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मिलिए, गुड़गांव की एक आशा वर्कर पूनम से, जो 2006 से महिलाओं की मदद करती आ रही हैं
गुड़गांव की पूनम एक आशा वर्कर हैं, जो 2006 से काम कर रही है और एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं क्योंकि वह कम्युनिटी और पब्लिक हेल्थ केयर सिस्टम के बीच एक कड़ी के रूप में कार्य करती हैं
नई दिल्ली: भारत के मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं या आशा वर्कर्स को विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा वैश्विक स्वास्थ्य को आगे बढ़ाने में उनके ‘उत्कृष्ट’ योगदान और उनके प्रदर्शित नेतृत्व और रीजनल हेल्थ इश्यू के प्रति प्रतिबद्धता के लिए सम्मानित किया गया है. आशा 2006 में नेशनल रूरल हेल्थ मिशन के तहत स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा गठित कम्युनिटी हेल्थ वर्कर की महिला काडर है. वे स्वास्थ्य संबंधित जरूरतों से वंचित महिलाओं और बच्चों को किसी भी तरह की मदद दिलाने का पहला जरिया होती हैं. आशा वर्कर्स को कम्युनिटी के भीतर से चुना जाता है और इसके लिए उन्हें जवाबदेह ठहराया जाता है. गुड़गांव की पूनम, एक आशा वर्कर की कहानी इसे स्थापित करती है. पूनम 2006 से काम कर रही हैं और एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं क्योंकि वह कम्युनिटी और पब्लिक हेल्थ केयर सिस्टम के बीच एक कड़ी के रूप में कार्य करती हैं.
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पूनम वर्तमान में गुड़गांव के तिगरा गांव में कार्यरत हैं, जिसकी आबादी 2,000 से अधिक है. पूनम ने NDTV को बताया कि प्रारंभिक वर्षों में, बुनियादी स्वास्थ्य देखभाल के बारे में परिवारों में जागरूकता पैदा करने की आवश्यकता थी. आशा वर्कर्स द्वारा आयोजित शिविरों में आने के लिए महिलाओं को राजी करना पड़ा. जैसे-जैसे लाभ धीरे-धीरे नजर आने लगा, अधिक से अधिक महिलाएं कार्यक्रम की लाभार्थी बनने लगीं.
मेरा काम पहले सर्वे करना है. सर्वे के दौरान, यदि मुझे कोई गर्भवती महिला मिलती है, तो मैं उनका रजिस्ट्रेशन करवाती हूं, उनका मेडिकल कार्ड बनाती हूं और उनके विभिन्न टेस्ट करवाती हूं. फिर, उनके नौ महीनों के दौरान, मैं उन्हें टेस्ट करवाने के लिए चार बार फोन करती हूं और फिर उन्हें सरकारी अस्पताल में डिलीवरी के लिए ले जाती हूं. पोस्ट-डिलीवरी के बाद लगभग डेढ़ महीने तक हम बच्चे के वजन, मां की कंडीशन की जांच करते हैं और फूड और न्यूट्रिशन का ध्यान रखते हैं. उसके बाद, हम यह सुनिश्चित करते हैं कि बच्चे को सभी टीके दिए जाएं.
पूनम ने बताया कि आशा लोगों को मेडिकल कार्ड उपलब्ध कराने में मदद करती हैं, जिनमें महिलाओं और उनके बच्चों का मेडिकल रिकॉर्ड होता है. खासतौर से यह वैक्सीनेशन में काफी मददगार साबित होता है. पूनम आगे कहती हैं कि,
पहले हमारे बारे में कोई नहीं जानता था कि हम कौन हैं और हम क्या काम करते हैं, वे कहते थे कि कोई आशा कार्यकर्ता आई है, लेकिन अब वे न केवल हमारे बारे में जानते हैं, वे हमें खुद भी बुलाते हैं.
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पूनम के गांव की एक लाभार्थी कविता ने NDTV को बताया,
‘आशा ने कई तरह से हमारी मदद की है. पहले यहां गांव की महिलाओं को इन बातों की जानकारी नहीं थी. अब टीकाकरण किया जाता है, हमें समय-समय पर चेकअप के लिए यहां बुलाया जाता है. हमारा कार्ड बनता है और हमारा ब्लड प्रेशर और वजन भी नियमित रूप से जांचा जाता है.
पूनम भारत की दस लाख आशा दीदियों में से एक हैं, जैसा कि उन्हें कहा जाता है, जो कम्युनिटी और पब्लिक हेल्थ केयर सिस्टम के बीच एक इंटरफेस के रूप में कार्य करती हैं. वह प्रोपर हेल्थ केयर प्रैक्टिस के लिए कम्युनिटी को संगठित करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है.
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