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आधिकारिक पुष्टि! वैश्विक स्तर पर सबसे गर्म रहा साल 2023 की गर्मी का सीजन
विश्व मौसम विज्ञान संगठन के सीनियर एक्सट्रीम हीट एडवाइजर डॉ. जॉन नायरन ने कहा, हम अल नीनो सीजन में एक गर्म दुनिया देखेंगे
नई दिल्ली: हीटवेव, अचानक बाढ़, बादल फटना – यदि जलवायु परिवर्तन पर तत्काल कार्रवाई करने के लिए किसी सबूत की जरूरत है तो वह ये चरम और विनाशकारी मौसम की घटनाएं हैं, जिन्हें दुनिया लगातार महसूस कर रही है. यूरोपीय आयोग की ओर से कॉपरनिकस क्लाइमेट चेंज सर्विस (सी3एस) द्वारा 5 सितंबर को जारी नवीनतम रिपोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया है कि 2023 की गर्मी (जून, जुलाई और अगस्त) बड़े अंतर से वैश्विक स्तर पर सबसे गर्म थी. इस दौरान औसत तापमान 16.77°C दर्ज किया गया, जो कि औसत से 0.66°C ज्यादा है.
जलवायु परिवर्तन और इसके खतरनाक प्रभावों से निपटने के लिए, 2015 में पेरिस समझौता किया गया था. इसका उद्देश्य इस सदी में वैश्विक तापमान वृद्धि को 2 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के लिए वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को काफी हद तक कम करने का है. इसके साथ ही तापमान में बढ़ोतरी को और भी 1.5 डिग्री तक सीमित करने के प्रयासों को आगे बढ़ाना है. हालांकि, इस साल मार्च में जारी इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) सिंथेसिस रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया के वैश्विक तापमान में वृद्धि को पूर्व-औद्योगिक स्तरों से 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के लक्ष्य से चूकने की संभावना बहुत ज्यादा है.
गर्मी सीजन (जून-जुलाई-अगस्त) 2023 की मुख्य बातें:
- तीन महीनों में उत्तरी अटलांटिक और वैश्विक महासागर में समुद्री सतह के तापमान में रिकॉर्ड तोड़ असमानताएं देखी गईं. 2023 की गर्मियों में यूरोप के कई इलाकों में समुद्री लू चली, जिसमें जून के महीने में आयरलैंड और ब्रिटेन के आसपास का इलाका और जुलाई-अगस्त महीने में भूमध्य सागर शामिल था.
- 2023 के पहले 8 महीनों को देखे तो इस दौरान अब तक की दूसरी सबसे ज्यादा वैश्विक तापमान असामानता रिकॉर्ड की गई. जो कि अभी तक के सबसे गर्म साल 2016 से सिर्फ 0.01 डिग्री सेल्सियस कम है.
- अगस्त 2023 वैश्विक स्तर पर अब तक का सबसे गर्म अगस्त था और 2023 में जुलाई को छोड़कर अन्य सभी महीनों की तुलना में सबसे ज्यादा गर्म था. अनुमान है कि यह महीना 1850-1900 के पूर्व-औद्योगिक काल की तुलना में औसत से करीब 1.5 डिग्री सेल्सियस ज्यादा गर्म था.
बढ़ता तापमान भारत को कैसे करता है प्रभावित?
क्लाइमेट शिफ्ट इंडेक्स एक टूल है, जिसे क्लाइमेट सेंट्रल द्वारा विकसित किया गया है. क्लाइमेट सेंट्रल वैज्ञानिकों और संचारकों (Communicators) का एक अमेरिका बेस्ड स्वतंत्र समूह है. यह रोजाना तापमान पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को मापता है. यदि सूचकांक सकारात्मक स्तर के साथ -5 से +5 के बीच होता है, तो जलवायु परिवर्तन के कारण तापमान के ज्यादा सामान्य होने का संकेत देता है. वहीं दूसरी ओर, नकारात्मक अंक उन स्थितियों को दर्शाते हैं, जो पर्यावरण के अनुकूल नहीं हैं.
- भारत में केरल, पुडुचेरी और अंडमान-निकोबार द्वीप समूह में सीएसआई स्तर तीन या उससे ज्यादा पर 60 दिनों से अधिक गर्म तापमान का महसूस हुआ. इन स्थानों पर सामान्य से तीन डिग्री ज्यादा तापमान महसूस किया गया.
- पांच भारतीय राज्यों में गर्मियों का औसत सीएसआई लगभग तीन था, जिसका मतलब है कि जलवायु परिवर्तन से जुड़ा उनका गर्मियों का तापमान अधिक था.
- 11 राज्यों में औसत तापमान दीर्घकालिक (1991-2020) औसत से एक डिग्री सेल्सियस या उससे ऊपर महसूस किया गया.
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तापमान में बढ़ोतरी की प्रवृत्ति और इसके प्रभाव को समझने के लिए एनडीटीवी के विष्णु सोम ने विश्व मौसम विज्ञान संगठन के सीनियर एक्सट्रीम हीट एडवाइजर डॉ. जॉन नायरन से बात की. उन्होंने ने बताया,
तापमान की बढ़ती प्रवृत्ति शुरुआत में ट्रॉपिकल क्षेत्रों पर सबसे अधिक प्रभाव डालेगी, भले ही हम यूरोप, उत्तरी अमेरिका और चीन के जरिए मध्य अक्षांशों के माध्यम से काफी महत्वपूर्ण संकेत देख रहे हैं. हम उम्मीद कर रहे हैं कि ट्रॉपिकल और सब-ट्रॉपिकल के माध्यम से सबसे मजबूत सिग्नल दिखे. हमें इस तरह की और ज्यादा स्थितियों के लिए तैयार रहना चाहिए.
पिछले महीने, भारत के हिमाचल प्रदेश में अचानक बाढ़ और भूस्खलन की घटनाएं हुई. देश के कुछ हिस्सों में भारी वर्षा के बावजूद, कुल मिलाकर मानसून के दौरान औसत से कम बारिश देखने को मिली. भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के अनुसार, अगस्त 2023 के दौरान, भारत में 162.7 मिमी बारिश हुई, जो आंकड़ों (1971-2020) के आधार पर इसकी लंबी अवधि के औसत 254.9 मिमी से 36% कम है. इस साल भारत में साल 1901 के बाद से सबसे कम (162.7 मिमी) बारिश हुई, जबकि 2005 में इसका पिछला रिकॉर्ड 191.2 मिमी था.
डॉ. नायरन का मानना है कि यह “निश्चित रूप से” जलवायु परिवर्तन का परिणाम है. उन्होंने आगे कहा,
उदाहरण के लिए, ओमेगा ब्लॉक जो अभी यूरोप में है. जहां हम एक तरफ बाढ़ के साथ गर्मी की लहर देखते हैं. हम चरम स्थितियों की एक जुड़ी हुई दुनिया को देख रहे हैं. वैश्विक पैटर्न का मतलब यह होगा कि हम उच्च वर्षा वाले क्षेत्रों के बाद गर्मी की एक श्रृंखला देखेंगे. दुर्भाग्य से, गर्म पृथ्वी बारिश के लिए अधिक क्षमता पैदा करेगी. वार्मिंग की प्रत्येक एक डिग्री के लिए, हमें वायुमंडल में 7 से 10 प्रतिशत अधिक जलवाष्प देखने को मिलेगा.
डॉ. नायरन ने चेतावनी देते हुए कहा कि हम अल नीनो सीजन में एक गर्म दुनिया देखेंगे. इसके चलते हर घरेलू अर्थव्यवस्था में बदलाव लाने और समय के साथ स्थानांतरण (टेक्नोलॉजीज का) का दबाव बढ़ेगा.
डॉ. नायरन का मानना है कि जहां एक ओर, हमें इस संकट का जवाब देने के लिए टेक्नोलॉजीज की जरूरत है, वहीं दूसरी ओर हमें बदलाव को अपनाने और अनुकूलन करने की भी आवश्यकता है क्योंकि हम इन प्रभावों – गर्मी और वर्षा को बढ़ते हुए देखना जारी रखेंगे. वह लोगों की आजीविका की रक्षा करने और बेहतर काम करने वाले समुदाय के रूप में सामने आने के लिए स्थानीय और संघीय सरकार के साथ श्रम कानूनों के जरिए काम करने का सुझाव देते हैं.
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जलवायु परिवर्तन और स्वास्थ्य
सोमवार (18 सितंबर) को जारी ग्लोबल फंड 2023 की परिणाम रिपोर्ट के मुताबिक, जलवायु परिवर्तन और संघर्ष के साथ-साथ गहरी असमानताओं और मानवाधिकारों के लिए बढ़ते खतरों सहित कई चुनौतियों ने 2030 तक एड्स, टीबी और मलेरिया को समाप्त करने का लक्ष्य रखा है. रिपोर्ट में कहा गया है,
जलवायु परिवर्तन का पहले से ही संक्रामक रोगों का महामारी विज्ञान (Epidemiology) पर प्रभाव पड़ रहा है. उदाहरण के लिए मलेरिया अफ्रीका के ऊंचाई वाले हिस्सों में फैल रहा है जो पहले परजीवी फैलाने वाले एनोफेलीज मच्छर के लिए बहुत ठंडे माने जाते थे. चक्रवात, बाढ़ और अन्य जलवायु संबंधी चरम घटनाएं मलावी और पाकिस्तान जैसे मलेरिया संक्रमण में बढ़ोतरी का कारण बन रही हैं. साथ ही जीवनरक्षक स्वास्थ्य बुनियादी ढांचे और सेवाओं को भी बाधित कर रही हैं.
रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि जलवायु परिवर्तन सहित कई अन्य संकट, मलेरिया के प्रसार को बढ़ावा दे रहे हैं और हमें 2030 तक इस बीमारी को समाप्त करने के लक्ष्य से दूर कर रहे हैं. जलवायु परिवर्तन से बीमारी फैलने के लिए वातावरण को और अधिक अनुकूल बनाकर मलेरिया का बोझ बढ़ने की संभावना है. रिपोर्ट में आगे कहा गया है,
परिवेश के तापमान में बढ़ोतरी का मतलब है कि मलेरिया फैलाने वाले मच्छर उन क्षेत्रों में पनप सकते हैं जहां वे पहले नहीं पनप पाते थे. अधिक बार होने वाली जलवायु-संबंधी आपदाएं, जैसे बाढ़, मलेरिया फैलाने वाले मच्छरों के लिए एक आदर्श प्रजनन स्थल बनाती हैं.
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