जलवायु परिवर्तन
तेजी से बढ़ रहा NO2 उत्सर्जन, दक्षिण एशियाई देशों के लिए बना चिंता का सबब: रिपोर्ट
नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (NO2) ईंधन के जलने पर हवा में मिलती है और यह कारों, ट्रकों और बसों, पॉवर प्लांट्स और ऑफ-रोड उपकरणों के उत्सर्जन से बनती है। इससे वयस्कों और बच्चों में खतरनाक श्वसन संबंधी बीमारियां, गंभीर अस्थमा के साथ-साथ फेफड़ों के विकास पर प्रभाव पड़ता है
नई दिल्ली: अत्यधिक प्रतिक्रियाशील नाइट्रोजन ऑक्साइड (NOx) के तहत वर्गीकृत NO2 वायुमंडल का एक बड़ा प्रदूषक मानी जाती है. भारत सहित कई दक्षिण एशियाई देशों में हवा की गुणवत्ता पर इसका गंभीर असर देखने को मिल रहा है. दुनिया भर में हवा की गुणवत्ता पर नजर रखने वाली संस्था SOGA की ओर से 12 सितंबर को जारी रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत 2019 में बांग्लादेश के बाद 40 भाग प्रति मिलियन के साथ NO2 उत्सर्जन स्तर के मामले में दूसरे स्थान पर रहा, जो विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के 10 भाग प्रति मिलियन के मानक स्तर से करीब चार गुना अधिक है. नाइट्रोजन डाइऑक्साइड के ऊंचे उत्सर्जन स्तर वाले अन्य दो देशों में नेपाल और पाकिस्तान शामिल हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि NO2 इन देशों में पर्यावरण के लिए एक बड़ा खतरा बनती जा रही है.
ज्यादा NO2 उत्सर्जन स्तर बढ़ने के प्रमुख कारण
सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) में रिसर्च एंड एडवोकेसी की कार्यकारी निदेशक और रिपोर्ट समीक्षक रायचौधरी ने SOGA की रिपोर्ट की चर्चा करते हुए कहा,
हम अपने शहरों में पार्टिकुलेट मैटर (पीएम 2.5 स्तर) पर फोकस कर रहे हैं, जो बहुत महत्वपूर्ण है. साथ ही हम यह भी समझ रहे हैं कि हमें नाइट्रोजन डाइऑक्साइड सहित उन सभी गैसीय उत्सर्जनों पर ध्यान देने की सख्त जरूरत है, जो हवा में पीएम 2.5 के स्तर को बढ़ा रहे हैं. NO2 जैसी गैसें एक बार हवा में मिलने के बाद वायुमंडलीय परिवर्तनों से गुजरती हैं और द्वितीयक कण (सेकेंड्री पार्टिकल्स) बनाती हैं, यह अन्य गैसों के साथ प्रतिक्रिया करके नाइट्रेट कण बनाते हैं. नाइट्रेट कणों के निर्माण कर ये गैस कण वायु प्रदूषण में वृद्धि कर रहे हैं और हवा में PM2.5 के स्तर को बढ़ा रहे हैं.
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रायचौधरी ने कहा कि NO2 उत्सर्जन में बड़ी वृद्धि गाड़ियों की संख्या बढ़ने के कारण हुई है. इन वाहनों में ईंधन के जलने से निकलने वाली NO2 हवा में घुलती जा रही है. इसमें कारों, ट्रकों, बसों, जैसे वाहनों के अलावा बिजली संयंत्रों और ऑफ-रोड उपकरणों से होने वाला उत्सर्जन भी शामिल है. उन्होंने कहा कि NO2 का नाम अक्सर वाहनों से पैदा होने वाले वायु प्रदूषण के सबसे प्रमुख कारणों के रूप में लिया जाता है, जो भारतीय शहरों में सबसे अधिक है. उन्होंने आगे कहा,
ज्यादा वाहनों का सीधा सा मतलब है NO2 के ज्यादा उत्सर्जन से हवा में PM2.5 के स्तर में वृद्धि.
उन्होंने कहा कि वाहनों से निकलने वाली जहरीली NO2 गैसे के अलावा तेजी से ऊर्जा उत्पादन, औद्योगीकरण, जनसंख्या वृद्धि, परिवहन गतिविधियों में वृद्धि होने और पराली जैसे कृषि अपशिष्टों को जलाना भी हवा में PM2.5 के स्तर में वृद्धि होने का कारण है.
अरबन एमिशन संस्था के संस्थापक और निदेशक डॉ. सारथ गुट्टीकुंडा ने कहा कि NO2 हवा में ओजोन परत को बनाने वाली गैसों के बीच प्रतिक्रियाओं को बढ़ावा देती है, जिससे कि ओजोन परत को नुकसान पहुंचता है. नाइट्रोजन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन स्तर को कम करने के महत्व के बारे में बात करते हुए, डॉ गुट्टीकुंडा ने आगे कहा,
यदि आप भारत या अन्य दक्षिण एशियाई देशों के कुल NO2 उत्सर्जन स्तरों की तुलना दुनिया के अन्य क्षेत्रों से करें, तो इसका कुल स्तर तो फिलहाल उससे कम है, लेकिन इसकी वृद्धि की दर काफी अधिक है, क्योंकि NO2 उत्सर्जन को नियंत्रित करने के लिए तकनीक का अभाव है. दूसरी ओर इन देशों में वाहनों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है. यदि इस पर ध्यान नहीं दिया गया, तो NO2 का तेजी से बढ़ता हुआ उत्सर्जन स्तर न केवल हवा में हानिकारक कणों के प्रदूषण को बढ़ाएगा और ओजोन परत को भी नुकसान पहुंचाएगा, जो हमारी सेहत के लिए काफी नुकसानदायक होगा.
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नाइट्रोजन डाइऑक्साइड का हमारी सेहत पर असर
हवा में NO2 का तेजी से बढ़ता स्तर पार्टिकुलेट मैटर यानी पीएम को बढ़ा रहा है. साथ ही यह हमें हानिकारक विकिरणों से बचाने वाली वायुमंडल की रक्षात्मक ओजोन लेयर को भी कमजोर कर रहा है, जो हमारी सेहत के लिए काफी नुकसानदायक है. इसके साथ ही रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि इससे सांस की बीमारियां, गंभीर अस्थमा के लक्षण और वयस्कों और बच्चों में फेफड़ों के विकास में बाधा आ सकती है. रायचौधरी ने कहा कि NO2 गैस क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (COPD) जैसी खतरनाक बीमारी का कारण भी बन सकती है और यह बच्चों की अचानक मौत के बढ़ते मामलों के लिए भी जिम्मेदार है.
कैसे कम किया जाए हवा में NO2 का स्तर?
NO2 के उत्सर्जन को घटाने के लिए भारत द्वारा किए गए प्रयासों की चर्चा करते हुए रायचौधरी ने कहा कि भारत में उत्सर्जन मानकों की एक नीति है – भारत स्टेज उत्सर्जन मानक यानी बीएस नॉर्म्स, जो वाहनों द्वारा नाइट्रोजन डाइऑक्साइड उत्सर्जन को कम करने पर केंद्रित है, लेकिन इसे लागू करने के बावजूद यह उत्सर्जन में अपेक्षित स्तर तक कमी नहीं कर पाया है.
भारत स्टेज उत्सर्जन मानक मानदंडों के तहत हमने भारत स्टेज IV (यूरो IV समकक्ष) से भारत स्टेज VI (यूरो VI समकक्ष) तक छलांग लगाई है, जिसका उद्देश्य नाइट्रोजन ऑक्साइड (एनओएक्स), पार्टिकुलेट मैटर (पीएम) और हाइड्रोकार्बन (एचसी) को कम करना है, लेकिन हमें अभी बहुत लंबा रास्ता तय करना है. इसके लिए हमें बेहतर निगरानी प्रणालियों की आवश्यकता है.
बढ़ते वायु प्रदूषण संबंधी SOGA की रिपोर्ट में कहा गया है कि देशों को NO2 उत्सर्जन को कम करने की दिशा में अधिक ध्यान देने और परिवहन उत्सर्जन, स्वच्छ ऊर्जा और कृषि अपशिष्ट (एग्री वेस्ट) जलाने सहित अन्य मुद्दों पर कठोर नीतियों को लागू करते हुए इसके लिए विशेष कार्यक्रम चलाने की सख्त जरूरत है.