ताज़ातरीन ख़बरें

स्टेट मेंटल हेल्थ अथॉरिटी के गठन की प्रक्रिया जारी, दिल्ली सरकार ने हाईकोर्ट को दिया आश्वासन

मामले में दायर एक स्टेटस रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली सरकार ने अनुरोध किया कि अधिकारी को व्यक्तिगत उपस्थिति से छूट दी जाए और अदालत द्वारा सक्षम प्राधिकारी की मंजूरी के लिए दो महीने का समय दिया जाए

Published

on

डीएसएलएसए की तरफ से एक नीतिगत कार्य योजना तैयार करने एवं मजिस्ट्रेटों, पुलिस अधिकारियों और कस्टोडियल इंस्टीट्यूट्स के इंचार्जों के लिए एक संवेदीकरण कार्यक्रम आयोजित करने की आवश्यकता है.

नई दिल्ली: दिल्ली सरकार ने शुक्रवार (15 सितंबर) को हाईकोर्ट को आश्वासन दिया कि स्टेट मेंटल हेल्थ अथॉरिटी (एसएमएचए) के गठन की प्रक्रिया जारी है और मामले पर तुरंत एक्शन लेने के लिए सक्रिय रूप से कार्रवाई की जा रही है. दिल्ली सरकार के वकील ने मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा की अध्यक्षता वाली पीठ को बताया कि उपराज्यपाल ने मंजूरी दे दी है. अब आगे की मंजूरी के लिए फाइल को गृह मंत्रालय के माध्यम से राष्ट्रपति के पास भेजा जाना है.

अदालत एसएमएचए के गठन सहित मानसिक स्वास्थ्य कानून के प्रावधानों को लागू करने के लिए दो याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी.

पिछले महीने, कोर्ट ने मेंटल हेल्थकेयर एक्ट के तहत स्थायी एसएचएमए का गठन न करने को “दुर्भाग्यपूर्ण” करार दिया था और अदालत के समक्ष दिल्ली सरकार के सचिव (स्वास्थ्य) की उपस्थिति की मांग की थी.

मामले में दायर एक स्टेटस रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली सरकार ने अनुरोध किया कि अधिकारी को व्यक्तिगत उपस्थिति से छूट दी जाए और अदालत द्वारा सक्षम प्राधिकारी की मंजूरी के लिए दो महीने का समय दिया जाए. सरकार ने कहा,

जीएनसीटीडी के एच एंड एफडब्ल्यू के सचिव एसएमएचए के गठन के लिए सक्षम प्राधिकारी की मंजूरी और जल्द से जल्द कार्रवाई के लिए संबंधित अधिकारियों के साथ सक्रिय रूप से मामले को आगे बढ़ा रहे हैं. जीएनसीटीडी के एच एंड एफडब्ल्यू विभाग ने भारत सरकार के गृह मंत्रालय के साथ मामले को आगे बढ़ाकर मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम, 2017 और मानसिक स्वास्थ्य देखभाल (राज्य मानसिक स्वास्थ्य प्राधिकरण) नियम, 2018 की जरूरतों और निर्देशों के अनुसार एसएमएचए के गठन की दिशा में जरूरी कदम उठाए हैं और उठाएंगे.

इसे भी पढ़ें: मिलिए थेरेपी डॉग स्टेला से, जो एंग्जाइटी और डिप्रेशन को कम करने में लोगों की मदद कर रही है

उन्होंने आगे कहा,

दिल्ली के माननीय उपराज्यपाल ने एसएमएचए के गठन के प्रस्ताव पर सहमति व्यक्त की है और निर्देश दिया है कि प्रस्ताव को प्रावधानों के अनुसार, भारत के माननीय राष्ट्रपति की मंजूरी लेने के लिए राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (संशोधन) अधिनियम, 2023 की धारा 45डी के तहत भारत सरकार के गृह मंत्रालय को भेजा जाएगा.

पीठ ने मामले की अगली सुनवाई 28 नवंबर तक टालते हुए सरकार से मामले में नई स्टेट्स रिपोर्ट दाखिल करने को कहा. इस पीठ में न्यायमूर्ति संजीव नरूला भी शामिल थे.

कोर्ट ने पिछले महीने दिल्ली सरकार को निर्देश दिया था

जिला मानसिक स्वास्थ्य प्राधिकरणों के गठन सहित मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम, 2017 और मानसिक स्वास्थ्य देखभाल (राज्य मानसिक स्वास्थ्य प्राधिकरण) नियम, 2018 के तहत अन्य सभी वैधानिक प्रावधानों का अनुपालन करें.

याचिकाकर्ता वकील अमित साहनी ने अपनी याचिका में कहा है कि मेंटल हेल्थ केयर एक्ट का उद्देश्य मानसिक बीमारियों से पीड़ित लोगों को मेंटल हेल्थकेयर और सर्विस प्रदान करना है. साथ ही सेवा और देखभाल के दौरान ऐसे लोगों की रक्षा करना, उन्हें बढ़ावा देना और उनके अधिकारों को पूरा करना है.

इसे भी पढ़ें: अच्‍छी सेहत और मानसिक स्थिति के साथ-साथ मनोचिकित्सक निभाते हैं ट्रांसजेंडरों की सर्जरी में अहम भूमिका

उन्होंने दिल्ली सरकार को एसएमएचए और जिला मानसिक स्वास्थ्य समीक्षा बोर्ड गठित करने का निर्देश देने की मांग की है.

एक अन्य याचिकाकर्ता श्रेयस सुखीजा ने भी कानून के आदेश के अनुसार प्राधिकरण के गठन की मांग की है.

साहनी ने अपनी याचिका में कहा है कि अधिनियम की धारा 73 में कहा गया है कि एक एसएमएचए अधिसूचना द्वारा एक जिले या जिलों के समूह के लिए मानसिक स्वास्थ्य समीक्षा बोर्ड का गठन करेगा.

याचिका में दावा किया गया है कि काफी समय बीत जाने के बाद भी, दिल्ली सरकार एसएमएचए का गठन करने में विफल रही है और पुराने प्राधिकरण को अंतरिम उपाय के रूप में जारी रखा जा रहा है, जैसा कि 1987 के पिछले अधिनियम के तहत गठित किया गया था. याचिका में कहा गया है,

ज्यादातर लोग जो मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का अनुभव करते हैं वे पूरी तरह से ठीक हो जाते हैं या उन समस्याओं के साथ रहने और उनका प्रबंधन करने में सक्षम होते हैं, खासकर जब उन्हें उचित उपचार मिलता है. मानसिक अस्वस्थता से जुड़े सामाजिक कलंक के कारण, मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं वाले लोग अपने जीवन के सभी पहलुओं में भेदभाव का अनुभव कर सकते हैं.

इसमें कहा गया है कि कलंक के कारण कई लोगों की समस्याएं और भी बदतर हो जाती हैं और उन्हें न केवल समाज से, बल्कि अपने परिवारों, दोस्तों और नियोक्ताओं से भी भेदभाव का सामना करना पड़ता है.

याचिका में यह भी कहा गया है कि मानसिक बीमारी से पीड़ित व्यक्ति एक्ट के तहत अपने अधिकारों को इस्तेमाल करने के लिए मुफ्त कानूनी सेवाएं पाने का हकदार है, लेकिन इस संबंध में दिल्ली स्टेट लीगल सर्विस अथॉरिटी (डीएसएलएसए) द्वारा कोई प्रोग्राम शुरू नहीं किया गया है.

इसमें कहा गया है कि डीएसएलएसए द्वारा एक नीति कार्ययोजना तैयार करने की जरूरत है और मजिस्ट्रेटों, पुलिस अधिकारियों और कस्टोडियल इंस्टीट्यूड के प्रभारी लोगों के लिए एक संवेदीकरण कार्यक्रम आयोजित करने की जरूरत है.

इसे भी पढ़ें: मानसिक स्वास्थ्य को समावेशी और जागरूकता के माध्यम से सुलभ बना रहा है ‘योर्स माइंडफुल’ 

(यह स्टोरी एनडीटीवी स्टाफ द्वारा एडिट नहीं की गई है और एक सिंडिकेटेड फीड से प्रकाशित हुई है.)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Exit mobile version