 11.9 साल कम हो गई है
  8. भारत में जीवन प्रत्याशा कम करने, हृदय रोग यानी कार्डियोवैस्कुलर डिजीज और बाल एवं मातृ कुपोषण के मामलों के लिए पार्टिकुलेट मैटर पॉल्यूशन स्वास्थ्य के लिए सबसे बड़ा खतरा है. कणीय प्रदूषण (particulate pollution) भारतीयों के जीवन को लगभग 5.3 साल कम कर देता है, जबकि हृदय रोगों की वजह से जीवन प्रत्याशा लगभग 4.5 साल कम हो जाती है, और बाल एवं मातृ कुपोषण के कारण जीवन प्रत्याशा 1.8 साल कम हो जाती है

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वायु प्रदूषण से निपटने में भारत के प्रयास

AQLI रिपोर्ट ने वायु प्रदूषण को कम करने में भारत के प्रयासों पर भी रोशनी डाली, जैसे कि 2019 में नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम (NCAP) की शुरुआत, जिसका टारगेट 2024 तक प्रदूषण के स्तर को 20 से 30 प्रतिशत तक कम करना है.

2022 में, 131 non-attainment cities (वे शहर जो पांच सालों से अधिक समय से राष्ट्रीय परिवेश वायु गुणवत्ता मानकों से कम हैं) में 2026 तक PM 2.5 के स्तर में 40 प्रतिशत की कमी लाने के लक्ष्य के साथ NCAP के लक्ष्य को रिवाइज यानी संशोधित किया गया था.

रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर इन शहरों को कवर किया जाता है, तो राष्ट्रीय औसत जीवन प्रत्याशा 7.9 महीने और दिल्ली के निवासियों के लिए 4.4 साल बढ़ जाएगी.

AQLI रिपोर्ट ने देशों को विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के दिशानिर्देशों के मुताबिक वैश्विक प्रदूषण स्तर को कम करने की भी सिफारिश की, क्योंकि इससे औसत जीवन प्रत्याशा 2.3 साल बढ़ सकती है.

वायु प्रदूषण पर अंकुश लगाने की दिशा में भारत की प्रतिबद्धता को आगे बढ़ाने के लिए, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नवंबर 2021 में संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज (UNFCCC) के 26वें कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज (COP) में प्रतिज्ञा ली कि देश 2070 तक अपने उत्सर्जन (emissions) में कटौती करके शून्य कर देगा.

प्रधानमंत्री ने कहा था कि 2030 तक देश का कार्बन उत्सर्जन एक अरब तक कम हो जाएगा.

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