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नेशनल यूथ डे 2024: मिलिए उन पांच युवा वॉरियर्स से जिन्होंने धरती को हरा और स्वस्थ्य बनाने के लिए की कड़ी मेहनत

नेशनल यूथ डे: आज पढ़िए धरती को हरा-भरा बनाने के लिए बड़ा काम करने वाले युवा ईको-वॉरियर्स की कहानी

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नई दिल्ली: हर साल 12 जनवरी को देश में नेशनल यूथ डे के तौर पर मनाया जाता है. भारत में इस दिन आध्यात्मिक गुरु, दार्शनिक और लेखक स्वामी विवेकानंद की जयंती भी मनाई जाती है. देश में स्वामी विवेकानन्द के जन्मदिन को नेशनल यूथ डे के रूप में मनाने का फैसला साल 1984 में लिया गया था और इसे पहली बार 12 जनवरी 1985 को मनाया गया था. यह दिन विवेकानन्द की शिक्षाओं का सम्मान करता है और राष्ट्र निर्माण में युवाओं के महत्व पर जोर देता है.

इस दिन को खास बनाने के लिए, बनेगा स्वस्थ इंडिया, पांच युवा पर्यावरण-योद्धाओं की प्रेरणादायक कहानियों को आपके सामने लेकर आया है. ये पांचों युवा अपने प्रयासों से इस धरती को ज्यादा बेहतर और रहने के लिए अधिक योग्य बनाने में अपना योगदान दे रहे हैं- जिससे धरती, ज्यादा हरी-भरी, स्वस्थ और प्रदूषण मुक्त रहे.

मिलिए भारत के सबसे युवा इको वॉरियर्स से

9 साल की ग्रीन वॉरियर- ईहा दीक्षित

ईहा दीक्षित सिर्फ नौ साल की उम्र में, एक प्लांट बैंक की मालिक हैं. इसके अलावा उन्होंने अपना खुद का एनजीओ शुरू किया है, जिसका नाम- ग्रीन ईहा स्माइल फाउंडेशन है. इस एनजीओ का काम उत्तर प्रदेश के मेरठ में छोटे जंगलों, पार्कों, ग्रीन पट्टियों का निर्माण करना और आम जिंदगियों को पेड़ों की छाया के साथ साफ हवा मुहैया कराना है.

संयुक्त राष्ट्र विश्व शांति शिखर सम्मेलन 2022 में ईहा मुख्य वक्ताओं में शामिल थीं. ईहा को प्रधान मंत्री राष्ट्रीय बाल पुरस्कार 2019 के साथ-साथ, भारत सरकार के जल शक्ति मंत्रालय से मिलने वाला जल नायक पुरस्कार भी मिला है. वह मिशन 100 करोड़ ट्री और क्लीन इंडिया, ग्रीन इंडिया की ब्रांड एंबेसडर भी हैं.

ईहा ने इसकी शुरुआत महज चार साल की उम्र में की, जब इस युवा योद्धा ने अपने परिवेश को हरा-भरा और सुंदर बनाने के लिए पौधे लगाने का फैसला किया. हर रविवार को पांच पौधे और विशेष अवसरों पर सैकड़ों पौधे लगाकर अकेले ही ईहा ने इस ग्रीन प्रोजोक्ट को शुरु किया. ईहा कहती हैं,

अपनी धरती को बचाने का यह हमारे लिए आखिरी मौका है. एक कहावत है, जिस पर मैं विश्वास करती हूं, हम रसोई और बगीचे के जरिए अपने चारों ओर एक हरा-भरा वातावरण तैयार कर कई बीमारियों का इलाज कर सकते हैं. हम सभी को अपने जीवन के दौरान हरियाली बढ़ाकर धरती को और भी सुंदर बनाना चाहिए. मैं अपना काम कर रही हूं और आखिरी सांस तक ऐसा काम करती रहूंगी.

ईहा अभी तक 20 हजार से ज्यादा पौधे लगा चुकी हैं. पौधों को उगाने के अलावा, ईहा फलों के बीजों से सीड बॉल्स तैयार कर रही हैं, जिन्हें वह खाद, मिट्टी और कोकोपीट के साथ मिलाती हैं. एक बार इन सब के सूखने के बाद, बीज के गोलों को उगने और बढ़ने के लिए बरसाती मौसम में जंगलों और खाली भूमि पर फेंक दिया जाता है. इसके अलावा, ईहा ने अपने घर पर एक प्लांट बैंक भी बनाया है, जिसमें लोगों के जरिए दान किए गए पौधों का इस्तेमाल होता है, जो अब उनकी देखभाल नहीं कर सकते है. ईहा पौधों को जमा करती हैं और उन लोगों को मुफ्त में दान करती हैं जो इसकी जिम्मेदारी लेना चाहते हैं. ईहा सिंगल-यूज प्लास्टिक की बोतलों को भी जमा करती हैं और उन्हें प्लांट होल्डर के तौर पर इस्तेमाल करती हैं.

पुरानी जीन्सों से बेघरों के लिए स्लीपिंग बैग बनाने वाले 17 साल के निर्वाण सोमानी की कहानी

2019 में मुझे पता चला कि हमारी फेवरेट नीली डेनिम जीन्स धरती को काफी प्रदूषित करती है. आपको एक विचार देने के लिए, अलग-अलग रिसर्च के मुताबिक यह अनुमान लगाया गया है कि एक जोड़ी जीन्स और इसके कच्चे माल में ‘वाटर फुटप्रिंट’ (इसके उत्पादन के लिए जरूरी पानी की कुल मात्रा) का एक तिहाई हिस्सा इस्तेमाल होता है. जीन्स के मामले में, यह कुल 11,000 में से लगभग 3,000 लीटर पानी है. ऑक्सफैम की रिसर्च के मुताबिक, जीन्स को बनाने के दौरान होने वाला उत्सर्जन दुनिया भर में 2,372 बार हवाई जहाज उड़ाने या 21 अरब मील से ज्यादा की यात्रा करने वाली एक पेट्रोल कार के बराबर है. दिल्ली के निर्वाण सोमानी कहते हैं, इन सभी परेशान करने वाले आंकड़ों ने मुझे कुछ करने के लिए प्रेरित किया और यहीं से मेरी पहल ‘प्रोजेक्ट जींस’ की शुरुआत हुई.

अपनी मां की मदद से निर्वाण ने बेघरों के लिए इस्तेमाल किए गए डेनिम को धोने योग्य और इंसुलेटिंग स्लीपिंग बैग में बदलना शुरू कर दिया. निवार्ण की मां एक फैशन डिजाइनर हैं. इससे धरती से लैंडफिल कचरे को कम किया जा सकता और बेघरों के लिए कठोर मौसम में सुरक्षा मिल सकती है. निर्वाण की इस पहल से जरूरतमंदों के जीवन पर सकारात्मक असर पड़ा है. अब तक, उन्होंने 8,000 से अधिक जोड़ी जीन्स को दोबारा तैयार कर, हजारों स्लीपिंग बैग बेघरों में बांटे हैं.

निर्वाण ने बीते साल फरवरी में भूकंप से बुरी तरह प्रभावित हुए तुर्किए और सीरिया के कुछ हिस्सों में स्लीपिंग बैगों को बांटा है.

भविष्य में अपनी पहल को आगे बढ़ाने की आशा के साथ वे कहते हैं,

हम सभी को पर्यावरण के प्रति अपना योगदान देना चाहिए. एक छोटी सी पहल और प्रयास भी बहुत आगे तक ले जाया जा सकता है. आखिर में, मैं आप सभी से निवेदन करना चाहता हूं कि एक कंज्यूमर के रूप में हमें नए कपड़े खरीदने के बारे में दो बार सोचना चाहिए और निश्चित रूप से पुराने का दोबारा उपयोग करना चाहिए.

15 साल अनिकेत कालागरा ‘परफेक्टिज्म’ से लड़ने और युवाओं को मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं के खिलाफ लड़ने में मदद करने के मिशन पर हैं

अपने प्रोजेक्ट Ridere के जरिए, अनिकेत कालागारा 10 से 18 साल की उम्र के युवाओं के बीच ‘प्रेशर ऑफ परफेक्शन’ के मुद्दे के बारे में छोटे बच्चों और उनके माता-पिता के बीच जागरूकता बढ़ाने का काम कर रहे हैं. इसके साथ-साथ अनिकेत युवाओं को मानसिक स्वास्थ्य से लड़ने के महत्व को समझाने में मदद करने की दिशा में काम कर रहे हैं.

यह प्रोजेक्ट अनिकेत के निजी अनुभवों से प्रेरित है, उन्होंने अपनी पहल की शुरुआत के बारे में बताते हुए कहा,

सात साल की उम्र में, यूनाइटेड स्टेट ऑफ अमेरिका में, मुझे मेरी शारीरिक बनावट के चलते कई लोगों ने परेशान किया था. मुझ पर परफेक्ट बनने का लगातार दबाव था. इस दबाव ने मुझे अपना प्रोजेक्ट शुरू करने के लिए प्रेरित किया, क्योंकि मैं समझता हूं कि मेरे जैसे कई ऐसे किशोर और युवा हैं, जो इस दवाब में हैं और खुद को फंसा हुआ महसूस करते हैं.

अनिकेत चार मेडिकल एक्सपर्ट्स और शिक्षकों के मार्गदर्शन में युवाओं के लिए कई मेंटल हेल्थ वर्कशॉप और सेशन आयोजित करते हैं, जिसमें ‘परफेक्शनिज्म’ के मानसिक स्वास्थ्य प्रभावों, जैसे चिंता, कम आत्मसम्मान आदि समस्याओं पर बात की जाती है.

प्रोजेक्ट के एक हिस्से के रूप में, अनिकेत युवाओं के परिवारों को, माता-पिता और बच्चों के बीच रिश्ते के महत्व के बारे में भी शिक्षित करते हैं. अब तक उन्होंने 400 से अधिक परिवारों के जीवन पर प्रभाव डाला है.

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25 साल के सौम्य रंजन बिस्वाल ने एक समुद्र तट से बदल दी ओडिशा में ओलिव रिडले कछुओं की किस्मत

दुनिया में सबसे ज्यादा ओलिव रिडलिस कछुए, ओडिशा में पाए जाते हैं. दुर्भाग्य से, इंसानी गतिविधियों के चलते इस स्थान पर व्यापक क्षति हुई है. इससे न केवल जलवायु को भारी नुकसान हुआ है, बल्कि समुद्र तट के किनारे प्रदूषण में इजाफे से समुद्री कछुओं की मौत भी हुई है.

सौम्य ने आगे कहा कि-

ओडिशा में पले-बढ़े होने के दौरान, मुझे समुद्र तट पर आने वाले ओलिव रिडलिस कछुओं को देखने की आदत हो गई थी. ये सब देखना एक जादुई अनुभव था. इन सालों में, मैंने यह देखना और गौर करना शुरू कर दिया कि बढ़ते प्रदूषण के कारण समुद्र तट पर मरे हुए ओलिव रिडलिस कछुओं की संख्या बढ़ने लगी है, सुंदर दृश्य, खराब दृश्य में बदलने लगा. जब मैंने इसके पीछे कारण के बारे में जानना शुरू किया, तो मुझे एहसास हुआ कि कछुओं की मौत का कारण हम इंसानों का फैलाया प्रदूषण है. इंसानी गतिविधियों के कारण ओलिव कछुओं की मौत हो रही थी. ओलिव रिडलिस कछुओं को ओडिशा समुद्र तटों पर वापस लाने के लिए अपनी बीटेक की डिग्री छोड़ने का फैसला किया.

सौम्य ने कुछ वॉलिंटियर्स के साथ मिलकर मैंग्रोव वन और वन्यजीव प्रजातियों को मरने से बचाने के लिए प्रयास शुरू किया. उन्होंने इसके लिए हर सप्ताह समुद्र तट पर सौम्य और उनके साथियों ने सफाई अभियान का साप्ताहिक कार्यक्रम शुरू किया. अब तक सौम्य 350 से ज्यादा सफाई कार्यक्रम आयोजित कर चुके हैं. इसके अलावा ओलिव कछुओं के अंडों की शिकारियों से सुरक्षा करने के लिए उन्होंने रात में गश्त लगाना भी शुरू किया है.

बीते साल सौम्य ने ओडिशा में जागरूकता अभियान के तहत 800 किलोमीटर की बाइक रैली भी निकाली. इस रैली के चलते उनका नाम लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में दर्ज हुआ. अब तक सौम्य राज्य सरकार के साथ मिलकर, 1,200 किमी से अधिक की दूरी तय कर चुके हैं. उनके इस अभियान के चलते ओडिशा के समुद्र तटों पर समुद्री कछुओं की मृत्यु दर 100 से घटकर 30 हो गई है. इसके अलावा, लोग अब मैंग्रोव के महत्व के बारे में अधिक जागरूक और उन्हें बचाने के लिए ज्यादा तत्पर हैं. इन प्रयासों से मौजूदा मैंग्रोव बायो डायवर्सिटी का विकास हो रहा है.

5 साल की उम्र से पर्यावरण प्रदूषण के खिलाफ लड़ने वाली 23 साल की रिद्धिमा पांडेय की कहानी

साल 2017 में, जब स्वीडिन की मशहूर जलवायु कार्यकर्ता ग्रेटा थनबर्ग ने कई देशों पर जलवायु परिवर्तन को लेकर उनकी निष्क्रियता का आरोप लगाते हुए संयुक्त राष्ट्र में एक ऐतिहासिक रूप से बात रखी तो ऐसा करने वाली वो अकेली नहीं थी. भारत में भी एक ऐसी ही छोटी सी कार्यकर्ता, 12 साल की रिद्धिमा पांडे उत्तराखंड के हरिद्वार में अपनी बात रख रही थीं. उन्होंने जलवायु परिवर्तन को गंभीरता से न लेने पर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल में अपनी याचिका दायर की थी.

पर्यावरण को लेकर रिद्धिमा की यात्रा तब शुरू हुई, जब उनकी उम्र पांच साल की थीं. उन्होंने साल 2013 में उत्तराखंड में आई बाढ़ के विनाशकारी दृश्य देखे थे, इस बाढ़ ने उनकी याददाश्त पर गहरा असर छोड़ा. रिद्धिमा को बाढ़, बादल फटने, भारी बारिश के कारण अपने घर और माता-पिता को खोने और बाढ़ से मरने जैसे बुरे-बुरे सपने आने लगे. युवा रिद्धिमा इस लगातार महसूस होने वाले डर के बीच नहीं रहना चाहती थी इसलिए उसने अपने माता-पिता से संपर्क किया. चूंकि उसके माता-पिता खुद पर्यावरणविद् थे तो रिद्धिमा ने उसने ग्लोबल वार्मिंग के बारे में समझा और सीखा. इसके परिणामस्वरूप उसे पता चला कि बाढ़ कैसे आती है?

यही वह दिन था जब रिद्धिमा ने अपनी धरती के लिए छोटे-छोटे काम करने शुरू किए. उन्होंने सिंगल यूज प्लास्टिक का इस्तेमाल रोकने, बेवजह लाइट और बिजली उपकरणों को बंद करने और अपने कार्बन फुटप्रिंट को कम करने के साथ-साथ पानी को बचाने, साइकिल पर ट्यूशन जाने और अपने माता-पिता से भी ऐसा करने का अनुरोध किया.

रिद्धिमा ने बताया कि “इन तमाम प्रयासों के बाद भी जब मुझे ज्यादा बदलाव नहीं देखने को मिला तो इस मुद्दे की गंभीरता का एहसास हुआ. इसके बाद मैंने 2017 में एक याचिका दायर की थे. एक नागरिक के रूप में, मैंने महसूस किया कि सरकार के पास कानून बनाने से लेकर उसे संशोधित करने और इसके खिलाफ कार्रवाई करने की ताकत है. जैसा कि पेरिस समझौते 2015 में वादा किया गया था, उसके मुताबिक प्रदूषण फैलाने वाले उद्योग पर्याप्त कदम नहीं उठा रहे थे.” रिद्धिमा की इस याचिका में सरकार की निष्क्रियता को कारण बताया गया और तत्काल कदम उठाने के लिए कहा गया.

हालांकि रिद्धिमा की याचिका को एनजीटी में खारिज कर दिया गया था, लेकिन उन्होंने इस याचिका को देश के सर्वोच्च न्यायालय तक पहुंचाया. इसके बाद से रिद्धिमा अपने साथी बच्चों को जलवायु परिवर्तन के बारे में शिक्षित कर रही हैं. जलवायु परिवर्तन को लेकर होने वाले कार्यक्रमों में रिद्धिमा लगातार हिस्सा लेती हैं. साल 2019 में, जलवायु संकट पर रिद्धिमा ने ग्रेटा थनबर्ग सहित 15 युवा क्लाइमेट वॉरियर के साथ मिलकर, दुनियाभर के 12 देशों से, सरकारी कार्रवाई की कमी के विरोध में संयुक्त राष्ट्र समिति के सामने एक ऐतिहासिक शिकायत पेश की है. 2021 में भी, रिद्धिमा और 13 दूसरे युवा कार्यकर्ताओं ने संयुक्त राष्ट्र महासचिव के सामने एक कानूनी याचिका दायर की थी, और उनसे “सिस्टम-वाइड क्लाइमेट इमरजेंसी” घोषित करने का अनुरोध किया है.

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